शनि-शुक्र-बुधादित्य सम्बन्ध

शनि-शुक्र-बुधादित्य सम्बन्ध  

गौतम पटेल
व्यूस : 25463 | अकतूबर 2014

राजा-रानी का काम है आदेश जारी करना। आचार्य व्दय का काम है राजा-रानी को परामर्श देना। सेनाध्यक्ष का काम है सैनिकों को आदेश देना। युवराज का काम है आमोद-प्रमोद, मनोविनोद, हँसी-मजाक, नृत्य-नाटिका, खेल-कूद तथा लेन-देन में समय व्यतीत करना। अब रह गये केवल और केवल शनि महाराज। इसका अभिप्राय तो यही हुआ कि सर्वग्रह केवल राज करते हैं और शनिदेव महाराज। वैसे दैवज्ञ इन्हें सेवक कहते हैं और दार्शनिक दास। वेदसार गीता के तहत ज्योतिषचार्य इन्हें कर्मयोगी कहते हैं तो आलोचक गुलाम। भारतीय जिसे सम्बन्ध कहते हैं विदेशी उसे बन्धन। उन्हीं के शब्दों में- ‘‘मनुष्य स्वतन्त्र उत्पन्न होता है और वह सर्वत्र जंजीरों में जकड़ा होता है।’’ ज्यां जाक रूसो। चूँकि सम्पूर्ण ग्रह मंत्री परिषद, समस्त नक्षत्र मण्डल तथा सकल झिलमिल सितारों की आज्ञा का परिपालन करते हुए उनकी इच्छानुसार सेवा करना इस सेवक शनिदेव का एक विशिष्ट गुण है, इसलिए शनि महाराज से बनने वाले चतुष्ग्रह योग एवं उनके प्रभाव के संदर्भ में विशेष शास्त्रार्थ निम्नानुसार प्रस्तुत है- ‘‘मुखरः सुभगः प्राज्ञो मृदुसौख्यः सत्त्वशौचसम्पन्नः।

धीरो मित्रसहायो रविबुधसितसौरिसंयोगे।।’’ -सारावली-17/19 सूर्य बुध शुक्र शनि साथ हों तो जातक वाकपटु, सौभाग्यशाली, विद्वान, सुखों से प्रेम करने वाला, सत्त्वयुक्त, तन-मन की शुद्धता वाला, धैर्यशील और मित्रों के काम आने वाला होता है। ‘‘मन्दज्ञारूणभार्गवैः सुवदनः सत्यव्रताचारवान।’’ - जातकपारिजात-8/22 वदन, शरीर सौष्ठव, सत्यव्रत तथा सदाचारी होता है। ‘‘शुक्रसौरिबुधार्काणां योगे मित्रयुतः शुचिः। मुखरः सुभगः प्राज्ञो जायते च सुखी नरः।।’’ -मानसागरी-2/19 सूर्य बुध शुक्र शनि एक स्थान में हो तो जातक बहुत मित्र वाला, पवित्र हृदय, वाक्पटु, सौभाग्यशाली, पण्डित, सुन्दर तथा सुखी होता है। ‘‘आदित्यबुधभृग्वार्किसंयोगे सुभगः शुचिः। बन्धुमान्यो महाप्राज्ञः पुत्रदारसुखान्वितः।।’’ सूर्य बुध शुक्र शनि एक घर में हों तो जातक सुन्दर, शुद्धता से युक्त, बन्धुमान्य, महापण्डित, सन्तति तथा दम्पति सुख-समृद्धि से युक्त होता है। भृगु संहिता फलित प्रकाश-3, कुण्डली क्रमांक 1506 के अनुसार यदि जन्मकाल में सूर्य, बुध, शुक्र और शनि की युति हो तो जातक पवित्र हृदयवाला, सवक्ता, मित्रों वाला, सुन्दर, पण्डित, विद्वान, भाइयों द्वारा सम्मानित, सन्तान तथा दाम्पत्य सुख को प्राप्त करने वाला, पवित्र विचारों वाला, भाग्यशाली तथा सुखी होता है। वेदांग ज्योतिष अंधानुकरण तथा भेड़िया धसान विषयक पाठ नहीं पढ़ाता।

