51 शक्ति पीठ

51 शक्ति पीठ  

मितु सहगल
व्यूस : 12075 | अकतूबर 2010

51 शक्ति पीठ मीतू सहगल शक्ति पीठ बहुत ही पावन तीर्थ स्थल माने जाते हैं। यहां देश-विदेश के कोने-कोने से भक्त शक्ति की साधना अर्चना करने आते हैं। शक्ति पीठ ब्रह्मांड के असीम रहस्यमयी शक्ति और ऊर्जा स्थल हैं जहां पूजा व तप करने का विशेष महत्व है। शक्ति पूजा यहां कई हजारों वर्षों से होती आई है। शक्ति पीठ तांत्रिक सिद्धि प्राप्ति के भी महत्वपूर्ण स्थल हैं। यहां वैदिक व तांत्रिक विधियों से पूजा होती आ रही है। सिद्धि और मोक्ष प्राप्ति के लिए साधक यहां खिंचे चले आते हैं। ऐसा माना जाता है कि जहां शक्ति पीठ स्थापित हैं, वे स्थल ब्रह्मांड की ऊर्जा के असीम भंडार हैं। अतः गुरु दीक्षा और शक्ति पात के लिए ये स्थल उत्तम हैं। पौराणिक मत के अनुसार, सत्य युग में दक्षप्रजापति ने यज्ञ का आरंभ किया जिसमें शिवजी को आमंत्रित नहीं किया। पिता के घर महासमारोह से यज्ञ हो रहा है, यह सुनकर सती ने निमंत्रण न पाने पर भी यज्ञ में जाना चाहा। शिवजी ने पहले तो मना किया पर सती के आग्रह पर उन्हें अनुचरों के साथ जाने की आज्ञा दे दी। वहां जाने पर दक्ष द्वारा शिव का अपमान देख सती ने उसी यज्ञ की अग्नि में आत्मदाह कर लिया।

शिवजी ने यह वृत्तांत सुनते ही दक्ष के घर जाकर यज्ञ विध्वंस कर दिया और सती का शव उठाकर तांडव करने लगे। यह देख विष्णु ने विवश होकर सुदर्शन चक्र से सती के अंग-प्रत्यंग काट डाले। सती का शरीर 51 खंडों में विभक्त हुआ और जहां उनके विभिन्न अंग गिरे उस स्थान पर शक्ति पीठ स्थापित किये गए जो हिंदुओं के प्रमुख तीर्थ स्थल माने जाते हैं। ये शक्ति पीठ भारत, पाकिस्तान, श्री लंका और बंग्लादेश में पाए जाते हैं। 51 शक्ति पीठ इस प्रकार हैं- हिंगुला : देवी का ब्रह्मरंध्र यहां गिरा। यहां देवी कोट्टवीश और शिव भीमलोचन के नाम से स्थापित हैं। यह पीठ कराची के निकट दक्षिणी पाकिस्तान में एक गुफा में स्थित है। गुफा के अंधेरे में रोशनी की किरण पूजा स्थल को प्रकाशमान करती है। शर्करा (कोल्हापुर) : महाराष्ट्र के कोल्हापुर शहर में स्थित इस पीठ में देवी के तीन चक्षु गिरे।

शिव-शक्ति यहां क्रोधीश और महषिमर्दिनी के रूप में स्थापित हैं। महालक्ष्मी का प्रसिद्ध मंदिर भी यहीं पर है। सुगंधा : सुंगधा में देवी की नासिका गिरी थी। यहां शिव-शक्ति त्र्यंबक और सुनंदा के रूप में स्थापित हैं। शिव-चतुर्दशी के दिन भक्त यहां बड़ी संखया में आते हैं। यह पीठ दक्षिणी बंग्लादेश में है। अमरनाथ : कश्मीर में स्थित मुखय तीर्थ स्थान अमरनाथ में देवी का कंठदेश गिरा। यहां शिव-शक्ति त्रिसंध्येश्वर और महामाया के रूप में स्थापित हैं। हर वर्ष बर्फ का शिवलिंग बनता है जिसके दर्शन करने के लिए भक्त दूर-दूर से आते हैं। ज्वालामुखी : ज्वालामुखी कांगड़ा, हिमाचल प्रदेश में स्थित है। यहां देवी की महाजिह्वा गिरी और शिव-शक्ति यहां उन्मत और सिद्धिदा भैरव के रूप में स्थापित हैं। ज्वालामुखी का मंदिर अद्भुत शक्ति का स्थल है। जालंधर : यहां देवी का स्तन गिरा था और शिव-शक्ति यहां भीषण और जय त्रिपुरमालिनी के रूप में जाने जाते हैं। वैद्यनाथ : देवी का हृदय यहां गिरा था। शिव-शक्ति यहां वैद्यनाथ और जयदुर्गा के रूप में अवस्थित हैं। यह भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। पशुपतिनाथ : पशुपतिनाथ नेपाल में स्थित शक्तिपीठ है जहां देवी का जानु या घुटना गिरा था। यहां शिव-शक्ति कपाली और महामाया के नाम से अवस्थित हैं। यह नेपाल का बहुत ही प्रसिद्ध तीर्थ स्थल है। मानस : मानस तिब्बत में स्थित बहुत ही प्राचीन, विखयात और शक्तिशाली पीठ है जहां शिव-शक्ति अमर और दाक्षायनी के रूप में स्थापित हैं।

