अनेक रोगों में कारगर है रुद्राक्ष

अनेक रोगों में कारगर है रुद्राक्ष  

एस.सी.कुरसीजा
व्यूस : 3888 | मई 2006

रुद्राक्ष एक प्राकृतिक फल है जिसका प्रयोग भारत में अनादि काल से होता आया है। कई साधु इसे गले मंे माला के रूप में पहनने के अलावा हाथों की कलाइयों में और पांव में भी पहनते हैं। इसका प्रयोग माला के रूप में तो हमेशा से होता आया है। भारत में कोई भी परिवार ऐसा नहीं होगा जिसमें रुद्राक्ष न हो। रुद्राक्ष का पेड़ हमेशा हरा रहता है। इसके पत्ते काफी चैड़े होते हैं। इसको यदि रसायन क्रिया से देखा जाए तो 50.031 कार्बन, 0.95 प्रतिशत नाइट्रोजन 17.897 प्रतिशत हाइड्रोजन और 30. 53 प्रतिशत आक्सीजन प्राप्त होती है। इसमें और भी कई लवण सूक्ष्म मात्रा में प्राप्त होते हैं।


Get the Most Detailed Kundli Report Ever with Brihat Horoscope Predictions


आक्सीजन की मात्रा पर्याप्त होने के कारण यह एक दिव्य औषधि हो जाती है। यह समुद्र तल से 2000 मीटर की ऊंचाई तक प्राप्त होता है। यह उष्ण व अर्ध-उष्ण जलवायु में प्राप्त होता है। यह पेड़ बारहों मासं हरा भरा रहता है। इसकी ऊंचाई 50 फुट से 200 फुट तक होती है। इसे चिकित्सा जगत में ऐलोकापस गैनिट्रस’’ कहते हैं। शिव पुराण के अनुसार यह शिव के आंसुओं से बना है। रुद्राक्ष एलियोकार्पस गैनिट्रस के लगभग 36 प्रकार के पेड़ पाए जाते हैं। रुद्राक्ष के पेड़ उगाना कठिन होता है। परंतु जब पेड़ उग जाता है तो बिना किसी प्रकार की रखवाली के सालों तक फल देता रहता है। शिव पुराण के अनुसार जो व्यक्ति रुद्राक्ष को धारण करता है या उसकी पूजा करता है, उसके घर में लक्ष्मी स्थिर रहती है। उसकी अकाल मृत्यु नहीं होती है। रुद्राक्ष के पहनने से कुंडली चक्र शीघ्र जाग्रत हो जाता है।

रुद्राक्ष को धारण करने वाले को मोक्ष प्राप्त होता है। उसके परिवार में शांति रहती है। (यह मानसिक तनाव, चिंता तथा उच्च रक्त चाप को कम करता है। इससे जातक का डर कम हो जाता है। रुद्राक्ष दौरे पड़ने, काली खांसी व कैंसर तक में उपयोगी पाया गया है। यह मस्तिष्क की तीव्रता बढ़ाता है तथा बुद्धिमान बनाता है। आयुर्वेद में रुद्राक्ष औषधि के रूप में प्रयोग किया जाता है। यह गर्म व आर्द्र होता है। यह कफ वात व पित्त को शांत करता है अर्थात त्रिदोष नाशक है। इस कारण इसे चर्म रोगों में भी प्रयोग किया जाता है। यह कुष्ठ रोग को दूर करता है। यह उच्च रक्त चाप (हाई ब्लड प्रेशर) वालों के लिए आम प्रयोग में लाया जाता है।

