लाल किताब और शनि-दोष निवारण

लाल किताब और शनि-दोष निवारण  

वागाराम परिहार
व्यूस : 16048 | अप्रैल 2011

सूर्य पुत्र शनि का भय हर किसी को त्रस्त करता है। शनि की साढ़ेसाती एवं ढैया लोगों को मानसिक उद्वेग देती है। भारतीय ज्योतिष में पापी ग्रहों एवं नीच ग्रहों के दुष्प्रभाव को दूर करने के लिए उपायों का वर्णन है। लाल किताब के अनुसार ग्रह शुभ हो या अशुभ दोनों का उपाय कर शुभ फल प्राप्त किया जा सकता है। इस लेख में लाल किताब में वर्णित शनि ग्रह के दोषों को दूर करने वाले उपायों का वर्णन है -

सूर्यपुत्र शनि पश्चिम दिशा का स्वामी है। यह सर्वाधिक शुभाशुभ फलदायी ग्रह है। यह विषम परिस्थितियों में भी जातक में कार्य करने की क्षमता उत्पन्न कर उसे सफल बनाता है। यह सूर्य, चंद्र तथा मंगल का शत्रु है। अभक्ष्य भक्षण करने वालों को यह विशेष रूप से प्रभावित करता है। लाल किताब के अनुसार दसवां व ग्यारहवां भाव शनि के भाव हैं। यहां उसकी विभिन्न भावों में स्थिति के अनुसार कुछ प्रभावों का विवरण प्रस्तुत है। उसके अन्य ग्रहों के साथ होने पर प्रभाव में परिवर्तन हो सकता है।

  • लाल किताब के अनुसार प्रथम भाव पर मेष राशि का आधिपत्य है। इस राशि में शनि नीच का होता है। उŸाम योगों के होने पर इस भाव का शनि जातक को मालामाल कर देता है। लेकिन अशुभ योग होने पर बरबाद करने में कोई कसर नहीं छोड़ता। शुक्र और बृहस्पति या मंगल और बृहस्पति की युति नकली शनि का निर्माण करती है। सातवें भाव में राहु व केतु होने पर शनि तीन गुना अशुभ हो जाता है। 10वंे या 11वें भाव में सूर्य हो तो मंगल व शुक्र भी अशुभ फल देते हैं। जातक के शरीर पर बाल अधिक हों और शनि प्रथम भावस्थ हो तो उसे कंगाल बना देता है। जातक के जन्म के समय यदि बाजे बजाए जाएं तो उसकी जवानी में प्रवेश करने से पहले उसके पिता की संपŸिा खाक कर देता है। घर का दरवाजा पश्चिम में हो तो अशुभ फल में वृद्धि होती है क्योंकि पश्चिम दिशा का स्वामी शनि है। इससे मुक्ति हेतु किसी सुनसान स्थान पर

    जमीन के नीचे सुरमा दबाना चाहिए और मद्यपान नहीं करनी चाहिए। साथ ही भोजन बनाने में प्रयुक्त लोहे की चीजों का दान करना चाहिए।

