नजर दोष निवारक मंत्र व यंत्र

नजर दोष निवारक मंत्र व यंत्र  

भगवान सहाय श्रीवास्तव
व्यूस : 16442 | मार्च 2010

वायुमंडल में व्याप्त अदृश्य शक्तियों के दुष्प्रभाव से ग्रस्त लोगों का जीवन दूभर हो जाता है। प्रत्यक्ष रूप से दिखाई न देने के फलस्वरूप किसी चिकित्सकीय उपाय से इनसे मुक्ति संभव नहीं होती। ऐसे में भारतीय ज्योतिष तथा अन्य धर्म ग्रंथों में वर्णित मंत्रों एवं यंत्रों के प्रयोग सहायक सिद्ध हो सकते हैं। यहां कुछ ऐसे ही प्रमुख एवं अति प्रभावशाली मंत्रों तथा यंत्रों के प्रयोगों के फल और विधि का विवरण प्रस्तुत है। ये प्रयोग सहज और सरल हैं, जिन्हें अपना कर सामान्य जन भी उन अदृश्य शक्तियों से मुक्ति प्राप्त कर सकते हैं। गायत्री मंत्र: गायत्री मंत्र वेदोक्त महामंत्र है, जिसके निष्ठापूर्वक जप और प्रयोग से प्रेत तथा ऊपरी बाधाओं, नजर दोषों आदि से मुक्ति प्राप्त की जा सकती है। नियमित रूप से गायत्री मंत्र का जप करने वालों को ये शक्तियां कभी नहीं सताती। उन्हें कभी डरावने सपने भी नहीं आते। गायत्री मंत्र से अभिमंत्रित जल से अभिषेक करने से अथवा गायत्री मंत्र से किए गए हवन की भस्म धारण करने से पीड़ित व्यक्ति को प्रेत बाधाओं, ऊपरी हवाओं, नजर दोषों आदि से मुक्ति मिल जाती है। इस महामंत्र का अखंड प्रयोग कभी निष्फल नहीं होता। मंत्र: ¬ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गोदेवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात्।

प्रयोग विधि

Û गायत्री मंत्र का सवा लाख जप कर पीपल, पाकर, गूलर या वट की लकड़ी से उसका दशांश हवन करें, ऊपरी हवाओं से मुक्ति मिलेगी।

Û सोने, चांदी या तांबे के कलश को सूत्र से वेष्टित करें और रेतयुक्त स्थान पर रखकर उसे गायत्री मंत्र पढ़ते हुए जल से पूरित करें। फिर उसमें मंत्रों का जप करते हुए सभी तीर्थों का आवाहन करके इलायची, चंदन, कपूर, जायफल, गुलाब, मालती के पुष्प, बिल्वपत्र, विष्णुकांता, सहदेवी, वनौषधियां, धान, जौ, तिल, सरसों तथा पीपल, गूलर, पाकर व वट आदि वृक्षों के पल्लव और 27 कुश डाल दें। इसके बाद उस कलश में भरे हुए जल को गायत्री मंत्र से एक हजार बार अभिमंत्रित करें। इस अभिमंत्रित जल को भूता बाधा, नजर दोष आदि से पीड़ित व्यक्ति के ऊपर छिड़कर उसे खिलाएं, वह शीघ्र स्वस्थ हो जाएगा। इस प्रयोग से पैशाचिक उपद्रव भी शांत हो जाते हैं।

Û जो घर ऊपरी बाधाओं और नजर दोषों से प्रभावित हो, उसमें गायत्री मंत्र का सवा लाख जप करके तिल, घृत आदि से उसका दशांश हवन करें। फिर उस हवन स्थल पर एक चतुष्कोणी मंडल बनाएं और एक त्रिशूल को गायत्री मंत्र से एक हजार बार अभिमंत्रित करके उपद्रवों और उपद्रवकारी शक्तियों के शमन की कामना करते हुए उसके बीच गाड़ दें।

Û किसी शुभ मुहूर्त में अनार की कलम और अष्टगंध की स्याही से भोजपत्र पर नीचे चित्रांकित यंत्र की रचना करें। फिर इसे गायत्री मंत्र से अभिमंत्रित कर गुग्गुल की धूप दें और विधिवत पूजन कर ऊपरी बाधा या नजरदोष से पीड़ित व्यक्ति के गले में बांध दें, वह दोषमुक्त हो जाएगा। जिन व्यक्तियों ने गायत्री मंत्र का पुरश्चरण नहीं किया हो, उन्हें यह प्रयोग करने से पहले इस मंत्र का एक बार विधिवत पुरश्चरण अवश्य कर लेना चाहिए। अमोघ हनुमत-मंत्र: ऊपरी बाधाओं और नजर दोष के शमन के लिए निम्नोक्त हनुमान मंत्र का जप करना चाहिए। ¬ ऐं ह्रीं श्रीं ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं ह्रीं ¬ नमो भगवतेमहाबल पराक्रमाय भूत-प्रेत-पिशाच-शाकिनी डाकिनी- यक्षिणी-पूतना मारी महामारी यक्ष-राक्षस भैरव-वेताल ग्रह राक्षसादिकम क्षणेन हन हन भंजय मारय मारय शिक्षय शिक्षय महामारेश्वर रुद्रावतार हुं फट स्वाहा।

