क्रूर नहीं न्यायप्रिय है शनि

क्रूर नहीं न्यायप्रिय है शनि  

व्यूस : 5442 | अकतूबर 2009
क्रूर नहीं न्यायप्रिय हैं शनि विनय गर्ग शनि एक ऐसे ग्रह हंै जिनके कारण अधिकतर लोग भयभीत हो जाते हैं। यह डर शनि की दशा या उनकी गोचरावस्था के फलस्वरूप उनकी साढ़ेसाती अथवा ढैया के कारण होता है। परंतु भयभीत वही लोग होते हैं, जिन्हें अपने कर्मों के बारे में संदेह रहता है। शनि के कारण ऐसे लोगों को भयभीत होने की आवश्यकता बिल्कुल नहीं है, जिन्हें अपने कर्मों के बारे में कोई संदेह नहीं होता, क्योंकि शनि क्रूर व सख्त अवश्य हैं परंतु अन्यायी नहीं हैं। शनि को न्यायाधीश के रूप में कार्य करने का वरदान भगवान शिव से मिला है। यह बात निर्विवाद है कि शनि के ग्रहों के राजा सूर्य का पुत्र होने के बावजूद कोई भी आम आदमी सुख समृद्धि हेतु नहीं, बल्कि डर के कारण उनकी अराधना, पूजा एवं उपासना करता है। इसी बात को लेकर शनि के मन में हीन भावना रहती है। तिरस्कार की इसी भावना से उद्वेलित शनि ने भगवान शिव की कठोर तपस्या की और जब भगवान शिव, उनकी तपस्या से प्रसन्न हुए तो उन्होंने उनसे वर मांगने के लिए कहा। शनि भगवान ने सर्वप्रथम यही निवेदन किया कि मैं राजा सूर्य का पुत्र शनि हूं । सभी लोग अन्य ग्रहों और देवताओं की पूजा-अर्चना करते हैं, लेकिन मेरी पूजा-अर्चना कोई नहीं करता। कोई ऐसा वर दें, जिससे लोग मेरी पूजा भी करें। तब भगवान शिव ने शनि देव को यह वरदान दिया कि आज से मृत्युलोक पर लोगों के कर्मों के फल के निर्णय का अधिकार आपको दिया जाता है। आज से आपको पृथ्वी लोक में लोगों के गलत कर्मों का दंड देने का अधिकार है। यही कारण है कि शनि प्रधान लोग कभी भी न तो स्वयं कोई गलत कार्य करते हैं और न ही किसी के गलत कार्य को बर्दाश्त करते हैं। वे गलत कार्य करने वालों का विरोध करते हैं तथा दंड देने का प्रयास करते हैं। इसीलिए शनि प्रधान लोगों को क्रूर और कट्टर माना जाता है। रामायण काल में रावण ने अपने तपोबल और ज्ञान से सभी ग्रहों को एकादश भाव में एकत्र कर उनसे अनुकूल फल प्राप्त करना चाहा था। उसके मनोभाव को भांप कर शनि भगवान ने अपने स्थान से भागने का प्रयास किया, तो रावण ने उन्हें बंधन में डालकर एक ही स्थान पर स्थिर रहने के लिए मजबूर कर दिया। तब हनुमान जी ने उन्हें बंधन मुक्त कराया था। इस पर शनि देव ने हनुमान जी को वचन दिया था कि आज के बाद से जो भी आपकी पूजा-आराधना करेगा, उसे मैं किसी भी प्रकार का दंड नहीं दूंगा। यही कारण है कि जब कोई व्यक्ति शनि की दशा, ढैया या साढ़ेसाती के अनिष्ट प्रभाव से पीड़ित होता है, तो उसे हनुमान जी की उपासना जैसे उनकी पूजा करने, उन्हें प्रसाद चढ़ाने और हनुमान चालीसा, बजरंग बाण आदि का पाठ करने की सलाह दी जाती है। साथ ही हनुमान जी को चोला चढ़ाने का उपाय भी बताया जाता है। हनुमान जी के सबसे प्रिय आराध्य देव भगवान श्री राम हैं। इसीलिए शनि की साढ़ेसाती से ग्रस्त व्यक्ति को प्रत्येक शनिवार की शाम रामचरित मानस के सुंदरकांड का पाठ करने का परामर्श भी दिया जाता है। शनिदेव को एक सेवक के रूप में भी माना जाता है और सेवक को प्रसन्न करके व्यक्ति अच्छे से अच्छे शुभ फल की प्राप्ति कर सकता है। सेवक ही ऐसा प्राणी है जिसे व्यक्ति आसानी से प्रसन्न कर सर्वाधिक सुखों की प्राप्ति कर सकता है। अतः शनि जितने कठोर व रौद्र हैं, उतने ही दयालु व क्षमाशील भी हैं। शनि देव की प्रसन्नता, उनके दंड से मुक्ति एवं उनसे क्षमा प्राप्ति हेतु उनके निम्न मंत्र का निष्ठा और विश्वासपूर्वक जप करें, शनि देव आपके गलत कर्मों को क्षमा करते हुए दंड से मुक्ति प्रदान करेंगे और आप चिंता, भय व तनाव से मुक्ति पाकर आनंद, स्वस्थ तथा प्रसन्नचित्त अनुभव करेंगे। यदि आप शनि चालीसा का पाठ भी प्रत्येक शनिवार की शाम करें, तो आपको और भी अधिक लाभ की प्राप्ति होगी।



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