कुंभ महापर्व

कुंभ महापर्व  

आभा बंसल
व्यूस : 1863 | सितम्बर 2004

इस वर्ष गुरु एवं सूर्य के सिंह राशि में प्रवेश करने पर कार्तिकादि श्रावण मास की अमावस्या, अर्थात 27 अगस्त 2003 से नासिक/त्र्यंबकेश्वर में कुंभ पर्व के मुख्य स्नान का आयोजन किया गया है। वैदिक वाङमय के अनुसार त्र्यंबकेश्वर में शैव एवं नासिक में, जहां भगवान श्री राम ने अपने बनवास का चैदहवां वर्ष व्यतीत किया था, वैष्णव लोग स्नान करते हैं। यह स्वयं में आश्चर्य की बात है कि कुंभ पर्व में, बिना किसी निमंत्रण के, लाखों-करोड़ों लोग एक ही समय पर, एक ही स्थान पर एकत्रित हो जाते हैं।

कुंभ पर्व का पौराणिक तथ्य

महाभारत एवं अन्य ग्रंथों के अनुसार देवासुर में परस्पर युद्ध के समय समुद्र मंथन हुआ। उस समय अमृत कलश प्राप्त हुआ, जिसे कुंभ भी कहा जाता है। इस अमृत कुंभ को ले कर प्रयाग, उज्जैन, नासिक, हरिद्वार आदि 4 स्थानों पर विश्राम के समय गरुड़ जी ने वहां देव यजन किया। इसी बीच अमृत की कुछ बूंदे वहां छलक पड़ीं, जिस कारण इन 4 स्थलों की धरती को शुचि संज्ञक माना जाने लगा एवं वहां कुंभ पर्व मनाया जाने लगा। हिंदू धर्म गं्रथों में कुंभ पर्व का अत्यंत विस्तृत उल्लेख पाया जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार समस्त देव एवं देवीगण कुंभ पर आगमन कर के आनंदित होते हैं। कुंभ पर्व पर श्राद्ध, यज्ञ, दान, तप, मंत्र सिद्धि आदि प्रमुख रूप से सिद्ध होते हैं। कुंभ पर्व के समय, धर्म सिंधु के अनुसार, 8 दान मुख्य माने गये हैं तथा इनकी विशेषताएं अति लाभकारी हैं। ये आठ दान इस प्रकार हैं:

1. तिल 2. लोहा अथवा लोहे से निर्मित वस्तुएं 3. कपास अथवा कपास से निर्मित वस्तुएं 4. सोना, अथवा सोने से बनी वस्तुएं 5. नमक 6. सप्त धान्य 7. पृथ्वी 8. गाय। कुंभ पर्व पर भीष्म जी को तर्पण देना सभी के लिए आवश्यक एवं पुण्यकारी माना गया है।

कुंभ पर्व का ज्योतिषीय दृष्टिकोण

कुंभ मेला लगभग 12 वर्षों बाद पड़ता है। गुरु एवं सूर्य की राशि के अनुसार यह पर्व मनाया जाता है, जिसका उल्लेख स्कंद पुराण में निम्न श्लोक में आता है:

हरिद्वारे कुंभ योगे मेषार्के कुंभ गुरो। प्रयागे मेषस्थेज्ये मकरस्थ दिवाकरे।। उज्जैन्यां च मेषार्के सिंहस्थे च वृहस्पते। सिंहस्थितेज्य सिंहार्के नासिके गौतमी तटे।।

कुंभ और मेष राशि में सूर्य होने पर हरिद्वार में, मेष राशि में गुरु और मकर राशि में सूर्य होने पर प्रयाग तथा सिंह राशि में गुरु और मेष राशि में सूर्य होने पर उज्जैन में कुंभ पर्व होता है। सिंह राशि में गुरु और सिंह राशि में ही सूर्य जब होता है, तब नासिक पंचवटी में सिंहस्थ महाकुंभ पर्व मनाया जाता है।


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स्थान गुरु की राशि सूर्य की राशि पूर्व काल में कुंभ भविष्य में कुंभ
हरिद्वार कुंभ मेष 1986, 1998 2010, 2021
प्रयाग वृषभ मकर 1989, 2001 2012, 2024
नासिक/त्र्यंबकेश्वर सिंह सिंह 1980, 1992 2003, 2015
उज्जैन सिंह मेष 1980, 1992 2004, 2016

