भोजन जीवन की मूलभूत
आवश्यकताओं में से एक है।
भोजन पंचमहाभूतों से बने प्राणी को
ऊर्जा प्रदान करता है। भोजन जितना
अच्छे वातावरण में तैयार किया जाता
है उसका लाभ उतना ही मनुष्य को
प्राप्त होता है। अग्नि भोजन को पकाने
में सहायक तत्व है। अग्नि भोज्य पदार्थ
को सुपाच्य बनाती है तथा विषाणुओं
का नाश करती है। इस प्रकार का
भोजन मनुष्य के शरीर को पुष्ट बनाता
है। मनुष्य को यदि भोजन न मिले तो
उसकी क्रियाशीलता प्रभावित होती है।
जिस प्रकार मशीन को चलाने में तेल
सहायता करता है, उसी प्रकार शरीर
को चलाने में भोजन सहायता प्रदान
करता है।
वास्तुशास्त्र में भोजन के स्थान का
संबंध प्रतिपादित किया गया है। भोजन
यदि रुचिकर एवं विविधतापूर्ण बनाया
जाए तो वह पारिवारिक सदस्यों को
आपस में जोड़ने का कार्य करता है।
मां जब परिवार के लिए सुस्वादु भोजन
तैयार करती है तो पूरा परिवार शारीरिक
रूप से संतुष्टि महसूस करता है। यह
संतुष्टि पूरे परिवार को प्रसन्नता प्रदान
करती है जिससे पारिवारिक सदस्यों
को मानसिक बल मिलता है। इस प्रकार
देखा जाए तो यह भोजन किसी भी
परिवार को शारीरिक, मानसिक एवं
भावनात्मक रूप से मजबूत बनाने में
सहायता करता है। जीवन की मूलभूत
आवश्यकता होने के कारण भोजन को
सही स्थान पर तैयार करना आवश्यक
है। वह सही स्थान कौन सा हो, इसका
चंतन एवं मनन वास्तुशास्त्र के आचार्यों
ने वर्षों पहले कर लिया था।
वास्तुशास्त्र की विशेषता यह है कि
इसमें प्रत्येक दिशा की प्रकृति के अनुरूप
कार्य करने का स्थान निश्चित किया
गया है। यदि सही स्थान पर कार्य
किया जाए तो कम श्रम में अधिकतम
लाभ की प्राप्ति होती है। वास्तुशास्त्र में
अग्नि से संबंधित कार्य को करने के
लिए आग्नेय कोण को उपयुक्त बतलाया
गया है। इसका कारण है आग्नेय कोण
में अग्नि देवता की स्थिति भोजन को
तैयार करने में सहायता करती है।
बिना अग्नि के भोजन की कल्पना भी
नहीं की जा सकती है। इस अग्निकोण
की एक विशेषता यह भी है कि शुक्र
ग्रह इसका स्वामी है। शुक्र भोजन को
विविधरूप में तैयार करने में सहायता
करता है। जिस प्रकार एक ही प्रकार
का भोजन जीवन में नीरसता प्रदान
करता है ठीक उसी प्रकार विविधतापूर्ण
भोजन जीवन में रस का संचार करता
है। ऐसा भोजन करने से व्यक्ति को
अतृप्त आनंद की अनुभूति होती है तथा
वह शारीरिक एवं मानसिक रूप से
मजबूत बनता है।
भवन के अंदर रसोईघर में अग्नि का
उपयोग होता है, अतः रसोईघर बनाने
के लिए आग्नेयकोण सर्वश्रेष्ठ बतलाया
गया है। इस स्थान पर अग्नि के
साथ-साथ उदयकालीन सूर्य की
रश्मियों का लाभ भी प्राप्त होता है जो
भोजन को पौष्टिक बताने में सहायक
होता है। भोजन बनाते समय गृहणी
का मुख पूर्व दिशा में रहे तो वह शुभ
होता है। इसका कारण यह है कि पूर्व
दिशा से आने वाली सकारात्मक ऊर्जा
गृहणी को शक्ति प्रदान करती है, उसे
चुस्त एवं चैकन्ना रखती है।
ईशानकोण में रसाईघर का निर्माण
नहीं करना चाहिए। यह कोण जल का
क्षेत्र है। अग्नि एवं जल परस्पर शत्रु
हैं। अतः ईशान कोण में रसोईघर का
निर्माण करने से घर में मानसिक तनाव,
कलह तथा हानि होती है।
नैर्ऋत्य कोण में रसोईघर बनाने से
पारिवारिक कष्ट, अग्नि से दुर्घटनाओं का
भय तथा जन-धन की हानि होती है।
वायव्य कोण में रसोईघर का निर्माण
इस प्रकार किया जाए कि भोजन बनाने
वाला पूर्वाभिमुख होकर भोजन बना
सके क्योंकि दक्षिणाभिमुख होकर भोजन
बनाने से दक्षिण से आने वाली
नकारात्मक ऊर्जा भोजन बनाने वाले
को असंतुलित कर देती है।
परिणामस्वरूप भोजन बनाने में विघ्न
उत्पन्न होता है।
वर्तमान समय का सबसे बड़ा दोष है
परस्पर प्रतिस्पर्धा के कारण व्यक्ति अपनी
कार्यक्षमता से ज्यादा कार्य कर रहा
है। इसके परिणामस्वरूप परिवार में
तनाव व्याप्त रहता है। इस तनाव को
दूर करने में वास्तुसम्मत निर्माण काफी
हद तक सहायता कर सकता है।