शनि को ब्रह्माण्ड का बैलेंस व्हील
माना जाता है अर्थात् शनि सृष्टि के
संतुलन चक्र का नियामक है। क्योंकि
बैलेंस शनि का मुख्य गुण है इसलिए
यह बैलेंस की कारक राशि तुला में
अतिप्रसन्न अर्थात् उच्चराशिस्थ होते
हैं तथा व्यावसायिक जीवन में अधिक
संतुलन, सुरक्षा व स्थिरता अर्थात्
जाॅब सैक्यूरिटी आदि देने में समर्थ
होते हैं।
इसे न्याय का कारक इसलिए
माना जाता है क्योंकि यह मनुष्य
को उसकी गलतियों और पाप कर्मों
के लिए दण्डित करके मानवता की
रक्षा करता है और सृष्टि में संतुलन
स्थापित करने की प्रक्रिया को स्थिरता
पूर्वक गति देता रहता है।
यदि जातक की जन्मकुंडली में
करियर के उच्चतम शिखर पर पहंुचने
के सभी शुभ योग विद्यमान हों तो
यह सही है कि जातक अपने करियर
में ऊंचा उठेगा लेकिन उन्नति प्राप्त
होने का उसका मार्ग सरल होगा या
कठिनाइयों से भरा हुआ होगा इसका
सूक्ष्म विष्लेषण करने हेतु कुंडली में
शनि की स्थिति का अध्ययन करना
होगा।
यदि कुंडली में शनि की स्थिति
उत्तम हो, यह 3, 6, 10 या 11वें
भाव में स्थित हो, नीचराषिस्थ व
पीड़ित न हो तो आसानी से सफलता
मिलेगी। नीचराषिस्थ होने की स्थिति
में पूर्ण नीचभंग हो रहा हो तो भी
सफलता मिल सकती है।
परंतु यदि शनि का नीचभंग नहीं हुआ
या शनि शत्रुराषिस्थ व पीड़ित होकर
अषुभ भाव में स्थित हुआ तो जातक
की सफलता पर प्रष्न चिह्न लग
जाएगा तथा विषेष योग्यता संपन्न
होने के बावजूद भी उसे जीवन में
कठिनाइयों व संघर्ष से जूझना पड़ेगा
तथा वह साधारण जीवन जीने के
लिए मजबूर हो जाएगा।
शनि हमें यथार्थवादी बनाकर हमारी
वास्तविक शक्तियों व योग्यताओं
से अवगत करवाता है तथा हमें
एकान्तप्रिय होकर निरंतर अपने लक्ष्य
की ओर अग्रसर करवाता है अर्थात्
हमें थ्वबनेमक रखता है।
कालपुरुष के अनुसार शनि को
व्यवसाय के कारक दशम भाव का
स्वामी माना जाता है। हमारे जीवन में
स्थिरता व संतुलन का विचार दशम
भाव से भी किया जाता है क्योंकि
दशम भाव व्यवसाय का घर होता है
और जितना हम व्यावसायिक स्तर
पर सफल होते हैं उतनी ही श्रेष्ठ
सफलता हमें जीवन के दूसरे क्षेत्रों में
भी प्राप्त होती है। निष्कर्षतः हम कह
सकते हैं संतुलन अर्थात् बैलेंस के
कारक शनि की राशि का व्यवसाय
के भाव में होना उचित ही है।
ग्रहों में शनि को सर्वाधिक महत्वपूर्ण
माना जाता है। यदि यह ग्रह बलवान
होकर शुभ भाव में स्थित हो तो
सफलता जातक के कदम चूमती है।
शनि की विशेष उत्तम स्थिति से
जातक को बहुत से नौकर-चाकर,
उच्च पद्वी, सŸाा व धन सम्पदा
आदि सभी कुछ प्राप्त हो जाता है।
शनि को सŸाा का कारक इसलिए
माना जाता है क्योंकि राजनीति,
कूटनीति, मंत्रीपद सभी इसी के
इर्द-गिर्द घूमते हैं।
यदि कुंडली में शनि लग्न में बैठा
हो तो यह कालपुरुष की दशम राशि
मकर को दशम दृष्टि से देखकर न
केवल व्यावसायिक जीवन में सफलता
की गारंटी देता है अपितु अपनी
लग्नस्थ स्थिति के कारण जातक को
कुशल विचारक व योजनाबद्ध तरीके
से कार्य करने की योग्यता भी देता
है। बड़े-बड़े राजनीतिज्ञों, व्यापारियों,
वैज्ञानिकों, तांत्रिकों व ज्योतिषियों की
कुंडली में शनि की इस प्रकार की
स्थिति देखी जा सकती है।
