ब्राह्मी विशेषतः हिमालय की
तराई, बिहार, उत्तरप्रदेश
आदि में नदी नालों, नहरों के किनारे
पाई जाती है अर्थात यह सीलन भरी
भूमि (जलासन्न भूमि) में बहुतायत
उगती है। गंगा के किनारे पूरे वर्ष
भर में यह हरी भरी पाई जाती है।
ब्राह्मी का पौधा फैलने वाला होता है।
इसकी पत्तियां चिकनी तथा नरम
होती हैं जिनकी लंबाई ज्यादा से
ज्यादा 1 इंच तथा चैड़ाई सामान्यतः
1 से. मी. होती है। इसमें गर्मियों
के मौसम में नीले, सफेद या हल्के
गुलाबी रंग के फूल आते हैं जिनमें से
छोटे-छोटे बीज निकलते हैं।
ब्राह्मी में एल्केलाइड तथा सेवोनिन
नामक दो मुख्य जैव सक्रिय पदार्थ
पाए जाते हैं। इसमें पाए जाने वाले
दो मुख्य एल्केलाइड ब्राह्मीन तथा
हरपेस्टिन है जबकि बेकोसाइड ‘ए’
तथा ‘बी’ मुख्य सेपोनिन है।
गुणों की दृष्टि से ब्राह्मी कुचला में
पाए जाने वाले एल्केलाइड स्ट्रिकनीन
के समान है परंतु यह उसकी तरह
विषाक्त नहीं होती। इसके अतिरिक्त
ब्राह्मी में बोहलिक अम्ल, डी मेनिटाॅल,
स्टिग्मा स्टेनाॅल, बीटा साइटोस्टीराॅल
तथा टेनिन आदि भी पाए जाते हैं।
हरे पत्तों में प्रायः एल्केलाइड तथा
उड़नशील तेल पाए जाते हैं जबकि
सूखे पौधों में सेण्टोइक एसिड तथा
सेण्टेलिंक एसिड भी पाए जाते हैं।
औषधीय गुण: ब्राह्मी के पौधे के
सभी भाग उपयोगी होते हैं। जहां
तक हो सके ब्राह्मी को ताजा ही
प्रयोग करना चाहिए। परंतु जहां यह
उत्पन्न नहीं होती वहां इसका छाया
में सुखाया हुआ पचांग ही प्रयोग
करना चाहिए। सुखा कर रखे पचांग
के चूर्ण को एक वर्ष तक प्रयोग
किया जा सकता है। ब्राह्मी का प्रभाव
मुख्यतः मस्तिष्क पर पड़ता है। यह
मस्तिष्क के लिए एक पौष्टिक टाॅनिक
तो है ही साथ ही यह मस्तिष्क को
शांति भी देता है। लगातार मानसिक
कार्य करने से थकान के कारण जब
व्यक्ति की क्षमता कम हो जाती है तो
ब्राह्मी का आश्चर्यजनक असर होता
है। ब्राह्मी स्नायुकोषों का पोषण कर
उन्हें उत्तेजित कर देती है और हम
पुनः स्फूर्ति का अनुभव करने लगते
हैं। मिर्गी तथा उन्माद में भी यह
बहुत लाभकारी होती है। मिर्गी के
दौरों मंे यह विद्युत स्फुरण के लिए
उत्तरदायी केंद्र को शांत करती है।
इससे स्नायुकोषों की उत्तेजना कम
होती है तथा दौरे धीरे-धीरे कम होने
लगते हैं, लगभग बिल्कुल समाप्त
हो जाते हैं। उन्माद में भी यह इसी
प्रकार काम करती है। उदासी, निराश
भाव तथा अधिक बोलने से होने वाले
स्वर भंग में भी ब्राह्मी बड़ी गुणकारी
औषधि है। यदि कोई बच्चा जन्म से
ही तुतलाता हो तो उसका उपचार
भी ब्राह्मी द्वारा सफलतापूर्वक किया
जा सकता है। अनिद्रा के उपचार के
लिए ब्राह्मी चूर्ण की एक चम्मच गाय
के दूध के साथ रोगी को दिया जाए
तो लाभ होता है। यदि ताजा पत्ते
उपलब्ध हों तो इसके 20-25 पत्तों
को अच्छी तरह साफ करके आधा
किलो गाय के दूध में घोट छानकर
लगभग सात दिनों तक दिया जा
सकता है। इससे वर्षों पुराना अनिद्रा
का रोग दूर हो जाता है। मिर्गी के
