ग्रह, दशा और विवाह

ग्रह, दशा और विवाह  

संजय बुद्धिराजा
व्यूस : 5721 | नवेम्बर 2016

विवाह मानव जीवन का अत्यन्त आवश्यक पहलू है। लेकिन किसी भी व्यक्ति का विवाह कब होगा अर्थांत किस दशा-अंर्तदशा में होगा? यह बताने के लिये विभिन्न ज्योतिष विशेषज्ञों की राय विभिन्न रही है। जन्म कुंडली में विवाह कारक ग्रहों का किन-किन भावों से संबंध है, इस बारे में भी ज्योतिषियों की राय अलग अलग रही है। अक्सर ये कहा जाता है कि जन्म कुंडली में विवाह के भाव सप्तम भाव से संबंध रखने वाले ग्रहों की दशा काल में ही विवाह हो सकता है। जैसे - दशानाथ सप्तम भावस्थ हो या सप्तमेश हो या सप्तम भाव को दृष्टि दे रहा हो या सप्तमेश के साथ हो या सप्तमेश को दृष्टि दे रहा हो। जबकि शोधों से यह निष्कर्ष निकाला गया है कि कुंडली के लगभग सभी भावों से संबंधित ग्रहों की दशा में विवाह होते हैं।

प्रत्यक्ष रुप से सप्तम भाव से संबंध न रखने वाले ग्रहों की दशा में भी विवाह हो सकते हैं। लेकिन सप्तम भाव के अतिरिक्त अन्य विभिन्न भावों से संबंध रखने वाले ये सभी ग्रह किसी न किसी रुप में सप्तम भाव से ही संबंध रखते हैं जबकि प्रतीत ऐसा होता है कि विवाह कारक ग्रह का सप्तम भाव से कोई संबंध नहीं है। ये कैसे होता है? आईये इस विषय पर निम्न नियमों के आधार पर विचार करते हैं -

1. लग्न कुंडली का सप्तमेश जिस राशि में है उस राशि तथा उससे सप्तम राशि के स्वामियों और उसमें स्थित ग्रहों की दशा में विवाह होता है।

2. नवांश कुंडली में भी जन्मकुंडली के सप्तमेश की राशि व उससे सप्तम राशि के स्वामियों और उसमें स्थित ग्रहों की दशा में विवाह होता है।

3. लग्न कुंडली के सप्तम भाव में स्थित ग्रह, सप्तम भाव की राशि के नवांश में स्थित ग्रह और लग्न कुंडली के सप्तमेश की दशा में विवाह होता है।

4. लग्न कुंडली के सप्तमेश की उच्च व नीच राशि में स्थित ग्रह, उच्च व नीच राशि के स्वामी, उच्च व नीच राशियों के नवांश में स्थित ग्रहों की दशा में विवाह होता है।

उदाहरण 1 - पुरूष 31 मार्च 1912, 04ः40, गुडगांव कुंभ लग्न के इस जातक का विवाह 24 अप्रैल 1932 को हुआ तब जातक पर चंद्र में बुध में राहु की दशा चल रही थी। यहां महादशानाथ चंद्रमा सप्तम भाव में स्थित है, अंतर्दशानाथ बुध सप्तमेश सूर्य से सप्तमेश है और सूर्य की उच्च राशि में भी स्थित है। प्रत्यंतर्दशानाथ राहु तो स्वयं ही सप्तमेश सूर्य के साथ स्थित है। यहां देख सकते हैं कि विवाह समय में दशानाथ ग्रह विभिन्न भावों में स्थित तो हैं परंतु सभी का संबंध किसी न किसी रुप से सप्तम भाव से बन ही रहा है। जैसे बुध का सीधा संबंध सप्तम भाव या सप्तमेश से नहीं है और वह तृतीय भाव में भी है जो विवाह का भाव नहीं कहा जाता परंतु वह सप्तमेश सूर्य की उच्च राशि में स्थित होने के कारण विवाह देने में सक्षम है।

उदाहरण 2 - पुरुष 17 मार्च 1959, 08ः15, दिल्ली ेष लग्न के इस जातक का विवाह 13 जुलाई 1984 को हुआ। उस समय जातक पर गुरु में गुरु में राहु की दशा चल रही थी। यहां महादशानाथ और अंतर्दशानाथ गुरु है जो कि लग्नकुंडली के सप्तमेश शुक्र की उच्च राशि मीन का स्वामी है और नवांश में शुक्र की नीच राशि कन्या में स्थित है। प्रत्यंतर्दशानाथ राहु सप्तमेश शुक्र की नीच राशि कन्या में स्थित है। अगर गौर से देखें तो हम पाते हैं कि यहां राहु का संबंध लग्न कुंडली के सप्तमेश शुक्र या सप्तम भाव से नहीं है और राहु बैठा भी छठे भाव में है जिसे विवाह भाव नहीं कहा जाता फिर भी राहु यहां विवाह देने में सफल हुआ है।

उदाहरण 3 - पुरूष 9 अप्रैल 1945, 00ः40, दिल्ली धनु लग्न के इस जातक का विवाह 7 जून 1971 को गुरु में बुध में गुरु की दशा में हुआ था। यहां महादशानाथ व प्रत्यंतर्दशानाथ गुरु नवम भाव में सिंह राशि में स्थित है। गुरु का सप्तम भाव से कोई सीधा संबंध नहीं है परंतु गुरु सप्तमेश बुध की नीच राशि मीन का स्वामी है तथा अंतर्दशानाथ बुध तो स्वयं ही सप्तमेश है।

उदाहरण 4 - पुरूष 21 मार्च 1964, 10ः20, पलवल वृष लग्न के इस जातक का विवाह 10 दिसंबर 1993 को हुआ जब जातक की शनि में शनि में राहु की दशा चल रही थी। यहां महादशानाथ व अंतर्दशानाथ शनि सप्तमेश मंगल की उच्च राशि मकर का स्वामी है और नवांश में मंगल कर्क राशि में स्थित है जिससे सप्तम भाव का स्वामी शनि ही है। अंतर्दशानाथ राहु है जो सप्तमेश मंगल की नीच राशि के स्वामी चंद्रमा के साथ द्वितीय भाव में ंिस्थत है।

उदाहरण 5 - महिला 29 मई 1968, 02ः35, फरीदाबाद मीन लग्न की इस जातिका का विवाह 30 अपै्रल 1993 को हुआ। उस समय जातिका पर गुरु में शनि में राहु की दशा चल रही थी। यहां महादशानाथ गुरु सप्तमेश बुध से सप्तम भाव का स्वामी है और नवांश कुंडली में बुध से सप्तम भाव में स्थित है। अंतर्दशानाथ शनि सप्तमेश बुध की नीच राशि मीन में स्थित है और बुध की नवांश राशि का स्वामी है। प्रत्यंतर्दशानाथ राहु सप्तमेश बुध की नीच राशि मीन में स्थित है। अंत में निष्कर्ष यह निकलता है कि उपरोक्त नियमों के अंर्तगत विभिन्न भावों में स्थित ग्रहों की दशा के अनुसार विवाह का समयकाल निकाला जा सकता है। परंतु इसके अतिरिक्त गोचरीय ग्रह, जातक की ‘देश काल पात्र’ स्थिति आदि का भी अवलोकन कर लेना चाहिए।



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