वर्षकुंडली : फल विवेचन

वर्षकुंडली : फल विवेचन  

फ्यूचर समाचार
व्यूस : 16970 | जनवरी 2007

फल कथन की अनेकानेक पद्ध तियों में वर्ष कुंडली का विशेष महत्व है। जन्म कुंडली में जिस प्रकार पूरे जीवन की घटनाओं का फल देखा जाता है। उसी प्रकार वर्ष कुंडली में एक वर्ष की घटनाओं का विस्तृत विश्लेषण किया जाता है। वर्ष कुंडली द्व ारा कैसे फलित किया जाता है, आइए जानें...

प्रश्न: ज्योतिष में वर्ष कुंडली क्या है और इसका क्या महत्व है?

उत्तर: भारतीय ज्योतिष में फल कथन करने की कई प्रकार की पद्ध तियां हैं जिनमें एक पद्धति वर्ष कुंडली से एक वर्ष का फल कथन करने की है। इस पद्धति को ताजिक भी कहते हैं। सभी पद्धतियों का लक्ष्य फल कथन करना ही है। जहां जन्म कुंडली जातक के जीवन भर की घटनाओं को फलित करती है वहीं वर्ष कुंडली उसके एक वर्ष में होने वाली घटनाओं को सूक्ष्मता से बताती है।

प्रश्न: वर्ष कुंडली बनाने का आधार क्या है?

उत्तर: वर्ष कुंडली का आधार तो जन्म कुंडली पर ही निर्भर करता है जातक के जन्म कुंडली में सूर्य जितने भोग-अंशों पर रहता है जब वह वापस उतने ही भोगांशों पर आता है तो वह काल वर्ष कुंडली का प्रवेश काल होता है। उसी काल के आधार पर जातक की वर्ष कुंडली बनाई जाती है ठीक वैसे ही जैसे जन्म कुंडली का निर्माण किया जाता है।

प्रश्न: वर्ष कुंडली में ध्रुवांग का क्या महत्व है?

उत्तर: वर्ष कुंडली निर्माण में ध्रुवांग का विशेष महत्व है। बिना ध्रुवांग के वर्ष कुंडली बन ही नहीं सकती, ध्रुवांग एक स्थिर मान है। सूर्य राशि चक्र में 365 दिन, 6 घंटे, 9 मिनट, 9.72 सेकंेड में एक चक्र पूरा करता है या इसे ऐसा भी कह सकते हैं कि 52 सप्ताह, 1 दिन, 6 घंटे, 9 मिनट और 9.72 सेकेंड में सूर्य राशि चक्र पूरा करता है। 52 सप्ताह के ऊपर जितना समय उसे अपना चक्र पूरा करने में लगता है वह धु्रवांग है। जिस वर्ष की वर्ष कुंडली बनानी हो उतने से धु्रवांग को गुणा करके जन्म कालीन वार और समय में जोड़ देने से वर्ष प्रवेश काल, दिन, तारीख आदि आ जाते हैं। इसी आधार पर वर्ष कुंडली का निर्माण किया जाता है। वर्ष कुंडली वर्ष काल राशि चक्र में ग्रहों की स्थिर स्थिति है।

प्रश्न: वर्ष कुंडली के निर्माण में क्या क्या गणना करनी अनिवार्य है?

उत्तर: वर्ष कुंडली के निर्माण में सबसे पहले वर्ष प्रवेश की तारीख और समय की गणना करते हैं। ध्रुवांग की सहायता से वर्ष प्रवेश का काल निकाल कर वर्ष कुंडली उसी स्थान के अक्षांश-रेखांश पर बनाई जाती है जहां पर जातक का जन्म हुआ होता है। इसके उपरांत ग्रहों के भोगांश निकाले जाते हैं, सभी ग्रहों के बल, पंचवर्गीय बल, मुंथा दशा आदि की गणना की जाती है। इस तरह उक्त सभी गणनाएं अनिवार्य हैं क्योंकि इन्हीं के माध्यम से वर्ष फल सुनिश्चित किया जाता है।

प्रश्न: वर्ष कुंडली में मुंथा क्या है और इसका क्या महत्व है?