दौरों में ब्राह्मी का रस आधा चम्मच
शहद के साथ दिया जाता है।
यदि रस उपलब्ध न हो तो चूर्ण
को शहद के साथ प्रयोग किया जा
सकता है। शुरू में चूर्ण केवल दो
ढाई ग्राम ही देना चाहिए। परंतु लाभ
न हो तो दुगुना तक दिया जा सकता
है। ब्राह्मी के तेल की मालिश से
मस्तिष्क की दुर्बलता तथा खुश्की
दूर होती है तथा बुद्धि बढ़ती है, तेल
बनाने के लिए एक लीटर नारियल
के तेल में लगभग 200 ग्राम ब्राह्मी
का रस उबाल लें। यह तेल सिर
दर्द, चक्कर, भारीपन, चिंता आदि
से भी राहत दिलाता है। हिस्टीरिया
जैसे रोगों में यह तुरंत प्रभावी होता
है जिससे सभी लक्षण तुरंत नष्ट हो
जाते हैं। चिंता तथा तनाव में ठंडाई
के रूप में भी इसका प्रयोग किया
जाता है। इसके अतिरिक्त किसी
ज्वर या अन्य बीमारी के कारण
आई निर्बलता के निवारण के लिए
भी इसका प्रयोग किया जाता है।
कुष्ठ तथा अन्य चर्म रोगों में भी यह
उपयोगी है। बच्चों की खांसी या
छोटी उम्र में क्षय रोग होने पर छाती
पर इसका गर्म लेप करना चाहिए।
खांसी तथा गला बैठने पर इसके रस
का सेवन काली मिर्च तथा शहद के
साथ करना चाहिए। मंद अग्नि, रक्त
विकार तथा सामान्य शोथ में भी यह
लाभकारी है।
औषधीय उपयोग
मुख्य रूप से यह मस्तिष्क की
कार्य क्षमता को बढ़ाती है, मस्तिष्क
की कोशिकाओं की क्षमता में वृद्धि
करती है जिससे धारण शक्ति एवं
स्मरण शक्ति की पुष्टि होती है।
आयुर्वेदानुसार यह मस्तिष्क तर्जक
कफ (सोरिब्रोस्पाइनल फ्लूड) की
पुष्टि करती है जिससे स्मृति दौर्बल्य
दूर होता है।
सुश्रुत संहिता के अनुसार ब्राह्मी
का उपयोग मस्तिष्क विकृति, नाड़ी
दौर्बल्य, अपस्मार, उन्माद व स्मृति
नाश में किया जाता है। यह बुद्धि
बढ़ाने वाला रसायन है।
ब्राह्मी पचांग का सूखा चूर्ण रोगियों
को देने से मानसिक कमजोरी, तनाव,
घबराहट एवं अवसाद की प्रवृत्ति में
लाभ होता है।
-पागलपन तथा मिर्गी के लिए
ब्राह्मी की पत्तियों का स्वरस घी में
उबालकर देने से लाभ होता है।
- हिस्टीरिया में भी ब्राह्मी असरकारक
है।
- सिरदर्द, चक्कर, भारीपन तथा
चिंता में ब्राह्मी तेल का प्रयोग
लाभदायक है।
- ब्राह्मी की मुख्य क्रिया मस्तिष्क
और मज्जा तंतुओं पर होती है।
मस्तिष्क को शांति देने के अतिरिक्त
यह एक पौष्टिक टाॅनिक भी है।
-स्वर भंग तथा तुतलाने वाले बच्चों
के लिए ब्राह्मी रामबाण है।
- मस्तिष्क की थकान और
कार्यक्षमता कम होने पर ब्राह्मी के
घटक स्नायुकोषों का पोषण कर
उत्तेजित करते हैं जिससे ताजगी व
स्फूर्ति आती है।
- मिर्गी के रोगों में ब्राह्मी विशेष
लाभकारी औषधि है। इसके सेवन से
स्नायुकोषों की उत्तेजना कम होती
है। धीरे-धीरे मिर्गी के दौरे कम हो
जाते हैं लगभग समाप्त हो जाते हैं।
औषधीपचार में ब्राह्मी स्वरस, चूर्ण,
सीरप टैबलेट, कैप्सूल, ब्राह्मी तेल
आदि के रूप में प्रयुक्त होती है।
मिर्गी एवं हिस्टीरिया जैसे रोगों में
ब्राह्मी तुरंत प्रभावशाली है।
स्मरण शक्ति बढ़ाने में अत्युत्तम है-
‘ब्राह्मी’।