कुंडली मिलान का महत्व

कुंडली मिलान का महत्व  

डॉ. अरुण बंसल
व्यूस : 3382 | मई 2004

प्रश्न::क्या कुंडली मिलान कर के भविष्य को सुखमय बनाया जा सकता है?

उत्तर: कुंडली मिलान कर के भविष्य को अवश्य ही सुखमय बनाया जा सकता है। कर्म से भाग्य बदला जा सकता है। भाग्य पूर्व जन्मांे का फल है, अर्थात् कुंडली का ठीक मिलान कर के भविष्य को संवार सकते हैं।

प्रश्न: यदि कुंडली में अनिष्ट ही लिखा है, तो कुंडली मिलान से भविष्य को कैसे सुधारा जा सकता है?

उत्तर:: वेदों में आज्ञा दी गयी है कि हर मनुष्य को अपना भविष्य सुधारने का प्रयत्न करना चाहिए। मुहूत्र्त द्वारा किसी कार्य को शुभ समय पर करना, अथवा किसी ग्रह की शांति के लिए उपाय आदि करना भी इसी ओर एक कदम है। इसी प्रकार कुंडली मिलान द्वारा भी अपने वैवाहिक जीवन को सुखमय बना सकते हैं। यदि एक की कुंडली में अनिष्ट भी है, तो दूसरे की प्रभावशाली कुंडली उसको समर्थन दे सकती है एवं उस अनिष्ट के प्रभाव को दूर कर सकने में सक्षम होती है।

प्रश्न: कुंडली मिलान किस सीमा तक सुखी विवाहित जीवन का मापदंड है? अधिक गुण मिलने पर एवं मांगलिक दोष न होने पर क्या विवाहित जीवन अवश्य खुशहाल रहेगा?

उत्तर: कुंडली मिलान से वैवाहिक जीवन सुखमय रहने की संभावना बहुत बढ़ जाती है, लेकिन इसकी गारंटी नहीं दी जा सकती।

प्रश्न: यदि कुंडली मिलान ठीक नहीं है, तो भी क्या विवाह किया जा सकता है?

उत्तर: कुंडली मिलान ठीक न होने पर भी यदि अन्य ग्रह योग शुभ हैं, तो विवाह करने पर विचार कर सकते हैं। यदि गुण बहुत कम मिलते हों, जैसे 12 से कम, तो गुण मिलान का भी विचार कर लेना उत्तम है।


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प्रश्न: 18 से कम गुण मिलने पर, जैसे 16, या 17, क्या कुंडली मिलान के अनुसार विवाह होना चाहिए, या नहीं?

उत्तर: 50 प्रतिशत गुण का मिलना एक अच्छी कुंडली मिलने की मान्यता है। इसमें यदि 16, या 17 भी मिलते हैं, तो इसका मतलब यह नहीं कि मिलान न करें, पर यह जरूर दर्शाते हंै कि मेलापक अच्छे से बुरे की ओर अग्रसर है। एक शोध में यह पाया गया कि किसी सुखी दंपति को दिये गये अंक और तलाकशुदा पति-पत्नियों को दिये गये अंक में केवल 2 से 3 बिंदुओं का अंतर होता है। अतः 36 गुण मिलना उत्तम मेलापक का मापदंड नहीं है एवं 18 से कम गुण मिलना भी बुरे मेलापक की कसौटी नहीं है। यदि ग्रहों की स्थिति एवं दृष्टि सही हो, तो 15 गुण तक भी मेलापक को सही मान सकते हैं।

प्रश्न: कुंडली मिलान में नाड़ी दोष होने पर भी यदि गुण 18 से अधिक हों, तो क्या विवाह करना चाहिए?

उत्तर: कुंडली मिलान में यदि 18 से अधिक गुण मिलें, तो किसी गुण-दोष का विचार करने की आवश्यकता नहीं है। नाड़ी दोष होने से संतान आदि को कष्ट होता है, लेकिन 18 गुण मिलने पर इसका विचार नहीं करना चाहिए।

प्रश्न: भकूट दोष होने पर भी विवाह करने के क्या परिणाम होते हैं?

उत्तर: भकूट दोष होने पर पति-पत्नी के विचारों में भिन्नता होती है। परंतु यदि उनकी राशियों के स्वामी मित्र हों, तो यह दोष कम हो जाता है।

प्रश्न: वर एवं कन्या में से किसी एक के मंगली होने पर क्या दूसरे का मंगली होना जरूरी है?

