पाब्लो पिकासो

पाब्लो पिकासो  

शरद त्रिपाठी
व्यूस : 4349 | अप्रैल 2016

आज हम बात कर रहे हैं एक ऐसे शख्स की जिसने बीसवीं सदी को रंग और रेखाएं दीं, जिनका जीवन सजा अनगिनत रंगों से, जी हां हम बात कर रहे हैं चित्रकार पाब्लो पिकासो की। पिकासो का जन्म हुआ 25 अक्तूबर 1881 को मलागा (स्पेन) में। उनकी मां मारिया और पिता ब्लाॅस्को जो कि आर्ट टीचर भी थे, ने बचपन में ही पिकासो में छिपी प्रतिभा को पहचान लिया था। पिकासो का परिचय रंग और रेखाओं से उनके पिता ने ही करवाया था। स्कूली शिक्षा के लिए उन्हें स्कूल भी भेजा गया लेकिन पिकासो अपनी नोट बुक्स में होमवर्क की बजाय स्केच बनाते रहते थे।

एक बुरे छात्र के रूप में उन्हें खाली कमरे में बंद कर दिया जाता था जहां वे अपनी स्केच बुक के खाली पन्नों को रंगते रहते थे। 14 वर्ष की आयु में ‘ला लान्ज स्कूल आॅफ फाइन आटर््स’ में प्रवेश के लिहाज से कम उम्र का होने पर भी उन्होंने प्रवेश परीक्षा पास करके प्रवेश पा लिया। लेकिन यहां पिकासो को कला का बंधा-बंधाया और पारंपरिक रूप रास नहीं आया। रास भाता भी कैसे क्योंकि इस बच्चे में कला का ऐसा सागर लहरा रहा था जिसे भविष्य में अनेक शैलियों में वर्गीकृत किया जाना था। आइये जानते हैं

पिकासो के जीवन को ग्रहों के आइने से पिकासो का जन्म कर्क लग्न और वृश्चिक राशि में हुआ। लग्नेश चंद्रमा शनि के नक्षत्र और गुरु के उपनक्षत्र में होकर पंचम भाव में राहु और व्ययेश बुध के साथ विराजमान हैं। नवांश कुंडली में लग्नेश बुध लाभ भाव में बैठे हैं जिनपर व्ययेश सूर्य की पंचम भाव से पूर्ण दृष्टि है। कहने का तात्पर्य यह है कि पिकासो की लग्न में और नवांश कुंडली दोनों में ही लग्नेश, पंचम, पंचमेश, सप्तम, सप्तमेश, लाभ भाव तथा व्यय भाव व व्ययेश का घनिष्ठ संबंध है।

इसकी व्याख्या हम सप्तम भाव के विश्लेषण में आगे करेंगे। पिकासो को जन्म के समय शनि की महादशा प्राप्त हुई जो लगभग 1 वर्ष 2 माह चली। उसके बाद प्रारंभ हुई बुध की महादशा। बुध पिकासो की लग्नकुंडली में तृतीयेश व व्ययेश होकर पंचम भाव में चंद्रमा व राहु से युत होकर बैठे हैं साथ ही नवांश लग्न में बुध लग्नेश और कर्मेश होकर लाभ भाव में बैठे हैं। बुध पर तृतीयेश मंगल की पूर्ण दृष्टि भी है। पंचमेश शनि लग्न में बैठे हैं। तृतीय भाव जातक के पराक्रम व कार्य कुशलता का भाव है।


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पंचम भाव कला का भाव है और तृतीय भाव में बैठे शुक्र स्वयं कला के कारक हैं। काल पुरूष की कुंडली में बुध को तृतीय भाव का आधिपत्य प्राप्त होने के कारण बुध को कला, किसी विषय में निपुणता, विद्या में बुद्धि का योग, शिल्प कार्य में चातुर्य का कारकत्व मिला हुआ है। पिकासो की कुंडली में लग्नेश चंद्र व तृतीयेश बुध दोनांे युत होकर पंचम भाव में बैठे हैं, पंचमेश मंगल तृतीय भाव में हैं व तृतीयस्थ शुक्र पर पूर्ण दृष्टि है।

पंचम भावस्थ चंद्र व बुध पर भाग्येश बृहस्पति की पूर्ण दृष्टि है और बुध की तृतीय भाव पर भी पूर्ण दृष्टि है। पंचमेश मंगल षड्बल में सर्वाधिक बलवान हैं। अतः लग्न, लग्नेश, तृतीय भाव, तृतीयेश, पंचम भाव, पंचमेश, दशम भाव, दशमेश, नवम भाव, नवमेश, शुक्र, बुध व गुरु का घनिष्ठ संबंध पिकासो की लग्न कुंडली व नवांश कुंडली दोनों में ही दृष्टिगोचर हो रहा है। जिस किसी भी जातक की कुंडली में ऐसे योग होते हैं उसका कार्य क्षेत्र जिस विषय से संबंधित होगा यह जन्म से ही सुनिश्चित हो जाता है।

