प्राचीन वेदों में ज्योतिष का वर्णन

प्राचीन वेदों में ज्योतिष का वर्णन  

रज्जन प्रसाद पटेल
व्यूस : 8272 | अकतूबर 2016

वेदों को अपौरूषेय अर्थात बिना पुरुष के, ईश्वर कृत माना जाता है, इन्हें श्रुति भी कहते हंै। हिन्दुओं में अन्य ग्रन्थ स्मृति भी कहलाते हैं अर्थात मानव बुद्धि या श्रुति पर आधारित ज्ञान। ज्योतिष संबंध् ाी ज्ञान वेदों में हैं, जिसमें ऋग्वेद में करीब 30 श्लोक, रज्जन प्रसाद पटेल वेद शब्द संस्कृत भाषा के विद् धातु से बना है। विद् का आशय विदित अर्थात जाना हुआ, विद्या अर्थात ज्ञान, विद्वान अर्थात ज्ञानी। वेद भारतीय संस्कृति में सनातन धर्म के मूल अर्थात प्राचीनतम और आधारभूत धर्म ग्रन्थ हंै, जिन्हें ईश्वर की वाणी समझा जाता है।

वेद ज्ञान के भंडार हैं एवं वेदों से अन्य शास्त्रों, पुराणों की उत्पत्ति मानी जाती है। यजुर्वेद में करीब 45 श्लोक एवं अथर्ववेद में करीब 165 श्लोक एवं प्राचीन वास्तु ग्रन्थ ‘स्थापत्यवेद’ भी अथर्ववेद से लिया गया है जिसमें वास्तु से सम्बंधित ज्ञान संकलित हैं। सबसे महत्वपूर्ण बात जो कि वेदों में ज्योतिष सम्बन्धी श्लोक वर्णित है उनका सम्बन्ध भविष्य से नहीं है अर्थात फलित ज्योतिष सम्बन्धी विवरण वेदों में नहीं है लेकिन नक्षत्रों, ग्रहों व राशियों सम्बन्धी प्रार्थनाएं वर्णित हैं क्योंकि वेद कहते हंै कि आपके विचार, आपकी ऊर्जा, आपकी योग्यता, आपके कर्म, आपकी प्रार्थना से ही शुभ वर्तमान व शुभ भविष्य का निर्माण होता है।


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इस प्रकार वैदिक ऋषि उस परम शक्ति परम ब्रह्म अर्थात ईश्वर, परमात्मा, खुदा, परमेश्वर के साथ-साथ प्रकृति के पंच तत्वों व अन्य कारकों की प्रार्थना को महत्व देते हैं। बल्लित्था पर्वतानां खिद्रं बिभर्षि पृथिवि। प्र या भूमिं प्रवत्वति मह्रा जिनोषी महिनि। हे प्रकृष्ट गुणवती और महिमावती पृथ्वी देवी! आप भूमिचर प्राणियों को अपनी सामथ्र्य से पुष्ट करती हैं और साथ ही अत्यंत विस्तृत पर्वत समूहों को भी धारण करती हैं। निम्न वेद मन्त्र में अग्नि, सोम, इन्द्र, पृथ्वी, अन्तरिक्ष, द्युलोक, दिशाओं, उपदिशाओं, उध्र्व व अधो दिशा के निमित्त आहुतियां प्रदान करने का उल्लेख है। आग्नेय स्वाहा सोमाय स्वाहेन्द्राय स्वाहा पृथिव्यै स्वाहान्तरिक्षाय स्वाहा दिवेस्वाहा दिग्भयः स्वाहाशभ्यः स्वाहोवर्ये दिशे स्वाहार्वाच्यै दिशे स्वाहा। अग्नि, सोम, इन्द्र, पृथ्वी, अन्तरिक्ष, द्युलोक, दिशाओं, उपदिशाओं, उध्र्व व अधो दिशा के निमित्त आहुतियां प्रदान करते हैं।

