हिंदू तीर्थस्थलों में तिरुपति
बाला जी का अन्यतम महत्व
है। आंध्रप्रदेश के चित्तूर जिले में
तिरुमलै पहाड़ी पर स्थित तिरुपति
बाला जी मंदिर में भगवान विष्णु
वेंकटेश्वर के नाम से पूजे जाते हैं।
इसे कलियुग का वैकुंठ भी कहा जाता
है। वेंकटाचल का पूरा पर्वत
भगवत्स्वरूप माना जाता है। यह पर्वत
तिरुमलै और वेंकटाचल दोनों नामों
से जाना जाता है। तिरु का अर्थ है
श्रीमान और मलै का पर्वत अर्थात
श्रीयुक्त पर्वत। इसी प्रकार वेंक का
अर्थ है पाप और कट का नाशक
अर्थात पापनाशक पर्वत। वराह पुराण
में भगवान वेंकटेश्वर के अवतरण के
विषय में उल्लेख मिलता है कि आदि
वराह ने स्वयं स्वामिपुष्करिणी नदी के
पश्चिमी तट और विष्णु ने वेंकटेश्वर
के रूप में दक्षिणी तट पर अपना
निवास बनाया। एक दिन विष्णु का
अनन्य भक्त रंगदास जब तीर्थाटन
पर जा रहा था तो उसकी मुलाकात
गोपीनाथ से हुई। गोपीनाथ प्रतिदिन
तिरुमलै पहाड़ी पर भगवान वेंकटेश्वर
की पूजा करने जाया करता था।
स्वामिपुष्करिणी में स्नान करने के बाद
उसने देखा कि इमली के पेड़ के नीचे
कमल जैसे नेत्रों वाले नीलवर्ण विष्णु
विद्यमान हैं, धूप, हवा व वर्षा से उनकी
रक्षा के लिए उनके ऊपर गरुड़ ने
अपने पंख फैला रखे थे। यह दृश्य
देख कर रंगनाथ आश्चर्यचकित रह
गया तथा उसने उस स्थान के चारों
ओर पत्थर की कच्ची दीवार बना दी
और बहुत श्रद्धा विश्वास के साथ विष्णु
भगवान की पूजा के लिए प्रतिदिन
गोपीनाथ को पुष्प देने लगा। एक
दिन रंगदास के इस नियम में एक
गंधर्व दम्पति ने अवरोध डाला और वह
पूजा के पुष्प देना भूल गया। तब विष्णु
उसके सम्मुख स्वयं प्रकट हुए और
उससे कहा कि मैंने गंधर्व दम्पति के
द्वारा तुम्हारी परीक्षा ली थी लेकिन तुम
परीक्षा में खरे नहीं उतर पाए।
अपने आराध्य के मुंह से ऐसी बात सुन
रंगदास का मन ग्लानि से भर आया।
भगवान विष्णु ने उसकी सच्ची समर्पित
भक्ति की प्रशंसा की और उसे आशीर्वाद
दिया कि वह दोबारा जन्म लेकर प्रसिद्ध
राजा बनेगा। कालांतर में रंगदास ने
एक राजसी परिवार में जन्म लिया।
उसका नाम टोंडमन था। उसने विष्णु
का भव्य मंदिर बनाकर दूर-दूर तक
ख्याति अर्जित की।
तिरुपति के दर्शन
तिरुपति बाला जी के मुख्य दर्शन तीन
बार होते हैं। यहां प्रतिदिन लगभग 50
हजार तीर्थयात्री श्री वेंकटेश्वर के दर्शन
करने आते हैं। पहला दर्शन विश्वरूप
दर्शन कहलाता है। यह प्रभातकाल में
होता है। दूसरा दर्शन मध्याह्न में तथा
तीसरा रात्रि में होता है। इन तीन
दर्शनों में कोई शुल्क नहीं लगता, लेकिन
भीड़ अधिक होती है। इन सामूहिक
दर्शनों के अतिरिक्त विशेष दर्शन होते
हैं जिनके लिए विभिन्न शुल्क निर्धारित
हैं।
मंदिर में आने वाली भीड़ नियंत्रित रहे
इसके लिए प्रत्येक दर्शनार्थी को एक
टोकन दिया जाता है जिस पर दर्शन
का समय अंकित होता है। इससे समय
की बचत होती है।
तिरुपति बाला जी का मंदिर तीन
परकोटों से घिरा है। इन परकोटों में
गोपुर बने हैं, जिन पर स्वर्ण कलश
स्थापित हैं। स्वर्णद्वार के सामने
तिरुमहामंडपम नामक मंडप है और
एक सहस्रस्तंभ मंडप भी है। मंदिर के
सिंहद्वार नामक प्रथम द्वार को
पडिकावलि कहते हैं। इस द्वार के
भीतर वेंकटेश्वर स्वामी बाला जी के
भक्त नरेशों एवं रानियों की मूर्तियां
बनी हैं।
प्रथम तथा द्वितीय द्वार के मध्य की
प्रदक्षिणा को सम्पंगि प्रदक्षिणा कहते
हैं। इसमें ‘विरज’ नामक एक कुआं है।
कहा जाता है कि श्री बाला जी के
चरणों के नीचे विरजा नदी है। उसी
