लक्ष्मी सिद्धि के सूत्र

लक्ष्मी सिद्धि के सूत्र  

एम. एल. अग्रवाल
व्यूस : 40591 | नवेम्बर 2007

लक्ष्मी लक्ष्मी लक्ष्मी !

लक्ष्मी लक्ष्मी लक्ष्मी . मां के रूप में लक्ष्मी की आराधना करने पर मात्र लक्ष्मी से स्नेह के अलावा कुछ प्राप्त नहीं हो सकता। जो लक्ष्मी को मां के रूप में पूजते हैं वे धनपति नहीं बन पाते। पत्नी के रूप में भी किसी प्रकार का लेनदेन नहीं होता। उस पर नियंत्रण स्थापित नहीं कर सकते। यदि उसे दबाएं तो वह उच्छंृखल हो सकती है। लक्ष्मी का तीसरा संबंध प्रेमिका का है जो सब कुछ देने को तत्पर रहती है। शास्त्रों में लक्ष्मी को प्रेमिका के रूप में स्वीकार किया गया है। यजुर्वेद में लक्ष्मी का आवाहन करते हुए कहा गया हैए ष्ष्तू प्रिया रूप में मेरे जीवन में आए जिससे मैं जीवन में पूर्णता अनुभव कर सकूं।ष्ष् प्रेमिका को भी आबद्ध करना आवश्यक होता हैए उसे पौरुष से आबद्ध किया जा सकता है। लक्ष्मी लक्ष्मी लक्ष्मी !

लक्ष्मी चंचला है, एक घर में टिक कर नहीं बैठती। आज जो करोड़पति है एक झोंके में दिवालिया बन जाता है, निर्धन लक्ष्मीवान बन जाता है। यह सब लक्ष्मी की चंचल प्रवृत्ति के कारण ही है।

जीवन में लक्ष्मी की अनिवार्यता है, धनी होना मानव जीवन की महान उपलब्धि है, गरीबी और निर्धनता जीवन का अभिशाप मानी जाती है। प्रत्येक व्यक्ति चाहता है कि वह संपन्न बने, इसके लिए वह हमेशा प्रयत्नशील रहता है। यहां कुछ बिंदु दिए जा रहे हैं, जिन्हें जीवन में अपनाएं तो लक्ष्मी को आपके द्वार आना ही पड़ेगा।

  • जीवन में लक्ष्मी को घर में स्थायी रूप से स्थापित करना है तो सर्वप्रथम ‘‘दरिद्रता-विनाशक’’ प्रयोग करना आवश्यक है। यह सत्य है कि लक्ष्मी धनदात्री है लेकिन दरिद्रता जीवन की एक अलग स्थिति होती है। वह जीवन में कभी भी घुसपैठ कर सकती है, उसे रोकने के लिए दरिद्रता विनाशक प्रयोग आवश्यक है।
  • लक्ष्मी का एक विशिष्ट स्वरूप है ‘‘बीज लक्ष्मी’’। जिसकी साधना करने से महालक्ष्मी के पूर्ण स्वरूप के साथ-साथ जीवन में उन्नति का पथ दृष्टिगोचर होता है।
  • अपने पति हरि विष्णु के बिना लक्ष्मी किसी के भी घर स्थायी निवास नहीं करती। विष्णु जहां उपस्थित हैं, लक्ष्मी वहां स्थायी निवास करती है। जहां शालिग्राम हो, अनंत महायंत्र हो, शंख हो। शंख, शालिग्राम एवं तुलसी मिलाकर लक्ष्मीनारायण की उपस्थिति का वातावरण बनता है ।
  • लक्ष्मी को समुद की पुत्री माना गया है। समुद्र से प्राप्त विविध रत्न उसके सहोदर हैं। इनमें प्रमुख हैं दक्षिणावर्ती शंख, मोती शंख, गोमती चक्र, स्वर्णपात्र, कुबेर पात्र, लक्ष्मी प्रकाम्य, क्षीरोद्भव, वरवरद आदि। उनकी घर में उपस्थिति लक्ष्मी देवी को आपके घर,स्थापित होने के लिए विवश कर देती है।
  • लक्ष्मी का नाम कमला है। लक्ष्मी को कमल सर्वाधिक प्रिय है। लक्ष्मी की साधना करते समय कमल पुष्प अर्पित करने पर, कमल गट्टे की माला से लक्ष्मी मंत्र के जप करने पर लक्ष्मी शीघ्र प्रसन्न होती है।
  • श्री गणपति की स्थापना होने पर लक्ष्मी की पूर्ण स्थापना होती है। बिना गणपति के लक्ष्मी साधना अधूरी रहती है।
  • लक्ष्मी का आगमन वहां होता है जहां पौरुष हो, जहां उद्यम हो, जहां गतिशीलता हो। उद्यमशील लोगों के जीवन में लक्ष्मी, गृहलक्ष्मी, संतान लक्ष्मी, आयुलक्ष्मी, श्री लक्ष्मी विभिन्न रूपों में प्रकट होती हैं। प्रत्येक माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी को ‘श्री सूक्त’ के पद का पाठ करते हुए कमल गट्टे के एक बीज और शुद्ध घी की हवन में आहुति देना फलदायक होता है।
  • साधक को अपने दैनिक जीवन में महालक्ष्मी की कोई भी साधना नित्य अवश्य करनी चाहिए।
  • यदि किसी साधक ने महालक्ष्मी से संबंधित कोई साधना संपन्न न की हो तो उसे नित्य प्रति सूर्योदय काल में निम्न मंत्र का कमल गट्टे की माला से एक माला जप अवश्य करना चाहिए।
  • ‘‘ऊँ श्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद मम गृहे आगच्छ आगच्छ महालक्ष्म्यै नमः’’