स्वविवेक से भी काम लेना सिखाता है। हमारे देवर्षि, ब्रह्मर्षि, महर्षि, दैवज्ञ तथा समस्त ज्योतिषाचार्य प्रज्ञाशील, संज्ञानी और चैतन्य कविराज थे। वे भली-भाँति, समझ-बूझकर अनेकानेक समानार्थी अथवा पर्यायवाची शब्दों के लिए चुन-चुनकर एक-एक शब्द अपनी रचना में पिरो गए हैं। फलतः इन उच्च से उच्चतम कोटि के कवियों ने जो फलकथन किया है उसका अक्षरशः अथवा शब्दशः या केवल शब्दार्थ न लेकर भावार्थ व तत्त्वार्थ भी लेना चाहिए। वैसे भी अक्षरशः अर्थ न लेकर भावार्थ लेना संस्कृत साहित्य की परिपाटी रही है। कृपया ‘फलदीपिका भावार्थबोधिनी पृ.क्र-148’ और ‘जातकपारिजात-प्र.क्र-536’ का अवलोकन करें। निम्नोक्तानुसार इस सम्बन्ध को ‘सुभग सम्बन्ध’ कहा गया है। शब्दकोश सुभगा को सुहागिन और सुभग को सुहागा कहता है। इसे हम सोने पर सुहागा भी कह सकते हैं। सुभग अर्थात् भाग्यवान, सौभाग्यशाली, समृद्धिशाली, सुहावन, मनभावन, मनभावन, रुचिकर, मनोरम, मनोहर, सुन्दर, प्रसन्न मुद्रा, मधुर, इष्ट, स्नेही, प्रिय, प्रियतम आदि-आदि। शनिदेव की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसके पास इसको घेरने वाले सुनहरे रंग के अथवा रंग-बिरंगे तीन वलय या तीन छल्ले हैं। इन छल्लों के कारण यह सुन्दर और आकर्षक प्रतीत होता है। इसके अतिरिक्त अतिरिक्त इसके पास 20 या 20 से अधिक चाँद हैं। जब मात्र ‘चैदहवीं का चांद हो अथवा केवल चाँद सी मेहबूबा हो......’ पर व्यक्ति फिदा हो जाता है।

तब फिर उस पर सिर्फ चार चाँद हीन ही बीस चाँद लग जाए ं तो उसे आखिर क्या कहें? यही न ‘सोने पर सुहागा ऊपर से मणिकाँचन योग’। इस योग को भाई-बन्धु, बन्धु-बान्धव, सखा-सम्बन्धी, मित्र-सहयोगी, संतति-दम्पति आदि-आदि लगभग तमाम भौतिक सुख-सुविधा सम्पन्न पवित्र हृदय-प्रेमी हृदय योग कहा गया है। सौर परिवार का सर्वाध् िाक चमकीला ग्रह शुक्राचार्य की रुचि निम्नोक्त के अतिरिक्त अन्य लगभग सभी ललित कलाओं तथा पर्यटन में रहती है। फलतः इस योग में शुक्र जातक को सिनेमा, थियेटर, संगीत (गायन-वादन-नृत्यन) तथा अभिनय क्षमता देता है। इस सम्बन्ध को प्राज्ञ, महाप्राज्ञ, विद्या-बुद्धि-विवेकशील, चतुर-सुजान, मुखर, वाक्पटु, सुवक्ता आदि-आदि कहा गया है। सौर-परिवार का सर्वाधिक लघु और चमकदार ग्रह बुध सुर्य के सर्वाधिक निकट रहता है। सूर्य का अत्यन्त निकटवर्ती ग्रह होने के कारण इसे सूर्य का सहायक माना गया है। बुध की कला तथा वाणिज्य के क्षेत्र में रुचि रहती है। बुध जातक को प्रकृति प्रेमी, वितरक, गीतकार, रचनाकार, हास्य अभिनेता, हंसमुख, विनोदी स्वभाव, ़िद्वअर्थी शब्दों का प्रयोग करने वाला, संगति अथवा जैसा देश वैसा भेष बदलने में माहिर बनाता है। इस योग को स्वस्थ, स्वत्व, सत्ता, सत्त्व, ‘सौर परिवार’ अथवा सौर जगत कहा जाता है। ग्रहराज सूर्य सौर जगत का सर्वप्रमुख ग्रह है। यह सभी ग्रहों का केन्द्राधिपति है। इसके चारों ओर अनेक ग्रह तथा अनेकानेक खगोलीय पिण्ड सदैव चक्कर काटते रहते हैं। ग्रहराज सूर्य जातक को सत्त्व, सत्तासीन, प्राणशक्ति सम्पन्न, आरोग्यवान, नेतृत्वक्षमता सम्पन्न, प्रतिभा सम्पन्न निर्माता-निर्देशक, ऐश्वर्यवान, अध् िाकार सम्पन्न, पुरुषार्थी, शुचि, शुचिता, भद्रता, श्रेष्ठता, सात्विक, ऊर्जावान, साहसी, सद्गुण सम्पन्न, सत्यवान तथा यथार्थवादी बनाता है।