की धारा इस कूप में आती है। इसी
प्रदक्षिणा में पुष्प कूप है। बालाजी को
जो तुलसी पुष्प चढ़ता है, वह किसी
को दिया नहीं जाता, इसी कूप में
डाला जाता है।
द्वितीय द्वार पार करने के बाद की
प्रदक्षिणा विमान-प्रदक्षिणा कहलाती
है।
तीसरे द्वार के भीतर गर्भगृह के
चारों ओर एक प्रदक्षिणा है जिसे
वैकुंठ प्रदक्षिणा कहते हैं। यह केवल
पौष शुक्ल एकादशी को खुलती
है। भगवान के मंदिर के सामने
स्वर्ण मंडित स्तंभ है। उसके आगे
तिरुमह मंडप नामक सभा मंडप
है। द्वार पर जय-विजय की मूर्तियां
हैं। इसी मंडप में एक ओर हुंडी
नामक बंद हौज है जिसमें यात्री
बाला जी को अर्पित करने के लिए
लाए द्रव्य-आभूषण आदि डालते
हैं।
जगमोहन से मंदिर के भीतर चार द्वार
पार करने पर पांचवें द्वार के भीतर श्री
बालाजी की पूर्वाभिमुख मूर्ति है। भगवान
की श्रीमूर्ति श्याम वर्ण की है। शंख,
चक्र, गदा, पù लिए बालाजी खड़े हैं।
यह मूर्ति लगभग सात फुट ऊंची है।
भगवान के दोनों ओर श्रीदेवी तथा
भूदेवी की मूर्तियां हैं। भगवान को
भीमसेनी कपूर का तिलक लगता है।
भगवान के तिलक से उतरा यह चंदन
यहां प्रसाद रूप में बिकता है। यात्री
उसे अंजन के काम में लेने के लिए ले
जाते हैं।
यात्रा का क्रम: सर्वप्रथम कपिल
तीर्थ में स्नान करके कपिलेश्वर के
दर्शन करने चाहिए। उसके बाद मान्यता
है कि बाला जी मंदिर जाने वालों को
पहले वराह स्वामी मंदिर जाना चाहिए
उसके बाद बाला जी के दर्शन करने
चाहिए, क्योंकि वराह स्वामी तिरुपति
बाला जी के गुरु थे। यात्रा क्रम इस
प्रकार है:
कपिल तीर्थ: यह तीर्थ पैदल मार्ग स
जाने वाले यात्रियों को मिलता है।
यह एक सुंदर सरोवर है। ऊंचे पर्वत से
जलधारा नीचे गिरती है। सरोवर में
पक्की सीढ़ियां बनी हैं। सरोवर के तट
पर संध्यावंदन मंडप बने हैं। तीर्थ के
चारों कोनों पर चार स्तंभों में चक्र के
चिह्न अंकित हैं। पूर्व दिशा में संध्यावंदन
मंडप के ऊपरी भाग में कपिलेश्वर
मंदिर है।
तिरुमलै मार्ग: तिरुपति बाला जी
इसी पर्वत पर स्थित हैं। गोपुर से
चढ़ाई प्रारंभ हो जाती है। पर्वत के पूरे
मार्ग में बिजली की व्यवस्था है इसलिए
रात में भी आने जाने में कोई कठिनाई
नहीं होती। इस सात मील की यात्रा
में यात्रियों को सात पर्वत मिलते हैं।
श्री बाला जी सातवें पर्वत पर हैं। इस
मार्ग की पैदल यात्रा पुण्यप्रद मानी
जाती है।
कल्याणकट्ट: इस स्थान पर मुंडन
का विशेष महत्व है। मुंडन का इतना
माहात्म्य है कि सौभाग्यवती महिलाएं
भी मुंडन कराती हैं। कुछ महिलाएं
अपने बालों की एक लट कटवा
देती हैं।
स्वामिपुष्करिणी: श्री बाला जी
मंदिर के पास ही यह विस्तृत सरोवर
है। सभी यात्री इसमें स्नान कर
बालाजी के दर्शन को जाते हैं।
वराह मंदिर: स्वामिपुष्करिणी के
पश्चिम तट पर वराह भगवान का
भव्य मंदिर है। अधिकांश यात्री
बाला जी का दर्शन करके वराह
भगवान के दर्शन करने आते हैं।
कहा जाता है कि बिना इनके दर्शन
के यहां की यात्रा सफल नहीं होती।
कब जाएं: तिरुपति वर्ष में कभी
भी जा सकते हैं लेकिन सितंबर से
मार्च तक का समय अति उत्तम है।
कैसे जाएं: तिरुपति पूरे देश से
सड़क, रेल व हवाई मार्ग से जुड़ा हुआ
है। तिरुपति में रेलवे स्टेशन व हवाई
अड्डा दोनों हैं। मगर चेन्नई, हैदराबाद
और बंगलूर से बस से पहुंचा जा सकता
है।
कहां ठहरें: तिरुपति में धर्मशाला,
होटल, गेस्ट हाउस की अच्छी सुविधा
है। निःशुल्क धर्मशालाओं से लेकर
लग्जरी होटल की सुविधाएं भी उपलब्ध
हैं।