यहां देवी का दक्षिण हस्त गिरा था। मानसरोवर जलाशय भी यहीं पर है। उत्कल विरजा : उत्कल विरजा उड़ीसा में स्थित है। यहां देवी का नाभिदेश गिरा था और यहां शिव-शक्ति जगन्नाथ और विमला के रूप में स्थापित हैं। यह पीठ जगन्नाथ मंदिर के पास पूरी में है। गंडकी : गंडकी मुक्तिनाथ, नेपाल में स्थित है। यहां देवी का गंडस्थल गिरा था और शिव-शक्ति यहां चक्रपाणी और गंडकी के रूप में अवस्थित हैं। भक्तों का मानना है कि उन्हें इस स्थल पर देवी की कृपा अवश्य प्राप्त होती है। बहुला : बहुला वीरभूम, दक्षिण बंगाल में है जहां देवी का वाम बाहु गिरा था। यहां शिव-शक्ति भीरुक और बहुलादेवी के रूप में स्थापित हैं। उज्जैनी : उज्जैनी, मध्य प्रदेश में देवी की कूर्पर या कोहनी गिरी थी। यहां शिव-शक्ति कपिलांबर और मंगलचंडिका के रूप में अवस्थित हैं। त्रिपुरा : देवी का दायां पाद त्रिपुरा, उदयपुर में गिरा था। यहां शिव-शक्ति त्रिपुरेश और त्रिपुर सुंदरी के रूप में स्थापित है। चहल : चहल जिसे चट्टल भी कहा जाता है, बंग्लादेश में है। यहां देवी का दायां बाहु गिरा था। शिव-शक्ति यहां चंद्रशेखर और भवानी के नाम से प्रसिद्ध हैं। महादेव ने स्वयं कहा था कि कलियुग में वे चंद्रशेखर पर्वत पर निरंतर आएंगे। त्रिस्त्रोता : त्रिस्त्रोता जल्पैगुरी, पश्चिमी बंगला में स्थित है। यहां देवी का वाम पाद गिरा था शिव-शक्ति को यहां भैरवेश्वर और भ्रामरी के रूप में जाना जाता है। कामाखया : कामाखया कामगिरी, असम में देवी का योनिदेश गिरा था।

यहां ि श् ा व - श् ा ि क् त उमानंद और कामाखया के रूप में स्थापित हैं। माना जाता है कि जो इस मंदिर में एक बार जाता है उसे अमरत्व का वरदान मिल जाता है। कामाखया जाना मानवता के मूल स्त्रोत तक जाने जैसा है। यहां पशु बलि प्रचलित है। प्रयाग : प्रयाग में गंगा, यमुना और सरस्वती का संगम होता है। यहां देवी के हाथ की उंगलियां गिरी थीं। शिव-शक्ति यहां भव और ललिता के नाम से स्थापित हैं। जयंती : जयंती, असम में देवी की वाम जंघा गिरी थी। यहां शिव-शक्ति क्रमदीश्वर और जयंती नाम से स्थापित हैं। युगाद्या : युगाद्या पश्चिम बंगाल के खीरग्राम शहर में स्थित है। यहां देवी का दाहिना अंगुष्ठ गिरा था। यहां क्षीरखंडक और भूतधात्री की प्रतिमाओं के रूप में शिव-शक्ति स्थापित है। कालीपीठ : कालीपीठ कालीघाट, कोलकाता (पश्चिम बंगाल) में स्थित सिद्ध शक्ति पीठ है जहां शिव-शक्ति नकुलीश और कालिका के नाम से स्थापित हैं। यहां देवी के दाहिने पैर की उंगलियां गिरी थीं। किरीट : किरीट में देवी का किरीट गिरा था। यहां शिव-शक्ति संवर्त और विमला के नाम से प्रसिद्ध हैं। यह पावन स्थल बंग्लादेश में है। वाराणसी : वाराणसी, उत्तर प्रदेश में देवी के कर्ण कुंडल गिरे थे।

