मन्त्र-यंत्र-तंत्र का महत्व

मन्त्र-यंत्र-तंत्र का महत्व  

व्यूस : 8087 | जुलाई 2012
मंत्र-यंत्र-तंत्र का महत्व गीता मैन्नम इस पत्रिका के पिछले अंकों में आपको मानव स्वास्थ्य पर नकारात्मक ऊर्जाओं का प्रभाव, वास्तुशास्त्र, राशिरत्न में ऊर्जाओं के प्रभाव के विषय में अवगत कराया गया है इस अंक में हम आपको मंत्र-यंत्र व तंत्र के महत्व के बारे में अवगत करायेंगे तथा साथ ही साथ अन्य सकारात्मक ऊर्जा प्रवाह करने वाले पेड़ व जानवरों के बारे में भी हम वर्णन करेंगे। यह भी बतायेंगे, इनका जीवन में क्या महत्व है तथा इनका प्रयोग करने का वैज्ञानिक कारण क्या है। गाय एक सकारात्मक ऊर्जा का स्रोत है। प्राचीन समय से ही भारतवर्ष में गाय को माता के रूप में माना जाता है तथा उसकी पूजा की जाती है। उस समय प्रत्येक घर में एक गाय होना आवश्यक माना जाता था क्योंकि गाय के पंचगव्य अर्थात दूध, दही, घी, गोबर व मूत्र का ऊर्जा क्षेत्र मानव के ऊर्जा क्षेत्र से अधिक होता है। गाय इतना सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह करती है कि उस ऊर्जा क्षेत्र में रहने वाले लोगों को मानसिक शांति का अनुभव होने लगता है। हमारे ऋषि-मुनि इस तथ्य से अवगत थे कि गाय एक सकारात्मक ऊर्जा का केंद्र है इसलिए उन्होंने गौ पूजन करने के लिए कहा था जिससे उस ऊर्जा क्षेत्र में रहने के कारण हमारी ऊर्जा में भी वृद्धि हो सके। मानव का ऊर्जा क्षेत्र 2.5 से 2.8 मीटर तक होता है परंतु गाय के दूध का ऊर्जा क्षेत्र 12-13 मीटर होता है तथा नवजात शिशु को उसकी माता के दूध के अलावा गाय का दूध का ही सेवन करने के लिए बताते हैं। गाय के दूध की दही का ऊर्जा क्षेत्र 6.5 से 6.7 मीटर तक होता है तथा यह मानव शरीर से टाक्सिन निकालने में सहायता करता है। गाय के घी का ऊर्जा क्षेत्र लगभग 14 मीटर होता है। इस घी को दीपक में जलाने से वातावरण की नकारात्मक ऊर्जा खत्म होती है तथा सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है। तिल का तेल जलाने से भी नकारात्मक ऊर्जा को खत्म किया जाता है। गाय का घी कई औषधियों मंे भी प्रयोग किया जाता है। गौमूत्र का ऊर्जा क्षेत्र 8 से 9 मीटर तक होता है। गौमूत्र का प्रयोग कैंसर की दवाई बनाने में किया जाता है तथा विभिन्न प्रकार की अन्य औषधियों में भी किया जाता है। गौमूत्र कई प्रकार के बैक्टिरिया को भी खत्म करने में इस्तेमाल किया जाता है तथा गाय के गोबर का ऊर्जा क्षेत्र 6 मीटर है। इसका प्रयोग नकारात्मक ऊर्जा खत्म करने के लिए किया जाता है। पहले समय में पूजा स्थल पर सर्वप्रथम गाय के गोबर से लेपन किया जाता था जिससे वहां पर नकारात्मक ऊर्जा खत्म किया जा सके तथा हमारे घरों में दीवारों व फर्श पर गोबर का लेपन किया जाता था इसलिए प्राचीन समय में हम इतनी बीमारियों से बचे रहते थे। कहा जाता है, कि जब भगवान श्रीकृष्ण ने पूतना राक्षसी को मारा था, तो उससे छुड़ाने के लिए पूतना के मृत शरीर पर गोबर का लेप किया गया था जिससे उसकी नकारात्मक ऊर्जा खत्म हो गयी और श्रीकृष्ण को उसके शरीर से अलग कर दिया गया। इसलिए प्राचीन समय में गृह प्रवेश के समय सबसे पहले गाय को अंदर प्रवेश कराया जाता था जिससे वहां की दीवारों व फर्श की नकारात्मक ऊर्जा खत्म हो जाये। इसलिए कई घरों में गाय के घी में अखंड ज्योति जलती है जिससे वहां पर सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता रहे। इसी प्रकार मंत्रों का भी हमारे जीवन में बहुत महत्व है। जब हम किसी भी मंत्र का सही उच्चारण के साथ जाप करते हैं तो उससे संबंधित ध्वनि तरंगे उस वातावरण में फैल जाती हैं तथा वहां की सकारात्मक ऊर्जा की वृद्धि होती है जिससे हम अपने अंदर बहुत ही सकारात्मक ऊर्जा के प्रवाह को महसूस करते हैं। जब हम किसी भी हवन आदि में भाग लेते हैं तब वहां पर सब लोग एक साथ जोर-जोर से मंत्रों का जाप करते हैं तो हमारे अंदर एक अलग तरह की सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है। उस समय हमारे अंतर्मन में कोई भी नकारात्मक विचार नहीं आता क्योंकि उस वातावरण में मंत्रों की इतनी सकारात्मक ध्वनि तरंगें हमारे शारीरिक कंपन्नशक्ति के अनुरूप या मिलती-जुलती होती है जिससे