राम और राम सेतु

राम और राम सेतु  

डॉ. अरुण बंसल
व्यूस : 9815 | नवेम्बर 2007

बांधा सेतु नील नल नागर। राम कृपां जसु भयउ उजागर।।
बूड़हिं आनहि बोरहिं जेई। भए उपल बोहित सम तेई।।
अर्थात्
चतुर नल और नील ने सेतु बांधा। श्रीराम जी की कृपा से उनका यह यश सर्वत्र फैल गया। जो पत्थर स्वयं डूबते हैं और दूसरों को डुबा देते हैं, वे ही जहाज के समान हो गए।।

हिंदू धर्म में एक ही आदर्श एवं मर्यादा पुरुष हैं - पुरुषोत्तम श्री राम। श्री राम का जन्म रामनवमी के दिन पुनर्वसु नक्षत्र में अभिजित मुहूर्त में अयोध्या में हुआ। उस समय अधिकांश ग्रह उच्च या स्वराशि में स्थित थे। श्री राम की जीवन लीला का चित्रण हमारे ग्रंथ रामायण में विस्तृत रूप से किया गया है। यही नहीं, उनकी जीवन लीला का रूपांकन विभिन्न ऋिषियों ने अपने अपने ग्रंथों में किया है। ये ग्रंथ भी हजारों वर्ष पूर्व लिखे गए। इन ग्रंथों से यह स्पष्ट हो जाता है, और यह सर्वविदित है, कि श्री राम ने 14 वर्ष वन में बिताए और वनवास के आखिरी दिनों में लंका के राजा रावण को युद्ध में परास्त कर सीता को वापस ले आए।


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उस काल में भी विज्ञान अत्यंत विकसित था जिसका पता इस बात से चलता है कि उन दिनों पुष्पक विमान, अग्नि वाण आदि विद्यमान थे। अतः यदि श्रीराम ने उस युग में समुद्र पर सेतु बंधवा दिया तो कोई आश्चर्य की बात नहीं है। कहते हैं श्री राम ने रामेश्वरम से लंका तक तैरते हुए सेतु का निर्माण केवल पांच दिन की अवधि में किया था। यह सेतु 30 मील अर्थात 48 किमी लंबा है और दक्षिण-पश्चिम में मन्नार की खाड़ी को उत्तर-पूर्व में पाक की खाड़ी से जोड़ता है। यह कैल्शियम युक्त प्रवाल की भित्तियों ;ब्वतंस तममेिद्ध का बना हुआ है जो कि कठोर एवं हल्का होता है। आज भी इसे रामेश्वरम से श्री लंका की ओर जाता हुआ साफ देखा जा सकता है। बहुत दूर तक पत्थरों की कतार कुछ पानी के ऊपर एवं कुछ पानी के अंदर दिखाई देती है।

इस सेतु का चित्र हाल ही में नासा के उपग्रह द्वारा भी लिया गया है। समुद्र के तट में काफी दूर जाकर भी केवल 1 से 10 मीटर की गहराई में पत्थर अभी भी विद्यमान हैं। यही कारण है कि समुद्र के इस भाग के 48 किमी चैड़ा होते हुए भी इधर से जहाजों का यातायात नहीं हो पाता है। इतिहास के अनुसार 15वीं सदी तक यह सेतु समुद्र की सतह से ऊपर था और सन् 1480 में समुद्री तूफान के कारण इसका ऊपरी हिस्सा पानी में डूब गया। हाल ही में भारत सरकार ने सेतु समुद्रम नौ-परिवहन नहर परियोजना शुरू की है। इस परियोजना के अंतर्गत इस सेतु को साफ कर समुद्र में गहरा बनाया जाएगा ताकि जहाजों का आवागमन सुगम हो सके। परियोजना के सफल हो जाने पर जहाज यात्रा में 30 घंटे के समय की बचत होगी और 400 किमी तक की दूरी कम तय करनी पड़ेगी।

वडंबना यह है कि जिसके बारे में इतिहास के रूप में इतना कुछ हमारे धर्म ग्रंथों में लिखा है, उसी को भारत सरकार ने नकारने में एक पल की भी देर नहीं की। यहां तक कि श्री राम के अस्तित्व पर ही प्रश्न चिह्न लगा दिया। इतिहास में ऐसा कोई दूसरा उदाहरण उपलब्ध नहीं जो श्री राम जितना प्राचीन हो, जिसके बारे में इतना कुछ लिखा गया हो और जिसके हजारों की संख्या में मंदिरों के रूप में स्मारक हों। श्री राम के जन्म स्थल सहित उनके जीवन से संबंधित अनेक स्थलों जैसे चित्रकूट, पंचवटी, रामेश्वरम आदि का वर्णन रामायण में मिलता है जो आज भी उसी रूप में विद्यमान हैं। राम सेतु भी इन्हीं स्मारकों की एक कड़ी है।

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हिंदू धर्म के अतिरिक्त किसी भी धर्म ग्रंथ में इस सेतु का कोई उल्लेख नहीं है। इतिहास केवल कुछ हजार वर्षों का ही उपलब्ध है। राम सेतु निर्विवाद रूप से श्री राम की रचना है। वैज्ञानिक भी मानते हैं कि यह प्राकृतिक संरचना नहीं है। ऐसी संरचना विश्व में कहीं और देखने में नहीं आती। प्राकृतिक होती तो अन्य स्थान पर भी देखने में आती। यदि मनुष्य द्वारा निर्मित है तो कभी तो किसी ने अवश्य बनाई होगी ! अन्य किसी भी धर्म में इसकी दावेदारी नहीं है, तो जो दावेदार हंै उन्हें मनाहीं क्यों? भारत सरकार हमारे सभी ऐतिहासिक स्मारकों और अन्य पुरावशेषों के संरक्षण के प्रति वचनबद्ध है। दिल्ली में ही देखें तो कुतुब मीनार की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए मेट्रो का मार्ग बदल दिया गया।


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ताजमहल की सुरक्षा के लिए उसके आसपास के कई कारखानों को बंद कर दिया गया और कई स्थानों पर मार्ग की दिशा बदल दी गई। तो फिर ऐसे ऐतिहासिक सेतु की रक्षा के लिए कोई कदम क्यों नहीं? यह सेतु तो भारत की ही नहीं, विश्व की धरोहर है क्योंकि यह प्राचीनतम वास्तु कला का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। हिंदू शास्त्र के अनुसार कोई भी वस्तु या प्राणी सर्वदा विद्यमान नहीं रहता और न ही किसी के समाप्त होने का शोक करना चाहिए। भविष्य के विकास के लिए भूत को छोड़ देना चाहिए। अतः सेतु को आने वाली पीढ़ियों के अनुसंधान के लिए बचाते हुए भी भविष्य के विकास की गति को बढ़ाने के लिए मध्य मार्ग अपनाना चाहिए। सेतु की इस 48 किमी की लंबाई में से केवल आधा या 1 किमी के बीच गहरा बना कर विकास कार्य को भी कायम रखा जा सकता है और सेतु को भी बचाए रखा जा सकता है। इससे न तो पर्यावरण का कोई अधिक नुकसान होगा, न विकास में किसी प्रकार की बाधा आएगी और न ही हिंदुओं की आस्था को कोई आधात पहुंचेगा।

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