  • शनि द्वितीय भाव मंे हो तो अष्टम भावस्थ ग्रहों का उस पर पूर्ण प्रभाव पड़ता है। अतः उसके इस स्थिति से शुभाशुभ का विचार करना चाहिए। यदि शनि शुभ हो तो जातक उन्नतिशील और वाणी की परख करने वाला होता है। शुक्र सातवें हो तो उसकी आयु लंबी होती है। अष्टम में शुभ चंद्र हो तो जातक दीर्घायु व सुखी, शुभ मंगल हो तो धनी, बुध हो तो बुद्धिमान, बृहस्पति हो तो बुद्धिमान और किसी विषय की गहराई तक जाने वाला और केतु हो तो हमेशा बचपन में जीने वाला एवं तर्कपूर्ण बुद्धि वाला होता है। यदि शरीर पर एक रोमकूप से तीन-तीन बाल निकले हों तो जातक पूजा पाठ में श्रद्धा व आस्था रखने वाला, आस्तिक, संयमित जीवन जीने वाला दूसरों का भला चाहने वाला होता है। वह किसी को कष्ट नहीं पहुंचाता है और समर्पित भाव से गुरु की सेवा में लगा रहता है। बुध के बारहवें भाव में होने पर जातक के 35 वर्षों के भीतर लड़की संतान की प्राप्ति होती है जिसके भाग्य से चहुमुखी प्रगति होती है। लेकिन उसके ससुराल जाने के बाद जातक की उन्नति कम ससुराल वालों की ज्यादा होती है। यदि द्वितीय भाव में शनि अशुभ प्रभाव में हो तो जातक निर्धन होता है और जिस दिन उसकी सगाई होती है उस दिन से ससुराल वालों की आर्थिक प्रगति भी रुक जाती है। यदि राहु आठवें में हो तो जातक के साले कम और अगर बारहवें में हो तो उसके पास धन अधिक नहीं होता। सूर्य बारहवें में हो तो जातक जुआ खेलने का शौकीन होता है।

    ऊपर वर्णित दुष्प्रभावों से मुक्ति के लिए शिव अभिषेक करना चाहिए और सिर में तेल नहीं लगाना चाहिए। इसके अतिरिक्त सर्पों की सेवा करनी चाहिए, मांस और मदिरा का सेवन नहीं करना चाहिए और परस्त्री में आसक्ति नहीं रखनी चाहिए।

