अब्राहम लिंकन

अब्राहम लिंकन  

शरद त्रिपाठी
व्यूस : 6282 | जनवरी 2016

‘‘व्यर्थ संदेहों को मिटाने के लिए बोलने से अच्छा है चुप रहना और मूर्ख समझा जाना’’... यह कहना था अमेरिका के 16वें राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन का। राष्ट्रपति बनने के बाद जब लोगों ने उनके बीते हुए कल को टटोलना चाहा तो उन्होंने कहा - ‘‘मेरे बीते हुए कल को उलट पुलटकर उसमें महानता ढूंढ़कर इतिहास बनाने की कोशिश निरा पागलपन है- मेरा जीवन ऐसा ही है, एक साधारण किसान जैसा।’’

अब्राहम लिंकन जैसी महान शख्सियत का जन्म 1809 की कड़कड़ाती सर्दी में एक निर्जन बंजर में बनी झोपड़ी में हुआ था। तब कौन जानता था कि भालू की खाल में लिपटा यह बालक आगे चलकर अमेरिका का राष्ट्रपति बनेगा। लिंकन का बचपन बेहद अभावयुक्त था। पढ़ाई का शौक उन्हें बचपन से था। वे जैसा भी जहां से भी प्राप्त होता था पढ़ने का, सीखने का कोई भी मौका गंवाते नहीं थे। उनकी हस्तलिपि बहुत सुंदर थी। लिखने के लिए लकड़ी की तख्ती और अधजली लकड़ी होती थी। कभी-कभी वे अपनी झोपड़ी की दीवारों पर भी लिखते थे।

अपनी सौतेली मां द्वारा दी गई बाईबिल और ईसा के फेबुल्स उन्होंने इतनी बार पढ़ी कि उनकी अपनी शैली पर इन पुस्तकों की अमिट छाप पड़ गई। उनके पास ‘क्विन के चुटकुले’ नामक पुस्तक भी थी जो उन्हें ठहाके मारने पर मजबूर कर देती थी। उनके जीवन में ऐसी अनेक घटनाएं घटीं जिन्होंने उन्हें निराशा से भर दिया था।

अपनी मृत्यु के कुछ समय पूर्व उन्होंने अपने एक मित्र से कहा था कि ‘‘इलिनाॅयस में नंगे पांव रहने वाले मजदूर के रूप में वे राष्ट्रपति भवन में बिताए किसी भी क्षण से अधिक खुश थे। उन्होंने अपने सपने शांति, विजय, संघ, आजादी की रक्षा की। युद्ध समाप्ति के बाद वे बहुत खुश थे किंतु यह शांति उनके लिए चिर शांति बन गई। जब वे अपने परिवार और दोस्तों के साथ विजय जश्न मना रहे थे तभी विलकिंस बूथ ने उनकी हत्या कर दी। नौ घंटे तक मृत्यु से संघर्ष के बाद उनकी मृत्यु हो गई। उनके एक सचिव ने लिखा --- ‘‘उनके थके हुए चेहरे पर अवर्णनीय शांति छा गई।’’


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आइये जानते हैं लिंकन के उतार-चढ़ाव से भरे जीवन को उनकी जन्म कुंडली के माध्यम से-- लिंकन का जन्मलग्न कुंभ है तथा स्वामी शनि बैठे हैं दशम भाव में मंगल की वृश्चिक राशि में। लग्नेश होने के साथ ही शनि व्ययेश भी हैं। शनि अपने ही नक्षत्र में और चंद्रमा के उपनक्षत्र में हैं। चंद्रमा षष्ठेश होकर द्वादश भाव में स्थित हैं। षड्बल में शनि सूर्य के बाद दूसरे नंबर पर हैं। लग्न में सू. बु. का बुधादित्य योग बना हुआ है और बुध अस्त भी नहीं हैं। इसी कारण लिंकन सूझ-बूझ के अत्यंत धनी थे। पढ़ने में उनकी अत्यधिक रूचि थी।