इस मंत्र को दीपावली की रात्रि, नवरात्र अथवा किसी अन्य शुभ मुहूर्त में या ग्रहण के समय हनुमान जी के किसी पुराने सिद्ध मंदिर में ब्रह्मचर्य पूर्वक रुद्राक्ष की माला पर दस हजार बार जप कर उसका दशांश हवन करके सिद्ध कर लेना चाहिए ताकि कभी भी अवसर पड़ने पर इसका प्रयोग किया जा सके। सिद्ध मंत्र से अभिमंत्रित जल प्रेत बाधा या नजर दोष से ग्रस्त व्यक्ति को पिलाने तथा इससे अभिमंत्रित भस्म उसके मस्तक पर लगाने से वह इन दोषों से मुक्त हो जाता है। उक्त सिद्ध मंत्र से एक कील को 1008 बार अभिमंत्रित कर उसे भूत-प्रेतों के प्रकोप तथा नजर दोषों से पीड़ित मकान में गाड़ देने से वह मकान कीलित हो जाता है तथा वहां फिर कभी किसी प्रकार का पैशाचिक अथवा नजर दोषजन्य उपद्रव नहीं होता।

भूत-प्रेता बाधा नाशक यंत्र

Û इस यंत्र को सिद्ध करने हेतु इसे सूर्य ग्रहण, चंद्र ग्रहण अथवा दीपावली की रात्रि में अनार की कलम तथा अष्टगंध से भोजपत्र पर 34 बार लिखकर और धूप-दीप देकर किसी नदी में प्रवाहित करें। तत्पश्चात इस यंत्र को पुनः लिखकर विधिवत पूजन कर अपने पास रखें, हर प्रकार की प्रेत बाधा से रक्षा होगी। इस यंत्र को सिद्ध करने की एक और विधि है। शनिवार को धोबी घाट पर पश्चिम दिशा की ओर मुख करके इसे 108 बार लिखकर तथा धूप-दीप दिखाकर बहते हुए पानी में प्रवाहित कर दें। फिर इसे भोजपत्र पर लिखकर प्रेत बाधा या नजर दोष से ग्रस्त व्यक्ति को गले में धारण कराएं, वह दोषमुक्त हो जाएगा।

Û नीचे अंकित यंत्र को प्रातः काल 5 से 8 बजे के बीच अनार की कलम तथा सफेद और लाल चंदन, केसर, कुंकुम, कपूर, कस्तूरी, अगर तथा तगर की अष्टगंध से भोजपत्र पर लिखकर धूप, दीप आदि से उसकी पूजा करें और तदनंतर अपने घर के सामने कम से कम एक हाथ गहरे गड्ढे में गाड़ दें। ध्यान रखें, जिस स्थान पर यंत्र गाड़ें, वह कभी अपवित्र न हो। यह क्रिया निष्ठापूर्वक करें, घर की भूत-प्रेत, नजर दोष आदि से रक्षा होगी। यदि यह संभव न हो, तो यंत्र को सिद्ध करके अपने घर के प्रवेश द्वार की चैखट के ऊपरी भाग में जड़ दें तथा उसकी नियमित रूप से धूपदीप देकर पूजा करते रहें। इस यंत्र के प्रभाव से कभी भी कोई प्रेत बाधा घर में प्रवेश नहीं कर सकेगी और न ही उस पर किसी नजर दोष का प्रभाव होगा। इस्लामी यंत्र: इस इस्लामी यंत्र को किसी पर्व के अवसर पर सिद्ध कर लें। फिर जाफरान (केसर) की स्याही बनाकर सफेद कागज या भोजपत्र पर इसकी रचना करें तथा धूप, दीप, फूल, नैवेद्य से उसकी पूजा कर लोबान की धूनी दें। तत्पश्चात उसे तांबे के तावीज में भरकर और काले धागे में पिरोकर प्रेतादि बाधा या नजर दोष से पीड़ित व्यक्ति के गले में धारण कराएं, उसे भूत-प्रेत बाधाओं, नजर दोष आदि से मुक्ति मिलेगी।

इस तरह, उक्त मंत्रों और यंत्रों के अतिरिक्त और भी अनेकानेक मंत्र और यंत्र हैं जिनका अनुष्ठान कर नजर दोषों तथा ऊपरी बाधाओं से मुक्ति प्राप्त की जा सकती है। इनके अतिरिक्त श्रीमद् भगवद् गीता में भी नजर दोषों से मुक्ति का उपाय बताया गया है। ग्रंथ के ग्यारहवें अध्याय का 36वां श्लोक इस संदर्भ में द्रष्टव्य है। स्थाने हृषीकेश तव प्रकीत्र्या जगत्प्रहृष्यत्यनुरज्यते च। रक्षांसि भीतानि दिशो द्रवन्ति सर्वे नमस्यन्ति च सिद्धसंघाः। इस मंत्र को जन्माष्टमी, शारदीय पूर्णिमा, दीपावली या वैशाखी पूर्णिमा की रात्रि में पवित्रतापूर्वक आसन पर बैठकर 3000 बार जप कर सिद्ध कर लेना चाहिए तत्पश्चात आवश्यकता पड़ने पर कमी भी इसका प्रयोग किया जा सकता है। प्रयोग - यह उपाय भूत-प्रेतजन्य बाधाओं से पीड़ित व्यक्ति को उनसे मुक्ति के लिए करना चाहिए। मिट्टी के एक शुद्ध पात्र अथवा तांबे के बर्तन में गंगाजल अथवा कुएं का जल उसे उक्त सिद्ध मंत्र से 7 बार अभिमंत्रित कर लें और उसमें अपने दाएं हाथ की तर्जनी उंगली को फिराकर उसमें थोड़ा सा जल पीड़ित को पिला दें और शेष जल को उसके शरीर पर तथा उसके रहने के कमरे में छिड़क दें। यह क्रिया नियमित रूप से सुबह और शाम तब तक करते रहें, जब तक प्रेतबाधा दूर न हो जाए।



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