यदि लग्नस्थ शनि नीच का भी हो
तो भी व्यावसायिक जीवन में स्थिरता
व अधिकार प्राप्ति का कारक बनता
है क्योंकि वह दशम दृष्टि से अपनी
राशि को देखता है और कालपुरुष
के अनुसार भी दशम भाव में इसकी
मकर राशि ही होती है जिसे व्यवसाय
की कारक राशि माना जाता है।
लग्नस्थ शनि सभी लग्नों के लिए
श्रेष्ठ है यद्यपि चर लग्न के लिए
शनि की लग्नस्थ स्थिति अधिक
उŸाम मानी जाएगी क्योंकि चर लग्नों
के जातकों में शीघ्र निर्णय लेने की
क्षमता होती है जबकि शनि का गुण
धैर्य व स्थिरितापूर्वक एकाग्रचित्त
होकर कार्य सम्पादन करना है।
इसलिए इन दोनों गुणों का सम्मिश्रण
जातक को श्रेष्ठस्तरीय सफलता का
सूत्र व मार्ग स्पष्ट कर देता है।
यदि कर्क लग्न के शनि का विचार
करें तो यह सामान्य रूप से प्रबल
अकारक होता है लेकिन शुभ भाव
लग्न में बैठकर यह न केवल अष्टमेश
का शुभ फल देकर दीर्घायु बनाता है
अपितु जातक को रिसर्च ओरिएंटड,
गुप्त व कूटनीतिक योग्यताओं से
सम्पन्न भी कर देता है। कर्क लग्न
की अपनी यह विशेषता होती है कि
इससे प्रभावित जातकों का शरीर, मन
और आत्मा एकात्म समन्वित होते हैं।
लग्न से शरीर व आत्मा का विचार
तो होता ही है साथ ही मन की राशि
कर्क के लग्न में आ जाने से चंद्रमा
का प्रभाव भी लग्न मंे आ जाएगा
क्योंकि यह लग्नेश होगा इसलिए
ऐसी कंुडली में लग्नस्थ शनि शरीर,
मन व आत्मा तीनों को प्रभावित
करेगा अर्थात् मानव को सर्वाधिक
प्रभावित करने वाले ग्रह शनि का
प्रभाव आपके जीवन के हर पक्ष पर
सीधे रूप से पड़ेगा और फलस्वरूप
आप सर्वाधिक सफलता प्राप्त करने
में सक्षम होंगे तथा राजनीति के
गलियारों में आपकी कुशलता का
विशेष डंका बजेगा।
तुला लग्न की पत्री में लग्नस्थ
शनि उच्चराशिस्थ होकर चतुर्थेश व
पंचमेश होकर आपको शश योग से
समन्वित करके परम भाग्यशाली बना
देगा तथा जीवन के हर क्षेत्र में आप
सफल होंगे। ऐसा भी संभव है कि
आप योग, अध्यात्म, वैराग्य, दर्शन,
त्याग आदि की कठिनतम रहस्यमयी
आध्यात्मिक दुनिया में प्रवेश करके
संसार को चमत्कृत कर दें अथवा
कोई बड़े वैज्ञानिक बनें।
मकर राशि की कुंडली में लग्नेश
शनि अपार धन सम्पदा से सम्पन्न
बड़ा व्यापारी तो बना ही देगा साथ
ही आपकी एकाग्रचित्त होकर निरंतर
अपने लक्ष्य की ओर बढ़ने की प्रवृŸिा
को भी सुदृढ़ करेगा।
अधिकतर ऐसा देखा गया है कि
दशम भावस्थ शनि चाहे किसी भी
राशि का हो, जातक के जीवन में
व्यावसायिक स्थिरता बनी रहती है।
यदि ऐसा शनि नीच का हो तो भी
जातक का कार्य चलता रहता है।
नीच राशि का शनि अक्सर ज्योतिष
कार्यों से या अन्य परामर्श संबंधी
कार्यों से लाभान्वित कराता है।
शनि का दशम भाव से संबंध होने
से लोहे का व्यापार तथा तिल, तेल,
खनिज पदार्थ, पेट्रोल, शराब आदि
के क्रय-विक्रय से, ठेकेदारी से,
दण्डाधिकारी, सरपंच अथवा मंत्री पद
आदि से लाभान्वित करवा सकता है।
जब शनि गोचर में उच्चराशिस्थ
होता है तो समाज, देश व संसार में
जगह-जगह पर न्याय व्यवस्था के
समुचित रूप से स्थापित किए जाने
की आवाजें उठने लगती हैं। ऐसा
30 वर्ष में एक बार होता है और ऐसे
में शनि समाज में फैली अव्यवस्थाओं
और अन्याय को नियंत्रित करता ही है।
