पिरामिड एवं वास्तु

पिरामिड एवं वास्तु  

व्यूस : 6978 | सितम्बर 2012
पिरामिड एवं वास्त प्रश्न: वास्तु में पिरामिड का क्या महत्व एवं उपयोग है। वास्तु दोष निवारण हेतु पिरामिड की विस्तृत प्रयोग विधि एवं लाभ का वर्णन करें। यह भी स्पष्ट करें कि पिरामिड बनाने में प्रयुक्त धातु या सामग्री का प्रयोग, परिणामों में किस प्रकार प्रभाव डालता है? पिरामिड: पिरामिड शब्द, दो शब्दों पायर एवं मिड (ग्रीक भाषा) से मिलकर बना है। इसमंे ‘‘पायर’’ का ‘‘आग’’ (ऊर्जा/ऊष्मा) एवं ‘‘मिड’’ का अर्थ ‘‘मध्य’’ से होता है। इस तरह से पिरामिड का अर्थ- ‘‘वह वस्तु जिसके मध्य ऊर्जा (आग/ऊष्मा) हो’’। यह ऊर्जा, धनात्मक/सकारात्मक होती है, जो उन वस्तुओं को, जो कि शीघ्र नष्ट हो जाने वाली होती है, सुरक्षित रखती है। अर्थात् यह एक ऐसा उपकरण है जो ऊर्जा (शक्ति) का संयम करतस है। पिरामिड के अन्य रूप विभिन्न धार्मिक स्थलों जैसे:- मंदिर, मस्जिद, चर्च, गुरुद्वारा, बौद्ध मठ, गिरजाघर आदि हैं जिनके ऊपरी हिस्से एक विशेष गुम्बद्नुमा आकृति लिए होते हैं। जिनके मध्य यही सकारात्मक ऊर्जा, पिरामिड आकृति के कारण प्रवाहित होती रहती है। जिसके कारण इनके नीचे बैठने से शुद्ध ऊर्जा की वायु मिलती है, जिससे शांति, खुशी, एकाग्रता, आत्मविश्वास बढ़ता है तथा पूजा करने से विशेष लाभ होता है। अर्थात् इससे स्वास्थ्य लाभ अवश्य मिलता है। परंतु समृद्धि (धन) नहीं। अर्थात् पिरामिड का प्रयोग ध्यान व चिकित्सा क्षेत्र में निश्चित रूप से लाभदायक है, परंतु समृद्धि के लिए नहीं। क्योंकि पिरामिड का निर्माण मिस्र के निवासियों ने अपने प्रियजनों के शवों को दीर्घ समय तक सुरक्षित रखने के लिए किया था। अर्थात् पिरामिड का सही उपयोग शवों या निर्जीव वस्तुओं को सड़ने से रोकने के लिए आज भी लाभदायक है। परंतु जीवित व्यक्तियों या वस्तुओं अथवा समृद्धि (धन आदि) के लिए नहीं। अतः इनमें धन व समय नहीं लगाना ही बुद्धिमानी है। अतः इस आधार पर यह कह सकते हैं, कि पिरामिड से वास्तु-दोष का निवारण नहीं होता है। महत्व, उपयोग, विधि, लाभ: पिरामिड का विशेष उपयोग, महत्व एवं लाभ धन, समृद्धि में न होकर रोग, बीमारियांे को दूर करके स्वास्थ्य लाभ में किया जाता है। पिरामिड, अंतरिक्ष से आने वाली काॅस्मिक किरणों को केंद्रित करता है। यह काॅस्मिक ऊर्जा को पिरामिड में संघटित और एकत्र करता है। प्राकृतिक चिकित्सालयों में बड़ी आकृति के पिरामिड बने होते हैं। रोगी, बीमार या अस्वस्थ अथवा स्वास्थ्य लाभ चाहने वाला व्यक्ति पिरामिड में पूर्व दिशा में मुंह करके आंखें बंद करके ध्यान और प्राणायाम कर सकता है। ऐसा किसी भी समय में किया जा सकता है। रोग, बीमारी निवारण के लिए पिरामिड के नीचे कितनी देर बैठा जाये, यह प्रत्येक व्यक्ति के लिए अलग-अलग होता है। लेकिन फिर भी न्यूनतम 30 मिनट प्रतिदिन इसके नीचे बैठने पर लाभ होता है। पिरामिड से स्वास्थ्य लाभ लेने के लिए पिरामिड को 9 9 का बनायें अथवा बना बनाया (रेडीमेड) ला सकते हैं तथा उपचार के समय रोगी उŸार-दक्षिण दिशा की तरफ लेटे या फिर पिरामिड का एक कोना उŸार की तरफ हो। अर्थात् पिरामिड में सिर रखने वाला भाग दक्षिण की तरफ रखना श्रेष्ठ रहता है क्योंकि