इच्छित संतान प्राप्ति के सुगम उपाय

इच्छित संतान प्राप्ति के सुगम उपाय  

बसंत कुमार सोनी
व्यूस : 178810 | मई 2006

यदि किसी दंपति की संतान संबंधी कोई समस्या है जैसे गर्भ न ठहरना, गर्भपात हो जाना, मृत बच्चे का जन्म होना, संतान का बीमार रहना, मंदबुद्धि बच्चे का जन्म आदि तो घरेलू उपाय कर स्वस्थ, बुद्धिमान तथा योग्य संतान प्राप्त कर सकते हैं। यहां प्रस्तुत हैं इन्हीं समस्याओं के निदान के अनेकानेक उपाय...

संतान प्राप्ति की कामना मनु महाराज द्वारा वर्णित तीन नैसर्गिक इच्छाओं में से एक है। निःसंतान रहना एक भयंकर अभिशाप है। यह पूर्व जन्म में किए गए कर्मों के फल है या फल का भोग है। संतान हो किंतु दुष्ट और कुल -कीर्तिनाशक हो तो यह स्थिति और अधिक कष्टदायक होती है। जिनके संतान नहीं होती है भारत में उनकी तीन श्रेणियां मानी जाती हैं।

1. जन्मवंध्या 2. काक वंध्या 3. मृतवत्सा।

काक वंध्या वह होती है जिसके केवल एक संतान होती है।

2. मृतवत्सा के संतान तो होती है पर जीवित नहीं रहती।

3. जन्मवंध्या के संतान होती ही नहीं। यहां तीनों श्रेणियों की स्त्रियों की इस अभिशाप से मुक्ति के कुछ टोटके दिए जा रहे हैं जिनका निष्ठापूर्वक प्रयोग करने से लाभ मिल सकता है।


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जन्मवंध्या: रासना नामक एक जड़ी को रविवार के दिन जड़ डंठल और पत्ते सहित उखाड़ लाएं। इसे 11 वर्ष से कम आयु अर्थात कुमारी कन्या के हाथ से एक रंग की गाय के दूध् में पिसवा कर रख लें। ऋतु काल में मासिक धर्म के दिनों में इसे चार तोले के हिसाब से एक सप्ताह पीने से संतान उत्पन्न होती है। ध्यान रहे यह प्रयोग तीन चार बार दोहराना पड़ सकता है।

  • एक रुद्राक्ष और एक तोला सुगंध रासना को कुमारी कन्या के हाथ से एक रंग की गाय के दूध में पिसवा कर पीएं। ‘¬ ददन्महागणपते रक्षा-मृत मत्सुत देहि’ इस मंत्र से औषधि को 21 बार अभिमंत्रित कर ले।

काकवंध्या: काक वंध्या वह कहलाती है जिसके एक ही बार संतान हो। यदि ऐसी स्त्रियां संतान की इच्छा रखती हों तो ये प्रयोग करें।

  • रवि पुष्य योग में दिन को असगंध की जड़ उखाड़ लाएं और भैंस के दूध के साथ पीस कर दो तोला रोज खाएं।
  • विष्णुकांता की जड़ रविपुष्य के दिन ला कर पूर्वोक्त प्रकार से भैंस के दूध के साथ पीस पर भैंस के ही दूध के मक्खन के साथ सात दिन तक खाने से संतान प्राप्त होती है। यह प्रयोग ऋतुकाल में ही करें।

मृतवत्सा: मृतवत्सा वह होती है जिसके संतान होती तो अवश्य है परंतु जीवित नहीं रहती। इसमें गाय का घी काम में लिया जाना चाहिए। खास कर उसका जिसका बछड़ा जीवित हो।

