कुंडली मिलान और मंगलीक दोष कारण निवारण

कुंडली मिलान और मंगलीक दोष कारण निवारण  

रमेश सेमवाल
व्यूस : 5342 | नवेम्बर 2016

कुंडली मिलान और मंगलीक दोष कारण निवारण जब भी जीवनसाथी के चुनाव हेतु ग्रह मेलापक, कुंडली मिलान की चर्चा होगी तो मंगलीक योग की बात जरूर होगी। दांपत्य जीवन को सुखमय व समृद्धिमय बनाने की लोक कामना मंगलीक दोष से उत्पन्न वैधव्य, संतानहीनता, कलह, रोग भय से संत्रस्त रहती है परंतु मंगलीक योग से डरने की आवश्यकता नहीं है। ज्योतिष में योग व कुयोग का निवारण भी है। मंगलीक योग शास्त्रों में: सर्वार्थ चिंतामणि, चमत्कार चिंतामणि, देवकेरलम, अगस्त्य संहिता, भावदीपिका जैसे ग्रंथों में मंगल के बारे में एक श्लोक मिलता है।

लग्ने व्यये पाताले, जामित्रे चाष्टमे कुजे। भार्याभर्तृविनाशाय, भर्तुश्च स्त्रीविनाशनम्।। अर्थात जन्म कुंडली के लग्न स्थान से 1/4/7/8/12 वें स्थान में मंगल हो तो ऐसी कुंडली मंगलीक कहलाती है। मंगलीक योग जरूर देखना चाहिये, मंगल अपना प्रभाव जरूर दिखाता है। चंद्र से मंगलीक योग क्या चंद्रमा से भी मंगलीक योग देखना चाहिए। जन्म लग्न से एवं जन्म के चंद्रमा दोनों से मंगल की स्थिति पर विचार करना चाहिए। - मंगल, शनि, राहु, केतु, सूर्य ये पांच क्रूर ग्रह हैं। अतः उपरोक्त स्थानांे में इनकी स्थिति व सप्तमेश की 6/8/12 वें घर में स्थिति भी मंगलीक दोष को उत्पन्न करती है।

यह भौम पंचक दोष कहलाता है। - द्वितीय भाव भी उपरोक्त ग्रहों से दूषित हो तो उसके शमनादि पर विचार अभीष्ट है। - विवाहार्थ द्रष्टव्य भाव में 2रे, व 12वें भाव का विशेष स्थान है। दूसरा भाव कुटुंब वृद्धि, धन, वाणी से संबंधित है जबकि बारहवां भाव शैय्या सुख से। चतुर्थ भाव में मंगल घर का सुख खराब करता है तथा सप्तम भाव जीवनसाथी का स्थान है, वहां पत्नी व पति के सुख को नष्ट करता है। - लग्न शारीरिक सुख है। अतः अस्वस्थता भी दांपत्य सुख में बाधक है। - अष्टम भाव गुदा व लिंग/योनि का भाव है अतः वह रोगोत्पत्ति की संभावना देता है। योगायोग

1. लग्न में मंगल अपनी दृष्टि से 1, 4, 7, 8 भावों को प्रभावित करेगा। यदि अशुभ है तो शरीर व गुप्तांग को बिगाडे़गा, रति सुख मंे कमी करेगा एवं दांपत्य सुख बिगाडेगा।


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2. इसी तरह सप्तमस्थ मंगल पति, पिता, शरीर और कुटुंब सौख्य को प्रभावित करेगा।

3. चतुर्थस्थ मंगल- सौख्य, पति, पिता और लाभ को प्रभावित करेगा। चतुर्थ मंगल घर के सुख में कमी करता है।

4. लिंगमूल से गुदावधि अष्टमभाव होता है। अष्टमस्थ मंगल इन्द्रिय सुख, लाभ, आयु व भाई-बहनों पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है।

5. द्वादश भाव शयन सुख का भाव कहलाता है।

शैय्या परम सुख कान्ता है तथा (बारहवां) मंगल शयन सुख की हानि करता है। धन भाव का मंगल-कुटुंब, संतान, इन्द्रिय सुख, आवक व भाग्य को, एक मत से पिता को प्रभावित करेगा। स्त्रियों की कामवासना का मंगल से विशेष संबंध है। यह रज है। मासिक धर्म की गड़बड़ियां प्रायः इसी से दूषित होती है। पुरूष की काम वासना का संबंध शुक्र वीर्य से है। मंगल रक्तवर्णीय है। शुक्र श्वेतवर्णीय है। इन दोनों के शुभ होने व समागम से ही संतान पुष्ट और वीर्यवान होती है।

