शिशिर ऋतु एवं बसंत पंचमी माघ शुक्ल पंचमी वसंत पंचमी के रूप में मनायी जाती है। इस दिन विद्या की अधिष्ठात्री देवी सरस्वती जी का आविर्भाव हुआ था। प्रस्तुत है बसंत पंचमी व्रत पूजन विधान... और पढ़ेंफ़रवरी 2009व्यूस: 6582
यंत्र-एक विश्लेषण शास्त्रों में यंत्रों को देवी-देवताओं का निवास स्थान माना गया हैं। जब यंत्रों का निर्माण और प्राण-प्रतिष्ठा शास्त्रोक्त विधि द्वारा की गयी हो और साधक पूर्ण विश्वास था श्रद्धा के साथ उन्कती आराधना करता हो, तो यंत्र साधना करने वालों... और पढ़ेंजुलाई 2012व्यूस: 8265
कष्ट निवारक शनि अष्टक दशरथ ने कथा, कोकण अन्तक, रौद्र, यम, ब्रभु, कृष्ण, शनि, पिंगल, मंद, सौरी इन नामों का नित्य स्तवन करने से जो पीड़ा का नाश करते है, उन रवि पुत्र शनि को नमस्कार है। जिसके विपरीत होने पर राजा, मनुष्य, सिंह, पशु और अन्य वनचर कीड़े, पतंगे,... और पढ़ेंनवेम्बर 2006व्यूस: 20740
कालसर्प योग शांति के प्रमुख स्थल जन्म कुंडली में ग्रहों के एकीकरण एवं आपसी सम्बन्ध की स्थिति को योग कहा जाता है। जिस प्रकार मंदिर में भोग और अस्पताल में रोग का महत्व है, ठीक उसी प्रकार ज्योतिष में योग की अपनी अलग ही सार्थकता है। हमारे धर्म ग्रंथों एवं शास्त्रों म... और पढ़ेंमार्च 2006व्यूस: 12222
महामृत्युंजय मंत्र साधना हेतु विचारणीय तथ्य यमराज के म्र्त्युपाश से छुड़ाने वाले केवल भगवान महामृत्युंजय शिव है, जो अपने साधक को दीर्घायु देते है. इनकी साधना एक ऐसी प्रक्रिया है जो कठिन कार्यों को सरल बनाने की क्षमता के साथ-साथ विशेष शक्ति भी प्रदान करती है.... और पढ़ेंमई 2009व्यूस: 10720
मधुमेह रोग आधुनिक युग में मधुमेह का प्रभाव सभी उम्र के लोगों पर देखा जा सकता है. यह वह मीठा जहर है जो यकृत और क्लोम ग्रंथि में गड़बड़ी के कारण होता है. क्लोम ग्रंथि अमाशय के नीचे बीच में आड़ी पड़ी होती है. ... और पढ़ेंमार्च 2012व्यूस: 10155
रुद्राक्ष संबंधी ज्ञातव्य तथ्य रुद्राक्ष का धार्मिक मूल्यांकन एवं माहात्मय आदि का वर्णन रूद्रजाबालोपनिषद, शिवपुराण, उड्डीश तंत्र, पदमपुराण, स्कंदपुराण, लिंगपुराण, अग्निपुराण आदि पौराणिक ग्रंथों में विस्तार से प्राप्त होता हैं. रुद्राक्ष पहनने वाले व्यक्ति की सं... और पढ़ेंअप्रैल 2012व्यूस: 6458
यंत्र सम्बन्धी अनिवार्यताएं यंत्र में देवताओं का निवास होता हैं। यंत्र में देवता का वास न होने पर वह मात्र धातु का एक टुकड़ा या निर्जीव पदार्थ ही बनकर रह जाता हैं। यदि यंत्र की आकृति गलत हो अथवा अधिकतम निवेदन करने पर भी देवता उस यंत्र से प्रसन्न नहीं होते जि... और पढ़ेंजुलाई 2012व्यूस: 6379
लग्न का महत्व कुंडली के द्वादश भावों को क्रमश : लग्न, धन, पराक्रम, सुख, पुत्र, शत्रु, स्त्री, मृत्यु, भाग्य, राज्य, लाभ एवं व्यय नाम दिया गया है। भावों की ये संज्ञाएं उनके मूल कारकतत्व को दर्शाती है। इन भावों के कारक तत्व का विस्तृत उल्लेख आचार... और पढ़ेंमई 2008व्यूस: 19540
विनय शक्ति की शोभा है.. भगवान श्री हनुमान की अद्भभुत महिमा का वर्णन जितना किया जाए, कम है. धर्म शास्त्रों में पवनदेव के ४९ रूपों का वर्णन मिलता है. कहा जाता है की मरुतों ने हनुमान द्वारा दिए गए पुष्प जहाँ-जहाँ गिरे, वे सभी स्थान धर्म स्थलों में परिवर्तित... और पढ़ेंअप्रैल 2009व्यूस: 7232
रुद्राक्ष का शिव से संबंध रुद्राक्ष भगवान् शिव प्रदात प्रकृति का अनुपम उपहार हैं. रुद्राक्ष शब्द की निष्पति संस्कृत के दो शब्दों से हुई है. रूद्र और अक्ष. 'अक्ष' का तात्पर्य आशुतोष भगवान शिव की उस कल्याणकारी दृष्टि से है जो धारण करने वाले का पथ निर्बाध एवं... और पढ़ेंअप्रैल 2012व्यूस: 8149
श्री गिरिराज व्रत श्री गिरिराज का व्रत जो जन पूर्ण संकल्प और विधि-विधान के साथ कर, पूजा-आराधना करता है, साथ ही सात कोस की प्रदक्षिणा करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती है. इस लेख में इस व्रत को करने की पूरी विधि और व्रत के नियमों का सरलता से वर्णन कि... और पढ़ेंमई 2009व्यूस: 8496