    • मजीठ, मुरहठी, कूट, त्रिफला, मिश्री, खरैंटी, महामेदा, ककोली, क्षीर काकोली, असगंध की जड़, अजमोद, हल्दी, दारु हल्दी, हिंगु टुटकी, नीलकमल, कमोद, दाख, सफेद चंदन और लाल चंदन ये सब वस्तुएं चार-चार तोला लेकर कूट-छानकर एक किलो घी में मिलाकर उपलों पर मंदी आंच पर पकानी चाहिए। जब केवल घी की मात्रा के बराबर रह जाए तो छान कर रख लेना चाहिए। इसका प्रयोग पति-पत्नी दोनों करें तो पुत्र उत्पन्न होगा जो स्वस्थ तथा सुंदर होगा। जब तक इन वस्तुओं का सेवन किया जाए तब तक हल्का भोजन करना चाहिए। भगवान के प्रति पूर्ण आस्था रखते हुए दिन में सोने, तामसिक पदार्थों के सेवन, भय, चिंता, क्रोध आदि तथा तेज सर्दी और गर्मी से बचना चाहिए। कुछ और प्रयोग भी हैं जो इस प्रकार हैं।
    • ऋतु काल में नए नागकेसर के बारीक चूर्ण को गाय के घी के साथ मिला कर खाने से भी संतान प्राप्त होती है।
    • जटामांसी (एक जड़ी का नाम) को चावल के पानी के साथ पीने से संतान प्राप्त होती है।
    • मंगलवार को कुम्हार के घर जाएं और कुम्हार से प्रार्थना पूर्वक मिट्टी के बर्तन काटने वाला डोरा ले आएं। उसे किसी गिलास में जल भर कर उसमें डाल दें। कुछ समय पश्चात डोरे को निकाल लें और वह पानी पति-पत्नी दोनों पी लें। यह क्रिया मंगलवार को ही करें। अगर संभव हो तो पति-पत्नी रमण करें। गर्भ की स्थिति बनते ही डोरे को हनुमान जी के चरणों में रख दें। बार-बार गर्भपात होने पर

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    • मुलहठी, आंवला और सतावर को भली भांति पीस कर कपड़ाछान कर लें और इसका सेवन रविवार से प्रारंभ करें। गाय के दूध के साथ लगभग 6 ग्राम प्रतिदिन लें।
    • मंगलवार को लाल कपड़े में थोड़ा सा नमक बांध लें। इसके बाद हनुमान के मंदिर जाएं और पोटली को हनुमान जी के पैरों से स्पर्श कराएं। वापस आकर पोटली को गर्भिणी के पेट से बांध दें गर्भपात बंद हो जाएगा। पुत्र प्राप्ति हेतु
    • विजोरे की जड़ को दूध में पका कर घी में मिला कर पीएं। ऋतुकाल में इस प्रयोग को प्रारंभ कर सम संख्या वाले दिनों में समागम करने से पुत्र प्राप्त होता है।
    • पुत्राभिलाषियों को अपने घर में स्वर्ण अथवा चांदी से निर्मित सूर्य-यंत्र की स्थापना करनी चाहिए। यंत्र के पूर्वाभिमुख बैठकर दीपक जलाकर यं त्रऔर सूर्य देव को प्रणाम करते हुए सूर्य मंत्र का 108 बार नित्य श्रद्धा से जप करना चाहिए। दीपक में चारों ओर बातियां (बत्तियां) होनी चाहिए। घृत का चतुर्मुखी दीपक जप-काल में प्रज्वलित रहना चाहिए।
    • षष्ठी देवी का एक वर्ष तक पूजन अर्चन करने से पुत्र-संतान की प्राप्ति होती है। ऊँ ह्रीं षष्ठी देव्यै स्वाहा मंत्र का प्रतिदिन 108 बार जप करते हुए षष्ठी देवी चालीसा, षष्ठी देवी स्तोत्र का पाठ करना चाहिए। कथा भी पढ़नी सुननी चाहिए।
    • श्रावण शुक्ल एकादशी का पुत्रदा एकादशी व्रत पुत्र सुख देता है। व्रत संपूर्ण विधि से करें।
    • स्त्रियां पुत्रदायक मंगल व्रत कर सकती हैं जिसे बैशाख या अगहन मास में प्रारंभ करना चाहिए। व्रत वर्ष भर प्रत्येक मंगल को करें और नित्य मंगल की स्तुति करें।
    • जिसको पुत्र प्राप्त नहीं हो रहा है वह स्त्री रविवार को प्रातः काल उठकर सिर धोकर खुले बाल फैलाकर उगते सूर्य को अघ्र्य दे और उनसे श्रेष्ठ पुत्र प्राप्ति की प्रार्थना करे। इस प्रकार 16 रविवार तक करे तो सफलता निश्चित प्राप्त होती है।
    • जिस स्त्री को पुत्र नहीं हो रहा हो वह अपने घर में 21 तोले का प्राण प्रतिष्ठित चैतन्य पारद शिवलिंग स्थापित कराए और प्रत्येक सोमवार को सिर धोकर पीठ पर बाल फैलाकर ‘ऊँ नमः शिवायः’ मंत्र से उस पारद शिवलिंग पर धीरे-धीरे जल चढ़ाए और 7 बार उस जल का चरणामृत ले। इस प्रकार 16 सोमवार करे तो पुत्र प्राप्ति के लिए शंकर से की जाने वाली प्रार्थना अवश्य फलित होती है।
    • पति को चाहिए कि वह पत्नी को कम से कम 4 ( रत्ती का शुद्ध पुखराज स्वर्ण अंगूठी में गुरु पुष्य नक्षत्र में जड़वाकर तथा गुरु मंत्रों से अभिमंत्रित करवाकर शुभ मुहूर्त में पत्नी को धारण करवाए। इससे पुत्र प्राप्ति की संभावना बढ़ती है।

