दोष तंत्र - निरंजनी कल्प

दोष तंत्र - निरंजनी कल्प  

कौलाचार्य जगदीशानन्द तीर्थ
व्यूस : 5831 | नवेम्बर 2015

भारतीय प्राच्य विद्याओं का अत्यंत विस्तृत इतिहास रहा है। देश, काल और परिस्थितियों के परिवर्तन के फलस्वरूप जहां एक ओर अनेक नवीन विधाओं का प्रचार-प्रसार बढ़ा वहीं अनेकानेक प्राच्य विद्याएं लुप्त होने के कगार पर आ गईं। इसका मुख्य कारण ये रहा कि ये विद्याएं अचूक परिणाम देती थीं इसलिए इन्हें गुरु शिष्य परंपरा के अंतर्गत सीमित रखा गया। इन्हीं सीमाओं के बंधन के परिणामस्वरूप इनका प्रचार-प्रसार सिमटकर सीमित लोगों तक ही रह गया और ये लुप्त होने के कगार पर आ गईं। गुरुओं का कहना था कि अचूक होने के कारण इन विद्याओं का गलत उपयोग भी किया जा सकता है इसलिए इन्हें गुप्त रखा गया है।

प्रत्येक गुरु की अपेक्षा यही रहती है कि उसे शिष्य के रूप में एक उचित पात्र मिले ताकि वह उसे यह या इस जैसी अन्य विद्याएं सिखाकर इस भार से मुक्त हो जाए कि उसके कारण संसार से किसी विद्या का ह्रास हो गया है। लेकिन इसे हमारी विडंबना ही कहा जा सकता है कि इस विद्या या ऐसी अन्य प्राच्य विद्याओं को भावी पीढ़ी तक पहुंचाने के लिए उन्हें योग्य शिष्य नहीं मिले और विद्या उनके साथ ही विलुप्त हो गई। उदाहरणार्थ ऐसी अनेक विद्याओं का यहां वर्णन किया जा रहा है जो लुप्तप्राय हैं।

लेखक ने स्वयं ऐसी अनेक विद्याओं का संकलन करने का एक प्रयास किया और सीखी भी। परंतु गुरु का निर्देश हमेशा मन-मस्तिष्क पर हावी रहता है कि या तो योग्य पात्र को ही सिखाना या फिर अपने साथ ही ले जाना। इनका वर्णन पुस्तकों में देना गुरुओं की दृष्टि में सामाजिक अपराध है क्योंकि उनका मानना है कि इन्हें सार्वजनिक करने के पश्चात ये आपके नियंत्रण क्षेत्र से बाहर हो जाएंगी और निरंकुश होकर जन कल्याण की अपेक्षा जन संहार का माध्यम बन जाएंगी।

युगों-युगों से गुरुजनों ने इन्हीं नियमों का पालन किया और योग्य शिष्य की प्राप्ति न होने पर वे इन्हें अपने साथ ही ले गए। प्राच्य कल्प विद्याओं में सोना कल्प, चांदी कल्प, तांबा कल्प, लौह कल्प, पीतल कल्प इत्यादि। इसी प्रकार फलों एवं फूलों की भी कल्प है। इसी कड़ी मंे एक और रहस्यमयी एवं अद्भुत कल्प है जिसे हम गंध सुगंध कल्प के नाम से जानते हैं। कल्प शब्द का अर्थ है एक ही विधि या वस्तु द्वारा हर प्रकार की समस्याओं का समाधान होना।


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कुछ अनुभूत एवं अचूक प्रयोग आपके लिए प्रस्तुत है:

