तंत्र क्या हैं

तंत्र क्या हैं  

डॉ. अरुण बंसल
व्यूस : 1855 | अकतूबर 2004

समस्त वर्ण, अक्षर, मातृका को ‘मंत्र’ एवं इसके संयोग-वियोग तथा साधना की क्रिया को ‘तंत्र’ कहते हैं। संस्कृत शब्दकोष के अनुसार, अति मानव शक्ति प्राप्त करने के लिए, शीघ्र ही फलीभूत होने वाली क्रिया ‘तंत्र’ कहलाती है। तंत्र शास्त्र की उत्पत्ति कब हुई, यह कहना कठिन है। प्राचीन स्मृतियों में 14 विद्याओं का उल्लेख मिलता है, किंतु उसमें तंत्र का उल्लेख नहीं पाया गया है। इस कारण तंत्र शास्त्र को प्राचीन काल में विकसित शास्त्र नहीं माना जा सकता। पहली बार ‘नृसिंहतायनीयोपनिषद’ में तंत्र संबंधी बातों का उल्लेख मिलता है।

तंत्र अनेक संप्रदायों में, भिन्न-भिन्न रूपों में, प्रचलित रहा। वैष्णव, शैव, शाक्त, गाणपत्य, बौद्ध, जैन एवं मुस्लिम तंत्र प्रमुख हैं। 10 शैवागम, 28 रुद्रागम एवं 64 भैरवागम प्रसिद्ध हैं। तंत्र में मंत्र साधना प्रमुख है। मंत्रों के द्वारा साधना प्रक्रिया का पूर्ण रूप से दिव्य प्रतिपादन किया जाता है तथा मानव जाति को सभी प्रकार के भयों से छुटकारा दिलाने के लिए तंत्र का उपयोग किया जाता है। यंत्रों का प्रयोग भी अनेक रूपों में किया जाता है, जैसे बगलामुखी, वशीकरण, महामृत्युंजय, भैरव आदि विभिन्न प्रकार के यंत्र तंत्र सिद्धियों के लिए प्रायः उपयोग में लाये जाते हैं।

तंत्र, मंत्र एवं यंत्र तीनों ही, एक प्रकार से, एक दूसरे के पूरक हैं। तंत्र के द्वारा जो कार्य किया जाता है, वह मंत्र द्वारा, यंत्र का आधार ले कर, किया जाता है। यंत्र को प्रत्यक्ष रूप में सिद्ध कर के दूसरे को दिया जा सकता है, जबकि तंत्र, या मंत्र को प्रत्यक्ष रूप में नहीं दिया जा सकता। तंत्र में अनेक मंत्र विधाएं स्वयंसिद्ध मानी गयी हैं। तंत्र शास्त्र में मंत्रों की कई जातियां पायी जाती हैं। ‘शारदातिलक’ में इसकी परिपूर्ण विवेचना पद्धति प्रस्तुत की गयी है। इसी क्रम में यह भी बताया गया है कि शाबर जैसी कुछ तंत्र सिद्धियां कलि युग में सिद्ध मानी गयी हैं तथा वे सभी के लिए उपयोगी भी हैं।


अपनी कुंडली में राजयोगों की जानकारी पाएं बृहत कुंडली रिपोर्ट में


तंत्र क्रिया पूर्व काल में जादू-टोना, काम-क्रीड़ा, दुआ-ताबीज, औषधि निर्माण आदि से संबंधित थी। वर्तमान परिवेश में संकट, अड़चन, दुखों आदि से मुक्ति और प्रेम तथा धन आदि के लिए तंत्र का अधिक उपयोग किया जा रहा है। तंत्र के आगम शास्त्र में उद्धृत लक्षणों से जो गुरु हों, उनसे विधानपूर्वक दीक्षा ग्रहण करने का प्रस्ताव भी दिया गया है। एक ओर जहां मंत्रों के खंड में नित्य कर्म, नैमित्तिक कर्म एवं काम्य कर्म की विवेचना है, वहीं दूसरी ओर तंत्र में मात्र नैमित्तिक एवं काम्य कर्मों की ही अधिक विवेचना प्रतिपादित है। तंत्र शास्त्र में षट्कर्मों (शांति, वश्य, स्तंभन, विद्वेषण, उच्चाटन, मारण) की व्याख्या एवं प्रयोग की भी अधिक विवेचना दी गयी है।