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  • प्राण प्रतिठित संतानगोपाल यंत्र प्राप्त कर उसे एक थाली में पीले पुष्प की पंखुड़ियां डालकर स्थापित करें। यंत्र का पूजन पुष्प, कुंकुंम अक्षत से करें, दीपक लगाकर (यंत्र के दोनों ओर घी के दीपक लगाएं) निम्न मंत्र का पुत्र जीवा माला से एक माला जप नित्य करें। निरंतर 21 दिन तक करें तो सफलता प्राप्त होती है। ।।‘‘ऊँ हरिवंशाय पुत्रान् देहि देहि नमः।।’’ 21 दिन पश्चात यंत्र और माला बहते जल में प्रवाहित करे दें।
  • रक्त गुणा की जड़ को शुभ योग में प्राप्त कर तांबे की ताबीज में रखकर भुजा या कमर में धारण करने वाली स्त्री को पुत्र की प्राप्ति होती है।
  • एक बेदाग नीबू का पूरा रस निचोड़ लें। इसमें थोड़ा सा नमक स्वाद के अनुसार मिला लें। अब इस द्रव को लड्डू गोपाल के आगे थोड़ी देर के लिए रख दें। रात को सोने से पूर्व स्त्री इस द्रव को पी ले और पति-पत्नी अपने धर्म का पालन करें तो अवश्य पुत्र ही होगा। ध्यान रहे यह क्रिया केवल एक बार ही करनी है, बार-बार नहीं।
  • यदि संतान न हो रही हो तो मंगलवार को मिट्टी के बर्तन में शुद्ध शहद भर कर ढक्कन लगा कर श्मशान में गाड़ दें।
  • उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र में नीम की जड़ ला कर पास रखें, संतान अवश्य होगी।
  • वास्तुशास्त्र के अनुसार घर में बोरिंग के पानी टैंक या कुएं का उत्तर-पश्चिम कोण में होना भी संतान उत्पत्ति में बाधक माना गया है। उपाय के लिए पांचमुखी हनुमान जी का चित्र ऐसे लगाएं कि वह पानी को देखें।
  • असगंध का भैंस के दूध के साथ सात दिन तक लें। यह उपाय पुष्य नक्षत्र में रविवार को शुरू करें। इससे पुत्र उत्पन्न होता है।
  • गोखरू, लाल मखाने, शतावर, कौंच के बीज, नाग बला और खरौंटी समान भाग में पीस कर रख लें। इस चूर्ण को रात्रि में पांच ग्राम दूध के साथ लें।
  • रविवार पुष्य योग के दिन (पुष्य नक्षत्र) सफेद आक की जड़ गले में बांधने से भी गर्भ की रक्षा होती है। इसके लिए धागा लाल ही प्रयोग करें।
  • ‘‘ऊँ ह्रां ह्रीं ह्रूं पुत्रं कुरु कुरु स्वाहा‘‘- यह जप यंत्र है। वांछित यंत्र स्वर्ण अथवा चांदी के अतिरिक्त स्वर्ण पालिश वाला यंत्र भी समान रूप से लाभकारी होता है। निःसंतान दंपतियों को सूर्य का स्तवन भी करना चाहिए जैसे सूर्याष्टक, सूर्यमंडलाष्टकम् आदि। इन स्तोत्रों का निरंतर श्रद्धा भक्ति पूर्वक पाठ जातक को तु.रंत सुखानुभूति देता है। स्वरुचि के अनुसार सूर्य देवता की अन्य किसी भी स्तुति का पाठ कर सकते हैं। (पति पत्नी दोनों अथवा कोई भी एक)
  • किसी योग्य ज्योतिष के परामर्शानुसार अथवा कुलगुरु, पुरोहित से सलाह लेकर संतान गोपाल मंत्र का जप स्वयं करें अथवा योग्य, अनुभवी कर्मकांडी ब्राह्मण से विधि विधान के साथ करावें। मंत्रानुष्ठान एक लाख मंत्र जप शास्त्र सम्मत माना गया है। इसमें निश्चित समय, निश्चित स्थान, निश्चित आसन और निश्चित संख्या में प्रतिदिन जप करने का विधान है।


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