वे सीखना चाहते थे और जब भी उन्हें अवसर मिलता था वे इसका लाभ उठाते थे। लग्नेश शनि दशम भाव में स्थित है। मंत्री नृपतिर्धनी कृषि परः शूरः प्रसिद्धोऽम्बरे। फलदीपिका, 8 अध्याय, श्लोक-24 दशमस्थ शनि जातक को कृषि कार्य में तत्पर, राजा या राजा का मंत्री, अत्यंत प्रसिद्ध और शूरवीर बनाता है। लिंकन ने बचपन व युवावस्था में कृषिकार्य किया किंतु अत्यंत निर्धन जीवन व्यतीत किया अंततः उन्होंने राष्ट्रपति पद प्राप्त कर स्वयं को साबित किया।

द्वितीय भाव में द्वितीयेश बृहस्पति के साथ ही सुखेश व भाग्येश शुक्र उच्चस्थ होकर बैठे हैं। द्वितीयस्थ गुरु जातक को बुद्धिमान और वाग्मी अर्थात बोलने में कुशल बनाते हैं। द्वितीयस्थ शुक्र जातक को काव्य प्रेमी बनाते हैं। उपर्युक्त दोनों ही गुण लिंकन में थे। उन्होंने अनेक किताबों का अध्ययन किया था जिनमें सबसे मूल्यवान उपलब्धि ‘स्काॅट्स लेसन्स’ थी। बोलने की कला से उसने उन्हें अवगत कराया और सिसरो, डेमास्थनीज और शेक्सपीयर के पात्रों के मशहूर व्याख्यानों से परिचित कराया। अधिकांश भाषण और कविताएं उन्हें कंठस्थ थीं।

बन्र्स व उनकी कविताओं ने भी लिंकन की संवेदनाओं को छुआ था। तृतीयेश मंगल राहु से युति बनाकर नवम भाव में अंगारक योग बना रहे हैं। मंगल अपने भाव को दृष्टि प्रदान कर रहे हैं किंतु पीड़ित भी हैं। लिंकन ने बचपन से ही कठोर परिश्रम किया किंतु वे हर कार्य को तत्परता से नहीं करते थे। उन्हें मजदूरी पर रखने वाले किसानों को शिकायत थी कि लिंकन बेहद सुस्त थे।

चतुर्थेश शुक्र धन भाव में चतुर्थ से अष्टमेश अर्थात एकादशेश बृहस्पति से युत हंै और उच्चस्थ होकर स्थित हैं। चतुर्थ भाव सुख व मानसिक शांति का होता है। जब व्यक्ति मानसिक रूप से शांत होता है तभी उसे जीवन के सुखों का अनुभव होता है। चतुर्थेश शुक्र को अष्टमेश का साथ मिला इस कारण लिंकन ने आजीवन मानसिक पीड़ा झेली। राष्ट्रपति बनने के बाद भी लिंकन को एक भी क्षण सुकून का नहीं मिला। व्ययेश शनि यद्यपि लग्नेश भी हैं किंतु वे व्यय भाव के गुण भी लिए हुए हैं और शनि की पूर्ण दृष्टि चतुर्थ भाव पर है। यही कारण है कि लिंकन सदैव पीड़ा की अनुभूति करते रहे।

पंचमेश बुध लग्न में सूर्य के साथ बुधादित्य योग बना रहे हैं। पंचम भाव ज्ञान व शिक्षा का होता है। बुध, बृहस्पति और शुक्र ज्ञान के कारक ग्रह हैं। लिंकन की कुंडली में इनकी स्थिति काफी अच्छी है। लिंकन की पढ़ाई में गहरी रूचि थी अर्थात उन्हें जब भी कुछ पढ़ने व सीखने को मिलता था वे सदैव सीखते थे।

षष्ठेश चंद्रमा द्वादश भाव में बैठकर विपरीत राजयोग का निर्माण कर रहे हैं। लिंकन का जन्म सूर्य की महादशा में हुआ था जो कि एक वर्ष 9 माह शेष थी। उसके बाद लगभग 11-12 वर्ष की अवस्था तक लिंकन को चंद्र की दशा प्राप्त हुई। इस अवधि में उन्होंने काफी जटिल परिस्थितियों का सामना किया। उसके बाद प्रारंभ हुई मंगल की महादशा। मंगल अपने ही नक्षत्र और शुक्र के उपनक्षत्र में है। साथ ही मंगल कर्मेश होकर अपने से व्यय अर्थात नवम भाव में बैठे हैं।

