हस्तरेखा और आयुर्विज्ञान

हस्तरेखा और आयुर्विज्ञान  

डॉ. अरुण बंसल
व्यूस : 9540 | जुलाई 2009

हमारे मस्तिष्क का बायां भाग हमारे दाएं हाथ को नियंत्रित करता है एवं दायां भाग बाएं हाथ को। चिकित्सा विज्ञान बताता है कि हमारा बायां भाग हमारी बोलचाल, लिखाई, वैज्ञानिक गणना और विद्वता को नियंत्रित करता है जबकि दायां भाग हमारे संगीत और कला को संरक्षित करता है और यही कारण है कि पुरुष को विज्ञान का प्रतीक मानते हुए बाएं मस्तिष्क को नियंत्रित करने के लिए दाएं हाथ में रत्न पहनाए जाते हैं एवं स्त्री को कला का प्रतीक मानते हुए दाएं मस्तिष्क को नियंत्रित करने हेतु ाएं हाथ में रत्न पहनाए जाते हैं।

ज्योतिष शास्त्र में जन्म कुंडली शिशु के प्रथम रुदन स्वर (प्रथम श्वास) के समय की बनाई जाती है। इसी प्रकार प्रश्न विज्ञान में जिस समय प्रश्नकर्ता के मस्तिष्क में प्रश्न उभरता है, उस समय की कुंडली बनाई जाती है। शकुन या स्वर विज्ञान में किसी भी कार्य को प्रारंभ करने से पहले शकुन या स्वर देखा जाता है। लेकिन हस्तरेखा शास्त्र में हस्तरेखाएं शिशु के जन्म लेने से पहले ही विद्यमान रहती हैं। इसका अर्थ है कि विधाता ने व्यक्ति का भाग्य जन्म लेने से पूर्व ही लिख दिया होता है। तो यह कब लिखा जाता है?

चिकित्सा विज्ञान का मानना है कि हथेली पर मुख्य रेखाएं ढाई से तीन महीने के गर्भ में ही बन जाती हैं, और सूक्ष्म रेखाएं, जिन्हें फिंगर प्रिंट्स (माइक्रो लाइंस) कहते हैं, गर्भ में छः महीने के होते-होते पूर्ण रूप से विकसित हो जाती हैं। आयुर्विज्ञान का मानना है कि हस्तरेखाओं का विस्तृत ज्ञान 21वें क्रोमोजोम में छिपा होता है अर्थात् हमारी हस्तरेखाएं पूर्णतया आनुवंशिक आधार पर विकसित होती हैं। इस कारण व्यक्ति का भाग्य तो उसी दिन लिख दिया जाता है, जिस दिन शुक्राणु की अंडाणुओं से युति होती है। शेष समय तो केवल उसके पूर्ण रूप से विकसित होकर स्थूल रूप में दिखाई देने में लगता है। इसी ज्ञान के आधार पर हमारे ऋषि मुनियों ने स्वस्थ एवं बुद्धिमान शिशु के प्रजनन हेतु गर्भाधान मुहूर्त की संरचना की है। इस मुहूर्त में गर्भधारण से स्वस्थ शुक्राणु ही स्वस्थ अंडाणुओं के साथ युति कर स्वस्थ शिशु की उत्पŸिा करते हैं।


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आयुर्विज्ञान में शोध के अनुसार 21वें क्रोमोजोम में अनियमितता के कारण बच्चों में मानसिक अनियमितताएं पैदा हो जाती हैं और उनकी हस्तरेखाओं में मस्तिष्क रेखा एवं हृदय रेखा दोनों आपस में मिलकर एक रेखा बनाती हुई पाई जाती हैं। आयुर्विज्ञान का ऐसा भी मानना है कि हृदय रेखा और मस्तिष्क रेखा आपस में तब जुड़ती हैं जब गर्भावस्था के प्रारंभ काल में माता को किसी भी प्रकार की मानसिक परेशानी या तनाव हो। यह सिद्ध करता है कि गर्भावस्था हस्तरेखाओं में बदलाव ला सकती है। यह सत्य भी है क्योंकि आनुवंशिक तथ्य तो हस्तरेखाओं का सृजन करते ही हैं, गर्भावस्था का लालन पालन भी जातक के स्वास्थ्य एवं भविष्य को बदल सकता है।

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हस्तरेखा ज्ञान में हस्त पर जो क्षेत्र मस्तिष्क के जिस भाग को क्रियान्वित करता है उसके अनुसार हाथ के विभिन्न क्षेत्रों को विभिन्न ग्रहों से जोड़ दिया गया है। जैसे कि तर्जनी के नीचे के क्षेत्र को गुरु पर्वत कहा गया है क्योंकि इसका सीधा संबंध मस्तिष्क के ज्ञान बिंदु से है। मध्यमा के नीचे के क्षेत्र को शनि क्षेत्र कहा गया है क्योंकि यह मस्तिष्क के कर्म बिंदु से जुड़ा है। कनिष्ठिका का मस्तिष्क की वैज्ञानिक गणना के क्षेत्र से संबंध है, अतः इसके नीचे का क्षेत्र बुध पर्वत माना जाता है।

अनामिका में दो शिराओं का समावेश है जबकि बाकी सभी उंगलियों में एक शिरा ही संचालन करती है। मस्तिष्क के अधिकांश भाग पर इसका नियंत्रण है। इस तरह सभी उंगलियों में इसका महत्व सर्वाधिक है और यही कारण है कि इसे सूर्य की उंगली की उपाधि दी गई है। कदाचित इसीलिए अधिकांश रत्नों को इसी उंगली में धारण करने का विधान किया गया है और अंग्रेजी में रिंग फिंगर की उपाधि दी गई है। जप माला का फेरना, तिलक, पूजन आदि भी इसके महत्व के कारण इस उंगली से किए जाते हैं।

विभिन्न रेखाओं को भी हस्तरेखा शास्त्र में उनके फल के आधार पर विभिन्न मान्यताएं दी गई हैं। हृदय रेखा मनुष्य की मानसिकता को एवं मस्तिष्क रेखा व्यक्ति में सोचने समझने व निर्णय करने की क्षमता को दर्शाती है। जीवन रेखा व्यक्ति के स्वास्थ्य को एवं भाग्य रेखा मनुष्य के कर्म और विचारों के सामंजस्य से उत्पन्न भाग्य को दर्शाती है।


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