  • तृतीय भावस्थ शनि यदि अशुभ हो तो जातक दृष्टिदोष से ग्रस्त होता है और उसके रोमकूपों में चार बाल होते हैं। उसे धन की कमी होती है। दसवें में केतु हो तो संतान सुख में कमी होती है और चंद्र हो तो वह डकैत लेकिन निर्धन होता है। ऐसे जातक को तीन कुŸो पालने चाहिए, धन में वृद्धि होगी। अन्यथा केतु मंदा हो जाएगा जिससे चारों तरफ से निराशा ही मिलेगी। उक्त उपाय से जातक की कमाई ठीक होगी लेकिन मद्य मांस के सेवन से लाले पड़ सकते हैं। उसे भवन में पत्थर नही गाड़ना चाहिए, न ही मुख्य द्वार दक्षिण पूर्व में रखना चाहिए। साथ ही मकान में एक अंधेरी कोठरी रखनी चाहिए। सूर्य भाव 1, 2 या 5 में हो तो जातक को पुत्र की प्राप्ति होती है। यदि चंद्र और मंगल साथ हों तो चोरी व डकैती की संभावना रहती है।
  • शनि चतुर्थ भाव में शुभ स्थिति में हो और चंद्र दूसरे या तीसरे भाव में हो तो जातक का जीवन सुखमय होता है। उसके माता-पिता भी सुखी होते हैं। शुभ स्थिति में होने पर वह स्वयं या उसके परिवार का अथवा उसके चाचा के परिवार का कोई सदस्य चिकित्सक होता है। जिस ग्रह के साथ युति होगी उसी से संबंधित चिकित्सा का कार्य करेगा। वह विष वैद्य भी हो सकता है। उसे सांप को न तो मारना चाहिए न ही मरवाना चाहिए। उसे तेल नहीं बेचना चाहिए। अन्यथा संतान और संपत्ति सुख में कमी हो सकती है। गृह निर्माण आरंभ करने के समय सांप लड़े तो जातक की माता का जीवन कष्टमय होता है और यदि नींव रात में रखे तो उसका जीवन अंधकारमय हो जाता है। अतः गृहारंभ किसी शुभ दिन में करना चाहिए। जातक आशिक मिजाज हो तो शनि आग बन जाएगा व शुक्र को भड़काकर अशुभ फल देने लगेगा। चंद्र की चीजों से परहेज करने से शनि का शुभ फल प्राप्त होता है। यदि बृहस्पति तीसरे भाव में हो तो जातक का स्वभाव रावण जैसा होता है। ऐसे जातक के सीने पर बाल हों तभी उसका विश्वास करना चाहिए अन्यथा धोखा खाना पड़ेगा।
  • पांचवें भाव में शनि हो और एकादश में कोई ग्रह न हो तो जातक साधु संत या पूज्य होता है, शुभ होने पर वह धार्मिक होता है। यदि राहु शुभ हो तो वह मकान बनाएगा और केतु शुभ हो तो उसकी प्रवृत्ति अनुसंधानात्मक होगी और वह सुखी रहेगा। विशेष सुख हेतु बृहस्पति व मंगल की वस्तुएं भूमि में दबानी चाहिए। बच्चे के नाम से मकान बनवाना शुभ होता है। ऐसा करने से जातक किस्मत अच्छी होती है और उसे हर तरह का लाभ प्राप्त होता है। उसे संतान सुख की प्राप्ति होती है, उसका स्वास्थ्य अच्छा रहता है और वह शतायु होता है। केतु शुभ हो तो जातक को संतान सुख अवश्य मिलता है। वह कलम का धनी होता है पर उसके पास नहीं होता। वह मुकदमेबाज है और उसकी जो भी संपत्ति होती है वह मुकदमेबाजी में नष्ट हो जाती है। शनि के अशुभ काल में जातक को स्वयं या संतान को शारीरिक कष्ट होता है। यदि शुक्र 7 वंे या 12 वंे भाव में हो और सूर्य तथा चंद्र त्रिकोण में न हों तो जातक संतान सुख से वंचित रहता है। उसे जीवनपर्यंत दूसरों की गुलामी करनी पड़ती है।
  • छठे भाव में अशुभ शनि स्थित हो तो लोहे का सामान घर में लाना अशुभ होता है। यदि शनि वर्षकुंडली में भी किसी अशुभ भाव में हो तो महान कष्टदायी होता है। चंद्र व शुक्र द्वितीय में हों तो विद्या व धन में कमी होती है। जातक की स्त्री व माता को कष्ट होता है और परिवार में कभी न कभी कोई अनहोनी होती है। बारहवें भाव में स्थित शुक्र शुभ हो और शनि भी शुभ हो तो स्त्री व धन सुख की प्राप्ति होती है। राहु यदि तीसरे या छठे भाव में हो तो जातक की 42 वर्ष की आयु तक अर्थात राहु काल तक शनि का प्रभाव अशुभ रहता है।

    इस स्थिति में यदि दोनोें शुभ हों तो द्वितीयस्थ ग्रहों को भी शुभफल हेतु प्रेरित करेंगे। ऐसे जातकों को 28 वर्ष से पहले शादी नहीं करनी चाहिए अन्यथा चंद्र, बुध व शुक्र भी अशुभ हो जाएंगे। लोहे की वस्तुएं पुत्र हेतु न खरीदें। शनि अपने विष प्रभाव से नुकसान पहुंचाता है।