मानव के स्वभाव, भाग्य व जीवन
चक्र का नियमन चंद्र की गति,
नक्षत्र व चंद्र पर अन्य ग्रहों के प्रभाव
द्वारा होता है इसलिए जातक की
मानसिकता, मनः स्थिति, ग्रह दशा
के क्रम व गोचर का विचार भी चंद्रमा
को केंद्र में रखकर ही किया जाता
है।
कुंडली में सŸाा की प्राप्ति के प्रबल
कारक शनि का गोचर में चंद्रमा के
निकट आना जीवन में जिम्मेदारियों
के बढ़ने तथा सŸाा प्राप्ति का सबब
बनते देखा गया है। इसे साढ़ेसाती
भी कहते हैं। कुंडली में शनि की
खराब स्थिति तथा साढ़ेसाती में
अशुभ भाव व राशि में वक्री या
अस्त होकर गोचर करना करियर
में जबर्दस्त नुकसान देता है, नौकरी
छूट जाती है, राजनीति में हार तथा
व्यापार में हानि उठानी पड़ती है।
वहीं कुंडली में शनि की शुभ स्थिति
हो तथा अच्छे राजयोग बन रहे
हों तो ऐसे में साढ़ेसाती के समय
शनि का शुभ भाव व राशि में गोचर
करियर में श्रेष्ठतम सफलता प्रदान
करता है। जितनी श्रेष्ठ कुंडली होगी
उतनी ही ऊंची सफलता सुनिश्चित
हो जाएगी। श्रेष्ठतम कुंडली में शुभ
साढ़ेसाती सŸाा का सुख देती है।
चाहे ग्रह योग व साढ़ेसाती का सूक्ष्म
निरीक्षण कितना ही शुभ फलदायी
प्रतीत होता हो परंतु जातक को
साढ़ेसाती के समय व्यापार में जोखिम
नहीं उठाना चाहिए।
शनि की साढ़ेसाती आपको अपने
व्यवसाय के बारे में सूक्ष्म रूप से
यथार्थवादी दृष्टिकोण अपनाने के
लिए प्रेरित करती है साथ ही आपको
जोखिम उठाने के लिए मना करती
है। आपके लिए ऐसी कठिनाइयां भी
उत्पन्न करती है जिससे आप अपनी
गलतियों से सीखें। यह तकलीफें
देकर आपको न केवल एक अच्छा
इंसान बना देती है अपितु करियर को
भी समुचित दिशा प्रदान करती है।
जब कुंडली में शनि की स्थिति श्रेष्ठ
हो, धन व लाभ भाव के स्वामी विशेष
बली हों तथा गुरु व बुध भी उŸाम
स्थिति में हों और गोचरस्थ शनि
चंद्रमा से तृतीय, षष्ठ व एकादश
भावों में शुभ राशि व शुभ ग्रहों के
ऊपर से गोचर कर रहा हो तो वह
समय व्यापारिक क्षेत्र में उन्नति के
लिए विशेष श्रेष्ठ होता है। इस समय
यदि शुभ भावों में स्थित ग्रह की
दशा भी चल रही हो तो जोखिम भी
उठाए जा सकते हैं क्योंकि सफलता
तय है।
जिस समय दशम भाव, दशमेश व
दशम के कारक पर शनि व गुरु
दोनों का गोचरीय प्रभाव आ रहा हो
और यह गोचर चंद्रमा से शुभ हो व
शुभ राशि में भी हो तो करियर में
उन्नति निश्चित रूप से होती है।
यदि शनि मेष या वृश्चिक राशि में
हो या मंगल से दृष्ट हो तो जातक
मशीनरी, फैक्ट्री, धातु, इंजीनियरिंग,
इंटीरियर या बिजली संबंधी कार्यों,
केंद्रीय सरकार, कृषि विभाग, खान,
खनिज या वास्तुकला विभाग में कार्य
करता है। यदि इस ग्रह योग पर
गुरु व शुक्र का भी प्रभाव हो तो ऐसा
जातक न केवल धन लाभ अर्जित
करता है अपितु उसे भूमि व संपŸिा
का लाभ भी प्राप्त होता है।
यदि शनि वृष या तुला राशि में हो
अथवा इस पर शुक्र की दृष्टि हो तो
कला, प्रबंधन, कम्प्यूटर के व्यवसाय
से लाभ उठाता है। यदि गुरु व बुध
का शुभ प्रभाव भी इस ग्रह योग
पर पड़ता हो तो कानूनविद्, वकील,
न्यायाधीश आदि के लिए विशेष श्रेष्ठ
होता है। शनि और शुक्र मित्र हैं
इसलिए शनि पर शुक्र का यह प्रभाव
सौभाग्यवर्धक माना जाता है। शनि
