शारीरिक लक्षणों व राजचिन्हों से जाने राजयोग

शारीरिक लक्षणों व राजचिन्हों से जाने राजयोग  

सुनील जोशी जुन्नकर
व्यूस : 67786 | अप्रैल 2011

सामुद्रिक हस्तरेखा शास्त्र महर्षि समुद्र का एक प्रामाणिक ग्रंथ है। इस ग्रन्थ में हाथ पैर व मस्तिष्क की रेखाओं और विशेष चिह्नों (आकृतियों) तथा शारीरिक अंगों की बनावट व चेष्टाओं से मनुष्य का व्यक्तित्व और भविष्य सहज ही जाना जा सकता है। पश्चिमी विद्वान कीरो ने यह विद्या अनेक वर्षों तक भारत में रहकर, एवं शिष्य बनकर सीखी थी। कीरो हस्तरेखा विज्ञान वास्तव में सामुद्रिक हस्तरेखा शास्त्र का अंग्रेजी संस्करण है।

शारीरिक लक्षणों से (चिन्हों) राजयोग का कथन

जातकाभरण ग्रंथ के रचयिता आचार्य दुण्ढिराज के अनुसार - 'जिस पुरुष के जन्मकाल में प्रबल राजयोग होता है, उसके हाथों या पैरों में राजचिह्न की रेखाएं स्पष्ट दृष्टिगोचर होती हें'' पुरुषों के दायें हाथ या पैर में तथा स्त्री के बायें हाथ या पैर में यदि कोई एक भी राजचिह्न हो तो निश्चय ही सुख, सोभाग्य व संपत्तिदायक होता है।

अंकुश, कुण्डली, चक्र से श्रेष्ठ राजयोग

महर्षि समुद्र के वचनानुसार जिसके पावं के तलवे में अकुंश, कडुं ल या चक्र का चिह्न हो वह बड़े राष्ट्र का शासक होता है तथा सर्वश्रेष्ठ शासक हातो है

जातकाभरण के अनसुार- जिसके हाथों या पैरों में हस्ती, छत्र, मत्स्य (मछली), तालाब, अंकुश या वीणा के चिह्न हों वह उत्तम पुरुष व मनुष्यों का स्वामी होता है।

शक्ति तोमर बाणैश्च करमध्ये च दृश्यते।
रथचक्र ध्वजाकारौ स च शासनं लभेन्नरः॥ -(सामुद्रिक शास्त्र)

जिसके हाथ के बीच में (हथेली में) शक्ति, तोमर, बाण, रथ चक्र या ध्वजा दिखाई देती है, उसे शासन करने का अवसर अवश्य प्राप्त होता है और शासन से लाभ मिलता है।

जिसके हाथ या पैर में चक्र, धनुष, ध्वजा, कमल, व्यजन या आसन के निशान हों तो उसके घर पर रथ (वाहन) अश्व और पालकी होती है। भूमि-भवन आदि होते हैं तथा उसके घर हमेशा लक्ष्मी का वास रहता है। (जातकाभरण)

यशस्वी पुरुष के अंगूठे में जौ

जिस पुरुष के अंगूठे के मध्य में यव (जौ) का चिह्न हो, वह बहुत यशस्वी और अपने कुल को विभूषित करने वाला हातो है, सखुा-सुविधाओं से यक्ुत, विनम्र और मधुरभाषी होता है।

पैर में तिल राज्य प्रदाता

जिसके हाथ में तिल का चिह्न हो वह बड़ा धनवान होता है। किंतु पांव के तलवे में यदि तिल और वाहन का चिह्न हो, तो वह राजा (शासक) होता है। होता है।

सांसारिक सुख, सौभाग्यदायक रेखा

मध्यमा अगुंली के मलू से मणिबधं तक फैली जो रेखा होती है, उसे ऊर्घ्व रेखा या भाग्य रेखा कहते हैं यदि भाग्यरेखा सुस्पष्ट, गहरी और अखंडित हो तो सांसारिक सुख, सुविधा, यश, भोग व राज्य प्रदायक होती है।

