क्रूर नहीं न्यायप्रिय है शनि शनि देव को न्यायाधीश के रूप में कार्य करने का वरदान भगवान शिव से मिला है. यह बात निर्वाद है की शनि के ग्रहों के राजा सूर्य के पुत्र होंने के बावजूद कोई भी आम आदमी सुख समृद्धि हेतु नहीं, बल्कि डर के कारण उनकी अराधना, पूजा एवं उपासन... और पढ़ेंअकतूबर 2009व्यूस: 6902
मधुमेह : एक ज्योतिषीय संदर्भ रक्त में अत्यधिक शुगाक का होना ही मधुमेह का मुख्य कारण है। इस रोग के होने पर रोगी को भूख एवं प्यास अधिक लगती है। तथा उसके वजन में कमी आ जाती है। मधुमेह स्वयं मृत्यु होती है। इसके पुराने होने पर नेफारेटिस । ... और पढ़ेंफ़रवरी 2008व्यूस: 6906
महिमामय प्राचीनतम देवी-तीर्थ कामाख्या भारतवर्ष में तंत्र, मन्त्र, यंत्र के सबसे बड़े व् प्रधान धार्मिक केंद्र के रूप में मान्य कामाख्या का यह स्थान अति प्राचीन हैं। इस तीर्थ को कामाक्षा, कामरूप, कामाख्या अथवा कमरू कामाख्या भी कहा जाता हैं।... और पढ़ेंजुलाई 2012व्यूस: 9302
पुण्यदायक है माघ मास सभी पापों से मुक्ति, स्वर्गलाभ व भगवान वासुदेव की प्राप्ति प्राप्त करने के लिए माघ स्नान व व्रत करना चाहिए। प्रस्तुत है व्रत व स्नान की पुराणोक्त विधि... और पढ़ेंजनवरी 2009व्यूस: 5394
पांचवां टैरो- पांचवें तत्व की वापसी मानव जाति ने प्राचीन काल से ही भिन्न भिन्न प्रकार के शास्त्रों की रचना की, ग्रन्थ लिखे एवं ऐसी तकनीक का विकास किया जिसके द्वारा उसने अपने बारे में एवं अपने आस-पास के प्राणियों, घटनाओं एवं अदृश्य शक्तियों को जानने का प्रयत्न किया।... और पढ़ेंअकतूबर 2012व्यूस: 5782
अंजल टैरो-एंजल चिकित्सा एवं टैरो का अदभुत संगम लगभग ३०० वर्षों से टैरो भविष्य जानने एवं जीवन के रहस्यों को प्रकट करने का सक्षम साधन रहा हैं। शुरुआत से टैरो केवल विशेषज्ञों एवं इस कला में पारंगत विशिष्ट व्यक्तियों तक सिमित रहा हैं। जहाँ टैरो की भविष्यवाणी करने के लिए उपयुक्तता ... और पढ़ेंनवेम्बर 2012व्यूस: 6358
गोमुखी कामधेनु शंख से मनोकामना पूर्ति गोमुखी शंख की उत्पत्ति सतयुग में समुद्र मंथन के समय हुआ। जब 14 प्रकार के अनमोल रत्नों का प्रादुर्भाव हुआ तब लक्ष्मी के पश्चात् शंखकल्प का जन्म हुआ। उसी क्रम में गोमुखी कामधेनु शंख का जन्म माना गया है। पौराणिक ग्रंथों एवं शंखकल्प स... और पढ़ेंनवेम्बर 2013व्यूस: 19780
नीलम नीलम सत्य और सनातन का प्रतिक रत्न है. विवेकशीलता, सत्य तथा कुलीनता जैसे गुण इसके साथ जुड़े हुए है. शुभ फलदायक सिद्ध होने पर यह धारणकर्ता कों रोग, दुःख:दारिद्रय नष्ट करके धन –धान्य, सुख-सम्पति, बुद्धि, बल, यश और आयु देता है........ और पढ़ेंजून 2009व्यूस: 9065
लग्न के अनुसार रुद्राक्ष धारण रत्न प्रकृति-प्रदत ईश्वरीय उपहार हैं. सनातन काल से ज्योतिष में ग्रह-दोष के निवारणादि हेतु रत्न धारण करने की परम्परा चली आयी हैं. कुंडलीनुसार सही और निर्दोष रत्न धारण करना ही फलदायक होता हैं. यदि रत्नों में किसी प्रकार का दोष हो अथ... और पढ़ेंअप्रैल 2012व्यूस: 9386
हस्त – रेखाकृतियों के फल एक शंख वाला व्यक्ति अध्ययनशील, दो शंखों वाला दरिद्र, तीन शंखों वाला पत्नी पीड़ित, चार शंखों वाला राजा तुल्य वैभव संपन्न पांच शंखों वाला विदेश से धनार्जन करने वाला, छह शंखों वाला होशियार, सात शंखों वाला निर्धन, आठ शंखों वाला सुखी, न... और पढ़ेंजनवरी 2008व्यूस: 9980
मन्त्र-यंत्र-तंत्र का महत्व गाय एक सकारात्मक ऊर्जा का स्त्रोत हैं। प्राचीन समय से ही भारतवर्ष में गाय को माता के रूप में माना जाता हैं। तथा उसकी पूजा की जाती हैं। उस समय प्रत्येक घर में एक गाय होना आवश्यक माना जाता था। ... और पढ़ेंजुलाई 2012व्यूस: 9305
ज्योतिषीय परिप्रेक्ष्य में देव-पितर-प्रेत-दोष विद्वानों ने अपने ग्रंथों में विभिन्न दोषों का उदहारण दिया है और पितर दोष का सम्बन्ध बृहस्पति (गुरु ) से बताया हैं। अगर गुरु ग्रह पर दो बुरे ग्रहों का असर हो तथा गुरु ४-६-१२ वें भाव में हो या नीच राशि में हो तथा अंशों द्वारा निर्ध... और पढ़ेंसितम्बर 2012व्यूस: 19026