व्यवसाय का निर्धारण

व्यवसाय का निर्धारण  

तिलक राज
व्यूस : 57762 | अप्रैल 2009

हमारे जन्मांग चक्र में विभिन्न भावों को धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष चार भागों मेें बांटा जाता है। 1, 5, 9 धर्म भाव, 2, 6, 10 अर्थ भाव, 3, 7, 11 काम भाव और 4, 8, 12 मोक्ष भाव है। प्रत्येक व्यक्ति को अपना जीवन निर्वाह करने के लिए धन की आवश्यकता होती है। 2, 6, 10 अर्थ भाव होने से व्यक्ति की धन संबंधी आवश्यकता को पूरा करते हैं। दूसरा भाव हमारे कुटुंब व संचित धन को दर्शाता है। छठा भाव हमारी नौकरी व ऋण को दर्शाता है। दसवां भाव हमारे व्यवसाय को दर्शाता है। किसी व्यक्ति का दूसरा भाव बलवान हो तो उसकी धन संबंधी आवश्यकताएं कुटुंब से मिली हुई संपत्ति व धन से पूरी होती रहती है। सारी उमर वह कोई नौकरी या व्यवसाय नहीं करते जैसे महाजनी का कार्य। ऐसे कार्य जो पीढ़ी दर पीढ़ी धन उपलब्ध करवाते रहते हैं। किसी व्यक्ति का छठा भाव बलवान हो तो व्यक्ति नौकरी द्वारा सारा जीवन गुजार देता है। कुछ लोग जीवन भर उधार ही मांगते रह जाते हैं और उनके कार्य चलते रहते हैं। दशम भाव बलवान होने से व्यक्ति अपने स्वयं के कर्म से धन कमाता है। व्यक्ति किस तरह के व्यवसाय या नौकरी में अधिक सफलता प्राप्त करेगा इसका निर्धारण करने के लिए सबसे पहले यह निर्धारित करना पड़ता है कि व्यक्ति की लग्न कुंडली, चंद्र कुंडली व सूर्य कुंडली में से सबसे बलवान कुंडली कौन सी है। सूर्य, चंद्र और लग्न से दशम भाव के स्वामियों में से जो सबसे बलवान हो वह नवांश कुंडली में जिस राशि पर स्थित हो, उस राशि के स्वामी द्वारा व्यक्ति के व्यवसाय एवं नौकरी की जानकारी मिलती है। राशियों के स्वामी सिर्फ सात ग्रह ही होते हैं इसमें राहु-केतु को महत्व नहीं दिया जाता।


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सूर्य से संबंधित व्यवसाय: सरकारी नौकरी, राजदूत, उपदेशक, मंत्र कार्य, फल विक्रेता, वस्त्र, ऊन, तृण, तांबा, स्वर्ण, माणिक, सींग या हड्डी के बने समान, खेती बाड़ी, धन विनियोग, बीमा एजेंट, सरकारी मुखबीर, प्रेत कार्य। चंद्र से संबंधित व्यवसाय: जल से उपरत्न वस्तुएं, जल, मोती, मूंगा, शंख, क्राॅकरी, जनसंपर्क अधिकारी, जादूगर, फोटोग्राफिक्स व वीडियो मिक्सिंग, वस्त्र व्यवसाय, विदेशी कार्य, दूध, सब्जी, आयुर्वेदिक दवाएं, मनोविनोद के कार्य। मंगल से संबंधित व्यवसाय: धातु कार्य, पुलिस व सेना की नौकरी, अग्नि कार्य, साहसिक कार्य, सर्कस, वकालत, गवाह, ब्यूटी पार्लर, नौकरी दिलवाने के कार्य, अर्जीनवीस, शक्तिवर्धक कार्य, अग्निबीमा, बिजली, चूल्हा, ईंधन, पारा, पत्थर, खून बेचना, शल्य कार्य, नाई, केमिस्ट, मकेनिक, चोरी का कार्य, भूमि के कार्य, मिट्टी का समान। बुध से संबंधित व्यवसाय: व्यापार कार्य, वेदों का अध्यापन, लेखन कार्य, ज्योतिष कार्य, प्रकाशन का कार्य, शिल्पकला, काव्य रचना, गायन विद्या, वैद्य, वनस्पति, बीजों व पौधों का कार्य, ब्याज, बट्टा, पूंजी निवेश, समाचार पत्र, दलाली के कार्य। बृहस्पति से संबंधित व्यवसाय: ब्राह्मण का कार्य, धर्मोपदेश का कार्य, बैंकिंग कार्य, राजनीति, अर्थशास्त्र, पुराण, गृह निर्माण, उत्तम फर्नीचर, शयन उपकरण, गर्भ संबंधित कार्य, मांगलिक कार्य, अध्यापन कार्य, व्याज कार्य, खाने पीने की वस्तुएं, स्वर्ण कार्य।