उत्तर: मुंथा वर्ष कुंडली का एक विशेष महत्वपूर्ण अंग है। वर्ष फल के लिए मुंथा की विशेष आवश्यकता होती है। मुंथा की स्थिति से वर्ष भर में होने वाली घटनाओं को जाना जाता है। वर्ष कुंडली का संबंध जन्म कुंडली से होता है। मुंथा जन्म कुंडली में जन्म के समय लग्न अर्थात प्रथम भाव में माना जाता है। जो हर वर्ष एक राशि आगे बढ़ना अर्थात प्रथम वर्ष मुंथा प्रथम भाव दूसरे वर्ष जन्म कुंडली के दूसरे भाव, तीसरे वर्ष तृतीय भाव और इसी क्रमशः बारह वर्षों में मुंथा सभी राशियों में भ्रमण करता है। और दोबार लग्न में 13वें वर्ष प्रवेश करता है। इस तरह जातक के 13वें, 25वें, 49वें....... वर्ष मुन्था लग्न में अपना सभी राशियों में भ्रमण कर पहुंचता है। जिस वर्ष मुंथा जिस राशि में जन्म कुंडली में भ्रमण करता है उस वर्ष वर्ष कुंडली में भी वह उसी राशि में रहता है। मुंथा वर्ष कुंडली में अपनी भाव स्थिति के अनुसार फल देता है।

प्रश्न: मुंथा का फल कैसा होगा यह कैसे जानें?

उत्तर: मुंथा वर्ष कुंडली में अपनी करते हैं। विंशोŸारी मुद्दा, योगिनी, पत्यायनी, हद्दा और बलराम दशाएं ही वर्ष फल के लिए शास्त्रों में बताई गई हैं। वर्ष फल कथन में इन में से एक, दो या कभी कभी तीन दशाओं की सहायता ली जाती है। फल कथन में किस दशा को अधिक महत्व देना है, यह ग्रहों के बल पर निर्भर करता है।

प्रश्न: क्या इसे पांचों दशाओं के वर्ष फल कथन में एक साथ देखना चाहिए?

उत्तर: यदि वर्ष कुंडली में चंद्र बली है तो निशांतर मुद्दा, योगिनी और बलराम दशाओं पर विचार करें। यदि किसी ग्रह के कम अंश हों लेकिन वह बली हो, तो पात्यांशा दशा पर विचार करें। यदि वर्ष कुंडली में वर्ष लग्नेश बली हो, तो हद्दा दशा पर विचार करना चाहिए।

प्रश्न: क्या वर्ष कुंडली में दृष्टियां जन्म कुंडली की दृष्टियों से भिन्न होती हैं?

उत्तर: वर्ष कुंडली में दृष्टियां जन्म कुंडली की दृष्टियों से भिन्न हैं जो तीन प्रकार की हैं- मित्र दृष्टि, शत्रु दृष्टि और सम दृष्टि।

मित्र दृष्टियां: वर्ष कुंडली में जिस भाव में ग्रह स्थिति हो वहां से वह तीसरे, पांचवें, नौवें और 11वंे भाव को मित्र दृष्टि से देखता है। यदि इन भावों में कोई ग्रह स्थिति हो, तो उस ग्रह पर भी मित्र दृष्टि ही पड़ेगी। जिस ग्रह पर मित्र दृष्टि पड़ रही हो वह ग्रह भी मित्र दृष्टि से ही उस ग्रह को देखेगा।

शत्रु दृष्टियां: जिस भाव में ग्रह बैठा हो वह अपने से पहले, चैथे, सातवें और 10वें भावों पर और इन में बैठे ग्रहों पर शत्रु दृष्टि देता है।

सम दृष्टियां: जिस भाव में ग्रह बैठा हो वहां से वह दूसरे, छठे, आठवें भाव स्थिति के अनुसार फल देता है।

मुंथा जब वर्ष कुंडली में 9वें, 10वें और 11वें भाव में रहता है, तो शुभ फलदायी होता है। पहले, दूसरे, तीसरे और पांचवें भाव में भी मुंथा का फल शुभ होता है लेकिन जब मुंथा चैथे, छठें, सातवें, आठवें और 12वें भाव में रहता है, तो अशुभ फलदायी होता है। मुंथा का शुभ-अशुभ फल भाव स्थिति अनुसार ही माना जाएगा।

प्रश्न: वर्षेश का निर्णय कैसे करें?

