नरक चतुर्दशी व्रत

नरक चतुर्दशी व्रत  

फ्यूचर समाचार
व्यूस : 6207 | नवेम्बर 2007

नरक चतुर्दशी व्रत पं. ब्रज किशोर ब्रजवासी कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी नरक चतुर्दशी के नाम से प्रसिद्ध है। इस दिन अरुणोदय से पूर्व प्रत्यूष काल में स्नान करने से मनुष्य को यमलोक का दर्शन नहीं करना पड़ता।

यद्यपि शास्त्रानुसार कार्तिक मास में तेल नहीं लगाना चाहिए, फिर भी इस तिथि विशेष को ता े शरीर म ंे तले लपे न करक े ही स्नान करना चाहिए। स्नान से पूर्व शरीर पर अपामार्ग का भी प्रोक्षण करना चाहिए। अपामार्ग को निम्न मंत्र पढ़कर मस्तक पर घुमाना चाहिए। इससे नरक का भय नहीं रहता।

सितालोष्ठसमायुक्तं सकण्टकदलान्वितम।

हर पापमपामार्ग भ्रम्यमाणः पुनः पुनः।।

जो व्यक्ति सूर्योदय के बाद स्नान करता है, उसके शुभ कार्यों का नाश हो जाता है। संपूर्ण स्नानादि कृत्यों को संकल्प सहित पूर्ण करने से जीवन में अधिकाधिक लाभ की प्राप्ति होती है। संकल्प ही सिद्धियों का साधन है।

स्नानोपरांत नित्य नैमित्तिक कर्मों से निवृत्त होकर दक्षिणाभिमुख हो निम्न नाम मंत्रों से प्रत्येक नाम से तीन-तीन जलांजलि पितृतीर्थ से देनी चाहिए। यह यम तर्पण कहलाता है। इससे वर्ष भर के पाप नष्ट हो जाते हैं। पितृतीर्थ तर्जनी के मूल भाग में माना जाता है।

तर्पण मंत्र :

ॐ यमाय नमः।

ॐ धर्मराजाय नमः।

ॐ मृत्येव नमः।

ॐ अन्तकाय नमः।

ॐ वैवस्वताय नमः।

ॐ कालाय नमः।

ॐ सर्वभूतक्षयाय नमः।

ॐ औदुम्बराय नमः।

ॐ दध्नाय नमः।

ॐ नीलाय नमः।

ॐ परमेष्ठिने नमः।

ॐ वृकोदराय नमः।

ॐ चित्राय नमः।

ॐ चित्रगुप्ताय नमः।

इस दिन देवताओं का पूजन करके दीपदान करना चाहिए। चार बत्तियों का चैमुखा दीप जलाकर पूर्व दिशा की ओर मुंह करके रख दें और यह भावना करें कि मेरे सभी पाप मिट जाएं और मेरी नरक से रक्षा हो।

मंदिरों, गुप्त गृहों, रसोई घर, स्नान घर, देववृक्षों के नीचे, सभा भवन, नदियों व तालाबों के किनारे, चहारदीवारी, बगीले, बावली, समुद्र, गलीकूचे, गोशाला, घर के मुख्य द्वार आदि स्थानों पर दीपक जलाना चाहिए। यमराज के उद्देश्य से तो त्रयोदशी से अमावस्या तक दीप जलाने चाहिए। एकभुक्त नियम का पालन करें।

कथा कश्यप जी के अंश देवमाता अदिति के गर्भ से श्रीहरि भगवान विष्ण् ाु देवताओं का कार्य साधन करने हेतु भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष के श्रवण नक्षत्र वाली द्वादशी के अभिजित मुहूर्त में वामन भगवान के रूप में अवतरित हुए। देवगुरु बृहस्पति जी की आज्ञा को शिरोधार्य कर राजा बलि की यज्ञशाला में पधारे।

राजा बलि ने यथोचित अघ्र्य पाद्यादि अर्पित कर भगवान का सम्मान किया। महाराज बलि ने भगवान के आगमन का अभिप्राय जानना चाहा। तब ब्राह्मण वेशधारी अद्भुत रूप लावण्य युक्त करोड़ों कामदेव की छवि को भी धूल धूसरित करने वाले, करोड़ों सूर्य के तेज से भी अधिक प्रभावान भगवान ने राजा बलि से तीन पग भूमि का दान अपने पगों से नापकर मांगा।

भगवान ने विराट स्वरूप धारण कर राजा बलि का संपूर्ण राज्य वैभव दो ही पगों में नाप लिया। तब तीसरे पग हेतु राजा बलि ने अपना मस्तक श्री हरि के चरणों में झुका दिया। भगवान ने असुराधिपति बलि के दान और भक्ति से प्रसन्न होकर वर मांगने को कहा।

उस समय बलि ने विनयानवत प्रार्थना की कि कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी से अमावस्या तक जो व्यक्ति यमराज के उद्देश्य से दीपदान करे, उसे यमयातना न हो और इन तीन दिनों में दीपावली मनाने वाले का घर लक्ष्मी जी कभी न छोड़ें। भगवान ने कहा एवमस्तु।

जो मनुष्य इन तीन दिनों में दीपोत्सव करेगा, उसे छोड़कर मेरी प्राण प्रिया लक्ष्मी कहीं नहीं जाएंगी और उसे यमयातना का कष्ट भी नहीं होगा। अतः श्रद्धा भाव से नरक चतुर्दशी का व्रत करने वाला मनुष्य इहलौकिक व पारलौकिक दोनों ही सुखों को प्राप्त कर मानव जीवन को कृतार्थ कर लेता है। चतुर्दशी को केवल रात्रि में भोजन करने से साधक स्वर्ग लोक का भागी होता है।

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