मानव अस्वस्थता का कारण नकारात्मक ऊर्जाएं

मानव अस्वस्थता का कारण नकारात्मक ऊर्जाएं  

व्यूस : 8658 | मार्च 2012
मानव अस्वस्थता का कारण नकारात्मक ऊर्जाएं गीता मैन्नम आभा मण्डल या ऊर्जा क्षेत्र उस ऊर्जा का क्षेत्र है जो हमेशा हर किसी के साथ होता है। ब्रह्मांड में प्रत्येक सजीव और निर्जीव वस्तु का अपना आभा मण्डल होता है। प्रत्येक सजीव व निर्जीव वस्तु का आभा मण्डल एक दूसरे से भिन्न होता है तथा एक दूसरे को प्रभावित करता है। मनुष्य का आभा मण्डल उसके शारीरिक अंगों के कार्यों में सहायक होता है। किसी भी मनुष्य के आभा मण्डल को पहचानकर हम उसके शारीरिक, मानसिक व आध्यात्मिक अवस्था के बारे में बता सकते हैं क्योंकि मनुष्य का आभा मण्डल उसके चक्रों की स्थिति, उसकी कार्यशैली व उसके जीवन के प्रति उसके विचार कैसे हैं इस पर निर्भर करता है। अथर्ववेद के 11वें अध्याय में भी आभा मण्डल के बारे में चर्चा की गयी है जिसे दिव्य कांति वलय कहा गया है। आभा मण्डल में इंद्र धनुष के सात रंग, राहु-केतु की कंपन शक्ति को मिलाकर नौ रंगों की कंपन शक्तियां होती हैं। विज्ञान की इतनी उन्नति के बाद भी हम स्वस्थ नहीं हैं- मानव शरीर में सात प्रमुख चक्र होते हैं जो हमारे शरीर की विभिन्न ग्रंथियों को नियंत्रित करते हैं। जैसे ही हमारे किसी चक्र की कंपन शक्ति में विघ्न उत्पन्न होता है तो उससे संबंधित ग्रंथियां प्रभावित होती हैं और शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डालती हैं। जब कोई ग्रंथि एवं अंग अपनी सामान्य कंपन शक्ति को छोड़कर अन्य ऊर्जा के साथ कंपन करने लगते हैं तो उस स्थान पर असंतुलन उत्पन्न होता है। ये प्रमुख सात चक्र हमारे शरीर के ऊर्जा केंद्र हैं जो हमारे शरीर को गति प्रदान करते हैं। सबसे पहला चक्र है मूलाधार जो हमारे स्थूल शरीर (मांस पेशियां व हड्डियों) को ऊर्जा प्रदान करता है। दूसरा चक्र है स्वाधिष्ठान जो हमारे प्रजनन अंगों व यूरेनरी सिस्टम (मूत्राशय) को ऊर्जा प्रदान करता है। तीसरा चक्र है मणिपूरा जो हमारी भावनात्मक ऊर्जा का केंद्र भी है, यह हमारे यकृत, अग्नाशय व तिल्ली को ऊर्जा प्रदान करता है। चैथा चक्र है अन्हाता जो हमारे हृदय को ऊर्जा प्रदान करता है। पांचवा चक्र है विशुद्धि जो हमारे गले को ऊर्जा प्रदान करता है। छठा चक्र है आज्ञा चक्र, यह चक्र शरीर के प्रत्येक चक्र को कार्य करने का निर्देशन देता है तथा किसी भी निर्णय को लेने में हमारी सहायता करता है। सातवां चक्र है सहर्षरारा जो हमारी आध्यात्मिक अवस्था को दर्शाता है। ये सात चक्र नीचे मूलाधार से ऊपर सहर्षरारा तक 400भ््र से 700भ््र की कंपनशक्ति में कंपन करते हैं जिस कंपनशक्ति में इंद्रधनुषीय रंग