श्री आद्य शंकराचार्य जी की कुंडली

श्री आद्य शंकराचार्य जी की कुंडली  

आभा बंसल
व्यूस : 4945 | जुलाई 2003

वेद की अविच्छित परंपराओं के संरक्षक एवं आचार्यत्व कर्ता भगवान आद्य शंकराचार्य भगत्पाद का आविर्भाव आज से 2512 वर्ष पूर्व, युधिष्ठिर संवत 2631 कलि संवत 2593 ईसा पूर्व 510 में, केरल प्रांत के कालड़ी ग्राम पुण्य स्थली में नंदन नाम संवत्सर पुनर्वसु नक्षत्र रविवार मध्याह्न को माता आर्यांबा तथा पिता शिव गुरु के सुकृत्यांचल में हुआ।

भारत राष्ट्र की मूलभूत एकता को व्यावहारिक स्वरूप देने वाले आदि शंकर ही हुए। भारत के चारों कोनों में बद्रीनाथ, जगन्नाथ, रामेश्वरम तथा द्वारिका चारों धाम एवं उपासना पीठ कांची कामकोटि पीठ की स्थापना की। ”एकमेवाद्वितीयम“ के अमृतत्व एकात्मकता की उद्घोषणा से मानवता की दिव्य चेतना को जाग्रत किया। प्राचीन शंकर विजय, कांची द्वारका, द्वारकापुरी मठों द्वारा स्वीकृत तिथि पत्र के अनुसार:

तिष्ये प्रत्यात्यनलशेवधि बाणनेत्रे। ये नन्दने दिनमणावुदगध्वभाजि। राधेऽदिते रूडु विनिरर्गतमसलग्ने। ऽत्याहूतवान् शिवगुरूः स च शंकरेति।।

अनल 3, शेवधि 9, बाण 5, नेत्र 2 = 3952 (अंकनां वामतो) इसे उल्टा कीजिए 2593 कलि संवत्। इस प्रकार आदि शंकर का जन्म कलि संवत 2593 अर्थात गत कलि 2593 में हुआ।

ई. पू. में जूलियन कैलेंडर कलि संवत किस प्रकार से चलते हैं, यह समझते हैं:

  • 1 जनवरी सन् 1 से पूर्व यह कैलेंडर प्रचलित नहीं था।
  • 1 जनवरी सन् 1 से जूलियन कैलेंडर रोम के जूलियस सीज़र ने जारी किया। इसमें हर 4 वर्ष के बाद लीप वर्ष था। इस प्रकार 1 वर्ष का मान 365.25 दिन लिया गया, जबकि पृथ्वी सूर्य का चक्कर पूरा करने में 365.2422 दिन ही लगाती है। इस प्रकार पृथ्वी एवं कैलेंडर वर्ष में 11 मिनट 4 सेकंेड का अंतर प्रतिवर्ष आता गया, जो सन 1582 तक लगभग 11 दिन हो गया।
  • पोप ग्रेगोरी ने कैलेंडर को सही करने के लिए सन 1582 में कैलेंडर 10 दिन आगे खिसका दिया। 4 अक्तूबर 1582 के बाद 15 अक्तूबर 1582 की तारीख रख दी गयी एवं हर शताब्दी के लीप वर्ष से हटा दिया, जब तक कि वह 400 से भाजित न हो। इस प्रकार से आज का यह कैलेंडर प्रचलित हुआ।
  • 2000 वर्ष पूर्व केवल चांद को देख कर माह, या तिथि का आकलन किया जाता था। अतः ईसा पूर्व में जूलियन कैलेंडर को पीछे चला कर तारीख निकाली जाती है। 1 जनवरी सन 1 से पहला दिन 31 दिसंबर 1 ई. पू. है। जूलियन कैलेंडर में 1 ई. पू., 5 ई. पू.., 9 ई. पू.. आदि को लीप वर्ष लिया जाता है एवं 101 ई. पू., 201 ई. पू0. 301 ई. पू.. एवं 401 ई. पू.. को भी लीप वर्ष ही लिया जाता है।
  • कलि युग 3102 ई. पू. चैत्र शुक्ल प्रतिपदा, अर्थात 18 फरवरी 3102 ई. पू. शुक्रवार को शुरू हुआ। 2003-2004 में कलि वर्ष 5105 चल रहा है।

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कलि संवत् 3102 ई. पूर्व से प्रारंभ होने के कारण 3102 से 2592 निकालने पर 510 ई. पूर्व ही बचता है। 510 ई. पूर्व और वर्तमान 2003 ई. सन् का योग करने पर एवं एक घटाने पर 2512 वर्ष शंकर काल आता है। एक इसलिए घटाया है, क्योंकि एक ई. पू. के बाद सन् 1 आता है एवं 0 वर्ष कोई नहीं होता है। वर्तमान कलि 5105 से आदि शंकराचार्य का जन्म काल कलि 2593 वर्ष घटाने पर 5105-2593=2512 वर्ष ही शेष आता है। अतएव भगवत्पूज्यपाद् आद्य जगतगुरू शंकराचार्य का आविर्भाव 2512 वर्ष पहले हुआ।

कांची कामकोटि पीठ के सुरक्षित लेखों में आदि शंकराचार्य का प्रादुर्भाव काल 2593 कलि वर्ष वैशाख शुक्ल पंचमी वर्णित है एवं शारदा पीठ (द्वारका) के अनुसार आदि शंकराचार्य का प्रादुर्भाव 2631 युधिष्ठिर संवत वैशाख शुक्ल पंचमी है। क्योंकि कलि वर्ष एवं युधिष्ठिर संवत में 38 वर्ष का अंतर है, अतः सभी मतों के अनुसार आदि शंकर का जन्म 510 ई0 पू. में ही हुआ।

लग्न कर्क 25°21'
सूर्य मेष 29°51'
चंद्र मिथुन 29°33'
मंगल वृष 14°02'
बुध(व) मेष 29°20'
बृह0 (व) तुला 07°24'
शुक्र (व) मेष 15°07'
शनि कुंभ 26°09'
राहु वृष 27°18'
केतु वृश्चिक 27°18'
अयनांश - -10°59'25"

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16 अप्रैल 510 ई. पू.,
दोपहर 12:00, कालड़ी, केरल

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अब यदि 510 ई0पू0 में वैशाख शुक्ल पंचमी देखते हैं, तो जूलियन कैलेंडर के अनुसार तारीख 16 अप्रैल 510 ई0पू0 आती है एवं वार शुक्रवार आता है। जैसा ज्ञात है कि आदि शंकर का प्रादुर्भाव मध्याह्न में हुआ और उस समय के ग्रह स्पष्ट करें, तो चंद्रमा पुनर्वसु नक्षत्र के तृतीय चरण में आता है, ऐसा ही प्राचीन सूत्रों से प्राप्त होता है। इस प्रकार आद्य शंकराचार्य जी का अविर्भाव 16 अप्रैल 510 ई. पू. मध्याह्न, कालड़ी में हुआ, जिस समय की जन्मपत्री निम्न है:

इस गणना में केवल एक अंतर आता है और वह है वार। प्राप्त पत्रों के अनुसार जन्म वार रविवार है, जबकि गणना में शुक्रवार आता है। यह अंतर केवल एक कारण से हो सकता है कि प्राचीन काल में कभी वार की गणना में परिवर्तन किया गया हो, जो इतिहास में वर्णित नहीं है। वर्ष, माह, तिथि एवं नक्षत्र के पूर्ण रूप से मिल जाने से यह पूर्ण रूप से माना जा सकता है कि जन्मपत्री सटीक है।


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