वर-कन्या के चयन में नामांक की भूमिका

आकाश में मौजूद नौं ग्रहों के बीच ही संसार का सारा रहस्य छिपा है। मनुष्य के स्वभाव् एवं व्यवहार को यही नौं ग्रह प्रभावित करते है। प्रत्येक व्यक्ति किसी न किसी प्रधान ग्रह की अवधि में जन्म लेता है। और उसी के प्रभाव में सारा जीवन व्य... और पढ़ें

सितम्बर 2008

व्यूस: 7473

वैभव लक्ष्मी की कृपा पाने के लिए ऐसे मनाएं दीपावली

धर्म ग्रंथों में दीपावली का त्यौहार पांच दिन का माना गया है। इसलिए धनतेरस से लक्ष्मी के आवाहन की तथा रोग, दोष, क्लेश आदि से छुटकारा पाने हेतु पूजा उपासना की प्रक्रिया शुरू हो जाती है। यदि आप पारिवारिक कलह, दरिद्रता और बदहाओं से छु... और पढ़ें

नवेम्बर 2008

व्यूस: 6842

विवाह मुहूर्त

रोहिणी, मृगशिरा, मघा, उत्तराफाल्गुनी, हस्त, स्वाती, अनुराधा, मूल, उत्तराषाढा, उतरा भाद्रपद, एवं रेवती नक्षत्र विवाह के लिए उतमोतम है. अश्विनी, चित्रा, श्रवण एवं घनिष्ठा नक्षत्र विवाह के लिए उत्तम है...... ... और पढ़ें

नवेम्बर 2009

व्यूस: 29668

भूखंड वास्तु

प्रश्न- वास्तु में बढ़े हुए भूखंड को कैसे ठीक किया जाता है? उत्तर -किसी भी आवासीय,व्यावसायिक या औद्योगिक भूखंड का उत्तर-पूर्व दिशा को छोड़कर किसी भी दिशा में बढ़ा हुआ होना अच्छा नहीं होता। खासकर... और पढ़ें

आगस्त 2013

व्यूस: 6048

शंख ध्वनि का गुप्त रहस्य

अनेक मनीषियों ने शंख ध्वनि में सरे ब्रह्माण्ड कों समाहित माना है. अखिल विश्व – ब्रह्माण्ड का संक्षिप्त रूप है.कुछ ऐसा ही भाव “ शंखनाद – ब्रह्मा “ शब्द से भी प्रकट होता है. जिस प्रकार किसी पदार्थ से , रासायनिक – प्रक्रिया द्वारा उस... और पढ़ें

आगस्त 2009

व्यूस: 14237

पुखराज

गुरु रत्न पुखराज सभी रत्नों में अपने शुभत्व के लिए जाना जाता है. मेष लग्न की कुंडली में गुरु भाग्य भाव तथा बारहवें भाव का स्वामी होता है. जन्म कुंडली में गुरु प्रथम, पंचम, नवम भाव में हो तो इस रत्न कों धारण करने से लाभ प्राप्त होत... और पढ़ें

जून 2009

व्यूस: 16015

श्रेष्ठ उपाय राहू-केतु कि अशुभता को दूर करने के

जन्म पत्रिका में कालसर्प योग हो तो किसी सिद्ध शिव क्षेत्र में विधिवत शांति करवाएं। संपूर्ण कालसर्प यंत्र कि स्थापना कर नित्य सर्प सूक्त का पाठ करें। नाग गायत्री मंत्र का जप करना श्रेयस्कर है। सोमवार को समीपस्थ शिवालय में जाकर शिवल... और पढ़ें

आगस्त 2008

व्यूस: 169950

कृष्ण जन्माष्टमी व्रत

कृष्ण जन्माष्टमी व्रत विशेष रूप से उत्तरी भारत वर्ष में हर्षोल्ल्लास से बनाया जाता है. भगवान कृष्ण का जन्म भाद्रपद मास की अष्टमी, बुधवार, रोहिणी नक्षत्र व वृषभ राशि में चंद्रमा स्थित होने पर हुआ था. यह व्रत २०११ में २१-२२ अगस्त के... और पढ़ें

आगस्त 2011

व्यूस: 11400

ग्रह स्थिति एवं व्यापार

गोचर फल विचार मासारंभ में गुरु और शुक्र ग्रह का समसप्तक योग में होना तथा सूर्य का शनि व राहु ग्रह से द्विद्र्वादश योग में होना राजनीति के क्षेत्र में आक्रात्मकता व अशांति का महौल बनाएगा। राजनीतिज्ञों में परस्पर विरोधाभास व द्वेष क... और पढ़ें

दिसम्बर 2013

व्यूस: 5827

भुक्ति व मुक्ति प्रदाता महामृत्युंजय मंत्र

प्रत्यक्ष रूप से इष्टदेव का अनुग्रह विशेष ही मंत्र है. मंत्र एक अव्यक्त दैवीय शक्ति को अभिव्यक्त करता है. मंत्र को देवता की आत्मा भी कहा गया है. अपने इष्ट देवता से पूर्ण निष्ठा व् विश्वास रखते हुए विधि-विधान से मंत्र का जाप करने प... और पढ़ें

मई 2009

व्यूस: 10524

प्रदोष व्रत

सूर्यास्त और रात्रि के संधिकाल को प्रदोष काल माना जाता है। वस्तुत: इस काल में शिव-पार्वती की पूजा की जाती है। इसलिए इसे प्रदोष व्रत कहा जाता है। इसलिए इसे प्रदोष व्रत कहा जाता है। विभिन्न वारों के प्रदोष व्रत के फलों का विवरण इस प... और पढ़ें

नवेम्बर 2008

व्यूस: 10419

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