कंपन करते हैं इन चक्रों की कंपन शक्ति में असंतुलन होने पर हमारी शारीरिक व मानसिक अवस्था में भी असंतुलन उत्पन्न हो जाता है। विज्ञान के द्वारा इतनी उन्नति करने के बाद भी आजकल रोग बढ़ रहे हैं क्योंकि ऐसी कोई सूक्ष्म ऊर्जा जिसको हम महसूस नहीं कर पाते हैं इन कंपन शक्तियों में बदलाव ला रही है इनके तीन-चार कारण हैं- हमें यह जानकारी होनी चाहिए कि ऐसी कौनसी ऊर्जा है जो इन कंपन शक्तियों में बदलाव ला रही है ये ऊर्जा है- जियोपैथिक स्टेªस निगेटिव अल्ट्रा वायलेट (केतु) निगेटिव इन्फ्रारेड (राहु) विचार जियोपैथिक स्ट्रेस: हमारी पृथ्वी के अंदर से कुछ ऐसी नकारात्मक तरंगें निकल रही हैं जो हमारी शारीरिक व मानसिक अवस्था को नुकसान पहुंचा रही है जिसे जियोपैथिक स्ट्रेस कहते हैं। ‘जियो’ का अर्थ है ‘भूमि’ तथा ‘पाथोस’ का अर्थ है ‘परेशानी’ अर्थात भूमि से मिलने वाली परेशानियां। पृथ्वी के अंदर पानी चट्टानों के बीच से पतली-पतली लाइनों से होकर तेजी से बहता है। इस पानी के अंदर बहुत सी जहरीली गैस, धातु व खनिज लवण आदि मिले रहते हैं जब यह पानी का बहाव पृथ्वी की मेग्नेटिक लाइन को काटता है तो एक तरंग उत्पन्न होती है जो एक स्पायरल के रूप में ऊपर की तरफ जाती है जिससे बहुत हानिकारक तरंगें निकलती हैं। जियापैथिक स्ट्रेस पूरी तरह पृथ्वी पर एक जाल की तरह फैला हुआ है। इसकी लाइन हर 3 मीटर से 10 मीटर की दूरी पर हर दिशा में फैली हुई हैं। यदि कोई मनुष्य 24 घंटों में 6 से 8 घंटे इस लाइन पर व्यतीत करता है तो वहां से निकलने वाली तरंगें मनुष्य की शारीरिक व मानसिक अवस्था को नुकसान पहुंचाती हैं क्योंकि इन नकारात्मक तरंगों से मनुष्य के ऊर्जा क्षेत्र में सूक्षम रूप से काम करती है जिससे मनुष्य के म्दमतहल ब्मदजतमे अर्थात चक्रों की कंपन शक्ति में बदलाव आत है जिससे उनका शारीरिक व मानसिक असंतुलन उत्पन्न होता है। अधिकतर मनुष्य को कैंसर, अस्थमा, हृदय रोग, मधुमेह तथा जितने भी लाइलाज रोग हैं इसी जगह पर बैठने या सोने से होते हैं। औरतों के द्वारा गर्भधारण न करना, बच्चों में शारीरिक व मानसिक अपंगता होना या बच्चों को अत्यधिक उŸोजित होना भी इन नकारात्मक तरंगों के कारण होता है। आत्महत्या तथा हत्या जैसी घटनाएं भी इन्हीं क्षेत्रों में रहने वाले लोगों में अधिक पायी जाती हंै क्योंकि तरंगों की कंपन शक्ति 200 भ््र से भी ज्यादा होती है जबकि हमारी पृथ्वी की कंपन शक्ति केवल 7.5 भ््र है। निगेटिव अल्ट्रा वायलेट रेडियेशन (केतु): आजकल निगेटिव अल्ट्रा वायलेट रेडियेशन (जिसे पूर्वजों ने केतु का नाम दिया है) तरंगों का भी क्षेत्र बढ़ रहा है। इसकी कंपन शक्ति बढ़ने के कारण मनुष्यों के गले व सिर से संबंधित समस्याएं अधिक उत्पन्न हो रही हैं। यह ऊर्जा विद्युतीय उपकरण से निकलती है जैसे कम्प्यूटर, टी.