यह स्थल शिव-शक्ति के कालभैरव और विश्वलक्ष्मी मणिकरणी के नाम से प्रसिद्ध है। पुराणों के अनुसार यह स्थल प्रलय के बाद भी अस्तित्व में था। कन्याश्रम : कन्याकुमारी में कन्याश्रम में देवी का पृष्ठ गिरा था। यहां शिव-शक्ति निमिष और सर्वाणि के रूप में अवस्थित हैं। कुरुक्षेत्र : कुरुक्षेत्र हरियाणा में स्थित है जहां महाभारत हुई थी। यहां देवी का गुल्फ गिरा था और शिव-शक्ति यहां स्थाणु और सावित्री के रूप में प्रसिद्ध हैं। मणिबंध : मणिबंध को मणिवेदिका भी कहते हैं। यह पुष्कर, राजस्थान में स्थित है। यहां देवी के मणिबंध गिरे थे। शिव-शक्ति यहां सर्वानंद और गायत्री के रूप में अवस्थित हैं। श्रीशैल : श्रीशैल मल्लिकार्जुन पर्वत के पास शैल में स्थित है। यहां देवी की गर्दन गिरी थी। शिव-शक्ति यहां शंबरानंद और महालक्ष्मी के नाम से प्रसिद्ध हैं। आंध्रप्रदेश का यह बहुत ही प्रसिद्ध तीर्थ स्थल हैं और 12 ज्योतिर्लिंग में से एक है। कांची : कांचीपुरम, तमिल नाडू में है। इस प्राचीन शक्ति पीठ में देवी की अस्थि गिरी थी। यहां शिव-शक्ति रुरु और देवगर्भा के रुप में अवस्थित हैं। कांची-कांची कामकोटी मठ के लिए भी प्रसिद्ध हैं। कालमाधव : कालमाधव अमरकंटक नदी के पास चित्रकूट, मध्य प्रदेश में स्थित है। यहां देवी का नितंब गिरा था। शिव-शक्ति यहां असितांग और कली के रूप में स्थापित हैं। शोणदेश : शोणदेश बिहार में सोन नदी के पास स्थित शक्ति पीठ है। यहां देवी का नितांबक गिरा था। शिव-शक्ति यहां भद्रसेन और नर्मदा के रूप में स्थापित हैं। रामगिरी : रामगिरी चित्रकूट, मध्य प्रदेश में स्थति शक्ति पीठ है जहां देवी का स्तन गिरा था। शिव-शक्ति यहां चंडभैरव और शिवानी के नाम से प्रसिद्ध हैं। वृन्दावन : वृन्दावन में देवी के केश गिरे थे। शिव-शक्ति यहां भूतेश और उमा के रूप में स्थापित हैं। वृन्दावन में ही श्री कृष्ण ने लीलाएं की, गोवधर्न पर्वत उठाया और गांव को कालिया नाग से बचाया। शुचि : शुचि कन्याकुमारी (तमिलनाडू) में स्थित शक्ति पीठ है जहां देवी के ऊर्ध्व दंत गिरे।

