भारत में मानसून का पूर्वानुमान

भारत में मानसून का पूर्वानुमान  

एस.सी.कुरसीजा
व्यूस : 8657 | जुलाई 2005

वर्षा का पूर्वानुमान मौसम विभाग तो लगाता ही है, ज्योतिष भी इसमें सक्षम है। मौसम विभाग करोड़ों रुपये व्यय करता है, परंतु अनुमान फिर भी गलत हो जाता है। ज्योतिष पर कोई व्यय नहीं होता, केवल ग्रहों की चाल पर गणना की जाती है फिर भी अनुमान किसी सीमा तक सही निकलता है। गणित ज्योतिष के निम्नलिखित सूत्रों का विश्लेषण कर वर्षा का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है।

1. जब सूर्य मेष राशि में प्रवेश करता है, उस समय की ग्रह परिषद के अधिकारियों का प्रभाव

2. सूर्य का आद्र्रा नक्षत्र में प्रवेश

3. सप्तनाड़ी चक्र, त्रिनाड़ी

4. रोहिणी वास

5. ग्रहों की युति, दृष्टि व योगों का प्रभाव। इनके अतिरिक्त और भी सूत्र हंै जिनका उपयोग किया जा सकता है जैसे समय निकास, द्वादश नाग, सप्त वायु, चतुष्य स्तम्भ, वर्ष स्तम्भ, चतुर्मेघ आदि। परंतु प्रस्तुत आलेख में केवल पांच सूत्रों का ही उल्लेख किया गया है। इस वर्ष विलंब नामक संवत्सर चैत्र शुक्ल प्रतिपदा 9 अप्रैल को प्रातः 2 बजकर 24 सेकण्ड पर आरंभ हुआ।

वर्ष का आरंभ शुक्रवार को होने के कारण राजा शुक्र हुआ। परंतु पंचांग विद्वानों ने दिन का आरंभ शनिवार को होने के कारण शनि को राजा माना। यह अनुसंधान का विषय हो सकता है कि राजा शुक्र को मानें या शनि को। यदि शुक्र को राजा मानंे तो शुक्र मीन राशि में स्थित है जो जल तत्व राशि है। शुक्र उच्च का है। इसलिए इस वर्ष उत्तम वर्षा की संभावना है। परंतु शनि को राजा मानें तो अच्छी वर्षा की संभावना कम है। इस ग्रह परिषद में 7 पद क्रूर ग्रहों को प्राप्त हुए हैं। तीन पार्षद ग्रह सौम्य हैं।

तीन पद शनि को व तीन मंगल को प्राप्त होने के कारण किसान, दलित एवं सामान्य जन को कष्ट होगा और नानाविध रोगों से जनता परेशान रहेगी। कहीं अकाल की स्थिति से जनता को वहां से कहीं अन्यत्र जाने को विवश होना पड़ सकता है। इस वर्ष मेघेश का पद मंगल को प्राप्त है। वराहमिहिर संहिता के अनुसार यदि मंगल मेघेश हो तो कहीं वर्षा की भारी कमी और कहीं बाढ़ के कारण हानि हो सकती है। कहीं वर्षा न होने से तापमान अधिक ऊंचा हो सकता है। वर्षा आदि चार स्तंभों में जल स्तम्भ इस बार चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को रेवती नक्षत्र में केवल 37 प्रतिशत है। इसके फलस्वरूप इस वर्ष वर्षा खंड रूप में अर्थात कहीं कम तो कहीं ज्यादा होगी। कहीं पेय जल की समस्या उत्पन्न होगी और भूमिगत जल स्तर में भी कमी आएगी। सूर्य आद्र्रा नक्षत्र में 22 जून को 3 बजकर 20 मिनट पर धनु राशि में रहेगा और चंद्रमा मूला नक्षत्र में वृष लग्न में प्रवेश करेगा।

आद्र्रा प्रवेश लग्न वृष और पृथ्वी तत्व स्थिर राशि में हुआ है। लग्नेश शुक्र द्वितीय भाव में सूर्य व बुध के साथ स्थित है। शुक्र अस्त नहीं है। राशीश बुध त्रिकोणेश है। नवांश में शुक्र वर्गोत्तम है तथा मित्र राशि में शुभ भाव में स्थित है। राहु व मंगल शुक्र पर पूर्ण प्रभाव रखते हैं और वह मंगल से पूर्ण दृष्ट भी है। इससे खंड वर्षा के फिर योग बनते हैं। फिर भी शुक्र के बलवान होने के कारण खंड वर्षा अपना पूरा प्रभाव नहीं दिखा पाएगी। परंतु राहु से पीड़ित गुरु शत्रु राशि में और चंद्रमा नवांश में मंगल की राशि में तथा मंगल शुक्र की राशि में स्थित है। यह सारी स्थिति खंड वर्षा की ओर ही संकेत दे रही है। यदि सप्तनाड़ी चक्र को देखें तो चंद्रमा ‘दहन नाड़ी’ में स्थित है। ‘नीर नाड़ी’’ में बुध व शुक्र के साथ शनि स्थित है। इससे भी खंड वर्षा के ही संकेत प्राप्त हो रहे हैं।

त्रिनाड़ी चक्र के अनुसार ‘स्वर्ग नाड़ी’ में पंाच ग्रह सूर्य, चंद्र, बुध, शुक्र व शनि और ‘भूमि नाड़ी’ में मंगल व बृहस्पति स्थित हंै। पांच ग्रह ‘स्वर्ग नाड़ी’ में स्थित होने के कारण वर्षा शीघ्र व भारी हो सकती है। ‘भूमि नाड़ी’ में पुरुष ग्रह मंगल व बृहस्पति के स्थित होने के कारण भी वर्षा अधिक होने के संकेत मिलते हैं। अर्थात त्रिनाड़ी चक्र उत्तम वर्षा के संकेत दे रहा है। नव मेघों में वायु नामक मेघ होने से वायु मेघों को उड़ाकर ले जाएगी, इसलिए वर्षा कम होगी।

चतुर्मेघों में ‘संवर्तक’ मेघ होने के कारण उत्तम वर्षा के संकेत प्राप्त हो रहे हैं। आद्र्रा नक्षत्र प्रवेश के समय सूर्य आद्र्रा में अर्थात चंद्र स्त्री नक्षत्र में स्थित है तो चंद्र मूला नक्षत्र अर्थात सूर्य पुरुष नक्षत्र में स्थित है। सूर्य-चंद्र योग रात्रि मंे हो रहा है जो उत्तम वर्षा होने के संकेत दे रहा है। वृष लग्न रात्रि को आरंभ हो रहा हैै। रोहिणी नक्षत्र का वास भी संधि में होने के कारण वर्षा में कमी के संकेत हैं। उक्त सभी सूत्रों के विश्लेषण से सिद्ध होता है कि वर्षा खंडित होगी और कहीं अकाल तो कहीं बाढ़ की स्थिति उत्पन्न होगी।



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