तंत्र शास्त्र को मुख्यतः शिवप्रणीत माना जाता है, जो 3 भागों में विभक्त है: प्रथम आगम तंत्र, द्वितीय यामल तंत्र एवं तृतीय वाराही तंत्र। इनके अंतर्गत क्रमशः सृष्टि, प्रलय एवं देवोपासना का प्रावधान है। आगम में षट्कर्म एवं 4 प्रकार के ध्यान-योगों का वर्णन पाया जाता है।

यामल तंत्र में सृष्टि तत्व, ज्योतिष, नित्य कृत्य, क्रम सूत्र, वर्ण भेद एवं युग धर्म का वर्णन दिया गया है। इसी के अंतर्गत व्यवहार तथा अध्यात्म नियम भी प्रतिपादित हंै। वाराही तंत्र में सृष्टि, लय, मंत्र निर्णय, तीर्थ, व्यवहार, तथा आध्यात्मिक नियमों का वर्णन है। इसी क्रम में तांत्रिकों को 7 कोटियों में विभक्त किया गया है, जो इस प्रकार हंै - देवाचार, वैष्णवाचार, शैवाचार, दक्षिणाचार, वामाचार, सिद्धांताचार एवं कौलाचार।

धर्म 4 हैं, जिनमें से 1 है शाक्त धर्म। इसी शाक्त धर्म से संबंधित बातों का प्रतिपादन तंत्र शास्त्र में अधिक पाया जाता है। धर्म गं्रथों के अनुसार शिव ने वैदिक क्रियाओं को कीलित कर रखा है। भगवती उमा के आग्रह से शिव ने कलि युग के लिए तंत्र का निर्माण किया।

जब कोई तंत्र साधक किसी अन्य जातक के लिए कोई अभिचारादि कर्म करता है, तो वह तंत्रकत्र्ता के आसपास एक विशेष प्रकार के पर्यावरण को निर्मित करता है। कुछ समय पश्चात् यह पर्यावरण शक्ति, आकाशीय ऊर्जा के माध्यम से, ऊपर की ओर उठती हुई, अपने निश्चित मार्ग में गमन करती हुई, अपने लक्ष्य तक की यात्रा तय करती है।

जब यह पर्यावरण उस जातक के पास पहुंचता है, तो जातक को प्रभावित करने लगता है, जिसे सामान्य लोग टोने, टोटके, एवं चमत्कार के नाम से जानते हैं। तंत्र के अनुसार इस शास्त्र के सिद्धांत बहुत ही गुप्त रखे जाते हैं। यदि वर्तमान स्थिति को देखा जाए, तो हिंदू धर्म की अपेक्षा बौद्ध धर्म में तंत्र साधक कहीं अधिक पाये जाते हैं।

इसके अतिरिक्त इस्लामी मत में भी इस विद्या का अधिक प्रचार-प्रसार देखा जा सकता है। तंत्र विस्तार का पर्यायवाची है। तंत्र एक क्रिया की विद्या है। यह शक्ति नहीं है। तंत्र की क्रियाएं ही मानव की शक्ति में वृद्धि लाने का कार्य करती हैं।

भौतिक एवं आध्यात्मिक दृष्टि से जिन्हें सिद्धियां कहते हैं या मानते हैं, वे साधना में प्रकट होने वाली विभूतियां हैं। जब कोई साधक तंत्र साधना करता है और उसी पर अपना ध्यान केंद्रित करता है, तो कालांतर में यह क्रिया साधक में ध्यानाकर्षण की वृद्धि करती है।

यही आगे चल कर अनेक घटनाओं की सूचनादि प्राप्त करने में साधक की मदद करती है। तंत्र में अभिचार एवं वशीकरण, मारणादि का उपयोग अशुभ माना गया है। यदि स्वार्थवश तंत्र का दुरुपयोग किया जाता है, तो साधक का विनाश होता है। अतः तंत्र संबंधी साधनाएं गुरु के मार्गदर्शन से करने की सलाह दी जाती है। इसका दुरुपयोग करना सदा ही वर्जित कहा गया है।


To Get Your Personalized Solutions, Talk To An Astrologer Now!




Ask a Question?

Some problems are too personal to share via a written consultation! No matter what kind of predicament it is that you face, the Talk to an Astrologer service at Future Point aims to get you out of all your misery at once.

SHARE YOUR PROBLEM, GET SOLUTIONS

  • Health

  • Family

  • Marriage

  • Career

  • Finance

  • Business


.