राजनीति एवं षड्यंत्र कारक राहु

राजनीति एवं षड्यंत्र कारक राहु  

नरेंद्रमल सुराना
व्यूस : 6480 | जुलाई 2014

जन्मकुंडली में सात ग्रहों के साथ दो छाया ग्रह राहु एवं केतु को भी उनके गोचर के अनुसार स्थापित किया जाता है। वैदिक युग में राहु ग्रह नहीं था, बल्कि एक राक्षस था। पौराणिक युग में उस राक्षस के दो भाग हो गये। समुद्र मंथन के पश्चात् मिले अमृत को देवताओं में बांटते समय धोखे से अमृतपान करने के पश्चात राक्षस का सिर भगवान श्री हरि विष्णु द्वारा सुदर्शन चक्र द्वारा धड़ से अलग हो गया। सिर-राहु में तथा धड़ केतु में अमर हो गया। पौराणिक गाथाआंे में राहु-केतु सर्प के सिर और पूंछ माने गये। राहु के काल तथा केतु को सर्प भी माना गया है। राहु और केतु दोनों ही पापग्रह हैं। राहु स्त्रीलिंग है। आद्र्रा, स्वाति, शतभिषा नक्षत्रों पर उसका शासन है।

3, 6, 11 भावों में इसे अच्छा मानते हैं। रामचरितमानस में तुलसीदास जी ने लिखा है- ‘‘अजहुं देत दुख रवि शशिह सिर अवेशषित राहु’’ उच्चराशि मिथुन, नीचराशि धनु है। इसकी जाति म्लेच्छ एवं आकृति दीर्घ तथा दिशा नैर्ऋत्य है। राहु का रत्न गोमेद है। बृहत्पाराशर होराशास्त्र के अनुसार पंचम भाव में राहु हो और उस पर मंगल की दृष्टि हो अथवा पंचम भाव में मंगल की राशि हो तो पूर्वजन्म के सर्पशाप के कारण इस जन्म में ऐसी कुंडली वाले जातक के पुत्र नहीं होते हैं। यदि होते हैं तो भी मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं। राहु केतु की उच्चता व नीचता के विषय में ज्योतिषियों में बड़ा मतभेद है।

‘‘राहोस्तु कन्यका गेहं मिथुन स्वाच्चमं समृतम् कन्या राहु ग्रह प्रोक्त राहुच्च मिथुन समृतम् राहानीचिं धनुः प्रोक्त केतोः सप्तम मेवच’’ राहु कन्या राशि में स्वगृही तथा मिथुन में उच्च तथा धनु में नीच माना जाता है एवं इसकी मूल त्रिकोण राशि कर्क मानी गई है। परंतु कई ज्योतिष शास्त्री राहु को वृषभ राशि में उच्च एवं केतु वृश्चिक में उच्च तथा इसकी मूल त्रिकोण कुंभ और प्रिय राशि मिथुन मानी है। राहोस्तु वृषभ केतोः वृश्चिके तुंभ संजितम्। मूल त्रिकोण कुंभचं प्रिय मिथुन उच्चते।। बृहत्पाराशर होरा में राहु का उच्च वृष, केतु का उच्च वृश्चिक, राहु मूल त्रिकोण कर्क, केतु का मूल त्रिकोण मिथुन और धनु, राहु का स्वगृह कन्या व केतु का स्वगृह मीन माना है।

इस तरह राहु के स्वगृह, उच्च, मूल त्रिकोण और नीच के बारे में ज्योतिष सर्व सम्मत नहीं है। राहु को ब्रह्माजी ने ग्रह होने का वरदान तो दिया परंतु छाया जैसे घूमती है (वक्र गति) वैसे ही ये ग्रह घूमते हैं। इसलिए राहु के परिणाम आकस्मिक होते हैं। कई ज्योतिषी राहु-केतु को ग्रह ही नहीं मानते हैं। राहु-केतु ग्रहण में सूर्य और चंद्र के विमर्दक हैं, अतः प्रबल पाप ग्रह हैं। परंतु आकाश में इनका अपना बिंब नहीं है, अतः ये स्वतंत्र फलकारक नहीं हैं। राहु नवम स्थान में हो और नवमेश यदि बलवान हो तो अच्छा फलकारक होता है। विशेषरूप से बुध नवमेश हो तो अचानक भाग्य चमकता है, राहु, शनि के साथ हो तो धन हानि योग कर देता है। यदि जन्मकुंडली में चंद्रमा एवं राहु का परस्पर संबंध हो तो, व्यक्ति की मानसिक स्थिति को असामान्य बनाता है।

यदि यह संबंध शुभ हो, तो जातक जीवन में अप्रत्याशित सफलताएं प्राप्त करता है व यदि चंद्रमा राहु के साथ दूषित स्थिति में हो तो जातक को जीवन में अनेक उतार-चढ़ाव, अस्थिरता एवं धोखे की स्थितियों का सामना करना पड़ता है। चंद्रमा यदि अपनी नीच राशि वृश्चिक में हो तो तथा उस पर राहु की दृष्टि हो तो जातक मन से परेशान रहता है। चंद्रमा यदि अष्ट्म भाव में राहु के प्रभाव में हो तो, उससे त्रिकोण में राहु का गोचर जातक को लंबी यात्राओं के लिए विवश कर देता है।

यदि चंद्रमा द्वादश भाव में हो तथा राहु से प्रभावित हो तो, उससे त्रिकोण में राहु का गोचर धन हानि करता है। किसी कारणवश धन का अपव्यय होता है या जातक ठगी का शिकार हो जाता है। राहु की महादशा जातक के लिए विशेष महत्वपूर्ण होती है। यदि राहु के नक्षत्रों में बली एवं योगकारण ग्रह स्थित हांे तो ऐसे जातक के लिए राहु की दशा-महादशा अतीव शुभ फलदायक होती है।


Book Durga Saptashati Path with Samput




Ask a Question?

Some problems are too personal to share via a written consultation! No matter what kind of predicament it is that you face, the Talk to an Astrologer service at Future Point aims to get you out of all your misery at once.

SHARE YOUR PROBLEM, GET SOLUTIONS

  • Health

  • Family

  • Marriage

  • Career

  • Finance

  • Business


.