अगर कुंडली में किसी भी दृष्टि से मंगल व शुक्र का संबंध न हो तो संतानोत्पत्ति दुष्कर है। मंगल मकर में उच्च का होता है और शुक्र मीन में। जन्मकुंडली में द्वितीय भाव दायां नेत्र, धन, वाणी, वाक्चातुर्य एवं मारक स्थान का माना गया है। द्वितीय भावस्थ मंगल वाणी में दोष, कुटुंब में कलह कराता है। द्वितीय भाव में अगर मंगल स्थित है तो उसकी दृष्टि पंचम, अष्टम एवं नवम में पड़ेगी। ऐसा मंगल संतति, स्वास्थ्य, (आयु) एवं भाग्य में रूकावट डालता है। द्वितीय स्थान में मंगल कुटुंब सुख में कमी करता है।

वाणी अशुभ होती है।

5. जब किसी कुंडली के 1/4/7/8 या 12वें भाव में मंगल हो तो वह कुंडली मंगलीक होती है। इन्हीं भावों में यदि मंगल अपनी नीच राशि में होकर बैठा हो तो मंगल द्विगुणित प्रभाव डालेगा। मंगल के साथ इन भावों में सूर्य, शनि, राहु, केतु हो तो ज्यादा प्रभाव डालेगा।

कुंडली मिलान के नियम

1. यदि एक के मंगल 7वें में हो दूसरे के 8वें में हो तो मिलान न करें।

2. समान भाव में मंगल की स्थिति दोनों के जीवन में दोष में वृद्धि करेगी।

3. सप्तमेश एवं शुक्र पर तथा सप्तमेश व गुरु पर पड़ने वाले कुप्रभाव हों तो भी मिलान न करें।

4. मंगल व सप्तमेश किन नक्षत्रों की दशा में स्थित है। यह भी देखना जरूरी है।

5. मिलान में जन्म कुंडली, चंद्र कुंडली, नवमांश, शुक्र कुंडली, दशा महादशा भी देख लें।

6. नाड़ी दोष, ग्रह मैत्री, ग्रहों का बलाबल भी देखना जरूरी है।


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मंगल दोष निवारण के उपाय

1. वर, कन्या दोनों मूंगा रत्न जड़ित मंगल यंत्र धारण करें।

2. कन्या मंगला गौरी का व्रत करें।

3. वट सावित्री का व्रत करें।

4. मंगल ग्रह के दस हजार जप एवं उसकी हवनात्मक शांति करें।

5. पार्वती मंगल स्तोत्र का नित्य पाठ करें।

6. मंगलवार के 28 व्रत करें।

7. पुखराज युक्त ‘गुरु यंत्र’ गले में धारण करें।

8. गुरुवार का व्रत करें।

9. घट विवाह करें।

10. शुक्रवार का व्रत करें।

11. शुक्र यंत्र धारण करें।

12. कन्या बृहस्पति देव की पूजा करें बालक शुक्रदेव की पूजा करें। विशेष उपाय विवाह हेतु मंत्र पत्नी मनोरमां देहि मनोवृत्तानुसारिणीम् तारिणी दुर्गसंसारसागरस्य कुलोद्भवाम् यदि स्त्री जातक पाठ करे तो पत्नी की जगह पति पढ़े।

1. योग माया मंदिर में जाकर देवी से प्रातः प्रार्थना करें।

2. कन्या के विवाह उलझन को दूर करने वाली देवी पार्वती जी की पूजा करें।

3. कत्यायनी माता की पूजा करें। मंत्र- कात्यायनि महामाये महायोगिन्यधीश्वरी नन्द सुतं देवं पतिं कुरूते नमः!

4. विवाह विलंब हेतु सुंदर कांड का पाठ करें।

5. ऊँ सोमेश्वराय नमः मंत्र का जप करें।

6. बृहस्पति की निरंतर पूजा करें।

7. सोमवार को पार्वती माता का शृंगार करें।

8. पुखराज धारण करें।

9. 90 दिन पीपल पर जल चढ़ाएं।

10. दुर्गा सप्तशती का पाठ करें। 

11. हमेशा पीला रूमाल साथ रखें।



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