करियर में श्रेष्ठता के ज्योतिषीय मानदंड

करियर में श्रेष्ठता के ज्योतिषीय मानदंड  

व्यूस : 8081 | जनवरी 2014
बुध, गुरु, सूर्य व शनि का महत्व ज्योतिष शास्त्र के प्रणेता महर्षि पराशर ने बुध ग्रह को व्यवसाय का विशेष कारक माना है इसलिए ऐसा देखा गया है कि यदि कुंडली में बुध ग्रह निर्बल हो तो जातक अपने कार्य क्षेत्र में नंबर वन पोजिशन पर पहुंच पाने में सक्षम नहीं हो पाता। बुध बुद्धि, वाकपटुता, Management skills व Resourcefulness का कारक होता है परंतु बुध ग्रह का बली होना निरर्थक माना जाएगा यदि पंचम भाव कमजोर हुआ। यही कारण है कि बली बुध की आवश्यक शर्तों में पंचम भाव के कारक गुरु, पंचमेश, व नैसर्गिक पंचमेश सूर्य के बली होने को आवश्यक शर्त माना गया। ऐसा होने से जातक महाबुद्धिमान होता है व करियर के उच्चतम शिखर पर शीघ्रता से पहुंचने में सफल होता है। गुरु हमारी महत्वाकांक्षाओं व नेतृत्व क्षमताओं के कारण हमें आगे रखता है व दिव्य बुद्धि प्रदान करता है। गुरु ग्रह से प्रभावित व्यक्ति जिस किसी भी कार्य को हाथ में लेता है उसे पूरा करके ही दम लेता है और किसी भी कार्य को अधूरा छोड़ने में विश्वास नहीं रखता और यही उसकी सफलता का मूल मंत्र होता है। ऐसे जातक में कभी न खत्म होने वाली अतिरिक्त मानसिक ऊर्जा होती है और वह घबराहट का कारण उपस्थित होने पर अपने पथ से विचलित नहीं होता तथा अपना मानसिक संतुलन बनाए रखने में सक्षम होता है। सूर्य हमारे व्यक्तित्व, कार्य संपादन, क्रिया कलापों व व्याख्यानों में चमक उत्पन्न करके हमें राजकृपा का पात्र बनाता है इसीलिए बली सूर्य वाले जातक की बातें व कार्य समाचार बन जाते हैं। सूर्य न केवल नाम, यश व कीर्ति का कारक होता है बल्कि हमारी प्रशासनिक योग्यताओं को भी दर्शाता है। उपरोक्त सभी शर्तों के पूरा होने पर यह सही है कि जातक अपने करियर में ऊंचा उठेगा लेकिन उन्नति प्राप्त होने का उसका मार्ग सरल होगा या कठिनाइयों से भरा हुआ होगा इसका सूक्ष्म विश्लेषण करने हेतु कुंडली में शनि की स्थिति का अध्ययन करना होगा। यदि कुंडली में शनि की स्थिति उत्तम हो, यह 3, 6, 10 या 11वें भाव में स्थित हो, नीचराशिस्थ व पीड़ित न हो तो आसानी से सफलता मिलेगी। नीचराशिस्थ होने की स्थिति में पूर्ण नीचभंग हो रहा हो तो भी सफलता मिल सकती है। परंतु यदि शनि का नीचभंग नहीं हुआ या शनि शत्रुराशिस्थ व पीड़ित होकर अशुभ भाव में स्थित हुआ ता जातक की सफलता पर प्रश्न चिह्न लग जाएगा तथा विशेष योग्यता संपन्न होने के बावजूद भी उसे जीवन में कठिनाइयों व संघर्ष से जूझना पड़ेगा तथा वह साधारण जीवन जीने के लिए मजबूर हो जाएगा। शनि हमें यथार्थवादी बनाकर हमारी वास्तविक शक्तियों व योग्यताओं से हमें अवगत करवाता है तथा हमें एकान्तप्रिय होकर निरंतर अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर करवाता है अर्थात् हमें थ्वबनेमक रखता है। शनि के शुभ प्रभाव से हमारे व्यावसायिक जीवन में सुरक्षा, स्थिरता व संतुलन की स्थिति बनी रहती है। उपरोक्त विश्लेषण से यह स्पष्ट है कि जीवन में श्रेष्ठतम सफलता प्राप्ति के लिए बुध, गुरु, सूर्य व शनि का महत्व