राजपुरुष के अंग लक्षण

1. जिस पुरुष का सिर गोल, चौड़ा मस्तक, कान तक फैले नीलकमल के समान नेत्र तथा घुटनों तक लंबे हाथ हों तो वह समस्त भूमंडल का राजा होता है। गोस्वामी तुलसीदासजी ने भी श्रीराम स्तुति में राजाराम के शरीर विग्रह के वर्णन में कुछ ऐसे ही लक्षण बताये थे , जैसे नवकंज लो चन -----आजानुभुज सरचाप धर।

2. जिस पुरुष की लम्बी नाक (नासिका), चौड़ी व मजबूत छाती (सीना), गहरी नाभि और कोमल तथा रक्तवर्ण चरण हो वह बड़ा प्रतापी राजा होता है।

3. राजा का वर्ण (रंग) स्निग्ध व तेजस्वी होता है। जीभ, दांत, त्वचा, नाखून व बालों में चमक होती है।

4. शत्रुजित राज पुरुष का स्वर शंख, मृदंग, हाथी, रथ की गति, भेरी, सांड, बादलों की गर्जना के समान- इनमें से किसी एक के समान होता है।

पंचमहापुरुष योग शारीरिक लक्षण

1. मालव्य योगः

शुक्रकृत मालव्य नामक महापुरुष योग में जन्मा जातक पतले होठों वाला, सम शरीर, अंग संधियों में पुष्टता व लालिमा, पतली कमर, चंद्रमा जैसी क्रांति, लंबी नासिका, हाथी के समान प्रभावशाली वाणी, आखों में चमक, एक समान व सफेद दांत, घुटनों तक लंबे हाथ व 70 वर्ष का आयुर्दाय होता है।

श्रीदेव कीर्तिराज के अनुसारः

जिसका मुख मंडल तेरह अंगुल लंबा, दस अंगुल चौड़ा, एक कान के छेद से दूसरे कान के छेद के बीच की दूरी 20 अंगुल होती है, ऐसे मालव्य यागे वाला पुरुष मालवा या सिंध प्रदेश पर शासन करता है।

2. रूचक योग

मंगल से बनने वाले रूचक योग में जन्मा मनुष्य दीर्घ-लंबे शरीर वाला, निर्मल कांति व रूधिर की अधिकता से बहुत बलवान, साहसिक कर्मो से सफलता पाने वाला, सदुंर भृकुटीवाला, कालेबाल, युद्ध के लिये तत्पर, मंत्र वेत्ता तथा उच्च कीर्तियुक्त होता है, रक्तमिश्रित श्यामवर्ण, बहुत शूरवीर, शत्रुओं को नष्ट करने वाला, कम्बुकंठ (शंख समान ग्रीवा), प्रधान पुरुष होता है। क्रूर स्वभाव किंतु गुरु व ब्राह्मणों के प्रति विनम्र, पतली व सुंदर घुटने और जंघा वाला होता है।

रूचक परुुष की हथेली व पैरके तलवुों में ढाल, पाश, बैल, धनुष, चक्र, वीणा और वज्र रेखा का चिह्न हो तो विंध्याचल, सह्यपर्वत (नीलगिरी) या उज्जैन नगर व प्रदेशों का शासक होता है। उसके शरीर में शस्त्र से कटने या अग्नि से जले के निशान होते हैं। 70 वर्ष की आयु में देवस्थान में निधन होता है।

