मानव समाज में कुआं के महत्व
पर जितना लिखा जाए कम
होगा। पेय जल का श्रेष्ठ साधन
कूप, कुआं अथवा कुंड पुरातन काल
से ही भारतीय समाज में उपयोगी
बना रहा है। गर्मी में फ्रीज की भांति
ठंडा तो जाड़े में भांप सहित गरम
पानी देने वाले कूप का उपयोग
अधुनातन काल में भी उपयोगी सिद्ध
हो रहा है। यही कारण है कि प्राचीन
काल में कोई भी मठ, मंदिर, भवन,
महल अथवा सार्वजनिक स्थल के
साथ चैक, चैराहे पर कुआं जरूर
रहा करता था और ऐसा ही एक
ऐतिहासिक कूप है अगम कुआं, जो
पटना नगर की प्रसिद्धि प्राप्त माता
शीतला देवी मंदिर परिसर में मौर्य
काल से आज तक स्मृति चिह्न के
रूप में विराजमान है।
जैसा कि नाम से ही स्पष्ट होता
है अगमकुआं, अर्थात् अगम्य कुआं
... कहने का आशय जहां की गहराई
अथाह हो, उसके तल का कोई
अता-पता न चले। कहते हैं अंग्रेजों
के जमाने में इस कूप की गहराई माप
के लिए एक नहीं सात-सात खाट
की रस्सी लगाई गई तब भी गहराई
का पता न चला। यह वही कूप है
जहां कभी सम्राट अशोक ने राजा
बनने के पूर्व अपने 99 भाइयों को
मारकर इसी में डाल दिया था। आज
इस नाम का नगरखंड पूरे पटना ही
नहीं बिहार में चर्चित है जहां की
माता शीतला त्वरित फलदायी केंद्र
के रूप में दूर देश तक सुप्रसिद्ध हैं।
संपूर्ण क्षेत्र में कुछ अन्य कूप की
चर्चा आवश्यक जान पड़ती है जिनमें
‘‘रानी कुआं’’, ‘‘मंगल कुआं’’ , पीठकी
कुआं,’’ ‘‘अमावाँ कुआं,’’ ‘‘बड़की
कुआं’’ आदि भी हैं पर इन सबों में
अगम कुआं सर्वाधिक प्रसिद्ध है और
प्रसिद्धि की बात तब और बढ़ जाती
है जब ज्ञात होता है कि इसी के
साथ माता शीतला तीर्थ भी स्थापित
हुआ है। यह स्थान पाटलिपुत्र के
प्राचीन भग्नावशेष ‘कुम्हरार’ क्षेत्र के
सन्निकट है।
हाल के वर्षों में सरकारी प्रयास व
भक्तों के सहयोग से यह स्थान बड़ा
ही आकर्षक साज शृंगार के साथ
उपस्थित हुआ है जहां माता शीतला
के पूजनार्थ पूरे देश से भक्तों का
समय-समय पर आगमन होता रहता
है। विद्वानों का मानना है कि अगर
रसिका माता पटन देवी (जिनके
द्वयस्थान पटना नगर में हैं) के साथ
पुराने पटना क्षेत्र में यहां के लोगों
के स्वास्थ्यवर्द्धन व निरोगता के नाम
पर माता शीतला के इस स्थान की
स्थापना की गयी। ऐसे कुछ यह
भी कहते हैं कि सम्राट अशोक ने
अपने पाप का प्रायश्चित करने के
उद्देश्य से माता जी का पाटलिपुत्र
क्षेत्र में नवसंस्कार कराया। इस तरह
स्पष्ट हो जाता है कि यह स्थान
अति प्राचीन है जिसकी गणना मगध
के त्रय शीतला पूजन केंद्रों में होती
है अन्य दो स्थान क्रमशः शीतला
भीतर (पितामहेश्वर) गया व मथड़ा
(बिहारशरीफ) है। आज भी तकरीबन
दो दर्जन स्थानों पर पूरे बिहार क्षेत्र
में माता शीतला जी विराजती हंै
जिनमें सर्वाधिक विशाल व प्रसिद्धि
प्राप्त देवालय यही है।
कण-कण में व्याप्त मां देवी जी
का शीतला रूप रोग-बीमारी का
शमन-दमन कर कंचन काया प्रदान
करता है। आज भी इस क्षेत्र में एक
लोकप्रिय लोकोक्ति है- ‘प्रथम स्वर्ग
है उत्तम काया, दूसरा स्वर्ग पास में
माया’। प्राचीन काल से ही सप्त पिंड
रूप एक भैरव पिंड बनाकर शीतला
देवी की आराधना का रूप द्रष्टव्य