शुक्र से संबंधित व्यवसाय: सोना, चांदी, हीरा, रेस्टोरेंट, होटल, विवाह से संबंधित कार्य, महिलाओं से संबंधित कार्य, उत्तम वस्त्र, संगीत, एक्टिंग, वेश्यावृति, दही, सेंट, पशु चिकित्सा, सचिव, मंत्री, शास्त्रकार, काम कला। शनि से संबंधित व्यवसाय: दस्तकारी, मरम्मत के कार्य, लकड़ी का कार्य, मोटा अनाज, कोयला, लोहा, वैज्ञानिक कार्य, अनुसंधान कार्य, ज्योतिष कार्य, जज, ठेकेदारी, भिक्षावृति, मशीनरी के कार्य। इन व्यवसायों के अतिरिक्त कुछ व्यवसाय ऐसे होते हैं जिनके लिए एक से अधिक ग्रहों का बलवान होना आवश्यक हो जाता है। जैसे ड्राई फ्रूटस का कार्य। ड्राई फ्रूटस में किशमिश का संबंध सूर्य से, पिस्ता का संबंध मंगल से, अखरोट का संबंध गुरु से, काजू का संबंध शुक्र से व बादाम का संबंध शनि से है। इन पांचों को पंचमेवा कहा जाता है। ये पंच तत्वों के भी कारक है। जैसे - सूर्य अग्नि तत्व, मंगल भूमि तत्व, गुरु आकाश तत्व, शुक्र जल तत्व व शनि वायु तत्व का कारक है। कुछ व्यक्तियों की कुंडली में व्यवसाय का निर्धारण आत्माकारक ग्रह द्वारा भी होता है। सूर्य आत्माकारक हो तो जातक में आत्मिक बल बहुत होता है वह हर कार्य अपनी आत्मा की आवाज सुन कर करता है। चंद्र बलवान हो तो मानसिक संतुलन देता है।


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मंगल पराक्रमी बनाता है। बुध बुद्धि का कारक है। गुरु ज्ञान व विवेक देता है। शुक्र भौतिक ऐश्वर्य प्रदान करता है। शनि ज्ञान व वैराग्य बढ़ाता है। राहु अहंकार व केतु मोक्ष का कारक है। इस प्रकार सभी ग्रहों व भावों का बलाबल विचार करने के बाद ही व्यवसाय का निर्धारण करना चाहिए। यह बात ध्यान देने योग्य है कि व्यवसाय एवं आय के संबंध में प्राचीन ज्योतिष ग्रंथों में वर्णित योगों का आधुनिकीकरण करने की आवश्यकता है। प्राचीन काल में व्यवसाय एवं आजीविका के क्षेत्र अत्यंत सीमित होते थे। क्योंकि अधिकांश लोग कृषि या उससे संबंधित व्यवसाय से जुड़े होते थे। अतः यहां व्यवसायों के आधुनिक विभिन्न स्वरूप एवं विविधताओं को ध्यान में रख कर ग्रहों एवं भावों का विवेचन किया गया है।

विभीन्न व्यवसायों से संबंधित कुछ योगों को यहां दिया जा रहा है: राज योग

1. यदि जन्मपत्रिका में वृष राशि का चंद्र गुरु से दृष्ट हो तो जातक पृथ्वीपति होता है एवं समस्त भूमंडल पर शासन करता है और उसके सुयश चारों दिशाओं में सुशोभित करने वाला होता है।

2. यदि जन्मपत्रिका में केंद्र 1, 4, 7, 10 भाव में सूर्य स्थित हो, केंद्र तथा त्रिकोण 1, 4, 5, 6, 7, 9, 10 स्थान में चंद्र हो तथा लग्न तथा सुख 1, 4 भाव में गुरु हो तो राजयोग होता है।