चुम्बकीय रेखाएं उŸार से दक्षिण की तरफ प्रवाहित होती हैं। लगभग 15 से 20 मिनट तक दिन में दो बार इसका लाभ लें। विभिन्न रोगों में पिरामिड लाभ: अनिद्रा एवं एसिडिटी: पीठ के बल लेटकर पिरामिड को मणिपुर चक्र पर 15 से 20 मिनट प्रतिदिन रखने से लाभ होगा। साइनस, आंख-नाक के लिए: पिरामिड को प्रतिदिन प्रातः, सांय 10 से 15 मिनट सिर पर टोपी की तरह पहनने से उपरोक्त समस्याओं में लाभ होगा। Û टखने-पैर की समस्या में: दोनों पांवों के मध्य कुर्सी पर बैठकर पिरामिड जमीन पर रखें तथा अपने दोनों पंजों को पिरामिड की बाहरी दीवार से छुआकर 20 मिनट तक रखें, लाभ होगा। घुटनों की समस्या में: लेटकर या बैठकर लगभग 20 मिनट तक व्यक्ति अपने घुटनों के ऊपर पिरामिड को रखे, अलग-अलग पिरामिड अलग-अलग घुटनों के ऊपर भी रख सकते हैं। इससे लाभ होकर उपरोक्त समस्या दूर होगी। कमर-पीठ दर्द: व्यक्ति पेट के बल लेट जाय तथा पिरामिड को रीड की हड्डी के ऊपर रखे। यदि एक ही पिरामिड है, तो जहां-ज्यादा दर्द है वहीं पर रखें। यदि पिरामिड दो या अधिक की सुविधा हो, तो सर्वश्रेष्ठ रहता हैे। इन्हें दर्द के आगे-पीछे रखना भी अच्छा परिणाम देता है। कान-बाल व माइग्रेन की समस्या में: कुर्सी पर बैठे-बैठे ही पिरामिड को सिर पर टोपी की तरह न्यूनतम 10 मिनट पहनकर उपरोक्त परेशानियों में लाभ ले सकते हैं। छाती, सीने की समस्या में: पीठ के बल लेटकर पिरामिड को छाती पर हृदय क्षेत्र से हटाकर (सावधानी रखें) 15 मिनट रखें। लाभ होगा। इसके अलावा पिरामिड अन्य बीमारियों, रोगों जैसे- कफ, सर्दी-जुकाम, जोड़ों के दर्द आदि में कारगर उपकरण है। इसके साथ ही तनाव मुक्ति, सांस की बीमारी, हृदय की मजबूती आदि में भी लाभप्रद है। यह आत्मविश्वास बढ़ाने वाला, ध्यान, योग साधना में शीघ्र दक्षता व सफलता प्रदान करता है। पिरामिड कलर थैरेपी (रगं ा ंे द्वारा): यदि पिरामिड को विभिन्न रंगों द्वारा रंगा जाये और उसका प्रयोग रोगी के लिए किया जाय, तो इससे बहुत ही स्वास्थ्य लाभ होता है। आजकल वकै ल्पिक चिकित्सा क े रूप म ंे पिरामिड में कलर थैरेपी का भी महत्व बढ़ गया है। इसका कारण यह है कि ये बहुत ही स्वाभाविक पद्धति है। वास्तव में ब्रह्मांड और शरीर (पिण्ड) दोनों रंग युक्त हैं और लगातार अनेक रंगों को उत्सर्जित करते रहते हैं। अर्थात् शरीर भी रंग युक्त है और बाहर के संसार में भी प्रकृति के अनेक रंग हैं। शरीर के भीतर अंगों के अनेक रंग हैं और शरीर के कोष भी रंगीन (कलर फुल) हैं मनुष्य का ऊर्जा प्रभाव मंडल और विचार तरंगें भी रंगीन हैं। व्यक्ति जिस मकान में रहता है, उसकी सहजता भी रंगों से युक्त है। यदि ज्योतिष के साथ वास्तु और पिरामिड का भी प्रयोग करें, तो जीवन में स्वास्थ्य लाभ की खुशहाली जरूर आती है। मकान की दीवारों पर वाॅल-पेपर का रंग, राशि अनुसार ही पिरामिड का रंग हो, तो स्वास्थ्य अच्छा रहता है। इसे सारणी-1 में दर्शाया गया है। ग्रस्त हो जाता है। इसलिए रोगी के बिस्तर के नीचे रोगग्रस्त स्थान वाले चक्र की जगह अनुकूल रंग वाले पिरामिड को रख दिया जाये तो जिस रंग के कारण वह रोग हुआ है। वह कमी दूर होकर, रोग दूर होकर रोगी स्वस्थ हो जाता है। सारणी-2 में सातों चक्रों के रंगों