कैसे हो क्रोध पर नियंत्रण

कैसे हो क्रोध पर नियंत्रण  

फ्यूचर समाचार
व्यूस : 9840 | अप्रैल 2007

क्रोध किसी भी नकारात्मक तनावपूर्ण स्थिति को व्यक्त करने की एक सहजात किंतु नकारात्मक शारीरिक, मानसिक, संवेगात्मक और मनोवैज्ञानिक (अंदर के जहर को उगलने की) प्रतिक्रिया है। अगर इस पर नियंत्रण न हो, तो यह न केवल किसी व्यक्ति विषेष के लिए बल्कि पूरे परिवार, समुदाय, समाज और संपूर्ण राष्ट्र के लिए घातक और खतरनाक हो सकता है।

एक शोध से पता चला है कि अमेरिका का हर पांचवां व्यक्ति क्रोध प्रबंध् ान की समस्या से ग्रस्त है। अगर क्रोध और रोष पर नियंत्रण न हो तो मनुष्य के व्यक्तिगत और व्यावसायिक रिष्तों में दरार आ जाती है, जो अंततः दिल के दौरे, उच्च रक्तचाप जैसी अनेक बीमारियों के पनपने में अहम भूमिका निभाती है। क्या क्रोध प्रबंधन जरूरी है? सेहत के खयाल से क्रोध प्रबंधन जरूरी है।

क्रोध का हल्का सा दौरा भी दिल के दौरे, गले या दिल में गांठ हो जाना, उच्च रक्तचाप, फालिज या लकवे, दिल की धड़कन की गड़बड़ी, बेचैनी, नींद की कमी, एसिडिटी आदि को जन्म दे सकता है। इनके अतिरिक्त इसके कारण रिश्तों में टूटन भी पैदा हो सकती है।

इसलिए जरूरी है कि हम क्रोध पर नियंत्रण की सारी तकनीकें इस तरह अपनाएं कि हमारी प्रणाली पर इसका कोई नुकसानदेह असर न पड़े। अतः क्रोध पर नियंत्रण के लिए सेहत के विभिन्न अवयवों का अनुकूल संयोजन जरूरी है। इस तरह, मन और शरीर के विचार से या आयुर्वेद के दृष्टिकोण से स्वास्थ्य का तात्पर्य शरीर, दिमाग, हृदय, आत्मा और वातावरण के अनुकूल संयोजन से है।

मनुष्य के दो संवेग होते हैं - एक डर का और दूसरा प्रेम का। डर के संवेग से जलन, नफरत, नकारात्मक प्रतिस्पर्धा, क्रोध, दुष्मनी, उत्तेजना, छिद्रान्वेषण, हिंसा, बदला, हठ, काम, लालच, अहं, आत्मविष्वास में कमी, निष्ठा में कमी आदि अनेक दुर्गुण पनपते हैं। ये सारे ही दुर्गुण मनुष्य के जीवन को गलत रास्ते पर ले जाते हैं और वह अंधेरों में भटक जाता है।

दूसरी तरफ, प्रेम के संवेग से मनुष्य के जीवन में करुणा, नम्रता, उदारता, सहानुभूति, ईमानदारी, सुरक्षा, शांति और सौहार्द, आषावादी भावना, निष्ठा, विष्वास, परोपकारिता, क्षमाषीलता आदि अनेक गुणों का जन्म होता है। जब क्रोध आता है तो हम कैसा महसूस करते हैं? हम डरे-डरे से, हतोत्साहित महसूस करते हैं। हमारे मन में नकारात्मकता घर कर लेती है, लोगों के प्रति वैर का भाव पनप उठता है और बिना कारण दूसरों के दोष निकालने की प्रवृत्ति जाग उठती है।

हम चिड़चिड़े, हठी और प्रतिषोधी हो जाते हैं। जब हमें क्रोध आता है तो अन्य लोग कैसा महसूस करते हैं? जब हम दूसरों पर क्रोध करते हैं तो उनमें तनाव पनपता है, वे आहत होते हैं। ऐसे में उनके दिल की धड़कन अनियमित हो सकती है, उच्च रक्तचाप, बेचैनी, उŸोजना, अनिद्रा आदि के शिकार हो सकते हैं। क्रोध का कारण क्या है?