3. यदि जन्मकुंडली में गुरु बुध से निरीक्षित हो या बुध गुरु साथ-साथ हो तो उस जातक का आदेश राजा लोग भी शिरोधार्य करते हैं। राजराजेश्वर राजयोग यदि जन्मपत्रिका में बुध, गुरु से देखा जाता हो तो जातक राजा होता है तथा उसके शासन प्रबंधन को लोग शिरोधार्य करते हैं। चक्रवर्ती राजयोग: यदि कोई भी ग्रह कुंडली में अपने पंचमांश में स्थित हो तो जातक राजा होता है और पूर्णबली हो तो चक्रवर्ती राजा होता है। बहुकर्मी धनी योग: यदि जन्मकुंडली में लग्न या चंद्र से 10वें भाव में गुरु हो तो जातक अनेक व्यापार से धन प्राप्त कर धनी होता है। आजीविका योग Û यदि जन्मपत्रिका में लग्न से दशमेश के नवमांशपति सूर्य हो तो मंत्र, फल, वस्त्र, दवा, धातु आदि से आजीविका प्राप्त होता है। Û यदि जन्मपत्रिका में लग्न से दशमेश जिस नवांश में हो उसके स्वामी सूर्य हो तो औषधि, ऊन, तृण और स्वर्णादि के व्यापार से आजीविका होती है। Û यदि जन्मपत्रिका में लग्न/चंद्र से दशम स्थान का स्वामी सूर्य के नवांश में हो तो औषधि, सोना, मोती आदि से आजीविका की प्राप्ति होती है। Û यदि जन्मपत्रिका में लग्न या चंद्र से दशम (कर्म) भाव का स्वामी बृहस्पति के नवांश में हो तो देव ब्राह्मण के पूजन से, विद्यादान से, धर्मोपदेश से और ब्याज से आजीविका होती है।


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यदि जन्मकुंडली में लग्न से दशमेश के नवमांश पति शुक्र हो तो जातक काव्य, दुध, पशु, नृत्यादि कर्म से जीविकोपार्जन करता है। Û यदि जन्मपत्रिका में लग्न से दशमेश जिस नवमांश में हो उसके स्वामी यदि शुक्र हो तो भैंस आदि पशु, रत्न आदि से आजीविका होती है। Û यदि जन्मपत्रिका में लग्न या चंद्र से दशम के नवांश का स्वामी बुध हो तो शिल्प कार्य से, चित्र, पुस्तक आदि के लेखन से, वस्त्र निर्माण से, काव्य से, आगम शास्त्र मार्ग से, ज्योतिष से, पौरोहित्य कर्म से, वेद मंत्रों के जप से, वेद के अध्ययन से जातक धनोपार्जन एवं आजीविका प्राप्त करता है। Û यदि जन्मपत्रिका में लग्न या चंद्र से दशवें भाव का स्वामी शुक्र से नवांश में हो तो जातक स्वर्ण, मुक्ता माणिक रत्नादि के व्यवसाय से, गुड़ चीनी से, दही दुग्ध से, पशुओं के व्यवसाय से, मनोरंजन कार्य से तथा स्त्रियों के प्रलोभन से आजीविका होती है। ज्योतिषी योग 1. यदि जन्मपत्रिका में बुध 1, 4, 5, 7, 9, 10 स्थानों में स्थित हो तो जातक ज्योतिषी होती है। 2. यदि जन्मपत्रिका में बृहस्पति 1, 4, 5, 7, 9, 10 स्थानों में स्थित हो तो जातक ज्योतिषी होती है। 3. लग्न भाव से या लग्नेश से गुरु व बुध का संबंध होने से व्यक्ति ज्योतिषी होता है। प्रस्तुत कुंडली में लग्नेश बुध है और लग्न पर गुरु की दृष्टि है। लग्नेश और गुरु का दृष्टि संबंध भी है। यह कुंडली एक प्रसिद्ध ज्योतिष विद्वान की है जिसने इस क्षेत्र में विशेष ख्याति प्राप्त की है व अनेक पुस्तकें लिखी है।