  • सप्तम भाव में शनि हो तो जातक स्त्रियों का शौकीन, आशिक मिजाज, अपने उसूल कायम रखने वाला और दूसरों को धमकी देने वाला होता है। जातक यदि परोपकारी हो तो शनि का शुभ प्रभाव बढ़ता जाएगा और उसका जीवन सुखमय होगा। लेकिन यदि वह चालाक, धूर्त, मक्कार व बेईमान हो तो उसका सब कुछ स्वाहा भी हो सकता है। शनि शुभ हो तो जातक को बने बनाए मकान की प्राप्ति होती है। वह एकांतप्रिय होता है। यदि वह जन्म के समय धनी हो तो 36 वें वर्ष में कुछ आर्थिक संकटों का सामना करना पड़ता है किंतु आगे चलकर सभी सुखों की प्राप्ति होती है। यदि मंगल शुभ हो तो आय अच्छी और बुध शुभ हो तो उच्च पद प्रतिष्ठा की प्राप्ति होती है। किंतु सूर्य चतुर्थ हो तो गुप्त बीमारी होती है। बुध व चंद्र मंगल साथ हों या 10 वंे स्थान में हों तो धन की हानि होती है। इस अशुभ प्रभाव से मुक्ति के लिए बांसुरी में खांड़ भरकर किसी वीरान जगह में दबाना चाहिए। काली गाय, काले कुत्ते व कौए को नित्य रोटी देना और शहद से भरा मिट्टी का बर्तन जंगल में एकांत में दबाना चाहिए।
  • आठवें भाव में स्थित शनि यदि किसी अशुभ प्रभाव में न हो तो शुभ फलदायक होता है क्योंकि यह अष्टम का कारक है। जिस जातक की कुंडली में शनि इस स्थिति में होता है वह दीर्घायु होता है। उसे पैतृक सम्पत्ति की प्राप्ति होती है और वह सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय स्वभाव का होता है। ऐसे जातक के शरीर पर बाल कम होते हैं। किंतु यदि बाल अधिक हों तो समझना चाहिए कि शनि अशुभ है। ऐसे में वह दुर्घटना और राजकोप का शिकार तथा पिता की सम्पत्ति से वंचित हो सकता है। राहु नीच का हो तो भाई को भी शत्रु बना देता है। राहु मिथुन, वृष या कर्क में हो तो भाई से अच्छी निभती है। अशुभ, पापी व शत्रु ग्रहों के प्रभाव से बुढ़ापा कष्टमय होता है, सुख की कमी और दुःख में वृद्धि होती है। इस अशुभ प्रभाव से ग्रस्त लोगों को चांदी का चैकोर टुकड़ा पास में रखना और चैकी पर बैठकर स्नान करना चाहिए। इसके अतिरिक्त शराब व मांस मछली का सेवन नहीं करना चाहिए।
  • नवम भाव में शनि यदि शुभ हो तो जातक धनवान होता है और उसे मकान का सुख अवश्य मिलता है। उसे मकान के दक्षिण भाग में हमेशा अंधेरा रखना चाहिए। यदि पांव पर बाल हों तो शनि मंदा होता है जिससे जातक का भाग्योदय विलंब से होता है। जातक छत पर लकड़ी इकट्ठी करता रहता है। यदि केतु तीसरे में हो व शुभ हो तो जातक के भाई और पंचम में हो तो पुत्र अधिक होते हैं। बुध 7वें में हो तो ससुराल धनी होता है। शत्रु ग्रह तीसरे में हो तो घर के दक्षिणी भाग में रोशनी नहीं करना चाहिए अन्यथा तीन वर्षों के अंदर लक्ष्मी रूठ जाएगी। पापी ग्रहों का प्रभाव ज्यादा हो तो दुःख बढ़ जाता है। ऐसे में निर्धन को कभी मेहमान नहीं बनाना चाहिए। छत पर से लकड़ी उतार देनी चाहिए। नवम में बृहस्पति की राशि पड़ती है अतः बृहस्पति का उपाय लाभ देगा। यदि जातक स्वयं मुखिया हो तो घर में पत्थर लगाए, इससे कष्ट दूर हांगे। जातक की उम्र 60 वर्ष की होगी और वह अपने जीवन काल में तीन मकान अवश्य बनाएगा। शनि का शुभ प्रभाव तीव्र भाग्योदय कारक होता है।
  • दसवां भाव शनि का भाव है। इस भाव में यदि शनि शुभ हो तो जातक की व्यवसाय व उसके कर्म में प्रगति होती है। उसे सत्ता पक्ष से सम्मान और 40-47 वर्ष तक पिता की विशेष छत्रछाया की प्राप्ति होती है। उसकी आयु 90 वर्ष की होती है। उसे मद्यपान व मांस भक्षण से परहेज करना चाहिए अन्यथा शनि मंदा होकर अशुभ फल देना शुरू कर देगा। मंदा शनि खून को दूषित करेगा और दाढ़ी मंूछ नहीं आने देगा। ऐसा शनि शत्रु ग्रहों के साथ हो तो और मंदा हो जाएगा। शनि के इस प्रभाव से ग्रस्त जातक का उसकी 27 वर्ष की आयु तक धन योग कमजोर रहता है। इस स्थिति में बुध और शुक्र लग्न में हो तो शुक्र अधिक शुभफल देता है। लेकिन शत्रु ग्रह होने पर स्त्री को कष्ट व मकान में खर्चा ज्यादा होता है। अशुभ प्रभाव दूर करने हेतु गणेश की उपासना करनी चाहिए।
  • एकादश भाव में शनि राहु व केतु के प्रभाव में हो तो जातक रिश्वत व भ्रष्टाचार के माध्यम से धन अर्जित करता है। उसे पिता की सम्पत्ति भी मिलती है। लेकिन मंदे राहु के प्रभाव से सम्पत्ति नष्ट हो जाती है। परिवार में लड़कियां ज्यादा हों तो खर्च अत्यधिक होता है जिससे वह परेशान रहता है। शनि मंदा हो तो जातक की शिक्षा पूरी नहीं होती। वह क्रोधी होता है और उसकी आयु कम होती है। राहु व केतु शुभ हों तो वह ईमानदार होता है और ईमानदारी से धन कमाता है। किंतु ऐसे जातक को 42 वर्ष की आयु के पश्चात् मकान बनवाना चाहिए अन्यथा उसे लंबी बीमारी हो सकती है और इलाज में मकान बेचना पड़ सकता है। उसे 43 दिन तक प्रातः काल सूर्य को तेल का अघ्र्य देना चाहिए। साथ ही उसे ईमानदारी तथा संयम से रहना चाहिए।
  • द्वादश भाव में शनि हो और राहु, बुध व केतु भी शुभ हों तो जातक जीवन भर सुखी रहता है। माथे से बालों का झड़ना शुभ होता है। शनि शेषनाग बनकर रक्षा करता है और सांप नहीं काटता। किसी ने कहा भी है-

