ग्रह प्रभावशाली या कर्म

ग्रह प्रभावशाली या कर्म  

डॉ. अरुण बंसल
व्यूस : 8004 | अप्रैल 2007

वैज्ञानिकों की सर्वदा एक जिज्ञासा रही है कि ग्रह मानवीय जीवन पर कैसे असर डालते हैं। भौतिक जीवन में ऐसा प्रतीत होता है कि मनुष्य के कर्म ही उसके फल का कारण होते हैं जबकि ज्योतिष के अनुसार मनुष्य ग्रहों के प्रभाव से बंधा हुआ है और वह वही करता है जो ग्रह उससे करवाते हैं।

इस तथ्य की परख कैसे की जाए क्योंकि यदि कुछ फल प्राप्त है तो कुछ कर्म भी हुआ होगा। ऐसा ग्रहों के कारण हुआ या कर्म के कारण यह कैसे जानें? यदि कोई डॉक्टर बना तो अपनी मेहनत के कारण या ग्रहों के कारण? इसी प्रकार अमीर होना, स्वस्थ होना या विजयी होना व्यक्ति विशेष के भाग्य में, उसकी कुंडली में विदित था या इसके निमित्त उसने मेहनत की?

वैज्ञानिक स्तर पर इस तथ्य की परख हम केवल सांख्यिकी द्वारा कर सकते हैं। इसके लिए हम अनेक जातकों के जन्म विवरण एकत्रित करते हैं और उन्हें दो भागों में बांट लेते हैं - कुछ डॉक्टरों की कुंडलियां एवं कुछ अन्य व्यवसायियों की। इसी प्रकार अमीर व गरीब की। तदुपरांत दोनों समूहों में ग्रहों की बारंबारता को गिनते हैं। यदि दोनों समूहों में किसी ग्रह का किसी विशेष राशि या भाव में अधिक अंतर आता है तो यह ग्रह उस स्थिति में समूह की वास्तविक स्थिति को दर्शाता है। इस प्रकार सभी ग्रहों का विभिन्न राशियों, भावों, नक्षत्रों आदि में अंतर देखने पर यह ज्ञात हो जाता है कि कौन सी स्थिति उसके अनुरूप है और कौन सी विपरीत।

उपर्युक्त विधियों से तथ्य की परख करने के लिए अनेक उदाहरण कुंडलियों की अखिल भारतीय ज्योतिष संस्था संघ एवं फ्यूचर पाॅइंट द्वारा सांख्यिकी आंकड़े तैयार किए गए हैं। इस हेतु कुछ चिकित्सकों और विभिन्न व्यवसायों से जुड़े अन्य पेषेवर लोगों की पत्रियां ली गईं और दोनों वर्गों की ग्रह स्थितियों की तुलना की गई और निम्नलिखित परिणाम सामने आए:


बृहत् कुंडली फल रिपोर्ट में पाएँ जीवन की सारी समस्याओं का हल


चिकित्सकों के वर्ग में मंगल का दषम भाव से संबंध दूसरे वर्ग की तुलना में बहुत अधिक प्रभावी होता है। बुध और शनि का योग भी दषम भाव में बहुत अधिक पाया गया। विष्लेषण से ज्ञात हुआ कि छात्र ने पढ़ा तो सही लेकिन उसका चिकित्सक बनना ग्रहों से नियंत्रित था।