4. गुरु केंद्र में हो या पाप ग्रह के साथ त्रिकोण में हो, मंगल पाप ग्रह के साथ केंद्र या त्रिकोण में हो तो जातक ज्योतिष के साथ-साथ तंत्रशास्त्र का भी जानकार होता है। गणितज्ञ योग: यदि जन्मपत्रिका में गुरु 1, 4, 5, 7, 9 एवं 10 वें भाव में हो तो जातक गणितज्ञ होता है। व्यापारी योग: दशम भाव पर शुभ ग्रहों की दृष्टि हो, तो मनुष्य व्यापारी होता है अथवा (1) दशमेश और लग्नेश एक ही राशि में हो या (2) दशमेश 1, 4, 5, 7, 9, 10 या 11वें भावों में हो तथा शुभ ग्रहों से दृष्ट हो एवं (3) दशमेश ग्रह अपनी राशि में हो तथा शुभ ग्रहों से दृष्ट हो एवं (4) दशमेश ग्रह अपनी राशि में हो तथा शुभ ग्रह की दृष्टि पड़ती हो, तो भी जातक व्यापारी होता है। पुस्तक विक्रेता योग: सूर्य, गुरु अथवा शुक्र का संबंध लग्न भाव से होने पर पुस्तक व्यवसाय में सफलता मिलती है। प्रस्तुत कुंडली में लग्नेश सूर्य शुक्र के साथ है और गुरु की दृष्टि भी लग्न पर पड़ रही है इसी कारण से इस जातक को पुस्तक विक्रेता के व्यवसाय में सफलता मिली। पुस्तक प्रकाशक योग: सूर्य का संबंध लग्न या लग्नेश से हो, गुरु अथवा शुक्र से दृष्ट हो तो पुस्तक विक्रेता योग होता है। साथ ही मंगल से भी दृष्ट हो जाए तो प्रकाशक योग बन जाता है। प्रस्तुत कुंडली में सूर्य शुक्र के साथ है और गुरु और मंगल की दृष्टि उन पर पड़ रही है इसी कारण से इस जातक को पुस्तक विक्रेता के साथ-साथ प्रकाशक के कार्य में आना पड़ा।

चित्रकार योग: चंद्र और मंगल दोनों का संबंध लग्न भाव से हो तो चित्रकला के कार्य में सफलता व प्रसिद्धि मिलती है। प्रस्तुत कुंडली में चंद्र लग्नेश है और मंगल की चतुर्थ दृष्टि लग्न पर है। प्रस्तुत कुंडली एक फोटोग्राफर व चित्रकार की है। अभिनेता योग: प्रथम भाव से चंद्र, मंगल और शुक्र का संबंध हो तो अभिनेता योग बनता है। प्रस्तुत कुंडली में लग्नेश मंगल लग्न भाव को देख रहा है। शुक्र लग्न में ही है। उच्च का चंद्र लग्न को देख रहा है। इस प्रकार चंद्र मंगल और शुक्र तीनों का संबंध लग्न से होने के कारण जातक एक सफल अभिनेता है। कवि योग: लग्न से गुरु और चंद्र का संबंध व्यक्ति को कवि बनाता है। लग्नेश गुरु उच्च का होकर लग्न को देख रहा है। चंद्र लग्न में ही है। प्रस्तुत कुंडली विश्व प्रसिद्ध कवि श्री रविंद्र नाथ टैगोर की है। गुरु केंद्र का स्वामी होकर त्रिकोण भाव में बैठने से राजयोग कारक भी हो गया है। ठेकेदार योग: लग्न भाव से या लग्नेश से मंगल और शनि का संबंध हो तो ठेकेदार योग बनता है।


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प्रस्तुत कुंडली में लग्नेश मंगल और शनि की युति है और बुध लग्न में ही बैठा है। इस जातक ने ठेकेदारी के काम से अच्छी संपत्ति अर्जित की है। डाॅक्टर योग: लग्न भाव से व छठे भाव से मंगल का संबंध हो तो डाॅक्टर योग बनता है। प्रस्तुत कुंडली में उच्च का मंगल छठे भाव में बैठकर लग्न को देख रहा है। यह कुंडली एक सुप्रसिद्ध एवं विशेष ख्याति प्राप्त डाॅक्टर की है। इंजीनियर योग: लग्न भाव से मंगल व शनि का संबंध होने पर इंजीनियर योग बनता है। प्रस्तुत कुंडली में लग्नेश शनि लग्न में ही बैठा है और मंगल की दृष्टि लग्न भाव पर है। यह जातक चीफ इंजीनियर के पद पर कार्यरत है। वैद्य योग: पांचवें भाव में सूर्य मंगल की युति हो तो जातक वैद्य होता है। विविध विद्या योग: केंद्र में गुरु और शुक्र बैठे हो तो जातक छहों शास्त्रों का ज्ञाता होता है। धर्माध्यक्ष योग: गुरु या शुक्र अपनी उच्च राशि में हो, शुभ ग्रह मित्र के नवांश में हो तथा नवमेश बली हो तो जातक धर्माधिकारी होता है। भास्कर योग: सूर्य से दूसरे भाव में बुध, बुध से ग्यारहवें भाव में चंद्र, चंद्र से पांचवें भाव में गुरु हो तो भास्कर योग बनता है। ऐसा जातक धनी, पराक्रमी, शास्त्रों का विद्वान, ज्योतिष का विद्वान, संगीतज्ञ तथा उत्तम व्यक्तित्व वाला होता है।



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