सर्वोपरि है। भावों का महत्व ग्रहों का सूक्ष्म अध्ययन करने के बाद हमें भावों के महत्व को समझना होगा। लग्न व लग्नेश का महत्व इसलिए सर्वोपरि है क्योंकि कुंडली के बल का आधार लग्न है। इसलिए लग्न भाव का स्वामी बलवान होकर केंद्रस्थ होना चाहिए। लग्न पर जितने ग्रहों का प्रभाव पड़ेगा कुंडली उतनी ही बलवान होगी। दशम भाव की शक्ति करियर की ऊंचाई बताएगी यह सही है परंतु यदि द्वितीय व एकादश भाव व इनके कारक कमजोर हुए तो करियर में शीघ्रता से तरक्की, प्रोमोशन, इन्क्रीमेंट, धन लाभ आदि नहीं हो सकेगा। नवम भाव के महत्व को भी नजर अंदाज नहीं किया जा सकता व सौभाग्य के कारक शुक्र का अध्ययन भी आवश्यक है क्योंकि भाग्य की कमजोरी सफलता प्राप्ति में कठिनाइयां उत्पन्न करेंगी। जैमिनी ज्योतिष में पंचम भाव व पंचमेश के बली होने को राजयोगकारक माना गया है। इसका कारण यह है कि पंचम भाव नवम स नवम होता है अर्थात् हमारे भाग्य का भाग्य पंचम भाव, पंचमेश व कारक गुरु पर निर्भर करता है। पंचम भाव से हमारे पूर्वजन्म का विचार किया जाता है और हमारा भाग्य हमारे पूर्व जन्मार्जित कर्मों पर निर्भर है। इसलिए पंचम भाव पंचमेश व पंचम के कारक का महत्व निर्विवाद है। दशम भाव की भूमिका- नाम, यश व कीर्ति की प्राप्ति हेतु दशम भाव, दशमेश, दशम भाव में स्थित ग्रह व कारक सूर्य की श्रेष्ठतम स्थिति वांछित है। दशम भाव में स्थित ग्रह आजीविका प्राप्ति व इसके निर्धारण में सर्वाधिक भूमिका अदा करता है। जातक किस प्रकार के व्यवसाय से आजीविका प्राप्त करेगा इसके निर्धारण में भी यह ग्रह महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। यदि दशम भाव में कोई ग्रह न हो तो चंद्रमा से दशम भाव में स्थित ग्रह द्वारा आजीविका विचार करें और यदि चंद्रमा से दशमस्थ भी कोई ग्रह न हो तो सूर्य से दशम भाव में स्थित ग्रह से विचार करें। यदि जन्म लग्न, चंद्र लग्न व सूर्य लग्न इन तीनों से ही दशम में कोई भी ग्रह न रहे तो जातक को भाग्यहीन समझा जाता है और ऐसी स्थिति में दशमेश के नवांशेश से आजीविका विचार किया जा सकता है। यह तथ्य निर्विवाद है कि दशमस्थ ग्रह आजीविका निर्धारण में सहायक होता है परंतु यह आवश्यक नहीं की आजीविका का क्षेत्र भी वह निर्धारित करे। कुंडली के अन्य बली योग आपको किसी अन्य कार्यक्षेत्र में कार्य करने के लिए भी तो प्रेरित कर सकते हैं। ऐसी स्थिति में दशम भाव में स्थित ग्रह करियर में उन्नति करवाने का कारक माना जाएगा। पराक्रम भाव- यदि कुंडली में करियर प्रगति के कारक ग्रह व भाव कमजोर हों तो ऐसी स्थिति में पराक्रम भाव की ताकत आपको जीवन में ऊंचा उठा सकती है। तीसरे भाव में मंगल की स्थिति से जातक पूर्ण पराक्रमी बनता है। ऐसा जातक कठिन परिस्थितियों से नहीं घबराता व उसे खतरों से व संघर्षों से जूझना अच्छा लगता है तथा वह ऐस किसी भी कार्य में शीघ्र ही उन्नति करता है जिसमें वीरता ही श्रेष्ठता का मापदंड हो। ऐसा जातक ‘‘सैल्फ मेड मैन’’ होता है। सिकंदर महान, टीपू सुल्तान, महाराजा रंजीत सिंह व चंद्र शेखर आजाद की कुंडलियों में यह योग देखा जा सकता है। कुंडली में बलवान राजयोग कुंडली को विशेष बलवान कर देते हैं और जातक की योग्यता व सफलता दोनों को सुनिश्चित कर देते हैं। बलवान कुंडली की विशेषताएं 1. लग्नेश बली होकर केंद्र या त्रिकोण भाव में स्थित होता है। 