मीरा से मेरा परिचय उसके
बचपन से ही था। चूंकि
उसका घर हमारे पड़ोस में ही था,
इसलिए उससे बचपन से ही काफी
स्नेह था। स्वभाव से वह बेबाक और
बिंदास थी। हमउम्र लड़कों के साथ
खेलना, उन्हीं की तरह कपड़े पहनना
उसे बहुत पसंद था। अपनी छोटी उम्र
होने के बावजूद वह बड़ी-बड़ी बातें
करती। बच्ची बन कर उससे चुहलबाजी
करने में मुझे बहुत आनंद मिलता था।
समय के साथ जीवन में परिवर्तन आते
रहते हैं। ऐसे बिरले ही होते हैं जिन्हें
अपनी तमन्नाओं के अनुरूप सभी सुख
मिल जाएं। कहते भी हैं कि मुकम्मल
जहां किसी को नहीं मिलता। यदि
ऐसा ही होने वाला होता तो सभी लोग
जैसा चाहते वैसा ही धन, सुख एवं
ऐश्वर्य प्राप्त कर लेते। लेकिन इस
सच्चाई के बावजूद हर व्यक्ति सपनों
के पीछे भागता रहता है। मीरा भी
आगे बढ़ने के बड़े-बड़े सपने देखा
करती थी। उसके पिता सरकारी नौकरी
में थे। मध्य वर्गीय परिवार था और ऐसे
परिवारों में बेटी के शीघ्र विवाह पर
अधिक बल दिया जाता है। कन्या की
बढ़ती उम्र माता-पिता के दिन का चैन
और रातों की नींद हराम कर देती है।
माता-पिता जल्दी से लड़की के हाथ
पीले कर अपनी जिम्मेदारी से मुक्त हो
जाना चाहते हैं। कन्या का विवाह उनके
लिए कोटि तीर्थ से भी बढ़ कर होता
है।
लेकिन आज की पीढ़ी माता-पिता की
इस मानसिकता का आदर करे यह
जरूरी नहीं। मीरा के सपने कुछ और
ही थे। वह उच्चतर शिक्षा प्राप्त कर
अच्छी नौकरी करना चाहती थी और
अपने परिवार की मर्जी न होते हुए भी
उसने एक सम्माननीय विश्वविद्यालय
से बी. बी. ए. और एम. बी. ए. उत्तीर्ण
की और आज एक अच्छी कंपनी में
कार्य भी कर रही है। असंतुष्ट रहना
आधुनिक पीढ़ी का स्वभाव है। यही
कारण है कि उसमें आगे बढ़ने की
जितनी ललक है चीजों को जल्दी प्राप्त
न कर पाने की निराशा भी उससे कम
नहीं है। मीरा भी इसका अपवाद नहीं
है। वह अपने काम से प्रसन्न नहीं है।
उसके अनुसार उसका काम उसकी
इच्छा एवं शिक्षा के अनुरूप नहीं है।
उसने विदेश जाने के भी अनेक प्रयत्न
किए, पर सफल नहीं हो पाई और इसी
तनाव एवं असंतोष ने उसकी वाणी को
कर्कश बना दिया और परिवार के साथ
न चाहते हुए भी उसके संबंध तनावपूर्ण
चल रहे हैं। जहां एक ओर माता-पिता
विवाह कर अपने कर्ज से मुक्त होना
चाहते हैं वहीं मीरा अपने जीवन में
अपनी महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति को
अधिक महत्व देती है।
अपने परिवार की मर्जी के खिलाफ
मीरा ने शिक्षा ली, उसका तो स्वागत
किया जाना चाहिए लेकिन परिवार
वालों के चाहने के बाद भी वह विवाह
बंधन में नहीं बंधना चाहती। मीरा के
लिए जीवन में सुख के पर्याय क्या हैं?
उसकी महत्वाकांक्षाएं उसे किस राह
पर ले जा रही हैं? इन सब बातों को
जानने के लिए आइए उसकी जन्मकुंडली
का अवलोकन करें।
मीरा की कुंडली में आंशिक काल सर्प
योग विद्यमान है जिससे उसके जीवन
में संतोष का अभाव है। सप्तम स्थान
पापी ग्रहों की दृष्टि से पीड़ित है।
मंगल की चैथी दृष्टि एवं शनि की
तृतीय पूर्ण दृष्टि सप्तम स्थान पर है
और सप्तमेश मंगल वक्री होकर चतुर्थ
भाव में बैठा है। चतुर्थ भाव में गुरु
चांडाल योग एवं राहु मंगल की युति है
जिससे विवाह में विलंब हो रहा है और
वह अपने निर्णय के प्रति आश्वस्त नहीं
हो पा रही है।
शुक्र और केतु की दशम भाव में स्थिति
के कारण वह मानसिक दुविधा से ग्रस्त
है। चतुर्थेश सूर्य भाग्य स्थान में बुध के
साथ विद्यमान है जिससे उसे मां का
सहयोग हमेशा मिलता रहा।
पराक्रमेश चंद्र लाभ स्थान पर स्थित
होकर उसे मेहनती और साहसी बना
रहा है और जीवन में कुछ प्राप्त करने
की महत्वाकांक्षा को पूर्ण करने में भी
सहायक सिद्ध होगा।
इस समय शुक्र की महादशा में गुरु की
अंतर्दशा चल रही है और गोचर में गुरु
राशि से अष्टम और लग्न से छठे भाव
में चल रहा है। अगस्त के बाद गुरु का
गोचर में वृश्चिक राशि में प्रवेश होगा
अर्थात लग्न से सप्तम भाव में एवं राशि
से भाग्य स्थान में गुरु की स्थिति विवाह
की पूर्ण संभावना दिखा रही है। वर्ष
2008 के बाद शुक्र में शनि की अंतर्दशा
में उन्नति अवश्य होगी। शनि त्रिकोणेश
एवं केंद्रेश होकर पंचम स्थान में स्थित
है जिससे इस अवधि में मान-सम्मान
में वृद्धि होगी एवं नौकरी में पदोन्नति
के सुअवसर भी प्राप्त होंगे।