को दर्शाया गया है- एक बात सदा ध्यान रखें, कि रोगी को इस प्रकार लिटाएं कि जब पिरामिड रखा जाये तो उसकी चारों दिशाएं, पूरी तरह से उŸार-दक्षिण, पूर्व-पश्चिम दिशा के समानांतर ही रहे। अतः रंगों द्वारा स्वास्थ्य लाभ ले सकते हों। यदि शरीर रोगग्रस्त हो जाता है तो उसका रासायनिक व रंग संयोजन दोनों ही असंतुलित हो जाते हैं, अतः रंग-चिकित्सा द्वारा इन्हें पुनः संतुलित किया जा सकता है। मनुष्य आदि का जीवन का आधार सूर्य है यदि स्वास्थ्य अनुकूल रंग का तांबें या कांच का पिरामिड लेकर प्रातः की सूर्य किरणों से रोग या बीमारी का उपचार किया जाये, तो लाभ बहुत ही होता है। प्रतिदिन इस उपचार का उपयोग 10 से 20 मिनट करना होता है। मनुष्य शरीर के सूक्ष्म शरीर में सात चेतना केंद्र होते हैं, जिन्हें ‘‘चक्र’’ कहते हैं, यदि इन चक्रों में कुछ समस्या हो या आ जाये, तो यह रोग और सूर्य का प्रकाश, रंगों की उत्पŸिा का कारक है। ये प्रकाश व ऊर्जा भी देते हैं पिरामिड के साथ इनका लाभ लेने के लिए उपरोक्त दोनों सारणियों में स्थित सूर्य किरणों के रंग और शरीर के अंदर स्थित चक्रों के रंग को समझकर ज्ञात कर सकते हैं। सूर्य किरणों से मनुष्य आदि जीवों को ऊष्मा (गर्मी) प्राप्त होती है। ये स्नायुओं को शांत करती है। इनकी जामुनी किरणें पोषण प्राप्त करती हैं। जब य े किरण ंे शरीर की त्वचा का े छतू ी है तो शरीर को विटामिन-डी प्राप्त होता है, जिससे कई प्रकार के रोग नहीं होते हैं। क्योंकि विटामिन-डी की कमी से शरीर में कई प्रकार के रोग उत्पन्न हो जाते हैं। अतः पिरामिड द्वारा कलर थैरेपी स्वास्थ्य के लिए उŸाम प्रणाली है। नीचे सारणी-3 में रोगों में उपयोगी रंग को दर्शाया गया है, अतः इन रंगों को पिरामिड में उपयोग कर निम्न रोगों में लाभ लें। इसके अलावा स्वास्थ्य लाभ के लिए पिरामिड से संबंधित तथ्य निम्न हैं- पिरामिड की तरह वाले मकानों में रहने वालों का शारीरिक व मानसिक विकास अच्छा होता है तथा इस कारण वे दीर्घायु होते हैं। असाध्य रोगियों के लिए पिरामिड वरदान साबित होता है। ऐसे मकानों में रहने वालों को रंग निवारक शक्ति प्राप्त होती है भोजन व शाक आदि चीजें एक लंबे समय तक ताजा बनी रहती हैं। यदि 24 घंटे तक पिरामिड में रखा दूध, टाॅनिक, दवाएं आदि कमजोर स्मरण शक्ति वाले या रोग वाले व्यक्ति को दी जाये तो इन्हें स्वास्थ्य लाभ होता है। धर्म स्थान, मंदिर आदि, ध्यान, योग, साधना, मद्यपान कक्ष आदि पिरामिडाकृति के बनाने से उसमें लाभदायक/सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह निरंतर होता रहता है। अनिद्रा, भयानक सपने, भय आदि से बचने हेतु पिरामिड 3-9 की प्लेट तकिये के नीचे रखकर सोने से इनमें लाभ होता है, गहरी नींद आती है। कपड़ों की जेब में सदैव पिरामिड चिप रखने से व्यक्ति तनाव युक्त रहकर अपनी मानसिक व शारीरिक कार्यक्षकता, दक्षता को बढ़ा सकते हैं। बिस्तर पर पेशाब करने वाले बच्चों के सिरहाने पिरामिड यंत्र रखने से लाभ होता है। प्रतिदिन पिरामिड जल से चेहरा धोने से चेहरे की कांति बढ़ती है। शरीर के अंग रोगग्रस्त पर पिरामिड रखें तथा पिरामिड पड़ा जल पीने से लाभ होता है। विद्यार्थियों, प्रतियोगी परीक्षा में सम्मिलित