1. अखंड लक्ष्मी प्राप्ति के लिए दीपावली से प्रारंभ करके लगातार 41 दिन तक प्रातः निशीथ काल में 4 बजे से 6 बजे के बीच आप अपने घर में ईशान कोण में अथवा घर के मंदिर में शुद्ध घी का दीपक प्रज्ज्वलित करें और प्रज्ज्वलन के पश्चात् धागे वाली मिश्री का एक छोटा सा टुकड़ा मां लक्ष्मी का ध्यान करके डाल दें। प्रत्येक 7 दिन के बाद मिश्री के टुकड़ों को चीटियों के बिल के पास डाल दें। विशेष: यह प्रयोग अनुराधा नक्षत्र से भी प्रारंभ किया जा सकता है। 41वें दिन इस दीपक का दान किसी भी मंदिर में कर देना चाहिए अर्थात मंदिर जाकर दीपक प्रज्ज्वलित करके वहीं छोड़ आना चाहिए व कुछ मिश्री ब्राह्मण को दे देनी चाहिए।

2. कर्ज से मुक्ति पाने के लिए दीपावली से प्रारंभ करके 11 दिन तक लगातार तिल के तेल का दीपक घर में प्रज्ज्वलित करें और निरंजनी में तांबे का एक सिक्का रख दें। इस सिक्के को दीपक में ही रखा रहने दें और 11वें दिन दीपक प्रज्ज्वलित करके किसी मंदिर में छोड़ दें और सिक्का मंदिर के समीप मिट्टी में दबा दें। दीपावली के अतिरिक्त यह प्रयोग शतभिषा नक्षत्र से भी प्रारंभ किया जा सकता है। समय रात्रि में 10बजे से 12 बजे तक रहेगा।

3. मकान बनाने की इच्छापूर्ति के लिए प्रातःकाल निशीथ काल में 4 बजे से 6 बजे के बीच शुद्ध घी का निरंजनी प्रज्ज्वलित करके उसमें पीली मिट्टी का सम्पुट दें। यह पीली मिट्टी आप किसी भी निर्माणाधीन मकान की नींव से लेकर आएं तो उत्तम रहेगा अन्यथा किसी पवित्र स्थान की मिट्टी भी प्रयोग में ला सकते हैं। यह कल्प नियमित 41 दिन करना चाहिए। 41वें दिन दीपक का दान कर दें। 41 ईंटें किसी मंदिर में, गुरुद्वारे में या किसी भी धार्मिक स्थल पर दान कर दें।

4. बच्चे माता-पिता की न सुनते हों रात्रि में 12 बजे से 2 बजे के बीच या प्रातः 4 बजे से 6 बजे के बीच आटे का निरंजनी जो चैमुखी होनी चाहिए प्रज्ज्वलित करके उसमें सफेद मक्खन का सम्पुट देना चाहिए। शुद्ध घी का प्रयोग करें और नियमित 17 दिन तक यह कल्प करें। दीपक बुझ जाने पर उसी दिन गोधूलि वेला में यह दीपक प्रज्ज्वलित करके किसी निर्जन स्थान पर रख आएं व अगले दिन फिर से नया दीपक बनाकर प्रयोग करें।

5. पारिवारिक सदस्यों के आपसी सामंजस्य हेतु दीपावली की रात में 12 बजे एक पांचमुखी निरंजनी जो कि आटे की बनी हो शुद्ध घी में प्रज्ज्वलित करके अक्षत के दाने (जितने परिवार में सदस्य हों), शुद्ध शहद की बूंदंे, मिश्री के दाने और लाल रोली (एक चुटकी) डाल दें। प्रातः निशीथ काल में 4 बजे के आसपास इस निरंजनी को किसी निर्जन स्थान पर प्रज्ज्वलित करके छोड़ आएं।

6. कन्या का विवाह न हो रहा हो तो यह कल्प कन्या की मां को करना चाहिए। दीपावली से प्रारंभ करके अथवा किसी बृहस्पतिवार से प्रारंभ करके करना चाहिए। हल्दी की सात गांठें अपने घर के मंदिर या ईशान कोण में रखकर उनपर हल्दी से पीला किया आटे के दीपक (चैमुखी) प्रज्ज्वलित करके चुटकी भर हल्दी डाल दें। यह कल्प लगातार 7 या 11 दिन तक करें। इस कल्प का समय प्रातः 6 बजे से 8 बजे तक है। उसी दिन गौधूलि वेला में यह दीपक किसी चैराहे पर प्रज्ज्वलित करके रख आएं। यदि चैराहे पर रखना संभव न हो तो किसी निर्जन स्थान पर सूखे आटे से चैराहा बनाकर उसके बीचों बीच दीपक रख आएं। हल्दी की गांठें बनी रहेंगी केवल दीपक प्रतिदिन बदला जाएगा। चैराहे के अतिरिक्त दीपक किसी शिवालय में भी रखा जा सकता है।


