कालसर्प योग

कालसर्प योग  

डॉ. अरुण बंसल
व्यूस : 6039 | मई 2011

अग्रे राहुरधः केतुः सर्वे मध्यगताः ग्रहाः। योगोऽयं कालसर्पाख्यो शीघ्रं तं तु विनाशय।। आगे राहु हो एवं नीचे केतु, मध्य में सभी (सातों) ग्रह विद्यमान हांे तो कालसर्प योग बनता है।

काल सर्प योग का प्रभाव


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काल सर्प योग में उत्पन्न जातक को मानसिक अशांति, धनप्राप्ति में बाधा, संतान अवरोध एवं गृहस्थी में प्रतिपल कलह के रूप में प्रकट होता है। प्रायः जातक को बुरे स्वप्न आते हैं। कुछ न कुछ अशुभ होने की आशंका मन में बनी रहती है। जातक को अपनी क्षमता एवं कार्यकुशलता का पूर्ण फल प्राप्त नहीं होता है, कार्य अक्सर देर से सफल होते हैं। अचानक नुकसान एवं प्रतिष्ठा की क्षति इस योग के लक्षण हैं।

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जातक के शरीर में वात, पित्त, कफ तथा त्रिदोषजन्य असाध्य रोग अकारण उत्पन्न होते हैं। ऐसे रोग जो प्रतिदिन क्लेश (पीड़ा) देते हैं तथा औषधि लेने पर भी ठीक नहीं होते हों, काल सर्प योग के कारण होते हैं। जन्मपत्रिका के अनुसार जब-जब राहु एवं केतु की महादशा, अंतर्दशा आदि आती है तब यह योग असर दिखाता है। गोचर में राहु व केतु का जन्मकालिक राहु-केतु व चंद्र पर भ्रमण भी इस योग को सक्रिय कर देता है।


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कालसर्प योग के भेद

काल सर्प योग उदित, अनुदित भेद से दो प्रकार के होते हैं। राहु के मुख में सभी सातों ग्रह ग्रसित हो जाएं तो उदित गोलार्द्ध नामक योग बनता है एवं राहु की पृष्ठ में यदि सभी ग्रह हों तो अनुदित गोलार्द्ध नामक योग बनता है। यदि लग्न कुंडली में सभी सातों ग्रह राहु से केतु के मध्य में हो लेकिन अंशानुसार कुछ ग्रह राहु केतु की धुरी से बाहर हों तो आंशिक काल सर्प योग कहलाता है।

यदि कोई एक ग्रह राहु-केतु की धुरी से बाहर हो तो भी आंशिक काल सर्प योग बनता है। यदि केवल चंद्रमा अपनी तीव्रगति के कारण राहु केतु की धुरी से बाहर भी हो जाता है, तो भी काल सर्प दोष बना रहता है। अतः मुख्यतः छः ग्रह शनि, गुरु, मंगल व सूर्य, बुध, शुक्र राहु के एक ओर हैं तो काल सर्प दोष बनता है।

यदि राहु से केतु तक सभी भावों में कोई न कोई ग्रह स्थित हो तो यह योग पूर्ण रूप से फलित होता है। यदि राहु-केतु के साथ सूर्य या चंद्र हो तो यह योग अधिक प्रभावशाली होता है। यदि राहु, सूर्य व चंद्र तीनों एक साथ हों तो ग्रहण काल सर्प योग बनता है। इसका फल हजार गुना अधिक हो जाता है। ऐसे जातक को काल सर्प योग की शांति करवाना अति आवश्यक होता है।

बुध व शुक्र सूर्य के साथ ही विद्यमान रहते हैं। एवं सूर्य को राहु-केतु के एक ओर से दूसरी ओर आने में 6 माह तक लगते हैं। अतः काल सर्प योग अधिकतम 6 माह या उससे कम ही रहता है।

जब जब कालसर्प योग की स्थिति बनती है, पृथ्वी पर ग्रहों का गुरुत्वाकर्षण एक ओर बढ़ जाता है। जिसके कारण पृथ्वी पर अधिक हलचल रहती है व अधिक भूकंप व सुनामी आदि आते हैं। भूकंप की तीव्रता बढ़ जाती है। ऐसा पाया गया है कि अस्पताल में गर्भपात के केस अधिक होते हैं या अधिक मात्रा में आपरेशन होते हैं, खून का स्राव अधिक होता है एवं मानसिक रोग अधिक होते हैं। अतः कालसर्प दोष का प्रभाव विशेष देखने में आता है।


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काल सर्प योग के प्रकार

द्वादश भावों में राहु की स्थिति के अनुसार काल सर्प योग मुख्यतः द्वादश प्रकार के होते हैं। राहु जिस भाव में होकर कालसर्प दोष बनाता है उसी भाव के फल प्राप्त होते हैं। जैसे:

अनंत: स्वास्थ्य में परेशानी रहती है। षडयंत्र एवं सरकारी परेशानियों को झेलना पड़ता है। अनंत दुखों का सामना करना पड़ता है। बात-बात पर झूठ बोलना पड़ता है। पत्नी से झगड़ा रहता है।