उत्तर: यह आवश्यक नहीं कि वर एवं कन्या दोनों को मंगली होना चाहिए। मंगल दोष का परिहार अनेक प्रकार से हो जाता है; स्वयं की पत्री में, अर्थात जीवन साथी की पत्री में अन्य ग्रहों की स्थिति के कारण।

प्रश्न: मंगल दोष, लग्न के अतिरिक्त, क्या चंद्र, या शुक्र से भी लेना चाहिए?

उत्तर: मंगल दोष को शुक्र से लेना निरर्थक है। चंद्रमा से भी फल बहुत कम आते हैं। लग्न से ही मंगल दोष विचारण् ाीय है।

प्रश्न: क्या मंगल का असर 28 वर्ष के बाद भी रहता है, या कम हो जाता है?

उत्तर: यह मानना कि मंगलीक दोष का असर 28 वर्ष बाद समाप्त हो जाता है, ठीक नहीं है। मंगली दोष सर्वदा विद्यमान रहता है, लेकिन पूजा-पाठ द्वारा इसका प्रभाव कम किया जा सकता है।


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प्रश्न: मांगलिक दोष के परिहार के लिए मूंगा पहनना उचित है, अथवा मंगल के व्रत, या पूजा से मांगलिक दोष खत्म हो जाता है?

उत्तर: मांगलिक दोष के लिए मूंगा पहनना सर्वदा मांगलिक दोष का परिहार नहीं है। यदि मंगल नीच हो एवं योगकारक हो, तो मूंगे द्वारा मंगलीक दोष का निवारण किया जा सकता है; अन्यथा हनुमत पाठ एवं पूजन सबसे अच्छा परिहार है।

प्रश्न: कन्या यदि घोर मांगलिक हो, तो क्या उसका प्रभाव वर की आयु पर भी पड़ता है?

उत्तर: आयु जातक का निजी भाग्य है फिर भी संग का असर पड़ता है एवं घोर मंगलीक का विवाह सादे से करना ठीक नहीं है।

प्रश्न: मंगल के अतिरिक्त अन्य ग्रहों का कुंडली मिलान पर कितना प्रभाव पड़ता है?

उत्तर: मंगलीक विचार पर किये गये आधुनिक शोधों के अनुसार मंगलीक दोष एवं गुण मेलापक से कहीं अधिक असर अन्य ग्रहों का रहता है।

प्रश्न: विभिन्न पंचांगों में एक ही नक्षत्र एवं चरण के अलग-अलग गुणांक मिलते हैं। ऐसा क्यों होता है और इसमें किसको सही माना जाए?

उत्तर: ज्योतिष की गणनाओं में, या मान्यताओं में मतभेद अकसर देखने में आते हैं। ऐसे ही मेलापक सारणियों में भी मतभेद रहते हैं। ये मतभेद गण, योनि एवं भकूट विचार में ही पाये जाते हैं। लेकिन, भकूट दोष के अतिरिक्त, यह मतभेद आधा, या एक अंक तक ही सीमित रहता है। भकूट दोष में यदि ग्रह मित्र हों, तो, कुछ ऋषियों के अनुसार, पूर्णांक दे दिये जाते हैं और कुछ बिल्कुल भी नहीं देते। इस प्रकार 7 अंक तक का अंतर आ जाता है।

प्रश्न: प्रेम विवाह, अथवा अंतर्जातीय विवाह होने पर क्या कुंडली मिलान करना आवश्यक है?

उत्तर: मेलापक का असर प्रेम, या अंतर्जातीय विवाह पर भी उतना ही रहता है, जितना आम विवाह पर। मेलापक धर्म, या जातक से ऊपर है।

प्रश्न: कुंडली मिलान की कौन-कौन सी पद्धतियां प्रचलित हैं?

उत्तर: भारत में मुख्यतः 2 पद्धतियां प्रचलित हैं - उत्तर भारतीय एवं दक्षिण भारतीय। उत्तर भारत में अष्ट कूट विचार में 36 गुण मिलान करते हैं एवं दक्षिण भारत में 10 कूटों का विचार किया जाता है।

प्रश्न: क्या कंप्यूटर द्वारा किये गये मेलापक पर विश्वास किया जा सकता है?

उत्तर: कंप्यूटर द्वारा (विशेष तौर पर लियो स्टार ज्योतिषीय साॅफ्टवेयर द्वारा) किया गया मेलापक हस्त रचित कुंडलियों द्वारा मेलापक से कहीं अधिक सटीक रहता है। यदि कंप्यूटर में मेलापक ठीक नहीं आ रहा हो, तो भी विवाह करना हो, तो, किसी विद्वान से कुंडली विचार करवा कर, विवाह कर सकते हैं।


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