से गुरु, शुक्र व बुध की शुभ स्थिति
के फलस्वरूप जीवन में आय लाभ
नियमित रूप से होता रहता है।
ऐसे जातक अपने व्यवसाय में विशेष
सुखी होते हैं। उनके पास धन, वाहन
और भवन सभी मौजूद रहते हैं।
शनि मिथुन या कन्या में हो अथवा
बुध से दृष्ट हो तो ऐसे जातक
एकाउंटिंग, काॅस्टिंग, अभिनय,
बुद्धिजीवी वाले कार्यों, व्यापार,
विŸाीय सौदों, विज्ञान व वाकपटुता
आदि के अतिरिक्त लेखन कला व
कानून संबंधी कार्यों से धन लाभ
प्राप्त करते हैं। यदि गुरु व शुक्र का
भी प्रभाव रहे तो धन कमाना सरल
होने लगता है। ऐसे जातक को मित्रों
से भी सहयोग मिलता है।
शनि कर्क राशि में हो या चंद्रमा
से दृष्ट हो तो ऐसा व्यक्ति कला,
ज्योतिष, राजनीति, धर्म, यात्रा, पेय
पदार्थ, साहित्य, जल, मदिरा आदि
के कार्यों से लाभ उठाते हैं। ऐसे
लेगों के करियर में बार-बार परिवर्तन
होते हैं। करियर में यात्राएं भी खूब
होती हैं लेकिन यह आवश्यक नहीं
कि ऐसे लोग कठिन परिश्रम वाले
कार्यों में संलग्न होना चाहें। ऐसे
लोग अधिकतर शांत व नरम स्वभाव
के होते हैं।
शनि सिंह राशि में हो अथवा सूर्य से
दृष्ट हो तो ऐसे जातक को सरकारी
नौकरी या सŸााधारी लेागों से लाभ
मिलता है। इसका यह भी संकेत
निकाल सकते हैं कि पिता पुत्र का
व्यापार या साझेदारी आदि में संबंध
है। इसके कारण सरकारी नौकरी
व राजनीति से लाभ मिलता है।
शनि सूर्य की शत्रुता के चलते कुछ
संघर्ष के पश्चात् सफलता मिलती
है। इसलिए यदि गुरु, शुक्र व बुध
आदि ग्रहों का शनि पर प्रभाव न हो
तो व्यावसायिक जीवन में संघर्ष का
सामना करना पड़ता है। लेकिन यदि
गुरु, शुक्र, बुध व बलवान चंद्रमा का
प्रभाव आ जाए तो जातक को विशेष
प्रसिद्धि की प्राप्ति होती है।
यदि शनि धनु या मीन राशि म
हो या गुरु से दृष्ट हो तो जातक
को कानून, वन विभाग, लकड़ी या
धार्मिक संस्थाओं आदि में विशेष
सफलता मिलती है। यह ग्रह योग
जातक को मनोविज्ञान, गुप्त ज्ञान
(पराविद्या), प्रशासनिक कार्य, प्रबंधन
कार्य, शिक्षक, अन्वेषक, वैज्ञानिक,
ज्योतिषी, मार्गदर्शक, वकील,
इतिहासकार, चिकित्सक, धर्मोपदेशक
आदि के रूप में प्रतिष्ठित कराता है।
ऐसे जातक में वाद-विवाद करने का
विशेष चातुर्य होता है व व्यक्तित्व
विशेष आकर्षक होता है। इनके बहुत
से मित्र होते हैं तथा व्यावसायिक
जीवन में निश्चित रूप से प्रतिष्ठा
की प्राप्ति होती है। ऐसा ग्रह योग
स्वतंत्र व्यवसाय या रोजगार की
प्राप्ति करवाता है।
शनि मकर या कुंभ राशि में हो तो
जातक को सेवा, यात्रा, जन आंदोलन,
विक्रय कार्य अथवा लायजनिंग संबंधी
कार्यों से लाभ होता है।
शनि विदेशी भाषा का कारक है
इसलिए विद्या व भाषा पर अधिकार
देने वाले ग्रहों जैसे शुक्र, गुरु, बुध व
केतु से इसका शुभ संबंध और स्थिति
जातक को अंग्रेजी या अन्य विदेशी
भाषाओं का विद्वान बनाती है।
शनि के ऊपर, गुरु, बुध, केतु इन
सभी का प्रभाव पड़े तो मशहूर वकील
बने।
शनि पर केवल राहु का प्रभाव हो
तो जातक छोटी नौकरी से गुजर
बसर करता है परंतु यदि राहु के
साथ-साथ गुरु, शुक्र का भी प्रभाव
हो तो प्रारंभ में नौकरी करने के
पश्चात् जातक धीरे-धीरे अपने आप
को स्वतंत्र व्यवसाय में भी स्थापित
कर लेता है।