जैसा कि ऊपर कहा गया है, जब हम बहुत थक जाते हैं, हम पर काम का बहुत बोझ होता है या फिर जब हमारे भीतर हताशा घर करती है, तब हम में संवेग पनपता है और इसी संवेग के कारण क्रोध उत्पन्न होता है। क्रोध का दो रूपों में वर्गीकरण किया जा सकता है- अनुकूल (नेक) और प्रतिकूल (बद)। अनुकूल क्रोध सकारात्मक तथा रचनात्मक होता है।

यह क्षणिक होता है- एक पल आता है अगले ही पल खत्म हो जाता है। इसमें न तो लालच की भावना होती है, न स्वार्थपरता की और न ही अहं की। इससे कोई हानि नहीं पहुंचती बल्कि इसके पीछे हित की भावना छिपी होती है जैसे बच्चों में अनुशासन बनाए रखने के लिए उनके प्रति उनके माता-पिता या शिक्षक का क्रोध। इसके विपरीत प्रतिकूल क्रोध घातक होता है। यह एक बार आ जाए तो फिर इससे निजात मिलना मुश्किल होता है।

इसमें अहं, स्वार्थपरता, लालच आदि की भावना छिपी होती है। इससे व्यक्ति को नुकसान पहुंचता है- जिसे क्रोध आता है उसे भी, जिस पर आता है उसे भी। क्रोध और हृदय: वर्ष 2002 में प्रकाशित एक शोध से पता चला है कि क्रोध के फलस्वरूप 55 वर्ष से कम की आयु वाले मरीजों में दिल के दौरे का तीन गुणा अधिक जोखिम रहता है जबकि इससे अधिक आयु के लोगों में यह जोखिम छह गुणा से अधिक हो जाता है।

क्रोध पर नियंत्रण कैसे हो: क्रोध पर नियंत्रण की दो प्रमुख विधियां है- अल्पकर्मलक और दीर्घकर्मलक। क्रोध हमारे मन में रहता है और यह हमारे उठती गिरती भावनाओं का, विचारों सीधा परिणाम होता है। कोई घटना आपको गुस्सा नहीं दिलाती, बल्कि गुस्से का आना इस बात पर निर्भर करता है कि उस घटना के प्रति आपकी सोच क्या है, उसे लेकर आप कैसा महसूस करते हैं।

अल्पकर्मलक विधि: किसी भी काम में उतावलेपन से बच,ंे उतावलापन क्राध्े ा क े पनपने का सबसे आम कारक है। क्रोध उत्पन्न करने वाले हालात से बचें। समय का उचित उपयोग करें, खुद पर नियंत्रण रखें। क्रोध का आभास होते ही अपना मंुह बंद कर लें और तब तक बंद रखें जब तक यह आभास खत्म न हो जाए।

जैसे धार्मिक शब्दों का जप करें। इन धार्मिक शब्दों के जप से आपको सकून मिलेगा, शांति मिलेगी, आनंद मिलेगा और आप में मित्रता का भाव जन्म लेगा। कुछ गहरी और लंबी सांसें लें। 100 तक गिनें- ऐसा यह देखकर करें कि क्रोध का आवेग कितना प्रबल है। फुर्ती से कुछ दूर टहल आएं। क्रोध का आभास हो तो एक ग्लास पानी पी लें। संगीत सुनकर अपना ध्यान बंटाएं। ऐसी चर्चा का विषय बदल दें जो भड़काऊ हो। कोशिश करें कि आपको आराम मिले या फिर सोने चले जाएं।

दीर्घकालिक नियंत्रण विधि: रोज सुबह खाली पेट दो ग्लास पानी पीएं। रोज आधा घंटे तक व्यायाम करें। धूम्रपान न करें, तंबाकू न खाएं। रोज सुबह शाम 20 मिनट तक ध्यान करें। शरीर का समुचित भार बनाए रखें। शरीर की रोज स्वयं मालिश करें। केवल 5 मिनट तक। सही स्थान पर, सही समय, सही ढंग से, सही वातावरण में, सही मात्रा में सही भोजन लें। तामसिक अथवा राजसिक नहीं बल्कि सात्विक शाकाहारी आहार लें।

शाक-सब्जियों, फलों, सलाद और बादाम जैसे आहार लें। तली या मीठी चीजों जैसा रद्दी भोजन न करें। व्यायाम में अनियमितता न बरतें। कोलेस्ट्राॅल का स्तर सामान्य रखें। जीवन में संतुलन बनाए रखें। पर्याप्त आराम करें - रोज 6 से 8 घंटे। काम, क्रोध, लोभ, अहं और मोह से बचें। शांतिपूर्ण तरीके से किसी लक्ष्य की प्राप्ति के लिए सही विकल्प का चयन करें। ध्यान रखें कि किसी के साथ दोस्ती हो तो आत्मीय हो।

दिनचर्या ठीक रखें और साप्ताहिक, मासिक और वार्षिक कार्यक्रम निर्धारित करें। विटामिन जैसे एंटिआॅक्सिडेंट का सेवन करें। किसी की आलोचना न करें और न ही किसी की आलोचना को दिल से लगाएं। हर किसी से प्रेम करें। इस प्रकार क्रोध एक स्वाभाविक गुण है।

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