3- शशक योग

जिनके जन्मकाल में शनिकृत शशक योग पड़ता है, वह दांत और मुखवाला, कोपयुक्त, शठ, बहादुर, निर्जन स्थान में घूमने वाला, वन, पर्वत व नदी के तट पर रहने वाला, पतली कमर, मध्यम कद वाला और विखयात होता है। सेनानायक, सब कार्यों में निपुण, कुछ बडे़दातं वाला, धातुवादी, चंचल स्वभाव, गहरी आंखें, स्त्रियों के प्रति आसक्त, पराये धन का लाभेी, मातृभक्त, छिद्रान्वषेी, गुप्त सकंतें को समझने वाला, बहुत बुद्धिमान् और उत्तम जंघावाला होता है।

यदि शशक योग वाले पुरुष के हाथ में (या पैर में) शैय्या, शंख, बाण, चक्र, मृदंग, माला, वीणा, खड़ग जैसी रेखाएं हो तो वह 70 वर्षों तक राज्य करता है। ऐसा मुनियों ने कहा है।

4-हंस योग

जो गुरुकृत हसं योग में उत्पन्न होता है उसका मुख रक्त वर्ण, ऊंची नाक, सुंदर पैर, स्वच्छ इंद्रियां, गौर वर्ण, भरे हुए गाल, लाल नाखून, हंस के समान वाणीवाला, और कफ की अधिकता वाला हातो है जलाशयों में रमण करने वाला, अति कामुक, स्त्री संभोग से कभी तृप्त न होने वाला, मधु के समान नेत्र और गोल सिर वाला होता है।

हंसयोग में उत्पन्न महापुरुष के हाथ पैरों में यदि शखां, कमल, अकुंश, रस्सी, मछली, चक्र, धनुष, माला, बाजूबंद या कमल का चिन्ह हो तो वह मथुरा, कंधार, गंगा-यमुना के दोआब प्रदेश पर शासन करता है।

5-भद्रयोग

बुधकृत भद्रयोग में उत्पन्न जातक शेर के समान मखुावाला, हाथी जैसी चाल वाला, भारी तोंद व छाती वाला, लंबी गाले व संदुर भुजाओं वाला, शरीर की लबांई, दोनों हाथों को फैलाकर चौड़ाई के बराबर होती है। कामुक, शरीर पर मुलायम रोम (बाल) वाला, भरे गालो वाला विद्वान, कमल पष्ुप के समान हाथ, परैों वाला, पज्ञ्रावान, सतागे ुणी, यागे शास्त्र के अनुसार चलने वाला केसर के समान सुगंधित शरीर वाला, गंभीर वाणी वाला होता है।

भ्रद योग वाला पुष्प सब कामों में स्वतंत्र, समर्थ, स्वजनों को प्रसन्न करने में समर्थ होता है। इसके वैभव का लाभ मंत्री लोग उठाते हैं।

जिसके हाथ-परै में शंख, तलवार, हाथी गदा, पुष्प, वाण, झंडा, चक्र, कमल या हल की रेखाएं (चिह्ना) हों तो ऐसा भद्रोत्पन्न जातक कान्यकुब्ज देश का, मध्यदेश का शासक होता है तथा 80 वर्ष की आयु तक जीवित रहता है।

जन्म कुंडली में दिखाई दने वाले पंचम महापुरुष योग से किसी व्यक्ति का राजयोग तब तक सिद्ध नहीं होता, जब तक राजयागे की सगं ति उस व्यक्ति के शारीरिक अंग लक्षणों, बनावट तथा हाथ की हथेली या पैर के तलवें में शंख, चक्र, गदा, खड्ग, अंकुश, धनुष, वाण आदि के चिन्ह्न (रेखाकृति) न हो।

राजयोग के लक्षण व चिह्न अत्यतं दुर्लभ हैं जो बहुत कम स्त्री-पुरुषों के शरीर में दिखाई देते हैं। इनका निरीक्षण कुशलतापर्वूक करना चाहिए। लाके तत्रं में यह आवश्यक नहीं है कि राजयोगोत्पन्न व्यक्ति शासक ही हो। वह उच्च अधिकारी बड़ा व्यापारी या बड़ा प्रसिद्ध व सम्मानित व्यक्ति हो सकता है।



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