मदद सांप जहरी जो तेरी करेगा।
जमाने में शत्रु न बाकी रहेगा।।

अर्थात् शत्रु उसके सामने नहीं टिक पाते। राहु, केतु और बुध भी कर्म में सहयोग देने लगते हैं जिससे कार्य व्यापार व नौकरी में प्रगति होती है। वह सांपों से खेलने वाला होता है, सांप उसकी हर प्रकार से मदद करने को तत्पर रहते हैं। लेकिन यदि वह आशिकी में पड़ जाए और उसे नेत्र राग हो जाए तो यह शनि के मंदा होने का संकेत है। इसके उपाय हेतु कपड़े में बादाम बांधकर संदूक में रखना चाहिए। सूर्य यदि छठे भाव में अशुभ हो तो सूर्य व शनि दोनों मिलकर जातक का गृहस्थ जीवन कष्टमय कर देते हैं। वह राज्य सम्मान से वंचित हो जाता है। ऐसी स्थिति में उसे मद्यपान और मांस का सेवन नहीं करना चाहिए। परस्त्री के प्रति आसक्त नहीं होना चाहिए और संयम व ईमानदारी से जीवन यापन करना चाहिए।

स्पष्ट है कि लाल किताब के सिद्धांतों और उसमें वर्णित उपायों का अनुसरण करने से जीवन सुखमय हो सकता है। यहां उल्लेख आवश्यक है कि कोई भी उपाय किसी योग्य ज्योतिषी से सलाह लेकर ही करना चाहिए।



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