बृहत्पाराशर होराशास्त्र-राजयोगादि फलाध्याय-11,24, लघुपाराशरी-योगाध्याय-1-9, फलदीपिका-15/30, सारावली-19/8 एवं अन्य अनेकानेक ज्योतिष ग्रंथों में विभिन्न प्रकार से ग्रह-सम्बन्ध विषयक अनेक विवरण उपलब्ध हैं, जिनमें से निम्न कुछ प्रमुख हैं-

1. एकस्थ स्थिति सम्बन्ध: जातक देवानन्द की जन्म कुण्डली में शनि-शुक्र बुध और सूर्य एक साथ बारहवें भवन में बैठे हैं। हिन्दी फिल्मी दुनिया के चिरयौवन अभिनेता देवानन्द ने अनेक फिल्मों के नायक रहकर विशेष प्रसिद्धि प्राप्त की। एक विशेष अदाकारी के कारण 50 वर्षों तक फिल्मी सितारों की दुनिया में छाये रहे। तदुपरान्त निर्माता-निर्देशक के रूप में भी प्रसिद्धि प्राप्त की।

2. एक ही ग्रह की राशि में स्थिति सम्बन्ध: सौन्दर्य साम्राज्ञी मधुबाला अपने जमाने की प्रसिद्ध नायिका थी। अनेक सफल फिल्मों में ‘मुगल आजम’ का नाम विशेष उल्लेखनीय है। फिल्मी अभिनेता तथा गायक किशोर कुमार इनके पति थे। 36 वर्ष की एक छोटी सी आयु में इनकी मृत्यु हो गई।

3. परस्पर केन्दीय स्थिति सम्बन्ध: सदाबहार कलाकार, विनोदी स्वभाव, अपने जमाने के मशहूर हीरो ने अनेक सफल फिल्में दी। उन्होंने अनेक फिल्मों का निर्देशन भी किया। प्रस्तुत कुण्डली के तृतीय भाव में शनि-शुक्र-बुध और सूर्य एक साथ बैठे हैं। यह परस्पर केन्द्रीय स्थिति सम्बन्ध के अतिरिक्त, परस्पर त्रिकोणीय स्थिति सम्बन्ध, परस्पर केन्द्रेश-त्रिकोण् ोश एकस्थ स्थिति सम्बन्ध परस्पर त्रिकोणेश-केन्द्रेश एकस्थ स्थिति सम्बन्ध भी है।

4. परस्पर त्रिकोणीय स्थिति सम्बन्ध: प्रस्तुत कुण्डली में शनि-शुक्र-बुध और सूर्य का प्रथम और नवम भाव में परस्पर त्रिकोणीय सम्बन्ध बना हुआ है। तब्बू ने बाल कलाकार के रूप में देवानन्द की फिल्मों में काम करके अपने कैरियर का शुभारम्भ किया। ‘माचीस’ विरासत व चांदनी बार जैसे फिल्मों में सशक्त अभिनय करने से तब्बू का नाम एकाएक श्रेष्ठ अभिनेत्रियों की श्रेणी में आ गया। ‘माचिस’ फिल्म ने इन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का राष्ट्रीय पुरस्कार किया।

5. परस्पर केन्द्रेश-त्रिकोणेश या त्रिकोणेश- केन्द्र एकस्थ स्थिति सम्बन्ध: प्रस्तुत कुण्डली में शनि-शुक्र-बुध और सूर्य की तृतीय भाव में परस्पर केन्द्रेश- त्रिकोणेश और इससे उलट त्रिकोणेश- केन्द्रेश की एकस्थ स्थिति सम्बन्ध है। चरित्र अभिनेता प्रेमनाथ का व्यक्तित्व और वाणी आकर्षक थी। इन्होंने 17 वर्षों तक नायक, तदुपरान्त चरित्र भूमिका और खलनायक के रूप में ख्याति अर्जित की।

6. परस्पर एक दूसरे की राशि में स्थिति सम्बन्धः प्रस्तुत कुण्डली में शनि मिथुन राशि में स्थित है और बुध-शुक्र-सूर्य शनि की राशि मकर व कुम्भ में स्थित हैं। माॅडलिंग से अपना कैरियर प्रारम्भ करने वाली प्रीति जिंटा बाॅलीवुड की शीर्ष अभिनेत्रियों में स एक रही हैं। सन् 1994-95 में ‘लिटिल गर्ल’ के नाम से मशहूर रहीं। इनकी कई फिल्में जैसे दिल चाहता है, क्या कहना, चोरी-चोरी चुपके-चुपके, कोई मिल गया आदि हिट रहीं।