इसी कारण मंगल की दशा में भी लगभग 18-19 वर्ष तक लिंकन को अपने किये हुए कार्यों से कोई लाभ नहीं प्राप्त हुआ। फिर प्रारंभ हुई राहु की महादशा। भाग्य भाव में राहु पराक्रमेश व कर्मेश मंगल से युत होकर अपने ही नक्षत्र और केतु के उपनक्षत्र में हैं। राहु पर केतु और मंगल के अलावा अन्य किसी ग्रह का प्रभाव नहीं है। भाग्य भाव में स्थित राहु ने उन्हें मजदूरी करने से लेकर अमेरिका के राष्ट्रपति बनने तक का सफर करवाया।


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सप्तम भाव के स्वामी सूर्य लग्न में पंचमेश बुध से युति बनाकर लग्न, पंचम व सप्तम को पूर्ण प्रभाव प्रदान कर रहे हैं जिनपर भाग्य भाव में बैठे राहु की पूर्ण दृष्टि भी है। सूर्य मंगल के नक्षत्र व केतु के उपनक्षत्र में तथा बुध राहु के नक्षत्र व चंद्र के उपनक्षत्र में हैं। लग्न, पंचम, सप्तम का संबंध प्रेम तथा प्रेम विवाह का द्योतक होता है। लिंकन ने प्रेम भी किया और उनका विवाह भी हुआ। किंतु पंचमेश बुध चंद्र के उपनक्षत्र में है और चंद्र व्यय भाव में है। लिंकन की प्रथम प्रेमिका की बीमारीवश असमय मृत्यु हो गई ।

इस घटना ने लिंकन को हिलाकर रख दिया। उन्होंने आत्महत्या तक का प्रयास किया। फिर उनके जीवन में भाई आईं टाइड जिनसे उन्होंने विवाह किया। सप्तमेश सूर्य षड्बल में सर्वाधिक बली हैं और लग्न में पंचमेश व अष्टमेश बुध से युत होकर बैठे हैं। लिंकन की पत्नी ने लिंकन को बदलने का काफी प्रयास किया। लिंकन का विवाह अपनी प्रेमिका से होता तो शायद वे जीवन भर खुश रहते किंतु राष्ट्रपति कभी नहीं बन सकते थे।

मैरी ने लिंकन की जीवन शैली बदली और सुस्त रवैये की निंदा की। मैरी ने उन्हें राजनैतिक गतिविधियों में सक्रिय किया और नामांकन पाने की दौड़ में संलग्न किया। अष्टम भाव के स्वामी बुध और मारकेश अर्थात सप्तमेश सूर्य लग्न में बैठकर मारक भाव को पूर्ण दृष्टि दे रहे हैं। आयु पर अशुभ प्रभाव स्पष्ट है इसी कारण लिंकन अपने जीवन के 50 वर्ष भी पूर्ण नहीं कर पाए। 15-4-1865 को लिंकन की गोली मारकर हत्या कर दी गई। उस समय शनि की महादशा में बुध का अंतर और केतु का प्रत्यंतर चल रहा था।

शनि लग्नेश व व्ययेश, बुध अष्टमेश तथा केतु अष्टम से अष्टम अर्थात तृतीय भाव में बैठे हैं। गोचर में सूर्य व बुध मेष राशि में तृतीयस्थ, शनि तुला राशि में नवमस्थ, षष्ठेश चंद्रमा वृश्चिक राशि में नीच के होकर दशमस्थ गोचर कर रहे थे। लग्नेश व्ययेश, अष्टमेश, मारकेश सभी ने मिलकर उनकी मृत्यु की भूमिका बना दी। नवमेश शुक्र मारक भाव में स्थित है और पितृ कारक सूर्य स्वयं मारकेश है।