2. शुभ ग्रह जैसे लग्नेश, गुरु, शुक्र, बुध व बलवान चंद्रमा केंद्रस्थ स्थित होते हैं। 3. पाप ग्रह 3, 6 व 11वें भाव में स्थित होते हैं। 4. आठवां व बारहवां भाव खाली होते हैं। 5. कुंडली में तीन या तीन से अधिक ग्रह उच्चराशिस्थ हों। 6. कुंडली में बली राजयोग हों अर्थात् राजयोग के कारक ग्रह विशेष बली हों। 7. कुंडली में कुछ ऐसे भी योग होते हैं जो जातक को निश्चित रूप से उन्नति के शिखर पर पहुंचाते हैं जैसे- यदा मुश्तरी कर्कटे वा कमाने। यदा चश्मखोरा जमी वासवाने।। तदा ज्योतिषी क्या लिखेगा पढ़ेगा। हुआ बालिका बादशाही करेगा।। अर्थात यदि गुरु कर्क या धनुराशिस्थ हो तथा शुक्र चतुर्थ या दशमस्थ हो तो ऐसा जातक निश्चित रूप से राजा होता है। पं. जवाहर लाल नेहरू, इंद्र कुमार गुजराल, प्रमोद महाजन तथा अन्य अनेक महान विभूतियों की कुंडलियों में यह योग देखा जा सकता है। 8. यदि चार पांच ग्रहों का परस्पर स्थान परिवर्तन योग हो जाए तो यह सफलता की ऊंचाईयों पर पहुंचा देता है। स्वर्गीय श्रीमती इंदिरागांधी की कुंडली में यह योग देखा जा सकता है। 9. सूर्य अथवा चंद्रमा से संयुक्त चार पं. जवाहर लाल नेहरू, इंद्र कुमार गुजराल, प्रमोद महाजन तथा अन्य अनेक महान विभूतियों की कुंडलियों में यह योग देखा जा सकता है। 8. यदि चार पांच ग्रहों का परस्पर स्थान परिवर्तन योग हो जाए तो यह सफलता की ऊंचाईयों पर पहुंचा देता है। स्वर्गीय श्रीमती इंदिरागांधी की कुंडली में यह योग देखा जा सकता है। 9. सूर्य अथवा चंद्रमा से संयुक्त चार ग्रह चाहे जिस किसी भी भाव में स्थित हों यह राज्य व सुख को देने वाला मालानानाप्रद योग कहलाता है। 10. यदि शुक्र, बुध लग्न में स्थित हों, गुरु केंद्रस्थ हो व मंगल दशमस्थ हो तो ऐसा जातक सर्वगुण संपन्न परम भाग्यशाली होता है। 11. यदि चर लग्न हो तथा गुरु, शुक्र व शनि केंद्रस्थ हों तो ऐसा जातक रसिक स्वभाव का, वेद शास्त्र का ज्ञाता व विख्यात होता है। 12. कई बार ऐसा देखा गया है कि अष्टम भाव में चार-पांच ग्रहों का जमावड़ा जातक को किसी विशेष क्षेत्र में प्रगतिशील बना देता है। इसके अतिरिक्त अष्टमेश अत्यंत बली होकर स्थित हो तो भी ऐसा ही प्रभाव देखा गया है। परंतु इसमें आवश्यक शर्त यह होती है कि पंचम भाव या पंचम भाव का कारक गुरु विशेष बली होना चाहिए। अमिताभ बच्चन, आचार्य रजनीश, सचिन तेंदुलकर व डा. मनमोहन सिंह की कुंडली में यह योग देखा जा सकता है। 13.कर्मस्थाने यदाजीवो बुधशुक्रस्तथा शशिः सर्वकर्माणि सिध्यन्ति राजमान्यो भवेन्नरः।। अर्थात यदि बृहस्पति, बुध, शुक्र और चंद्रमा चारों ग्रह दशम भाव में बैठे हों तो जन्म लेने वाला बालक सब कार्यों को सिद्ध करने वाला और राजाओं में मान्य होता है। 14. चारों केंद्र स्थानों में सौम्य और पाप ग्रह दोनों ही हों तो राज्य और धन को देने वाला चतुःसागर योग होता है। 