उत्तर: वर्ष कुंडली निर्माण और मुंथा को यथा स्थान रखने के बाद वर्षेश निकाला जाता है। वर्षेश अर्थात पूर्ण वर्ष का स्वामी। वर्ष भर में होने वाली घटनाओं को जानने के लिए वर्षेश बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। वर्षेश वर्ष के पंचाधिकारियों में से एक को चुना जाता है यह पंचाधिकारी हैं- मुंथेश, जन्म लग्नेश, वर्ष लग्नेश, त्रिराशि पति एवं दिन रात्रि पति। इन पांचों में से जो बली होगा और लग्न में दृष्टि रखता होगा वही वर्षेश होगा।

प्रश्न: मुंथेश कब कब और कैसे वर्षेश बनता है?

उत्तर: जब सभी पंचाधिकारी लग्न पर दृष्टि भी दे रहे हों और बली भी हों, तो पांचों में से मुंथेश को ही वर्षेश भी माना जाता है। इसके अतिरिक्त यदि कोई भी अधिकारी लग्न को न देख रहा हो, तो मुंथेश को वर्षेश माना जाता है। यदि सभी वर्ष अधिकारी (पंचधिकारी ) बलहीन हों, तब भी मुंथेश को ही वर्षेश माना जाता है। भले ही मुंथेश लग्न पर दृष्टि दे या न दे।

प्रश्न: वर्ष फल कथन में कौन कौन सी दशाएं आवश्यक हैं?

उत्तर: वर्ष फल में वर्ष कुंडली निर्माण के बाद दशाओं की गणना जिज्ञासा समाधान और 12वें भावों में और उन भावों में बैठे ग्रह पर सम दृष्टि देता है और इन भावों में बैठे ग्रहों से सम दृष्टि प्राप्त भी करता है।

प्रश्न: वर्ष कुंडली में सहम क्या है और इसका क्या महत्व है?

उत्तर: सहम जीवन की घटनाओं को प्रदर्शित करने की एक विशेष स्थिति है जो जीवन की किसी एक घटना को ही प्रदर्शित करता है। ताज़िक नीलकंठी के अनुसार सहम 50 हैं। यदि सहम और उसके स्वामी शुभ हों या शुभ दृष्ट हों, तो यह स्थिति सांकेतिक घटना के लिए शुभ फलदायी होती है। घटना की अवधि को इसकी स्थिति, स्वामी तथा उस राशि की स्थिति से ज्ञान किया जाता है। वर्ष फल कथन में किसी विशेष घटना को जानने के लिए सहम महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

प्रश्न: सहम निकाल कर घटना की अवधि कैसे जानें?

उत्तर: सहम को निकालने के लिए लग्न एवं ग्रहों के भोगांशों को लेकर सहम की राशि और अंश निकालकर सहम के स्वामी को जाना जाता है। फिर राशि अवधि को पलों में बदल कर घटना घटने की अवधि को दिनों में निकाला जाता है। यह अवधि वर्ष प्रवेश की अवधि में जोड़ देने से घटना घटने की तिथि निकल जाती है। जिस विषय विशेष का समय जानना हो उससे संबंधित सहम की अवधि को ही लेना चाहिए।

प्रश्न: क्या सहम के द्वारा निकाली गई अवधि में घटना अवश्य घटती होगी?