शिव-शक्ति यहां संहार और नारायणी के रूप में अवस्थित हैं। पंचसागर : पंचसागर में देवी के अधोदंत गिरे। शिव-शक्ति यहां महारुद्र और बरही के नाम से प्रसिद्ध हैं। इसका स्थान अज्ञात है। करतोयातट : करतोयातट में देवी का तल्प गिरा था। शिव-शक्ति यहां वामनभैरव और अर्पणा के रूप में प्रचलित हैं। बंग्लादेश में स्थित करतोयातट में नाटोर के राजा और उनके पौत्र महाराजा रामकृष्ण ध्यान लगाया करते थे। यह मंदिर करोटा नदी के किनारे स्थित है। इसे भवानीपुर भी कहते हैं। श्रीपर्वत : देवी का दाहिने पैर का तलवा श्रीपर्वत लद्दाख में गिरा था। शिव-शक्ति यहां सुंदरानंदभैरव और श्रीसुंदरी के नाम से प्रचलित हैं। विभाष : देवी का वाम गुल्फ विभाष, मेदिनीपुर (पश्चिम बंगाल) में गिरा। शिव-शक्ति यहां सर्वानंद और कपालिनी के नाम से स्थापित हैं। प्रभास : देवी का उदर प्रभास में गिरा जहां शिव-शक्ति को वक्रतुंड और चंद्रभागा के नाम से जाना जाता है। प्रभास, गिरनार पर्वत, मुंबई के पास है। यह सोमनाथ मंदिर के पास है जो हिंदूओं का मुखय तीर्थ स्थल है। जनस्थल : जनस्थल नासिक (महाराष्ट्र) में स्थित है। यहां देवी का चिबुक गिरा। शिव-शक्ति यहां विकृताक्ष और भ्रामरी के नाम से प्रचलित हैं।

विराट : विराट, राजस्थान में देवी के पैरों की अंगुलियां गिरी थी। शिव-शक्ति यहां अमृत और अंबिका के नाम से जाने जाते हैं। गोदावरीतीर : गोदावरीतीर में देवी का वाम गंड गिरा था। शिव-शक्ति यहां दण्डपाणी और विश्वेशी के नाम से प्रचलित हैं। रत्नावली : रत्नावली में देवी का दाहिना स्कंध/कंधा गिरा था। शिव-शक्ति यहां शिव और कुमारी के नाम से प्रचलित हैं। रत्नावली चेन्नई के पास रत्नाकर नदी के किनारे स्थित है। मिथिला : मिथिला, बिहार में देवी का वाम स्कंध गिरा था। शिव-शक्ति यहां महोदर और उमा के रूप में स्थापित हैं। मिथिला कनकपुर के पास स्थित है। नलहाटी : नलहाटी, कोलकाता में स्थित है जहां देवी की नला गिरी थी। शिव-शक्ति यहां योगेश और कालिकादेवी के नाम से प्रसिद्ध हैं। मगध : देवी की दाहिनी जंघा मगध में गिरी थी। आज मगध पटना के नाम से जाना जाता है। शिव-शक्ति यहां व्योमकेश और सर्वनंदकरी के नाम से प्रसिद्ध हैं।

वक्रेश्वर : वक्रेश्वर में देवी का मनः या मस्तिष्क का हिस्सा गिरा था। शिव-शक्ति यहां वक्रनाथ और महिषमर्दिनी के नाम से जाने जाते हैं। वक्रेश्वर अहमदाबाद में स्थित है। यहां 7 गर्म पानी के चश्मे और पापहर नदी है। महामुनि अष्टवक्र को यहां ज्ञान प्राप्त हुआ। यशोर : यशोर बंगलादेश में स्थित है जहां देवी का पाणीपद्य गिरा था। शिव-शक्ति यहां चंड और यशोरेश्वरी के नाम से प्रसिद्ध हैं। अट्टहास : अट्टहास (पश्चिम बंगाल) में देवी का ओष्ठ गिरा था। शिव-शक्ति यहां विश्वेश और फुल्लरा के नाम से प्रसिद्ध हैं। पश्चिम बंगाल का यह एक मुखय तीर्थ स्थल है। नंदीपुर : नंदीपुर, पंश्चिम बंगाल में देवी का कंठहार गिरा था। शिव-शक्ति यहां नंदिकेश्वर और नंदिनी के नाम से प्रसिद्ध हैं। लंका : लंका, श्रीलंका में देवी का नूपुर गिरा था। शिव-शक्ति यहां राक्षसेश्वर और इंद्राक्षी के नाम से स्थापित हैं। रावण ने शिवजी की यहो पूजा की थी। इसकी सही स्थिति अज्ञात है। एक मतानुसार मंदिर ट्रिंकोमाली में है, पर पुर्तगली बमबारी में ध्वस्त हो चुका है। एक स्तंभ शेष है। यह प्रसिद्ध त्रिकोणेश्वर मंदिर के निकट है।



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