अंक शास्त्र के सूत्र व मैत्री

अंक शास्त्र के सूत्र व मैत्री  

सुल्तान फैज ‘टिपू’
व्यूस : 17223 | जुलाई 2010

अंक शास्त्र के सूत्र व मैत्री डॉ. टीपू सुल्तान ''फैज'' अंक शास्त्र संखया व शब्दों से जुड़े काल व स्थिति के संतुलन का एक सुनियोजित मापदंड है जिसके चक्रव्यूह की वास्तविकता से जीवन से मरण तथा आकाश से धरातल तक की सारी प्राकृतिक क्रियाओं व परम्पराओं के तार सर्वदा जुड़े नजर आते हैं। जिसके उदाहरण समाज की परंपराओं में ही नहीं बल्कि प्रकृति की संरचनाओं में भी देखे जा सकते हैं।

जैसे सौर मंडल के मुखय 7 ग्रह, इंद्र धनुष के 7 रंग, समुद्र के 7 प्रकार के जल आदि। ह जारों वर्ष पूर्व ऋषि अगस्तय, ऋषि पराशर व पौराणिक ग्रंथों के विवरणों तथा प्राचीन परंपराओं के इतिहास को यदि देखा जाए तो, भारतीय उप-महाद्वीप को इस विद्या के उद्भव का केंद्र कहा जाना गलत नहीं होगा। परंतु विश्व के प्राचीन साहित्य, पूर्व व वर्तमान की परंपराओं के इतिहास की ओर दृष्टि ले जाएं त यह विधा पूरे विश्व तक फैली ही नहीं बल्कि इसमें आपसी तौर पर परम्परागत समानताएं भी पाई गई हैं।

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जैसे भारतीय आध्यात्मिक परंपराओं में अंक 7 को शुभ माना जाना, उदाहरणार्थ- विवाह के समय अग्नि के 7 फेरे। इसी तरह यहूदियों की धार्मिक परंपराओं में भी अंक 7 की महत्ता तथा 7 ग 7 = 49 की संखया को काफी प्रभावशाली माना जाता है। दूसरी तरफ भारतीय परंपराओं में अशुभ माने जाने वाले अंक 13 को ईसाई व यूरोप की परंपराओं में इतना अधिक अशुभ माना जाता है

कि उनके होटल जैसे व्यवसायिक केंद्रों के कमरों की संखया में अंक 13 का प्रयोग नहीं किया जाता। इसके अतिरिक्त भारतीय आध्यात्मिक परंपराओं तथा यंत्र व अंक शास्त्रों में धर्म, पारलौकिक व दाम्पत्य सुख के प्रतीक गुरु ग्रह के अंक 3 की महत्ता तथा इसी अंक को इस्लाम धर्म में भी काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। जैसे 3 घूंट में पानी पीना, किसी भी कथन की मंजूरी व नामंजूरी में अंक 3 तक की सीमाएं, शुभ अंक 786 का 7+8+6 = 21 = 2+1 = 3 अंक का मूलांक आदि। अंक शास्त्र को यदि विधिवत रूप में देखा जाए तो यह विधा मूलांक, भाग्यांक व नामांक जैसी 3 पद्धतियों में प्रचलित है।


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मूलांक : अंक शास्त्र की यह पद्धति वर्तमान में पाश्चात्य सभ्यता का एक अनुसंधान है जो धीरे-धीरे काफी प्रचलित होता जा रहा है। इस पद्धति में व्यक्ति के जन्म की तिथि को मुखय आधार मान कर उस के भाग्य, व्यवहार व प्रकृति से संबंधित तथ्यों का पता लगाया जाता है।