  • लक्ष्मी के बड़े अनुष्ठानों की अपेक्षा छोटी लक्ष्मी-साधनाओं, मंत्र जप, घर पर प्राण प्रतिष्ठित यंत्र की स्थापना आदि से जीवन में अनुकूलता शीघ्र आती है।
  • लक्ष्मी प्राप्ति के लिए श्रीयंत्र, कनकधारा यंत्र और कुबेर यंत्र समन्वय से एक पूर्ण क्रम स्थापित होता है।
  • साधक को एक बार लक्ष्मी साधना करने पर, सफलता न मिले, तो बार-बार करनी चाहिए।
  • पारद निर्मित प्रत्येक विग्रह अपने आप में सौभाग्यदायक होता है- चाहे वह पारद लक्ष्मी हो, पारद शंख हो अथवा पारद श्रीयंत्र। पारद शिवलिंग और पारद गणपति में भी लक्ष्मी तत्व समाहित होता है।
  • जीवन में कम से कम एक बार महालक्ष्मी के शक्तिमय स्वरूप ‘कमला महाविद्या’ की साधना अवश्य करनी चाहिए। इससे जीवन में धन के साथ-साथ पूर्ण मानसिक शांति और ‘श्री’ का आगमन होता है ।
  • धन का अभाव चिंताजनक स्थिति में पहुंच जाए, जीवन जीना मुश्किल हो जाए तब ‘श्री विद्या’ महाविद्या की साधना करनी चाहिए।
  • लक्ष्मी प्राप्ति के जब सभी प्रयोग असफल हो जाएं तब अघोर विधि से लक्ष्मी साधना का प्रयोग करना चाहिए।
  • घर-परिवार में किसी तांत्रिक प्रयोग के कारण अथवा गृह-दोष, पितृ दोष आदि के कारण संपन्नता नहीं आ पाती है। ऐसी स्थिति में पितृदोष आदि की शांति करा लेनी चाहिए।
  • साधक को सीधा सरल सात्विक जीवन जीने की आदत डालनी चाहिए। गुरु, अभिभावकों को उचित सम्मान देना चाहिए। जीवन में दान की भावना, पुण्य कार्य करने में उत्साह, घर की स्त्री का सम्मान और प्रत्येक प्रकार से घर में मंगलमय वातावरण बनाए रखना अति आवश्यक है। इसके अभाव में यदि लक्ष्मी का आगमन हो भी जाए तो वह स्थिर नहीं रह पाती।
  • केवल परिश्रम करने से ही लक्ष्मी घर पर नहीं आती है और न ही लक्ष्मी स्थिर रह सकती है। वशिष्ठ, विश्वामित्र, गोरखनाथ, नागार्जनु, तिब्बत के लामा आदि अपने आप में संपन्न व्यक्ति थे, जिनके न कोई परिवार था और न ही लंबा चैड़ा व्यापार। फिर भी अपने समय में सर्वाधिक संपन्न व्यक्ति थे। वे संपन्न इसलिए थे कि उनके पास ऐसी गोपनीय विद्या थी जिसके माध्यम से वे लक्ष्मी को, अपने आश्रम में स्थापित कर सकते थे।
  • लक्ष्मी के तीन स्वरूप हैं - लक्ष्मी मैया, लक्ष्मी पति और प्रेमिका
    शास्त्रों में लक्ष्मी मां के रूप में है इसलिए हम उसे लक्ष्मी मैया के नाम से संबोधित करते हैं। वह पत्नी के रूप में भी शास्त्रों में वर्णित है इसलिए धनी लोगों को लक्ष्मीपति कहते हैं। तीसरा स्वरूप लक्ष्मी का प्रेमिका का है जिसके माध्यम से लक्ष्मी को अपने अनुकूल बनाया जा सकता है।