15. पंचमस्थो यदा जीवो दशमस्थश्च चन्द्रमाः सपूज्यश्च महाबुद्धिस्तपस्वी च जितेन्द्रियः।। जन्म लग्न से पंचम भाव में गुरु और दशम में चंद्रमा हो तो वह राजा महाबुद्धिमान, तपस्वी व जितेन्द्रिय होता है। 16. एको जीवो यदा लगने सर्वे योगास्तदा शुभाः। दीर्घ जीवो महामान्यो जायते नायको भटाः।। यदि एक बृहस्पति उच्च राशिस्थ होकर लग्न में विराजमान हो तो सभी योग शुभ हो जाते हैं और उत्पन्न हुआ बालक दीर्घजीवी, सर्वमान्य व सेनापति होता है। जनरल परवेज मुशर्रफ की कुंडली में यह योग देखा जा सकता है। 17. श्री योग - यदि द्वितीयेश व भाग्येश केंद्रों में हों तथा इन केंद्रों के स्वामियों पर बृहस्पति की दृष्टि हो तो ऐसा व्यक्ति 22 वर्ष की अवस्था के बाद सुयोग्य मंत्री, राजा से प्रतिष्ठित, शत्रुओं पर विजय पाने वाला व अनेक देशों का मालिक होता है। 18. मंगल लग्न या सप्तमस्थ हों व सूर्य पंचमस्थ हो तो ऐसे बच्चे का वन में भी परित्याग कर दिया जाए तो भी उसके विश्वविख्यात होने में संदेह नहीं। 19. बुध व गुरु का शुभ भावों में स्थान परिवर्तन योग हो या इनकी केंद्र में युति हो या बुध धनु या मीन में स्थित हो व गुरु केंद्रस्थ हो या सू. बु. शु. दशमस्थ हों व गुरु से दृष्ट हों तथा छठे घर में पाप ग्रह हों। 20. सू. बु. दशमस्थ हों व उच्चराशिस्थ गुरु लग्न में हों। 21. गुरु व बुध दोनों उच्चराशिस्थ हों व लग्नेश बली हो। 22. सू. बु. लग्न अथवा दशमस्थ हों व गुरु उच्चराशिस्थ हो। 23. सू. बु. केंद्रस्थ हो तथा पंचमेश उच्चराशिस्थ हो व गुरु केंद्र या त्रिकोण भाव में स्थित हो। 24. मेष लग्न में सूर्य, चतुर्थ भाव में गुरु व मंगल दशम भाव में हो। 25. पूर्ण नीचभंग राज योग- नीचस्थितो जन्मनि यो ग्रहः तद्राशिनाथः तथा तदुच्चनाथः भवेत्चन्द्रलग्नाद्यपि केन्द्रवात्रिकोणवर्ती राजा भवेत्धार्मिक चक्रवर्ती। अर्थात् यदि कोई ग्रह नीचराशिस्थ हो तो उसकी उच्च व नीच राशियों के स्वामी जन्म लग्न व चंद्र लग्न दोनों से ही केंद्र या त्रिकोण भाव में स्थित हों तो जातक धर्मनिष्ठ चक्रवर्ती राजा होता है। 26. यदि लग्न, चतुर्थ, पंचम, सप्तम, नवम व दशम इन सभी भावों के स्वामी एकत्र होकर किसी शुभ भाव में विराजमान हों तो ऐसे योग वाला जातक महापुरूष होता है। राजभंग योग जहां शुभ योग जातक को उन्नति के शिखर पर ले जाते हैं वहीं कुंडली में विराजमान एक भी राजभंग योग सभी शुभ योगों को निष्फल कर देता है। इन राजभंग योगों का विवरण इस प्रकार है- 1. सूर्य व चंद्रमा दोनों नीचराशिस्थ हों। 2. सूर्य या गुरु दस से कम अंशों का होकर नीच राशि में केंद्रस्थ हो। 3. अष्टमेश का राजयोग कारक ग्रहों से संबंध हो। 4. लग्न या चतुर्थ भाव पर पाप ग्रहों का प्रभाव हो या पापकर्तरी में हो। लग्नेश या चतुर्थेश अशुभ भाव में स्थित होकर बलहीन हो। कुंडली में विद्यमान शुभाशुभ योग संचित कर्म का प्रतिनिधित्व करते हैं। इनका फल प्रारब्ध से प्राप्त होता है और इसीलिए जीवन में प्रगति का अवसर आने पर प्रारब्ध का प्रतिनिधित्व करने वाली शुभाशुभ दशा सफलता या असफलता का निर्धारण करती है और इस समय क्रियमाण कर्मों का प्रतिनिधित्व करने वाला शुभाशुभ गोचर अंतिम निर्णायक का कार्य करता है।



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