होता है जिनका वाहन ‘गदहा’ व नीम
वृक्ष से इन्हें अतिशय प्यार है। पहले
यहां भी पिंड रूप में मातृ आराधना
होती थी पर बाद में इन पिंडों पर
धातु के कटोरे मढ़ दिए गए और
ठीक बगल में मां की पुराणोक्त विग्रह
बनाकर देवी आराधना को नई दिशा
दी गई। माई की महिमा का गवाह
राजमार्गीय चैराहे पर आकर्षक द्वार, शीतला मंदिर पटनां
इस बात से है कि आज भी पूरे नगर
में खुशी के किसी पारिवारिक अवसर
पर मातारानी के शरण में जरूर
जाते हैं। प्रायः हरेक हिंदू परिवार का
नवदंपत्ति अपने जीवन के सुखमय
निर्वहन के लिए इस मंदिर में आकर
मत्था जरूर टेकते हैं। माता जी की
आराधना का एक मंत्र है-
शीतले त्वं जगत्माता शीतले त्वं
जगत्पिता।
शीतले त्वं जगधात्री शीतलायै नमों
नमः।
पटना नगर के व्यस्ततम् चैराहे से
आगे बढ़ते ही पूजापाठ व मालाफूल
की दुकानें और विशाल सिंह द्वार
इस बात का अहसास करा देता है
कि मातृ पूजन का यह केंद्र आस्था
व विश्वास का विशिष्ट उदाहरण है।
नौ सीढ़ी उतरते विशाल आंगन में
प्रवेश करते ही पीठस्थ शक्ति का
प्रत्यक्ष अनुभव हरेक भक्तों को होता
है। प्रथम दर्शन गणेश के बाद अंगार
माता की छोटी मंदिर में पूजन का
विधान है। इसके दूसरी तरफ भोले
भंडारी का मंदिर व यज्ञ मंडप शोभित
है तो आगे में अगम कुआं के पास
नीम के दो-दो पेड़ देखे जा सकते
हैं जिनमें एक नया व एक पुराना है।
कोने पर बलि का स्थान है। अंदर
में माता रानी का विग्रह भक्तों को
आशीर्वाद देते प्रतीत होती हैं। माता
शीतला मंदिर की बाहरी पूर्व दिशा व
इसके दीवार पर ताखे में शिव-पार्वती,
सूर्य व विष्णु की ऐतिहासिक मूर्तियां
हैं। बगल में ही वैष्णो देवी का स्थान
है। यहां के सौन्दर्यीकरण के बाद
बिहार के मुख्यमंत्री श्री लालू प्रसाद
यादव द्वारा दिनांक 19-6-1996 में
किये गये उद्घाटन के बाद आज
यह प्रदेश के सुंदर व चित्ताकर्षक
देवालय के रूप में ख्यात हुआ है।
इस पूरे मंदिर परिसर में कुछ खंडित
विग्रह व प्राचीन पाषाण स्तंभ भी देखे
जा सकते हैं। पटना क्षेत्र के वरिष्ठ
पत्रकार अवधेश प्रीत बताते हैं कि
माता जी का यह तीर्थ पूरे देश में
प्रसिद्ध है जहां लोग पटना भ्रमण के
दौरान दर्शन अवश्य करते हैं। ऐसे
तो यहां सालों भर लोग आते रहते
हैं पर शीतलाष्टमी व दोनों नवरात्र
में यहां काफी भीड़ होती है। ब्राह्मण
पुत्री सोनाली बताती है कि माता श्री
के इस धाम में लोग बंधन बांधकर
मनौती करते हैं फिर कार्य होने पर
धागा बंधन हटाकर माताजी की विशेष
पूजा की जाती है। शादी-विवाह,
पुत्र-प्राप्ति से लेकर हरेक लोगों के
दुख-दर्द का निवारण कर माता जी
जीने की राह मंगलमयी बनाती हैं।
लोग मंदिर दर्शन करने के बाद उस
ऐतिहासिक कुआं को जरूर देखते
हैं जिनमें चारों तरफ चार खिड़की
व जाली के साथ दीवार ऊंचे कर
बड़ा बना दिए गए हैं। कूप का व्यास
पहले से छः फीट नवनिर्माण के बाद
कम हो गया है।
कुल मिलाकर यह कहना एकदम
सटीक होगा कि पटना के शताधिक
देवालयों के मध्य माता शीतला
भवानी का यह स्थान तकरीबन ढाई
हजार वर्ष प्राचीन है जिनके दर्शन
पूजन से हर एक की मनोकामना
अवश्य पूर्ण होती है।