आतंकी घटनाओं का ज्योतिषीय विश्लेषण

आतंकी घटनाओं का ज्योतिषीय विश्लेषण  

एस.सी.कुरसीजा
व्यूस : 3602 | अकतूबर 2006

आतंकी घटनाओं ने आज छोटे-बड़े सभी देशों को परेशानी में डाल दिया है। कानून-व्यवस्था चाहे जितनी भी दुरुस्त हो आतंकियों की घुसपैठ हो ही जाती है। जब ये घटनाएं घटती हैं उस समय नवग्रहों की क्या स्थिति और प्रभाव रहता है, जानने के लिए पढ़िए यह आलेख...

गत 11 जुलाई का दिन भारतवासियों के लिए आतंक का पैगाम लेकर आया। उस दिन मंगलवार था और जहां एक ओर लोग गुरु पूर्णिमा का पर्व मना रहे थे वहीं दूसरी ओर जम्मू-कश्मीर में सैलानियों पर आतंकवादी हथगोले बरसा रहे थे। इस आतंकवादी हमले में 5 सैलानी मारे गए व कई अन्य घायल हुए। इसी तरह मुंबई में सात जगहों पर लोकल ट्रेनों पर हमला हुआ और 200 व्यक्ति मारे गए तथा सैकड़ों अन्य घायल हो गए।

आखिर मंगलवार को ग्रहों की ऐसी क्या स्थिति थी कि उत्तर-पश्चिम और पश्चिम में इतने लोग मारे गए। यहां उक्त घटना का ज्योतिषीय विश्लेषण प्रस्तुत है। घटना मंगलवार को घटी। उस दिन पूर्णमासी अर्थात शुक्ल पक्ष की 15 वीं तिथि थी और योग वैधृति था। इस प्रकार पंचांग के अनुसार अशुभ दिन था। यह दिन उपद्रवकारी योगों से बना था। उस दिन सूर्योदय 5 बजकर 31 मिनट 16 सेकेंड पर हुआ।

दिल्ली के अनुसार उस दिन पूर्णमासी भी थी। चंद्रमा अपने पूर्ण यौवन पर था। उस का भी मानव के मन पर पूर्ण प्रभाव था। पूर्णमासी 8 बजकर 33 मिनट पर थी। जब भी अष्टम भाव, अष्टमेश व सूर्य पीड़ित होते हंै तो व्यापक स्तर पर मौतें होती हैं। मुंडेन में चतुर्थ भाव जनता का भाव होता है। इसी कारण काल पुरुष की कुंडली में गुरु चतुर्थ भाव में उच्च का होता है। गुरु पृथ्वी का रक्षक व उसके विकास का ग्रह है। मंगल चतुर्थ भाव में निर्बल हो जाता है अर्थात नीच हो जाता है।

इसलिए गुरु व मंगल का संबंध जनता के लिए कष्टकारी होता है, यद्यपि दोनों मित्र ग्रह हैं। गुरु रक्षक है तो मंगल भक्षक है। मंगल में संहार शक्ति उस समय बढ़ जाती है जब वह शत्रु या नीच राशि में हो या शत्रु ग्रह से युत या दृष्ट हो। या फिर नवांश में उसकी उपर्युक्त स्थिति होती है जब वह किसी शुभ ग्रह से युत या दृष्ट नहीं होता।

अनेक कुंडलियों को देखन के बाद यह सिद्ध होता है कि जब मंगल शत्रु ग्रह के नक्षत्र में स्थित होता है या उसका राशीश पीड़ित होता है, तब भी उसकी संहारक शक्ति बढ़ जाती है। बुध भी एक संवेदनशील ग्रह है। यह जिसके साथ होता है, उसी का प्रभाव देता है।


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इस कारण बुध का युति या दृष्टि संबंध यदि शनि, गुरु या मंगल के साथ हो, तो वह अशुभ प्रभाव देता है। इसी कारण हमारे महर्षियों ने बुध को भी चतुर्थ भाव का कारक ग्रह माना है। बुध उत्तर दिशा का प्रतिनिधित्व करता है, तो शनि पश्चिम का, सूर्य पूर्व का, मंगल दक्षिण का, चंद्रमा वायव्य (उत्तर-पश्चिम) कोण को गुरु ईशान (उत्तर-पूर्व) कोण का, शुक्र अग्नि कोण (दक्षिण-पूर्व) का और राहु नैर्ऋत्य कोण (दक्षिण-पश्चिम) का प्रतिनिधित्व करता है। ज्योतिष के सिद्धांतों के आधार पर उपर्युक्त कुंडलियों का संक्षिप्त विश्लेषण यहां प्रस्तुत है। सूर्योदय की कुंडली में मिथुन लग्न का उदय हो रहा है। लग्न में सूर्य स्थित है, जो तृतीय भाव का स्वामी है तथा नवांश में भी लग्न में शत्रु राशि में स्थित है।