कुलिक: आंखों मंे परेशानी रहती है, पेट खराब रहता है। लोग बोलने को गलत समझ लेते हैं और उसकी सफाई देनी पड़ती है। धन की कमी महसूस होती है। कुल में क्लेश झेलने पड़ते हैं।

वासुकि: कानों के कष्टों से पीड़ित रहते हैं। भाई बहनों से मेल मिलाप में कमी रहती है। कभी-कभी ऊर्जा का अभाव महसूस होता है। कैंसर आदि रोग से भी ग्रसित होने का भय होता है।

शंखपाल: माता-पिता का स्वास्थ्य खराब रहता है। घर में कलह बनी रहती है। घर में व वाहन में कुछ न कुछ मरम्मत की आवश्यकता पड़ती रहती है। काम में मन नहीं लगता है। व्यवसाय में नुकसान झेलना पड़ता है।

पद्म: संतान कहना नहीं मानती या संतान से कष्ट होता है। सोच-विचार कर किए गए कार्य भी हानि देते हैं। या आखिर में छोटी गलती के कारण नुकसान झेलना पड़ता है।

महापद्म: स्वास्थ्य परेशान करता है। मामा की ओर से नुकसान होता है। खर्चे अधिक हो जाते हैं। अचानक अस्पताल आदि पर खर्च हो जाता हैं। जो वित्तीय प्रवाह को बिगाड़ देता है। अक्सर दुश्मन हावी हो जाते हैं या समय व पैसा बर्बाद करवा देते हैं।

तक्षक: पत्नी साथ नहीं देती। पारिवारिक व गृहस्थ जीवन उजड़ा सा रहता है। अपना स्वास्थ्य भी कभी-कभी अचानक खराब हो जाता है। धन हानि होती है।

कर्कोटक: स्वास्थ्य का विशेष ध्यान रखना पड़ता है। पेट की बीमारी व अपचन बनी रहती है। लोग थोड़ा बोलने पर भी प्रतिक्रिया करते हैं। धन संचय में परेशानी होती है। परिवार में कलह होती है।

शंखचूड़: बड़े लोगों से मिलने में धन व समय नष्ट होता है। सिर दर्द या चक्कर आने का रोग हो जाता है। भाग्य साथ नहीं देता। हर काम में दुगनी मेहनत करनी पड़ती है।

घातक: पिता से विचार नहीं मिलते हैं। अचानक हानि हो जाती है। परिवार में कलह रहती है। एक काम अच्छी तरह से सेट नहीें होता। माता-पिता का स्वास्थ्य ध्यान आकर्षित करता रहता है।

विषधर: लाभ अचानक हानि में बदल जाता है। बड़े भाई बहनों का सहयोग नहीं प्राप्त होता। मित्र मंडली समय खराब कर देती है। एक से अधिक संबंध पारिवारिक कलह का कारण बनते हैं।

शेष नाग: रोग व अस्पताल पर विशेष व्यय होता है। कैंसर जैसे रोग तंग करते हैं। अपव्यय होता है। निरर्थक यात्रा होती है। समय-समय पर पैसे की दिक्कत महसूस होती है।


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कुछ मुख्य उपाय

1. प्रति 3-5 वर्ष में एक बार किसी सिद्धस्थल जैसे द्वादश ज्योतिर्लिंग, संगम, हरिद्वार या बनारस में जाकर कालसर्प दोष की शांति करवाए एवं वर्ष में एक-दो बार घर में या मंदिर में काल सर्प शांति करवाएं।

2. नाग पंचमी पर रुद्राभिषेक करवाएं व नाग नागिन के एक या नौ जोड़े विसर्जित करें।

3. कालसर्प अंगूठी, लाकेट या यंत्र धारण करें।

4. भगवान विष्णु, शिव, राहु व केतु का पाठ व मंत्र जाप करें।

5. कालसर्प योग यंत्र के सम्मुख 43 दिन तक सरसों के तेल का दीया जलाकर निम्न मंत्र का जप करें। ऊँ क्रौं नमोऽस्तु सर्पेभ्यो कालसर्प शांति कुरु कुरु स्वाहा।

6. ग्रहण के दिन तुला दान करें व नीले कंबल दान करें।

7. ‘‘ऊँ नमः शिवाय’’ मंत्र का जप प्रतिदिन रुद्राक्ष माला पर करें व माला को धारण करें। 8. गरुड़ भगवान की पूजा करें।

9. 7 बुधवार एकाक्षी नारियल अपने ऊपर से उतारकर प्रवाहित करें।

10. 8, 9, व 13 मुखी रुद्राक्ष का कवच धारण करें।

विषेष: कुछ विद्वानों का मत है कि कालसर्प दोष का उल्लेख किसी पुस्तक में नहीं मिलता है। लेकिन इसका प्रभाव अवश्य महसूस किया जा सकता है। अतः कहीं उल्लेख है या नहीं, यह योग प्रभावशाली अवश्य है। अतः इसके उपाय भी अवश्य करा कर जीवन को सुखद बना लेना चाहिए।


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