मां के रूप में लक्ष्मी की आराधना करने पर मात्र लक्ष्मी से स्नेह के अलावा कुछ प्राप्त नहीं हो सकता। जो लक्ष्मी को मां के रूप में पूजते हैं वे धनपति नहीं बन पाते। पत्नी के रूप में भी किसी प्रकार का लेनदेन नहीं होता। उस पर नियंत्रण स्थापित नहीं कर सकते। यदि उसे दबाएं तो वह उच्छंृखल हो सकती है। लक्ष्मी का तीसरा संबंध प्रेमिका का है जो सब कुछ देने को तत्पर रहती है। शास्त्रों में लक्ष्मी को प्रेमिका के रूप में स्वीकार किया गया है। यजुर्वेद में लक्ष्मी का आवाहन करते हुए कहा गया है, ‘‘तू प्रिया रूप में मेरे जीवन में आ, जिससे मैं जीवन में पूर्णता अनुभव कर सकूं।’’ प्रेमिका को भी आबद्ध करना आवश्यक होता है, उसे पौरुष से आबद्ध किया जा सकता है।

विश्वामित्र ऋषि ने लक्ष्मी की अर्चना पूजा मां के रूप में भी की है और बहन और पत्नी के रूप में भी, परंतु उन्हें पूर्ण सफलता प्राप्त नहीं हुई। जब विश्वामित्र ऋषि ने लक्ष्मी को प्रेमिका के रूप में अपने पौरुष के माध्यम से आबद्ध किया तब लक्ष्मी को मजबूर होकर उनके आश्रम में आना पड़ा। लक्ष्मी की अर्चना मंत्र के माध्यम से भी संभव है और तंत्र के माध्यम से भी। मंत्र से तात्पर्य है प्रार्थना व स्तुति करना। ऐसी स्थिति में यह आवश्यक नहीं है कि लक्ष्मी हमारी प्रार्थना स्वीकार करे ही। विश्वामित्र ने कहा है ‘‘हाथ जोड़ने से नारी वश में हो ही नहीं सकती, दीनता प्रदर्शन और गिड़गिड़ाना उसके सामने अपने को कमजोर सिद्ध करना है। इसलिए पौरुष की जरूरत होती है। और यह पौरुष तंत्र के द्वारा ही संभव है।’’

जब मंत्रों के माध्यम से लक्ष्मी विश्वामित्र के आश्रम में नहीं आई तो ऋषि ने नवीन तत्रोक्त विधि प्रचलित की जिसे ‘लक्ष्मी सपर्या विधि’ कहा जाता है। लक्ष्मी प्रकट हुई, लक्ष्मी को देखकर विश्वामित्र ने हाथ नहीं जोड़े, प्रार्थना नहीं की अपितु आंखों में आखें डालकर कहा लक्ष्मी तुम्हें मेरे आश्रम आना ही है। लक्ष्मी लक्ष्मी लक्ष्मी !

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