निम्न वेद मन्त्र में नक्षत्रों के लिये नक्षत्रों के देवताओं के लिये, दिन रात्रि के लिये, पक्षों के लिये, मास, ऋतु व ऋतु से उत्पन्न पदार्थ, संवत्सर, धावा व पृथ्वी, चन्द्रमा, सूर्य, सूर्य की किरणें, वसुओं, रुदों, आदित्यों, मरुदगणों, जड़ों, शाखाओं, वनस्पतियों, पुष्पों, फलों एवं औषधियों के निमित्त आहुतियों का वर्णन है। नक्षत्रैभ्यः स्वाहा नक्षत्रैभ्यः स्वाहाहोरात्रेभ्यः स्वाहा धर्मासेभ्यः स्वाहा मासेभ्यः स्वाहा, ऋतुभ्यः स्वाहार्तवेभ्यः स्वाहा संवत्सराय स्वाहा द्यावापृथिवीभ्या स्वाहा चन्द्राय स्वाहा सूर्याय स्वाहा रश्मीभ्यः स्वाहा वसुभ्यः स्वाहा रुद्रेरभ्यः स्वाहा- दित्येभ्यः स्वाहा। मरुद्भ्यःस्वाहा विश्वेभ्यो देवेभ्यः स्वाहा मूलेभ्यः स्वाहा शाखाभ्यः स्वाहा वनस्पतिभ्यः स्वाहा पुष्पेभ्यः स्वाहा फलेभ्यः स्वाहौषीधीभ्यः स्वाहा। नक्षत्रांे के लिये, नक्षत्रों के देवताओं के लिये, दिन रात्रि के लिये,पक्षों के लिये, मास, ऋतु व ऋतु से उत्पन्न पदार्थ, संवत्सर, द्यावा (अन्तरिक्ष) व पृथ्वी, चन्द्रमा, सूर्य, सूर्य की किरणें, वसुओं, रुदों, आदित्यों, मरुदगणों, जड़ांे, शाखाओं, वनस्पतियों, पुष्पों, फलों, एवं औषधियों के निमित्त ये आहुतियां प्रदान करते हंै।

निम्न वेद मन्त्र में पृथ्वी, अन्तरिक्ष, द्युलोक (अन्तरिक्ष), सूर्य, चन्द्रमा, नक्षत्र, जल, औषधियों, वनस्पतियों, भ्रमणशील ग्रहों, रेंगने वाले प्राणियों एवं चराचर के निमित्त आहुतियों का वर्णन है। पृथिव्यै स्वाहान्तरिक्षाय स्वाहा दिवे स्वाहा सूर्याय स्वाहा चन्द्राय स्वाहा नक्षेभ्यः स्वाहाद्भ्यः स्वाहौषधीभ्यः स्वाहा वनस्पतिभ्यः स्वाहा परिप्लवेभ्यः स्वाहा चराचरेभ्यः स्वाहा सरीसर्पेभ्यः स्वाहा। पृथ्वी, अन्तरिक्ष, द्युलोक (अन्तरिक्ष), सूर्य, चन्द्रमा, नक्षत्र (27 नक्षत्र), जल, औषधियों, वनस्पतियांे, भ्रमणशील ग्रहों (नव ग्रह), रेंगने वाले प्राणियों एवं चराचर के निमित्त ये आहुतियां प्रदान करते हंै।

अर्थात हमारे प्राचीन वेद सर्वप्रथम माँ पृथ्वी को महत्व देते हैं एवं तत्पश्चात अन्तरिक्ष, द्युलोक (अन्तरिक्ष), सूर्य, चन्द्रमा, नक्षत्र (27 नक्षत्र), जल, औषधियांे, वनस्पतियांे, भ्रमणशील ग्रहों (नव ग्रह), रेंगने वाले प्राणियों एवं चराचर जगत की बात करते हैं। अतः हमें वेदों से यह प्रमाण मिल रहा है कि ज्योतिष में सबसे महत्वपूर्ण ग्रह पृथ्वी है।


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