पिकासो के पिता कला के शिक्षक थे। वे ही पिकासो के प्रथम शिक्षक बने। पिकासो ने बचपन से ही चित्रकारी करने के अलावा किसी अन्य विषय में सोचा ही नहीं। उन्हें केवल और केवल चित्र बनाना और उनमें रंग भरना ही भाता था और यही उन्हें अच्छा लगता था। पिकासो ने कला की शिक्षा प्राप्त करने के लिए ‘‘स्कूल आॅफ फाइन आर्ट’’ तथा ‘‘राॅयल एकेडमी’’ में भी प्रवेश लिया किंतु ईश्वर ने उनमें कला की नई शैलियों को जीवंत करने के गुण पहले से ही भर दिया जिसके कारण उन्हें कला विद्यालयों की घिसी-घिसाई तकनीकें रास नहीं आईं और उन्होंने पेरिस का रूख किया जिसे कला का स्वर्ग और कलाकारों की स्वप्न भूमि भी कहा जाता है।

17 वर्ष की बुध की महादशा ने पिकासो की रेखाओं को सटीक आकार प्रदान करने में मुख्य भूमिका अदा की। फिर प्रारंभ हुई केतु की महादशा। केतु बैठे हैं एकादश भाव में षष्ठेश व भाग्येश बृहस्पति के साथ लग्नेश चंद्रमा और सप्तमेश तथा अष्टमेश शनि के उपनक्षत्र में। बुध की ही भांति केतु का लग्नेश चंद्रमा, बुध, बृहस्पति व शुक्र से संबंध बना हुआ है। तृतीय भाव पंचम का लाभ स्थान है। केतु की दृष्टि तृतीय भाव, तृतीयेश बुध व लग्नेश चंद्रमा पर है साथ ही भाग्येश बृहस्पति भी दृष्टि द्वारा शुभता प्रदान कर रहे हैं।

1901 में लगभग 20 वर्ष की आयु में ही पिकासो ने ‘ब्लू पीरियड’ नाम से अपनी कला का शैलीगत वर्गीकरण प्रारंभ किया जो लगभग 1904-05 तक चला। फिर ‘रोज पीरियड’, ‘नीग्रो पीरियड’, ‘सिंथेटिक क्यूलिज्म’ आदि अनेक कला शैलियों से पिकासो ने हमें परिचित कराया। उनकी अंतिम कृति थी ‘सेल्फ पोटेªट फेसिंग डेथ’। पिकासो ने अपना पूरा जीवन कला को समर्पित कर दिया। कला ने उन्हें सम्मान, ख्याति व धन भी खूब दिलवाया। आइये अब बात करते हैं

पिकासो के कला क्षेत्र से अलग हटकर उनकी महिला मित्रों की। ओत्गां, जैक्लीन, फरनांदे, एवां, मैरी, डोरा, जीलो, लापोर्ते आदि अनेक महिलाएं उनके जीवन में आईं। इनमें से इनकी पत्नी बनीं ओल्गा और जैक्लीन। पिकासो और जैक्लीन की आयु में लगभग 45 वर्ष का अंतर था पर पिकासो का कहना था कि जैक्लीन ने उनके अंतिम दिनों को सुकून से भर दिया था। पिकासो की कुंडली में सप्तमेश शनि दशम भाव में भोग कारक शुक्र के नक्षत्र और लग्नेश चंद्रमा के उपनक्षत्र में हैं, शनि वक्री भी हैं।


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पंचमेश मंगल बैठै हैं द्वादश भाव में सप्तम के व्ययेश बृहस्पति के नक्षत्र और उपनक्षत्र में, जिन पर सप्तमेश शनि की दृष्टि भी है। यही कारण था कि पिकासो के अनेक प्रेम संबंध बने लेकिन वे ज्यादा दिन तक चल नहीं पाए क्योंकि सप्तम और पंचम का संबंध प्रेम तो करवाता है किंतु षष्ठेश और द्वादशेश भावेशों से यदि सप्तम, पंचम और लग्न का संबंध होता है तब प्रेम संबंध के साथ-साथ विवाह संबंध भी बनते और बिगड़ते रहते हैं। पिकासो की कुंडली में सप्तम के व्ययेश अर्थात षष्ठेश बृहस्पति नवमेश भी हैं