लग्नेश बुध वक्री तथा अस्त है, शनि और मंगल के साथ द्वितीय भाव, मारक भाव में स्थित है जो अष्टम भाव को पूर्ण दृष्टि से देख रहा है। नवांश में सूर्य की राशि में राहु व शुक्र के साथ चतुर्थ भाव में स्थित है। शनि, अष्टमेश व नवमेश मंगल (षष्ठ व एकादश का स्वामी) के साथ स्थित है। मेरे विचार में एकादश भाव, चतुर्थ से अष्टम भाव होने के कारण व्यापक स्तर पर मृत्यु का संकेत देता है।

इस कुंडली में एकादश भाव का स्वामी मंगल है जो लग्नेश, अष्टमेश के साथ मारक भाव द्वितीय में और नीच राशि में तथा नवांश में एकादश भाव में स्थित है जो जन्मकुंडली के मारक भाव, सप्तम भाव का स्वामी है। इस प्रकार लग्नेश व चतुर्थेश बुध, अष्टमेश व नवमेश शनि व षष्ठेश व एकादशेश की द्वितीय भाव में युति है, अशुभ गुरु सप्तमेश की लग्न पर व लग्नेश पर दृष्टि है तथा वह मंगल से दृष्ट है।

राहु व केतु का दशम व चतुर्थ भावों को पीड़ित करना, पंचांग से पीड़ित दिन ने मिलकर 11-7-2006 मंगलवार को संहारक बना डाला। चंद्रमा को लग्न मान लें तो भी अष्टम भाव में बुध, शनि व मंगल स्थित हैं।

लग्नेश गुरु एकादश भाव में शत्रु राशि में स्थित है व द्वादशेश मंगल से दृष्ट तथा नवांश में दशम भाव में केतु के साथ स्थित है। अष्टमेश चंद्रमा लग्न में तथा नवांश में शत्रु राशि में षष्ठ भाव में स्थित है। यदि राहु को लग्न मान कर देखें तो लग्नेश गुरु शत्रु राशि में अष्टम भाव में स्थित है। राहु के एक ओर पांच ग्रह स्थित हैं तथा राहु से त्रिकोण में बुध, शनि व मंगल और केंद्र में सूर्य तथा चंद्रमा स्थित हैं।

इस प्रकार सारे ग्रह राहु के प्रभाव में आ जाते हैं राहु, सूर्य और चंद्रमा की डिग्री भी समान है। राहु (30-4) 260 का मीन राशि का संचार कर चुका है। सूर्य 250 व चंद्रमा 230 का है। पूर्णमासी होने के कारण सूर्य व चंद्रमा 250 के हो जाएंगे। यदि हम पूर्णमासी की कुंडली को देखंे तो लग्न के सिवाय सारे ग्रह अपनी-अपनी उसी राशि में स्थित हैं। लग्न सिंह के अग्नि तत्व होने पर भी स्थिति में विशेष परिवर्तन नहीं आता। अष्टम भाव में राहु स्थित है।


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चतुर्थ भाव व चतुर्थेश मंगल को देख रहा है। बुध, शनि व मंगल द्वादश भाव म राहु से पीड़ित है। लग्नेश सूर्य एकादश भाव में बुध की राशि में स्थित है जो अस्त व वक्री है तथा द्वादश भाव में स्थत है। नवांश में सूर्य द्वितीय भाव में शत्रु राशि में स्थित है। यदि इन सब ग्रहों को नक्षत्र की दृष्टि से संघाटक चक्र में देखें तो पाएंगे कि सारे ग्रह अशुभ नक्षत्रों पर स्थित हैं।

लग्न व सूर्य पुनर्वसु नक्षत्र, जिसका स्वामी गुरु है। तथा सप्तम भाव का स्वामी है, पर स्थित हैं। चंद्रमा पूर्वाषाढ़, पर स्थित है जिसका स्वामी शुक्र चंद्रमा का शत्रु है। मंगल अश्लेषा पर स्थित है जिसका स्वामी बुध मंगल का शत्रु है। बुध पुष्य नक्षत्र पर स्थित है।

जिसका स्वामी शनि अष्टमेश है। गुरु राहु के नक्षत्र पर, शुक्र मंगल के नक्षत्र पर तथा शनि बुध के नक्षत्र पर स्थित है जो अस्त व वक्री है। राहु शनि के नक्षत्र पर स्थित है जो अष्टमेश है। इस प्रकार सारे ग्रह पीड़ित हैं। अब यदि संघाटक चक्र की दृष्टि से देखंे तो गुरु राहु व बुध से पीड़ित है। उत्तर भाद्रपद व पुष्य शनि के नक्षत्र हैं। शनि अष्टमेश व नवमेश है। नवम भाव का स्वामी या भाव पीड़ित होता है, तो धर्म के विरुद्ध घटनाएं होती हैं अर्थात वह आतंकवाद जैसी घटनाओं का प्रतिनिधित्व करता है।



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