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7. शत्रुओं को शांत करने के लिए दीपावली की रात्रि में तिल के तेल का निरंजनी जो कि सतनाजा पिसवाकर बनाई गई हो उसमें काले, सफेद तिल का सम्पुट देकर घर में प्रज्ज्वलित करें व बुझ जाने पर किसी चैराहे पर अथवा निर्जन स्थान पर सूखे आटे से चैराहे का निर्माण करके फिर से प्रज्ज्वलित करें व चुटकी भर लाल रोली डालकर रख दें। दीपावली के अतिरिक्त यह कार्य किसी शनिवार से भी प्रारंभ किया जा सकता है। इसका समय रात्रि काल में 10 बजे से 12 बजे तक है।

8. घर से हारी-बीमारी दूर करने के लिए आटे की निरंजनी बनाकर उसमें उतनी बत्तियां लगाएं जितने परिवार में सदस्य हों। रूई की बत्ती बनाएं और उसमें पारिवारिक सदस्यों के पहने हुए कपड़ों में से कुछ धागे निकालकर बांटंे। इसे भलीभांति इस प्रकार समझें कि मान लीजिए परिवार में 5 सदस्य हैं तो पांच बत्तियां बनेंगी और पांचों में घी डालकर बत्तियों में अलग-अलग पांचों सदस्यों के पहने कपड़े से निकाले धागे बंट जाएंगे व निरंजनी भी पांच मुखी होगी एवं यह कल्प भी 5 दिन नियमित किया जाएगा। प्रत्येक दिन दीपक बदल जाएगा और पुराना दीपक किसी बड़े पीपल के नीचे प्रज्ज्वलित करके रखा जाएगा। प्रत्येक सदस्य के हिसाब से 2 चावल के दानों का सम्पुट हल्दी से चावल पीले करके दिया जाएगा। मान लीजिए परिवार में पांच सदस्य हों तो चावल के दस दानों को हल्दी से पीला करके तेल में डाला जाएगा। निरंजनी में तिल के तेल का प्रयोग किया जाएगा।

9. निःसंतान दंपत्तियों के लिए दीपावली के पश्चात् आने वाले बुधवार से प्रारंभ करके शुद्ध घी की पंचमुखी आटे वाली निरंजनी में रूई से बनाई बत्ती में पति-पत्नी के पहने हुए कपड़ों से निकाले धागे मिलाकर बांटें व दीपक प्रज्ज्वलित करें। इस कल्प का समय प्रातः काल 4 से 6 बजे के बीच है। इसे नियमित 11 दिन तक करना चाहिए व बिना छेद वाले मोती का सम्पुट दें। दीपक प्रतिदिन बदला जाएगा और मोती वही रहेगा।

प्रत्येक दिन दीपक प्रज्ज्वलित करके मंदिर में अपने इष्ट देवी अथवा देवता के सम्मुख रख आएं। इस मोती को अपने पास रखें व किसी भी शुक्ल पक्ष की तृतीया, नवमी, त्रयोदशी या पूर्णमासी को पीतल के मटके में सवा किलो गुड़, ढाई किलो जौ, ढाई किलो गेहूं, 250 ग्राम बताशे, 250 ग्राम मोठ, 250 ग्राम चने की दाल, 250 ग्राम मूंग की दाल फिर वह मोती इसमें डाल दें और 11 बूंदी के लड्डू, पंचमेवा मिठाई डालकर मटके को ढक्कन से बंद करके लाल कपड़े से बांध दें और गंगा जी में दोपहर 12 बजकर 20 मिनट से 3 बजकर 20 मिनट के बीच प्रवाहित कर दें।