होने वाले व्यक्तियों आदि को पिरामिड टोपी, पहनाने से स्मरण शक्ति में वृद्धि होती है जिससे लंबे समय तक याद रहता है। पिरामिड जल से तुलसी, फूल, साग-सब्जी, फल आदि पौधों को सींचने पर लाभ होता है। रोगी की चारपाई के नीचे पिरामिड अवश्य रखना चाहिए, उसे पिरामिड के नीचे रखी दवाएं, टाॅनिक, तेल, मलहम, जल, भोजन, दूध आदि दें। लेकिन सावधानी यह रखें कि पिरामिड की एक भुजा उŸार दिशा में अवश्य रहे। अपनी कुर्सी के नीचे पिरामिड रखने से ध्यान व कार्य में एकाग्रता आती है तथा कार्य क्षमता में वृद्धि होती है। जिससे स्वास्थ्य लाभ होता है। रात को पिरामिड के नीचे रखा जल प्रातः उठकर पीने से पेट के रोग, कब्ज आदि नहीं होते या दूर हो जाते हैं। कम्प्यूटर, प्रिंटर , टी.वी. आदि उपकरण पर 9 9 की पिरामिड चिप्स रखने से इनकी भी कार्य क्षमता बढ़ जाती है। नाश्ता, खाना (भोजन), अंकुरित अनाज, फल, जल, दूध आदि को कुछ समय पिरामिड के नीचे रखकर फिर इसका सेवन करने से स्वाद, शक्ति, ऊर्जा, पाचकता, दीर्घायु आदि गुण बढ़ जाते हैं। पिरामिडीय भंडार गृह में अनाज आदि रखा जाये, तो उसमें कीड़े आदि नहीं पड़ते। कई विकसित देशों में अनाज को रखने के लिए इनका उपयोग करते हैं। पानी, दूध या अन्य तरल पदार्थ को पिरामिड के अंदर रखा जाये तो उसमें उपस्थित दूषित तत्व शीघ्र समाप्त हो जाते हैं। यदि पिरामिडीय कक्ष के अंदर बीमार या अस्वस्थ्य व्यक्ति का इलाज किया जाये तो वह शीघ्र ही रोग मुक्त होकर स्वास्थ्य लाभ प्राप्त करता है। पिरामिंडों का महत्व: ऐसा माना जाता है कि प्रारंभ में ग्रेट पिरामिड पालिश किये गये चूना पत्थरों से ढका हुआ था, जिनसे सूर्य का प्रकाश परावर्तित होकर न केवल प्रकाश स्तंभ के रूप में कार्य करता था, वरन इससे मिस्रवासियों को मौसम में परिवर्तन का भी ज्ञान होता था। चंूकि ग्रेट पिरामिड की बाहरी सतह, चूना, पत्थरों से ढकी हुई थी तथा जगह-जगह पर विभिन्न विश्वास किया जाता है कि कुछ लाल रंग की पिरामिड जैसी आकृतियों का उपयोग निर्माण समय में विभिन्न मानों की सूक्ष्मता के लिए तथा भूमि को समतल करने के लिए किया जाता है। पिरामिड पृथ्वी के नक्शे (मानचित्र) का ही प्रतिरूप है और यही इसकी महŸाा है। उपरोक्त तीन बिंदु पिरामिड का वैज्ञानिक महत्व दर्शा रहे हैं। मिस्र के फरऊनों ने पिरामिडों का निर्माण उन स्थानों पर करवाया था, जो सूर्य ग्रहण के मार्ग पर थे। उनका ऐसा करने का कारण यह था कि सूर्य के समय पृथ्वी पर पड़ रही छाया का मार्ग स्वर्गारोहण का मार्ग था ताकि उन्हें मोक्ष जल्दी मिल सके। पिरामिड ऊर्जा का खगोलीय, ज्योतिषीय, वैज्ञानिक, तकनीकि महत्व: पिरामिड के भीतर के चारों कोणों की भू-गर्भत ऊर्जा ऊध्र्वगार्मी (ऊपरी की ओर) होती है। वहीं पिरामिड के ऊपरी भाग से आने वाली सूर्य की ऊर्जा अधोगामी (ऊपर से नीचे की ओर) होती है। इस प्रकार, दोनों ऊर्जाओं में असंतुलन संपादित होने के साथ ही पिरामिड के चारों त्रिभुज चारों तरफ से प्रवाहित होने वाली ऊर्जा का प्रसार करती है व सूर्य से आने वाली ऊर्जा, पिरामिड में चारों तरफ फैलकर पृथ्वी के चुम्बकीय गुणों से युक्त होकर पिरामिड के भीतर



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