मस्तिष्क की कई बीमारियों में इसका प्रयोग होता है। रुद्राक्ष को अनादि काल से हमारे साधु-संत एक दिव्य औषधि के रूप में प्रयोग करते रहे हैं। मनुष्य चिंता, निराशा व तनाव से इतना पीड़ित है कि आत्म हत्या की घटनाएं बढ़ गई हैं। इस कारण बाजार में टैंक्विलाइजर तथा सेडेटिव टनों में बिकने लगे हैं। इन दवाओं से नशे की आदत पड़ जाती है। रोगी एडिक्टिव हो जाता है। रुद्राक्ष इन सब को शांत करता है और आत्म-विश्वास बढ़ाता है। इसको धारण करने वाला व्यक्ति अकाल मृत्यु, दिल का दौरा, उच्च रक्त चाप आदि से बचता है। यह मानव की पीड़ा और दुःखों का हरने वाला है। पद्म पुराण में कहा गया है कि त्रिपुरा राक्षस को हराने के बाद शिव के पसीने से यह उत्पन्न हुआ है। श्रीमद् देवी भागवत् के अनुसार त्रिपुरा राक्षस को मारने के लिए शिव की आंखें सालों तक खुली रहीं तथा थकान के कारण उनसे आंसू बह निकले जिससे रुद्राक्ष उत्पन्न हुआ। चाहे रुद्राक्ष के उत्पन्न होने का कारण कुछ भी हो, परंतु यह सच है कि रुद्राक्ष का उपयोग थके, हारे, चिंताओं से ग्रस्त मनुष्यों के लिए किया जाता है।


Consult our astrologers for more details on compatibility marriage astrology


शिव पुराण में रुद्राक्ष के गुण व धर्म का उत्तम तरीके से वर्णन किया गया है। अतः शिव पुराण को ही आधार बना कर इससे चिकित्सा की जाती है। रुद्राक्ष को उस पर पड़ी हुई धारियों से जाना जाता है। रुद्राक्ष एक से 27 धारियों तक के पाए जाते हंै। परंतु एक धारी से 14 धारियों तक के रुद्राक्ष ज्यादा उपलब्ध होते हैं। इन धारियों को मुख भी कहते हैं। धारियां ऊपर स नीचे तक जाती हैं व गहरी होती हैं। असली रुद्राक्ष खुरदरा होता है और कांटे की तरह चुभता है। एकमुखी रुद्राक्ष कठिनाई से मिलता है तथा महंगा होता है। इसलिए तीन मुखी रुद्राक्ष को घिस कर व धारियों में कुछ भर कर उसे एक मुखी बनाया जाता है। परंतु ध्यान से देखने पर वह चिकना मिलता है। यदि उसे गर्म पानी में डाल दिया जाए तो गोंद धारियों में से निकल जाती है और साफ तीन धारियों का दिखने लगता है। इसलिए असली रुद्राक्ष व नकली रुद्राक्ष को उसकी चिकनाहट व गरम पानी में रखने से पहचाना जा सकता है।

माइक्रोस्कोप से भी देखकर असली व नकली रुद्राक्ष को पहचाना जा सकता है। छोटा व आम उपलब्ध रुद्राक्ष के जप माला के मनके इंडोनेशिया से आते हंै। यह रुद्राक्ष 10 मिमी. से 12 मिमी. तक के व्यास का होता है। नेपाल का गोल रुद्राक्ष अत्यंत दुर्लभ होता है। इसलिए इसको लोग कारीगरी से बनाते हैं। यह महंगा होता है। पांच मुखी रुद्राक्ष आसानी से व अधिक मात्रा में उपलब्ध होते हंै। यह बृहस्पति का प्रतिनिधित्व करता है। इसे ही साधु संत धारण करते हैं। इससे सहनशीलता बढ़ती है। मन संतुष्ट रहता है। हृदयरोग, उच्च रक्तचाप व कब्ज में लाभदायक होता है। रुद्राक्ष को धारण करने से पहले शुभ मुहूर्त का चयन कर लेना चाहिए इसके लिए सोमवार का दिन उत्तम रहता है। रुद्राक्ष को कच्चे दूध व गंगाजल (यदि गंगाजल उपलब्ध न हो तो शुद्ध पानी) से धोया जाता है। उसकी चंदन, फूल व धूप से पूजा की जाती है। फिर रुद्राक्ष के मुख के अनुसार 108 बार बीज मंत्र का उच्चारण कर रुद्राक्षों को सिद्ध व जाग्रत किया जाता है और कल्पना की जाती है कि स्वयं शिव का उसमें वास है।

‘‘¬ नमः शिवाय’’ के मंत्र का जप करते हुए रुद्राक्ष को धारण किया जाता है। कुछ उपयोग

- विद्या प्राप्ति हेतु तीनमुखी व छहमुखी रुद्राक्ष कमजोर विद्यार्थियों को धारण करवाए जाते हैं।