लिंकन के अपने पिता से संबंध सदैव कटुतापूर्ण रहे। लिंकन ने अपने पिता का आर्थिक सहयोग तो किया किंतु उनके जीवन के अंतिम दिनों में भी उनसे मिलने नहीं गए। दशमेश मंगल अपने से व्यय भाव नवम में राहु से युत है। इसी कारण से लिंकन को अपने कार्यों से कोई लाभ नहीं हुआ। लग्न में बने बुधादित्य योग, दशम में स्थित शनि जिस पर स्वराशिस्थ बृहस्पति की दृष्टि है, ने उन्हें एक न्यायप्रिय वकील अवश्य बनाया। शनि ही उन्हें राजनीति में लाए और शनि ने ही उन्हें दास प्रथा का प्रबल विरोधी बनाया। लिंकन पेशे से वकील थे।

वकालत करते थे किंतु लिंकन को कभी भी इतनी आमदनी नहीं हुई कि वे अपना उधार चुकता कर सकें। यहां तक कि राष्ट्रपति बनने के बाद भी लिंकन लोगों से लिया हुआ अपना कर्ज अदा करते रहे। सूर्य व शनि जब भी लग्न से केंद्र में होते हैं, जातक को महत्वपूर्ण पद प्रदान करते हैं। लिंकन की कुंडली इस बात का उदाहरण है। एकादशेश बृहस्पति स्वराशिस्थ होकर धन भाव में भाग्येश शुक्र से युत है।


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एकादश मित्र भाव भी है। लिंकन के दो घनिष्ठ मित्र थे जिनके बिना शायद लिंकन अपने वकालत का करियर शुरू भी नहीं कर पाते। खाने-कपड़े और रहने का प्रबंध इन्हीं मित्रों द्वारा होता था और लिंकन सदैव ईश्वर से इसके लिए आभार व्यक्त करते थे। बृहस्पति अपने ही नक्षत्र में और मंगल के उपनक्षत्र में है। इसी कारण लिंकन के मित्रों के कारण ही लिंकन को सफलता प्राप्त हुई। बृहस्पति/ राहु में ही लिंकन राष्ट्रपति बने। दशम भाव में षष्ठेश चंद्र स्थित है। द्वादशेश स्वयं शनि हैं। चंद्रमा के उपनक्षत्र में, बुध व शनि बैठे हैं।

बुध पंचमेश व अष्टमेश तथा शनि लग्नेश व व्ययेश हैं जिसके प्रभाववश उन्होंने पाने से भी अधिक खोया। राष्ट्रपति बनने के बाद भी गृह युद्ध में मारे गये 5 लाख लोगों का अपयश भी लिंकन के सिर मढ़ा गया और उन्हें घोर निंदा का सामना करना पड़ा। कटु निंदा को झेलते हुए भी लिंकन शांतिपूर्वक अपना सर्वश्रेष्ठ योगदान करने का प्रयास करते रहे।

जीवन के अंतिम दिन लिंकन असीम आनंद की अनुभूति कर रहे थे क्योंकि उन्होंने अपने सपनों की रक्षा की थी--- ‘‘शांति विजय संघ और आजादी’’। टिप्पणी: लिंकन की कुंडली में नवम व तृतीय भावस्थ राहु-केतु के मध्य सभी ग्रहों के उपस्थित होने के कारण शंखचूड़ नामक कालसर्प (दोष) योग बन रहा है।

इस योग में मानसिक अशांति, धन प्राप्ति में बाधा, गृहस्थी में कलह, बुरे स्वप्न आना, अपनी क्षमता व कार्य कुशलता का पूर्ण फल न प्राप्त होना, अचानक सफलता मिलना व अचानक ही प्रतिष्ठा नष्ट होना आदि अशुभ फल प्राप्त होते हैं। कालसर्प दोष लिंकन की कुंडली में पूर्ण प्रभाव दिखा रहा है। लिंकन मजदूर से राष्ट्रपति बन गये किंतु मानसिक शांति उन्हें कभी नहीं मिली।



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