इस प्रकार अगस्त 2003 से नासिक/त्र्यंबकेश्वर में कुंभ पर्व मनाया जा रहा है तथा अप्रैल 2004 से यह पर्व उज्जैन में मनाया जाएगा। उज्जैन के साथ हरिद्वार में अर्ध कुंभ भी मनाया जाएगा। वृश्चिक के गुरु में प्रयाग में अर्ध कुंभ मनाया जाता है। अर्ध कुंभ केवल हरिद्वार एवं प्रयाग में मनाया जाता है, उज्जैन एवं नासिक में नहीं। इससे पहले कब और कहां कुंभ का मेला मनाया गया, यह भी उपरोक्त तालिका से देखा जा सकता है। इस प्रकार कुंभ का मेला, एक निश्चित समय के पश्चात न हो कर, लगभग 12 वर्षों के अंतराल में पुनः उसी स्थान पर मनाया जाता है। गुरु एवं सूर्य के राशि संचरण के अनुसार कभी नासिक में पहले एवं कभी उज्जैन में पहले कुंभ पड़ता है।

स्नान एवं पूजन का महत्व

सूर्य, गुरु एवं चंद्र की विविध स्थितियों के अनुसार कुंभ पर्व के आयोजन पर भिन्न-भिन्न चारों स्थलों का शाही स्नान होता है। तदनुसार विभिन्न अखाड़ों के महंतों का स्नान होता है। इसके पश्चात शंकराचार्यों का स्नान होता है। इसके बाद महामंडलेश्वरादि का स्नानादि होता है। कुंभ पर्व पर किये गये धर्म कृत्य कोटि गुणा अधिक फल प्रदान करने वाले होते हैं। अतः इस पर्व पर सभी को धर्म लाभ लेना चाहिए। गंगा, यमुना, सरस्वती, कृष्णा, कावेरी, ब्रह्मपुत्र आदि कई ऐसी पवित्र नदियां हैं, जिनमंे स्नान करते समय सर्वप्रथम पैर का स्पर्श अनुचित माना गया है। इस कारण स्नान करते समय सर्वप्रथम थोड़ा सा जल अपने हाथों में लेकर सिर पर छिड़कना चाहिए। तत्पश्चात सारे अंग को नहलाया जा सकता है। कुंभ पर्व पर तांबे के लोटे से सूर्य को अघ्र्य देना अति लाभकारी है।

अघ्र्य देने से नेत्र दोष, नव ग्रह दोष, पितृ दोष नष्ट होते हैं। अघ्र्य देने के लिए सूर्योदय के कुछ बाद, लोटे में जल ले कर, हृदय के साथ लगा कर, धीरे-धीरे जल को अटूट धार से गिराना चाहिए। नव ग्रह शांति एवं काल सर्प योग शांति, विष कन्या दोष आदि की शांति भी कुंभ पर्व पर उचित मानी गयी हैं। सौभाग्य एवं सुख की प्राप्ति के लिए कुंभ पर्व पर गंगादि के किनारे की मिट्टी से शिव लिंग निर्मित करके पार्थिव पूजा करने से सुख-सौभाग्य की निश्चय ही प्राप्ति होती है। अनेक प्रकार के बुरे कर्मों के प्रायश्चित्तस्वरूप, हृदय तक जल में खड़े हो कर, शुद्ध रुद्राक्ष की माला पर यथाशक्ति 24 संख्यात्मक जप करने से लाभ होता है।

पुत्र प्राप्ति एवं पुत्र सुख के लिए श्रीमदभागवत कथामृत का पान करना तथा विष्णु एवं कृष्ण को तुलसी अथवा बेल पत्र से सहस्रार्चन करना निश्चय ही लाभ देते हैं। भाग्योदय एवं धन लाभ आदि के लिए ब्रह्मा एवं एकादश रुद्र की पूजा-उपासना की जाती है। कमल पुष्प से विष्णु पूजन करने पर कुंभ पर्व पर उपस्थित सभी देवताओं को संतुष्टि मिलती है तथा वे आशीष प्रदान करते हैं। पुण्य नदी के किसी भी तीर्थ में स्नान करने से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं एवं पुण्य की प्राप्ति होती है। कहा गया है कि जो पुण्य कार्तिक माह में हजार बार गंगा स्नान से प्राप्त होता है, माघ माह के सौ स्नान एवं वैशाख में एक लाख नर्मदा स्नान करने पर जो पुण्य प्राप्त होता है, वह पुण्य कुंभ पर्व में एक स्नान से प्राप्त होता है।


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