उत्तर: यदि सहम और उसका स्वामी शुभ हों या शुभ दृष्ट हों, तो सांकेतिक घटना अवश्य घटती होगी। हां घटना का संबंध यदि आयु से भी हो, तो आयु के अनुसार ही घटना घटित होगी। जैसे मान लें किसी के विवाह को ही जानना है। तो विवाह सहम के साथ साथ जातक की आयु को भी देखें कि क्या आयु के अनुसार जातक का विवाह होता है? अर्थात आयु विवाह के लिए है या नहीं। यदि आयु ही 60 वर्ष होगी तो विवाह कैसे संभव हो सकता है? इसलिए आयु के अनुसार ही घटना घटने का निर्णय लें।

प्रश्न: वर्ष फल कथन में क्या अलग-अलग मास की भी कुंडली बनती है?

उत्तर: मास फल कथन के लिए मास कुंडली बनाई जाती है जिससे मास फल कथन सक्षमता से हो जाता है। मास कुंडली में मास का प्रवेश काल भी सूर्य के भोगांश पर निर्भर करता है। सूर्य का भोगांश जब जन्म भोगांशों के बराबर आता है (राशि को छोड़कर अंश-कला में) तो मास प्रवेश होता है। उसी समय के लग्न एवं गोचर की स्थिति मास प्रवेश कुंडली होती है।

प्रश्न: क्या मास कुंडली में भी मासाधिपति आदि निकाले जाते हैं?

उत्तर: वर्ष कुंडली की तरह मास कुंडली में भी मास अधिपति निकाल कर फल कथन किया जाता है। मासाधिपति निकालने का नियम वैसा ही है जैसा वर्षाधिपति निकालने का होता है। मासाधिपति की यदि स्थिति शुभ या शुभ दृष्ट हो, तो मास शुभ फलदायी होगा, अन्यथा नहीं।

प्रश्न: मास फल कथन में भी दशाएं अलग से निकाली जाती हैं?

उत्तर: मास फल कथन के लिए वर्ष कुंडली की दशाएं ही कार्य करती हैं। मास कुंडली में अलग से दशाएं नहीं निकाली जातीं।

प्रश्न: मास कुंडली में क्या मुंथा अपना स्थान बदलता है?

उत्तर: मास कुंडली में मुंथा अपना स्थान बदल भी सकता है। यह मुंथा के अंशों पर निर्भर करता है क्योंकि मास मुंथा ढाई अर्थात 2व्म्30’ आगे बढ़ता है। इस प्रकार 12 मास में 30व्म् अर्थात एक राशि आगे जाती है। यदि मुंथा के अंश राशि के मध्य रहते हैं तो 6 मास के बाद मुंथा दूसरी राशि में प्रवेश कर जाता है। ऐसा किसी भी मास हो सकता है। अर्थात यदि मुंथा के 2व्म् अंश हों तो वर्ष के अंतिम मास में मुंथा अपनी राशि बदल लेगा और यदि 28व्म् हों तो वर्ष के दूसरे ही मास राशि बदल लेगा।

प्रश्न: क्या वर्ष कुंडली के योग जन्म कुंडली के योगों के समान होते हैं?

उत्तर: वर्ष कुंडली में जन्म कुंडली से पूर्णतः भिन्न योग होते हैं और इसमें केवल 16 योगों का उल्लेख है, जैसे-इक्कबाल, इन्दुवर, इत्यशाल, इसराफ, नक्त, यमया, मणऊ, कम्बूल, गैरी कम्बूल, खल्लासर रद्द, दुफालिकुत्थ, दुत्थकुत्थीर, तम्बीर, कुत्थ, दूरूफ योग। ये योग ग्रहों के अंश, गति एवं बलाबल पर निर्भर करते हैं एवं फलादेश को सटीक बनाने में बहुत मदद करते हैं।

प्रश्न: वर्ष फल कथन में किन किन बातों पर विशेष ध्यान देना चाहिए?

उत्तर: सर्वप्रथम वर्ष कुंडली बना कर मुंथा-मुंथेश की स्थिति को देखें। फिर वर्षेश निकाल कर दशाएं आदि भी लगा लें। फिर ताजिक योगों की सहायता से फल कथन करने की चेष्टा करें। कौन-सी दशा नियम अनुसार देखनी चाहिए इसका निर्णय करें।

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