रोगों से बचाए सूर्य

रोगों से बचाए सूर्य  

चंदन पराशर
व्यूस : 5237 | जनवरी 2006

पृथ्वी के प्र्राणियों के लिए सूर्य का बहुत ज्यादा महत्व है। समस्त धरा पर निवास कर रहे प्राणि जगत हेतु सूर्य जीवन प्रदाता है। सूर्य वह पिंड या ग्रह है जिससे हमें ऊर्जा प्राप्त होती है। सूर्य से प्राप्त ऊर्जा ही है जो इस संसार को चलायमान बनाए हुए है। सूर्य को भगवान विष्णु के बाद इस प्राणि जगत का पालक माना गया है। ज्योतिष शास्त्र में सूर्य को सभी ग्रहों का राजा माना गया है। इसे सौर मंडल का प्रमुख ग्रह कहा गया है। सूर्य इतना विशालकाय और ऊर्जावान ग्रह है जिससे हमारी पृथ्वी ऊर्जावान और ऊष्मावान होती है। ज्योतिष में सूर्य को कुछ कार्यों के कारक की संज्ञा दी गई है जैसे, औषधि और पारिवारिक संबंधों में पिता का कारक सूर्य है।

शरीर में हड्डी का कारक सूर्य है। स्वाध्याय, ऊर्जा, चिकित्सक और अधिकारी वर्ग, समस्त प्रशासनिक विचार, सरकारी तंत्र, दायां नेत्र, दिन, सिर, पेट, मस्तिष्क, हृदय, रक्त चाप, ज्वर, पित्तज रोग, क्षय रोग आदि सूर्य के अधीन हैं। सूर्य को विज्ञान माना गया है क्योंकि यह ऊर्जा, ऊष्मा, प्रकाश, औषधि का कारक है। ज्योतिष शास्त्र पूर्ण रूपेण वैज्ञानिक तथ्यों पर आधारित है। इसे विदेशी विद्वानों ने भी स्वीकार किया है। सूर्य के क्षेत्र को विस्तार से विद्वानों ने समझा है।

सूर्य की गति के फलस्वरूप ही दिन रात बनते हैं। सूर्य पूर्व दिशा से उदित होकर पश्चिम में अस्त हो जाता है। सूर्य में औषधीय गुण पाया जाता है। वास्तु शास्त्र का गहन अध्ययन किया जाए तो वास्तु में नियम है कि ईशान कोण में पूजा कक्ष बनाया जाए और नैर्ऋत्य कोण में ज्यादा से ज्यादा भारी निर्माण किया जाए अर्थात बड़ी-बड़ी दीवारें हों, ऊंचाई अधिक हो, खिड़की दरवाजे न बनाए जाएं। इसके सिद्धांत के तह में जाएं तो मालूम पड़ेगा कि यह तथ्य कितना व्यावहारिक और स्वास्थ्य कारक है।


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प्राचीन काल में सुबह शौच आदि कार्यों हेतु घर से दूर जाया जाता था। वह भी अंधेरे में और जब वापस लौटते थे तब तक सूर्योदय हो जाता था और सूर्य से निकलने वाली किरणें, जिनमें विटामिन की प्रचुर मात्रा पाई जाती है, प्राप्त होती थीं। मेडिकल साइंस बच्चों में होने वाले सूखा रोग पर कोई दवा नहीं बना पाया है। इसका एक मात्र इलाज है कि बच्चे को कपड़े उतार कर लाल तेल से मालिश कर उगते सूर्य की किरणों में बिठा दिया जाए। सूर्य की किरणों में प्रातः कालीन विटामिन डी और प्रोटीन युक्त ऊष्मा प्राप्त होती है। इसीलिए पूजा कक्ष ईशान में बनाया जाता है ताकि लोगों को ज्यादा से ज्यादा सूर्य की किरणों से प्राप्त ऊर्जा का लाभ हो, और लोग स्वस्थ रहें। ईशान में ज्यादा खुलापन होना चाहिए।

रसोई घर दक्षिणी पूर्वी कोण पर बनाया जाए ताकि सूर्य की ऊर्जावान किरणें हमारे भोज्य पदार्थों को कीड़ों, जंतुओं और बैक्टीरिया से मुक्त रखें। संध्याकालीन सूर्य से इन्फ्रारेड किरणें निकलती हैं जो एक्सरे निकालने में प्रयोग की जाती हैं। यह मानव शरीर हेतु हानिकारक किरणें हैं। सूर्य अस्त पश्चिम में होता है। नैर्ऋत्य कोण (दक्षिण-पश्चिम का भाग) में ऊंचा निर्माण, मोटी दीवारें, बड़े-बड़े पेड़ होने की वजह से सूर्य की हानिकारक किरणें हमारे पास नहीं आतीं। संध्या काल में आरती करने के पीछे भी यही उद्देश्य है कि आप सूर्य अस्त की दिशा से दूर पूर्वी क्षेत्र में रहें ताकि सूर्य की हानिकारक किरणें आप को आघात न पहुंचा सकें। इस तरह सूर्य रोगों से हमारी रक्षा करता है।

सूर्य से प्राप्त किरणों से हमें बल प्राप्त होता है। प्राणबल सूर्य से ही प्राप्त होता है। जब वर्षा ऋतु में 2-3 दिनों तक सूर्य बादलों में छुपा रहता है तब हम सुस्ती, थकान, भारीपन महसूस करते हैं, कुछ कार्य करने की इच्छा नहीं होती। यह सब क्या है, यह सूर्य का ही तो कमाल है कि वह उदय हो कर हमें अपनी ऊर्जा प्रदान करता है। सुबह जल्दी उठकर सैर करने की सलाह डाक्टरों द्वारा दी जाती है।

यह सब सूर्य की खासियत ही है कि देर से उठने वालों की अपेक्षा जल्दी उठकर सैर आदि पर जाने वाले ज्यादा स्फूर्तिवान और स्वस्थ महसूस करते हैं। अतः सूर्य हमारे लिए सिर्फ दिन लाने वाला ही नहीं अपितु जीवनदायक और रोगों से मुक्त रखने वाला ऊर्जा देने वाला और रोगाणुओं से लड़ने की क्षमता विकसित करने वाला ग्रह है।


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