हमें एक शक्ति का अनुभव होता है। स्ट्रेस में रहने वाले लोगों पर इसका बहुत गहरा प्रभाव होता है। वे मंत्र का जाप करके अपने सामान्य कंपनशक्ति में आ जाते हैं तथा काफी देर ये जाप सुनने से बहुत सी ऊपरी बीमारियां भी खत्म होने लगती हैं। हमारे चक्रों के भी अलग-अलग बीजाक्षर होते हैं जिन्हें बोलने से हम अपने चक्राओं की ऊर्जा को सामान्य स्तर पर ला सकते हैं जैसे मूलाधार का बीजाक्षर है लं। यदि हमारा मूलाधार चक्र में अवरोध उत्पन्न होता है तो हम लं मंत्र का उच्चारण कर अपने चक्र को सामान्य स्थिति में ला सकते हैं। इसी प्रकार अन्य चक्रों के बीजाक्षर हैं- सवाधिष्ठान-वं, मणिपूरा-रं, अनाहता-यं, विशुद्धि-हं, आज्ञा व सहस्ररारा का-आंेम्। यह ओम् मंत्र सबसे अच्छा मंत्र है। इसका उच्चारण करने से बहुत अच्छा परिणाम प्राप्त होता है। यंत्र का निर्माण रेखागणित पर आधारित है। और आकारों को मिलाकर इनका निर्माण किया जाता है अलग-अलग आकार के और बनाकर उसमें अलग-अलग कंपनशक्तियों का प्रवाह होता है। यदि आपके घर में किसी दिशा में कोई कंपनशक्ति कम है तो उससे संबंधित यंत्र जो उस कंपनशक्ति का प्रवाह करता है उस स्थान पर लगा दें। उससे वहां की कंपनशक्ति पूरी होकर सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह करने लगेगा। जैसे हम विघ्नहर्ता यंत्र लगाते हैं। उस यंत्र में कुछ ऐसी तरंगें निकलती हंै जो विघ्न उत्पन्न करने वाली तरंगों को समाहित कर देती हैं। कई प्रकार के यंत्र हैं जिनका हम प्रयोग कर सकते हैं परंतु यंत्रों का प्रयोग भी बहुत सावधानी से करना चाहिए। क्योंकि जिस कंपनशक्ति की आपको आवश्यकता नहीं है फिर हम उससे संबंधित कोई यंत्र लगा दें तो भी उस कंपनशक्ति की अधिकता से हमें मानसिक परेशानी उत्पन्न हो सकती है। तंत्र-इस विद्या से लोग सामान्यतः डरते हैं क्योंकि अधिकतर इस विद्या का प्रयोग नकारात्मक रूप में किया जाता है। परंतु इनका भी अपना एक महत्व है। यदि इनका सही प्रकार से प्रयोग किया जाये तो इससे हमें बहुत अच्छे परिणाम मिल सकते हैं। जिस प्रकार हम पानी में नीबू डालकर दुकान आदि में रखते हैं। तब वह नीबू नकारात्मक शक्ति को खींचकर पानी के ऊपर तैरने लगती है। तब हम उस नीबू और पानी को फेंक देते हैं। इसी प्रकार नजर लगने पर लाल मिर्च को एन्टी-क्लोक घुमाकर आग में डाल दें तो उसमें गंध नहीं आती है। इसी प्रकार यदि हम किसी की नजर उतारकर नीबू आदि को चैराहे पर डाल देते हैं तो वह बहुत ही खतरनाक होता है क्योंकि उस नीबू पर किसी अन्य व्यक्ति के पैर पड़ते हैं वह ऊर्जा जो हमने पहले व्यक्ति से निकाली थी वह उस व्यक्ति में चली जाती है। वास्तव में ऊर्जा का एक वस्तु से दूसरी वस्तु में आवागमन होता रहता है। यही कारण है कि नीबू पर पैर पड़ने से उस नीबू में जो ऊर्जा होती है वह पैर रखने वाले व्यक्ति में ट्रांसफर हो जाती है। जिससे उस व्यक्ति को परेशानी उत्पन्न होने लगती है। इन सब तंत्रों को करने का वैज्ञानिक कारण जानकर यदि हम इनको सही तरीके से करें तो हम इससे बहुत अच्छे परिणाम पा सकते हैं। इसी तरह हमारे ऋषियों ने कुछ पेड़ों के बारे में भी बताया है, जो बहुत ही सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह करते हैं जैसे तुलसी, कदम्ब तथा पीपल। इनकी परिक्रमा करने पर मनुष्य अपनी ऊर्जा क्षेत्र को बढ़ा सकता है तथा नवग्रह से संबंधित पेड़ भी होते हैं। यदि किसी ग्रह की कंपनशक्ति की कमी आपके अंदर है तो उससे संबंधित वृक्ष की परिक्रमा करने से, उस कंपनशक्ति को पूरा कर सकते हैं। इस प्रकार गाय के अतिरिक्त अन्य जानवर भी है, जो कुछ नकारात्मक व सकारात्मक तरंगे पहचानते हैं। जैसे बिल्ली, चमगादड़, चीटियां व दीमक, नकारात्मक ऊर्जा में रहना पसंद करती है तथा घोड़ा, कुŸाा ये जानवर नकारात्मक ऊर्जा में नहीं रह पाते हैं तथा वह सकारात्मक ऊर्जा वाले स्थान में ही रहना पसंद करते हैं। यूनीवर्सल थर्मो स्कैनर की सहायता से हम नकारात्मक व सकारात्मक ऊर्जा को पहचानते हैं तथा इसकी सहायता से हम कौनसा यंत्र किस दिशा और किस स्थान पर लगाने से 100 प्रतिशत सकारात्मक ऊर्जा प्रवाह करेगा यह बता सकते है।



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