जिनकी पंचम भाव, सप्तम भाव व लग्नेश पर पूर्ण दृष्टि है। यही कारण है कि पिकासो को सप्तम भाव का सुख व संतान भाव का पूर्ण सुख प्राप्त हुआ किंतु उनके संबंध स्थायी नहीं रहे। उनके प्रेम संबंधों का प्रभाव उनकी कलाकृतियों में भी दिखाई पड़ता है। पिकासो ने 92 वर्ष की दीर्घायु प्राप्त की। लग्नेश चंद्रमा अष्टमेश शनि के नक्षत्र में और अष्टमेश शनि लग्नेश चंद्रमा के उपनक्षत्र में हैं। साथ ही षड्बल में चंद्रमा द्वितीय स्थान पर बली ग्रह हैं। लग्न के साथ-साथ चंद्रमा नवांश में भी वर्गोत्तमी नीच भंग राजयोग बना रहे हैं।

पिकासो की मृत्यु 8-4-1973 को बृहस्पति/ बुध की दशा में हुई। बृहस्पति षष्ठेश और बुध द्वादशेश है। गोचर में बुध कुंभ राशि में अष्टमस्थ थे। बृहस्पति मकर राशि में सप्तमस्थ होकर लग्न को और वृष राशि में संचरित लग्नेश चंद्रमा और सप्तमेश शनि को पूर्ण दृष्टि प्रदान कर रहे थे। वृष राशिस्थ अष्टमेश शनि की पूर्ण दृष्टि लग्न पर और अष्टम भाव में गोचरस्थ अंतर्दशानाथ बुध पर भी थी। अद्वितीय चतुर्ग्रही नीच भंग राजयोग पिकासो की जन्मकुंडली में द्वितीयेश सूर्य, चतुर्थेश व लाभेश शुक्र, सप्तमेश व अष्टमेश शनि के साथ-साथ लग्नेश चंद्रमा थे।

चारों ही ग्रह नीच भंग राजयोग का निर्माण कर रहे हैं। नीचस्थितो जन्मनि यो ग्रहः स्यातद्राशिनायोऽपि तदुच्चनाथः। स चंद्र लग्नाधदि केन्द्रवर्ती राजा भवेद्धार्मिक चक्रवर्ती।।’’ फलदीपिका, अध्याय-7 श्लोक-26 यदि जन्म समय में कोई ग्रह नीचस्थ हो और (क) इस नीच राशि का स्वामी और (ख) जो ग्रह नीचस्थ हो उसका उच्चनाथ भी यदि चंद्रमा से केंद्र में हो तो नीच भंग होता है और उत्तम राजयोग बनता है। पिकासो की कुंडली में शुक्र अपनी नीचस्थ राशि कन्या में है। कन्या के स्वामी बुध और शुक्र की उच्च राशि मीन के स्वामी बृहस्पति दोनों ही चंद्रमा से केंद्र में हैं।

‘‘यद्येको नीचगतस्त द्राश्यधिपस्तदुच्चपः केन्द्रे। यस्य स तु चक्रवर्ती समस्तभूपाल बन्धांध्रिः।। यदि जन्म समय कोई ग्रह नीच का हो तो उस नीच राशि का स्वामी और नीचस्थ ग्रह का उच्चनाथ यदि दोनों ही परस्पर केंद्र में हों तो भी नीच भंग राजयोग होता है। पिकासो की कुंडली में सूर्य अपनी नीचस्थ राशि तुला में है और सूर्य के उच्चनाथ हैं मंगल। तुला के स्वामी शुक्र और मेष के स्वामी मंगल दोनों ही परस्पर केंद्र में हैं। शनि व चंद्रमा भी क्रमशः मेष व वृश्चिक के होकर नीचस्थ हैं। शनि व चंद्रमा के उच्चनाथ शुक्र और मेष व वृश्चिक के स्वामी मंगल दोनों ही परस्पर केंद्र में हैं


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जिस कारण नीच भंग राजयोग निर्मित हो रहा है। लग्नेश चंद्रमा वर्गोत्तमी नीचभंग राजयोग निर्मित कर रहे हैं। लग्न की ही भांति नवांश कुंडली में भी चंद्रमा वृश्चिक राशि में हैं और चंद्रमा के नीचनाथ मंगल तथा उच्चनाथ शुक्र की युति नीच भंग राजयोग निर्मित कर रही है। उपर्युक्त वर्णित अद्वितीय नीचभंग राजयोग के प्रभाववश ही पिकासो जैसा महान चित्रकार संसार को मिला। पिकासो जैसा न कोई हुआ न ही कोई होगा।



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