वीस्विच बोर्ड आदि। जहां ट्रांसफार्मर व विद्युत सब स्टेशन लगे रहते हैं वहां इसकी कंपन शक्ति बहुत ज्यादा मात्रा में बढ़ जाती है। इससे मिर्गी का दौरा, ब्रेन ट्यूमर होना मानसिक संतुलन बिगड़ना आदि समस्याएं उत्पन्न होती हैं। निगेटिव इन्फ्रारेड रेडियेशन (राहु): आजकल निगेटिव इन्फ्रारेड, (जिसे पूर्वजों ने राहु का नाम दिया है) तरंगों का भी क्षेत्र बढ़ रहा है। कभी-कभी इसका क्षेत्र जियोपैथिक स्ट्रेस में भी पाया जाता है। कभी इसका एक अपना क्षेत्र होता है। कभी-कभी यह ऊर्जा धातु और चमड़ा में भी पायी जाती है। यदि आपके द्वारा यह रोजमर्रा पहनने वाले आभूषण, बेल्ट में यह निगेटिव इन्फ्रारेड रेडियेशन (राहु) होती है तो वह आपके शरीर की ऊर्जा खीचने लगती है और इस स्थान पर स्वास्थ्य से संबंधित परेशानी उत्पन्न होने लगती है। विचार: मनुष्य के स्वास्थ्य पर उसके विचारों का भी बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है क्योंकि एक विचार का भी अपना क्षेत्र व कंपन शक्ति होती है। जिस प्रकार के विचार होते हैं, उसी प्रकार का ऊर्जा क्षेत्र एक मनुष्य का होता है। एक-एक नकारात्मक विचार हमारी शारीरिक ऊर्जा क्षेत्र में बाधा उत्पन्न करते हैं जो किसी शारीरिक रोग के रूप में बाहर आते हैं। उदाहरण के लिए यदि कोई मनुष्य लगातार पैसे के बारे में ज्यादा चिंता करता है या परेशान रहता है तो वह रीढ की हड्डी के निचले हिस्से के दर्द की समस्या से पीड़ित हो जाता है। यूनीवर्सल थर्मो स्कैनर: यह एक ऐसा यंत्र है जिसमें हम कुछ सैम्पल का प्रयोग करके किसी भी नकारात्मक ऊर्जा का पता लगा सकते हैं। यह एक कंपन शक्ति पर कार्य करता है। जिस कंपन शक्ति का प्रयोग स्कैनर में सैम्पल के रूप में करते हैं, उस कंपन शक्ति की छोटी-छोटी जानकारी की स्कैनर द्वारा प्राप्त की जा सकती है। स्कैनर द्वारा किसी भी मनुष्य के शरीर की जांच करके पता लगाया जा सकता है कि उसके शरीर में ये किस तरह की और कितने प्रतिशत नकारात्मक ऊर्जा आ चुकी है। इसी प्रकार घर की भी सकारात्मक और नकारात्मक ऊर्जा का पता लगाया जा सकता है। इसकी सहायता से मनुष्य के शारीरिक अंगों में आ चुकी और आने वाली बीमारियों का पता लगाया जा सकता है क्योंकि मनुष्य के शरीर में कोई भी बीमारी पहले उसके ऊर्जा क्षेत्र को प्रभावित करती है फिर वह शारीरिक क्षेत्र तक पहुंचती है। यदि कोई बीमारी मनुष्य के ऊर्जा क्षेत्र में है लेकिन शारीरिक क्षेत्र में नहीं पहुंचती है तो स्कैनर के द्वारा उस बीमारी की पहचान कर ली जाती है। क्रमश...



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