सावधानी:

1. माहवारी समाप्त होने के 3 दिन बाद से ही यह कल्प किया जा सकता है।

2. यह कल्प उन दंपत्तियों के लिए है जिन्हें किसी प्रकार की मेडिकल समस्या नहीं है।

3. यह कल्प उन दंपत्तियों के लिए है जिनकी पत्रिका में संतान का योग ही नहीं है।

4. यह कल्प उन दंपत्तियों के लिए भी है जो सोचते हैं कि उनके भाग्य में संतान सुख नहीं है।

5. यह कल्प अचूक एवं अनुभूत है।

10. शरीर में किसी भी प्रकार का दर्द दूर करने के लिए दीपावली की रात्रि में 12 बजे के बाद यह कल्प करें अथवा किसी शनिवार से प्रारंभ करें। 1 शुद्ध घी की खड़ी बत्ती वाली निरंजनी में अपने सिर से उल्टा घुमाकर (7 बार) उतारी गई चीनी का संपुट दें। यह कल्प लगातार 11 दिन तक करें। निरंजनी आटे में हल्दी मिलाकर बनाना चाहिए। प्रत्येक दिन नया दीपक बनाया जाएगा व पहले वाला मंदिर अथवा किसी धार्मिक स्थान पर प्रज्ज्वलित करके रखा जाएगा।

प्रत्येक दिन एक मुट्ठी चीनी अपने सिर से 7 बार उल्टा घुमाकर उसमें से एक चुटकी भर निरंजनी में डालें व बाकी संभालकर रख लें। 11 दिन का कल्प पूरा होने पर इसी चीनी से खीर खाकर किसी मिट्टी के पात्र में रखकर किसी निर्जन स्थान पर रख आएं। खीर में दूध, चावल, चीनी के अतिरिक्त कोई और चीज नहीं डाली जाएगी। खीर यदि किसी ऐसे स्थान पर रखी जाए जहां कीड़े-मकोड़े या चीटियां इत्यादि हों तो शीघ्र लाभ मिलेगा।


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11. व्यापार में वृद्धि के लिए दीपावली की रात्रि में 10 बजे के आसपास परंतु 12 बजे से पहले यह कल्प करें। आटे की बनाई चैमुखी निरंजनी में गोले के तेल में कच्चे गोले का सम्पुट देकर नियमित 7 दिन तक करें। इस कार्य को किसी शुक्रवार से भी प्रारंभ किया जा सकता है। प्रत्येक दिन निरंजनी बदली जाएगी व पहले वाली निरंजनी किसी धार्मिक स्थल या फिर किसी निर्जन स्थान पर या किसी चैराहे पर प्रज्ज्वलित करके रखी जाएगी।

12. पुत्र के विवाह में बाधा आ रही हो तो यह कल्प करें यह कल्प लड़के की मां करेगी। दीपावली की रात्रि से प्रांरभ करके लगातार 31 दिन करें। यह कल्प लड़के के जन्म के वार वाले दिन से भी प्रारंभ किया जा सकता है। शुद्ध घी की आटे की निरंजनी में बादाम और मिश्री का संपुट दें। यह कल्प प्रातः 8 बजे से 10 बजे के बीच करें एवं उसी दिन संध्या के पश्चात् इस दीपक को किसी निर्जन स्थान पर सूखे आटे से चैराहे का निर्माण करके उसके बीचों-बीच रख दें। लड़के के विवाह में आ रही बाधाएं शीघ्र दूर होंगी।

विशेष:

- निरंजनी शब्द का तात्पर्य उपाय से है।

- यह कल्प दीप तंत्र से संबंधित है अर्थात उपरोक्त सभी उपाय तंत्र से संबंधित हैं अतः शीघ्र फलदायी हैं।

- कल्प करते समय अपनी मनोकामना अपने मन में धारण अवश्य करें कि आप अपनी किस इच्छापूर्ति के लिए यह कल्प कर रहे हैं।



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