वस्तुतः व्यक्ति के जन्म की तिथि से ही मूलांक का निर्धारण किया जाता है।

उदाहरणार्थ, यदि किसी व्यक्ति की जन्म तिथि 15 हो तो उसका मूलांक 1+5=6 होगा।

भाग्यांक : कुछ विद्वान इसे संयुक्तांक के नाम से भी संबोधित करते हैं। जिसमें व्यक्ति के जन्म की तिथि के साथ-साथ उसके माह व वर्ष के अंकों के योग को भी प्रधानता दी जाती है। जिस के आधार पर व्यक्ति के स्वभाव, चरित्र, उत्थान, पतन आदि के संदर्भ में विस्तृत विवरण प्राप्त किया जाता है।

उदाहरणार्थ, यदि किसी व्यक्ति का जन्म 15/11/1965 को हुआ हो तो जन्म तिथि 15 = 1+5 = 6 जन्म माह - 11 = 1+1 = 2, जन्म वर्ष - 1965 = 1+9+6+5 = 21 = 2+1 = 3 अर्थात इस व्यक्ति का भाग्यांक - 6+2+3 = 11 = 1+1 = 2 होगा।

नामांक : इस पद्धति में व्यक्ति की जन्म तिथि, माह व वर्ष के साथ-साथ व्यक्ति के नाम के वर्णों को भी महत्वपूर्ण माना गया है। जिसमें प्रत्येक वर्णों के अपने-अपने अंक होते हैं, जिसके योग से उस व्यक्ति के नामांक का निर्धारण किया जाता है, जो कीरो, सफेरियल व पाइथागोरस पद्धतियों में प्रचलित है।

कीरो : इस पद्धति में कीरो ने प्रत्येक वर्णों के साथ अंकों का निर्धारण अपने सिद्धांतों के आधार पर किया है तथा इन संबंधित वर्णों के योग से व्यक्ति के नामांक का पता लगाया जाता है। उदाहरणार्थ यदि व्यक्ति का नाम ।ड।त् है तो उसका नामांक 1+4+1 +2 = 8 होगा। अपने अंक तालिका कीरो ने अंक 9 का प्रयोग नहीं किया है-

सेफेरियल : यह हिब्रू अर्थात यहूदी की परंपरागत नामांक पद्धति है, जिसमें हर वर्ष के साथ-साथ अपने परम्परागत अंकों का निर्धारण किया गया है। उदाहरणार्थ यदि किसी का नाम 'RADHA'है तो उसका नामांक 2+1+4+8+1 = 16 = 1+6+7 = 7 होगा। सेफेरियल पद्धति में भी कीरो की तरह अंक 9 का चयन नहीं किया गया।

पाइथागोरस : पश्चिमी जगत में पाइथागोरस को अंक शास्त्र का जन्मदाता माना गया है। जिन्होंने व्यक्ति की आकृति, व्यवहार व विचार को अंकों से नियंत्रित माना है। इस पद्धति में प्रत्येक वर्ण के साथ-साथ अंकों का निर्धारण किया गया है जो कीरो व सेफेरियल पद्धति से थोड़ा भिन्न है। उदाहरणार्थ यदि किसी का नाम 'SUNITA'हो तो उसका नामांक 9+2+4+9+1+1 = 26 = 2+6 = 8 होगा।

इसके नामांक तालिका में अंक 9 का भी चयन किया गया है। अंक शास्त्र के आधार पर अनुकूल मैत्री का चयन अंक शास्त्र के सभी अंक ग्रहों से नियंत्रित हुआ करते हैं तथा जिन के गुण, दिशाएं, लिंग व व्यवहारिकताएं व्यक्ति के जीवन की सक्रियताओं को सर्वदा प्रभावित किया करते हैं। मूलांक का संबंध तन व मन से, भाग्यांक का भाग्य से तथा नामांक का व्यक्तित्व व चरित्र से बताया जाता है।

वस्तुतः दो संबंधों के बीच इन प्रकृतियों का समन्वय व संतुलन यदि सही ढंग से बरकरार हो जाए तो समय जीवन के अनुकूल चलने लगता है।


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