- नौ, चार तथा तीनमुखी रुद्राक्ष आत्म विश्वास को बढ़ाने के लिए धारण किए जाते हंै।

- गौरी शंकर व दोमुखी रुद्राक्ष वैवाहिक जीवन की अशांति को कम करते हैं।

- दस व ग्यारहमुखी रुद्राक्ष आत्मरक्षा हेतु धारण किए जाते हंै।

- तेरह व छहमुखी रुद्राक्ष वशीकरण के लिए उपयोग किए जाते हंै।

- सात व ग्यारहमुखी रुद्राक्ष व्यापार वृद्धि के लिए धारण किए जाते हंै।

- चैदह व आठमुखी रुद्राक्ष स्वास्थ्य के लिए धारण किए जाते हंै।

- बारह व सातमुखी रुद्राक्ष शासन प्राप्ति हेतु धारण किए जाते हंै।

- ग्यारह, सात और पांचमुखी रुद्राक्ष संतोष प्रदान करते हंै तथा तनाव और रक्तचाप दूर करते हंै।

सूर्य: एकमुखी व बारहमुखी रुद्राक्ष सूर्य के द्वारा उत्पन्न रोगों को दूर करने के लिए धारण किए जाते हंै। चंद्रमा: दोमुखी रुद्राक्ष चंद्रमा के कारण उत्पन्न रोग से मुक्ति के लिए धारण किया जाता है। मंगल: तीनमुखी रुद्राक्ष रक्त के रोग, उच्च रक्त चाप व मंगल से उत्पन्न रोग को दूर करने के लिए धारण किया जाता है। बुध: चारमुखी रुद्राक्ष मस्तिष्क की बीमारियों व स्नायु रोगों तथा बुध के कारण उत्पन्न रोगों से मुक्ति के लिए धारण किया जाता है। बृहस्पति: पांचमुखी रुद्राक्ष जंघा व लीवर की बीमारियों से मुक्ति, धन व समृद्धि के लिए और बृहस्पति से उत्पन्न कष्टों को दूर करने के लिए धारण किया जाता है।

शुक्र: छहमुखी रुद्राक्ष सांसारिक सुखों व काम-शक्ति के लिए तथा शुक्र से उत्पन्न कष्टों से मुक्ति के लिए धारण किया जाता है। शनि: सातमुखी रुद्राक्ष वात रोगों व मृत्यु तुल्य कष्टों से छुटकारा देता है। राहु: आठमुखी रुद्राक्ष वात तथा अन्य असाध्य रोगों और राहु से उत्पन्न रोगों को दूर करने के लिए धारण किया जाता है। केतु: नौमुखी रुद्राक्ष आकस्मिक घटनाओं से बचाव व अशुभ केतु के प्रभावों को कम करने के लिए धारण किया जाता है।

दसमुखी रुद्राक्ष सभी ग्रहों के दुष्प्रभावों से रक्षा के लिए धारण किया जाता है। ग्यारहमुखी रुद्राक्ष आध्यात्मिक उन्नति व आत्म विश्वास बढ़ाने के लिए धारण किया जाता है। बारहमुखी रुद्राक्ष का प्रभाव सूर्य के समान होता है। तेरहमुखी रुद्राक्ष का प्रभाव छहमुखी के शुक्र के समान होता है। चैदहमुखी रुद्राक्ष का प्रभाव शनि के समान होता है।

इसके अतिरिक्त भिन्न-भिन्न व्यवसायों में सफलता के लिए भी अलग-अलग मुख वाले रुद्राक्ष धारण किए जाते हैं। जैसे प्राशासनिक अधिकारी की एकमुखी व बारहमुखी रुद्राक्ष से उन्नति होती है। इस प्रकार रुद्राक्ष जीवन के प्रत्येक क्षेत्र को प्रभावित करता है। इसे धारण करने वाला तनाव रहित व संतुष्ट रहता है। वह स्वयं शिव हो जाता है। यह धारण करने वाले को किसी प्रकार का नुकसान नहीं करता है।


Book Navratri Maha Hawan & Kanya Pujan from Future Point




Ask a Question?

Some problems are too personal to share via a written consultation! No matter what kind of predicament it is that you face, the Talk to an Astrologer service at Future Point aims to get you out of all your misery at once.

SHARE YOUR PROBLEM, GET SOLUTIONS

  • Health

  • Family

  • Marriage

  • Career

  • Finance

  • Business


.