  • सैकड़ों हृदय रोगियों की जन्मपत्रियां एकत्र की गईं और पाया गया कि गुरु, शुक्र, सूर्य दूसरे भाव में, चंद्र और राहु लग्न में, मंगल चैथे में, बुध दशम में एवं शनि नवम में आदि योग ही हृदय रोग उत्पन्न करते हैं। जिस प्रकार डीएनए के द्वारा यह जाना जा सकता है कि मनुष्य को कौन सा रोग हो सकता है, उसी प्रकार ग्रह स्थिति द्वारा भी रोग की पूर्व जानकारी हो सकती है।
  • लगभग 400 दम्पतियों की जन्मपत्रियों के मिलान से स्पष्ट हुआ है कि मंगल विशेष रूप से केवल प्रथम भाव में दुष्प्रभावी होता है। साथ ही अन्य ग्रह भी अलग-अलग स्थानों में अनपेक्षित फल देते हैं जैसे सूर्य तृतीय भाव में, चंद्रमा द्वादश में, बुध व शुक्र द्वितीय में, गुरु षष्ठ में, शनि दशम में व राहु एकादश में। इन सांख्यिकीय सूत्रों के अनुसार हम दो जातकों के समन्वय से 80 प्रतिषत तक सटीक फलकथन कर सकते हैं। इससे सिद्ध होता है कि जातकों की आपसी समझ-बूझ ही समन्वय बनाने में पूर्ण सक्षम नहीं है, बल्कि यह समझ-बूझ भी ग्रहों की देन है।
  • सूर्य प्रथम व चतुर्थ में, चंद्र द्वितीय व एकादश में, मंगल पंचम व षष्ठ में, बुध तृतीय व नवम में, गुरु द्वितीय में, शुक्र लग्न व द्वितीय में एवं राहु द्वादश में जातक को अविवाहित ही रखता है। इसके विपरीत सूर्य दशम में, चंद्र लग्न व दशम में, बुध एकादश में, गुरु नवम में, शुक्र द्वादश में व राहु पंचम में बहु विवाह योग बनाता है। अतः संन्यास या बहु विवाह के लिए व्यक्ति की मानसिक स्थिति भी ग्रहों द्वारा ही चलायमान होती है।
  • शेयर बाजार में उतार-चढ़ाव का पूर्वानुमान भी 70 प्रतिषत तक ग्रहों के गोचर पर निर्भर करता है और भविष्य में ग्रहों की स्थिति की गणना के आधार पर ही शेयर बाजार के उतार-चढ़ाव का अनुमान लगाया जा सकता है। सूर्य सिंह राशि में, चंद्रमा व मंगल कन्या में, गुरु सिंह व तुला में, शुक्र कुंभ में और शनि कर्क में शेयर में तेजी लाने में सक्षम है जबकि सूर्य मेष में, चंद्रमा कर्क में, मंगल मिथुन में, बुध कन्या में, गुरु वृश्चिक में, शुक्र कन्या में, शनि वृष में व राहु सिंह में।
  • इसी प्रकार वर्षा के अधिक या कम होने या फिर नहीं होने में भी ग्रहों की स्थिति की भूमिका अहम होती है। पिछले 50 वर्षों की वर्षा के अध्ययन से ज्ञात होता है कि सूर्य व मंगल ग्रह इसे सबसे अधिक नियंत्रित करते हैं। वहीं पहाड़ी इलाकों में वर्षा के होने या न होने में शनि और बृहस्पति की भूमिका भी होती है।

उपर्युक्त तथ्य इस बात को इंगित करते हैं कि प्राणी और वनस्पति या निर्जीव पदार्थ कर्म या फल देने में सक्षम और स्वतंत्र नहीं हैं। वे पूर्णतया ग्रहों की स्थिति पर निर्भर हैं और क्यों न हो, हर व्यक्ति व पदार्थ गुरुत्वाकर्षण शक्ति से बंधा हुआ है।

इस शक्ति के मूल में पिंड (Mass) अर्थात ग्रह ही हैं। यह शक्ति ही मनुष्य के मन और बुद्धि को हर लेती है और मनुष्य वही करने लगता है जो ग्रह चाहते हैं। ऐसा केवल प्रतीत होता है कि मनुष्य कोशिश कर रहा है। जैसा भाग्य, जो ग्रहों द्वारा निर्दिष्ट होता है, करवाता है वैसा वह करने लगता है।

इसका अर्थ यह नहीं कि मनुष्य कर्म ही छोड़ दे। जो भाग्य में है वही होगा, पर कर्म करना आवश्यक है। ऐसा देखने में आता है कि ग्रह 70-80 प्रतिशत तक व्यक्ति के भविष्य को दर्शाते हैं। लेकिन 100 प्रतिशत नहीं अर्थात कुछ प्रतिशत शेष रह जाता है जो किसी और शक्ति द्वारा निर्दिष्ट है या यूं कहिए कि कर्म के लिए प्रकृति ने कुछ प्रतिशत स्थान छोड़ा है। भाग्य तो अपने स्थान पर स्थिर है ही, उसे हम बदल नहीं सकते। अतः कर्म करके जो कुछ प्रकृति ने मनुष्य के लिए विकल्प छोड़ा है, मनुष्य का कर्तव्य है कि उसका उपयोग करे और भविष्य को सार्थक बनाए।

If you are facing any type of problems in your life you can Consult with Astrologer In Delhi



Ask a Question?

Some problems are too personal to share via a written consultation! No matter what kind of predicament it is that you face, the Talk to an Astrologer service at Future Point aims to get you out of all your misery at once.

SHARE YOUR PROBLEM, GET SOLUTIONS

  • Health

  • Family

  • Marriage

  • Career

  • Finance

  • Business


.