7. अन्योन्याश्रित योग: प्रस्तुत कुण्डली में शनि-शुक्र-बुध और सूर्य का अन्योन्याश्रित योग या मिथयोग अथवा सहकारी समिति योग बना हुआ है। पहला दूसरे की राशि मंे, दूसरा तीसरा पहले की राशि में स्थित हैं। शनि संग शुक्र सूर्य की राशि सिंह में द्वितीय भाव में, सूर्य बुध की राशि कन्या में तृतीय भाव में और बुध शुक्र की राशि तुला मंे चतुर्थ भाव में स्थिति है। स्वप्न सुन्दरी हेमामालिनी ने कई सुपरहिट फिल्में दी हैं। साथ ही हम दो हमारे दो, हम दोनों के दो-दो भी।

8. अलग-अलग रहकर एक ही भाव पर दृष्टि सम्बन्धः प्रस्तुत कुण्डली में शनि-शुक्र-बुध और सूर्य अलग-अलग भवनों (षष्ठ और नवम) में स्थित रहकर एक ही भवन (तृतीय) को क्रमशः दशम और सप्तम पूर्ण दृष्टि से देख रहे हैं। हिन्दी सिनेमा के क्षेत्र में अपनी स्वच्छ छवि तथा भावपूर्ण अभिनय के कारण विशेष प्रसिद्धि प्राप्त कर चुकी हैं। इन्हें कई फिल्मी पुरस्कार मिले। विवाह उपरान्त इन्हें नूतन समर्थ के नाम से जाना जाता रहा है।

9. एकल दृष्टि सम्बन्ध: प्रस्तुत कुण्डली में शनि अपनी तृतीय पूर्ण दृष्टि से शुक्र-बुध और सूर्य को देख रहा है। शुक्र-बुध और सूर्य में से कोई भी शनि को नहीं देख रहे हैं। इस प्रकार से एकतरफा अथवा एकल दृष्टि सम्बन्ध बना हुआ है। हिन्दी सिनेमा के महानायक दिलीप कुमार ‘ट्रेजडी किंग’ के नाम से प्रसिद्ध रहे हैं। इन्होंने अनेक राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय फिल्मी पुरस्कार जीते हैं।

10. परस्पर दृष्टि सम्बन्ध:

11. परस्पर केन्द्रीय दृष्टि सम्बन्ध:

12. परस्पर केन्द्रेश-त्रिकोणेश या त्रिकोणेश- केन्द्रेश दृष्टि सम्बन्ध: प्रस्तुत कुण्डली में शनि तथा शुक्र दोनों केन्द्रेश भी हैं और त्रिकोणेश भी हैं। बुध त्रिकोणेश है। इसी कारण इस कुण्डली में परस्पर दृष्टि सम्बन्ध, परस्पर केन्द्रीय दृष्टि सम्बन्ध और परस्पर केन्द्रेश- त्रिकोणेश या त्रिकोणेश-केन्द्रेश दृष्टि सम्बन्ध बना हुआ है। फलतः कोलम्बस के प्रसिद्ध अभिनेता बक्स्टर वाॅर्नर प्राचीन काल के हीरो, ऊँचाकद, प्रभावशाली व्यक्तित्व, निर्माता, निर्देशक तथा ‘अकादमी अवार्ड’ से सम्मानित रहे हैं।

13. एकल त्रिकोणीय दृष्टि सम्बन्ध

14. परस्पर त्रिकोणीय दृष्टि सम्बन्धः- चँूकि शनि-शुक्र-बुध और सूर्य चारों ग्रहों में से किसी भी के पास त्रिकोणीय दृष्टि क्षमता नहीं है। इसी कारण इन ग्रहों के मध्य एकल त्रिकोणीय दृष्टि सम्बन्ध तथा परस्पर त्रिकोणीय दृष्टि सम्बन्ध बनना असम्भव है। अतएव स्पष्ट है कि ‘शनि-शुक्र-बुधादित्य योग’ व्यक्ति को फिल्मी दुनिया में सफलता दिलाती है। दूसरे शब्दों में फिल्मालय में सफलता अर्जित करने हेतु इस ‘शनि-शुक्र-बुधादित्य योग’ अथवा उपरोक्तानुसार सम्बन्धों पर दृष्टिपात करना नितान्त आवश्यक है।



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