दुर्लभ वनस्पति परिचय एवं प्रयोग

दुर्लभ वनस्पति परिचय एवं प्रयोग  

व्यूस : 51866 | जुलाई 2012
दुर्लभ वनस्पति परिचय एवं प्रयोग डाॅ. भगवान सहाय श्रीवास्तव रत्नगर्भा भारतभूमि आदिकाल से ही दुर्लभ वनस्पतियों से परिपूर्ण रही है। इन वनस्पतियों का व्यापक प्रभाव मनुष्य के शरीर पर पड़ता है। समृद्धि एवं शक्ति संपन्न तथा अद्भुत और चमत्कारिक लाभ प्रदान करने वाली ऐसी कुछ उल्लेखनीय दिव्य वनस्पतियांे की जानकारी दी गई है। इस लेख में साथ ही विभिन्न शंखों की विशेषताओं और उनके लाभों का उल्लेख भी पाठकों के लाभार्थ किया गया है। हर सिंगार के बांदा: आकस्मिक लाभ के लिए हर सिंगार के बांदा का प्रयोग करते हैं। उक्त बांदा को प्राप्त कर संपूर्ण बांदा पर अष्टगंध लगा दें। फिर बांदा के ऊपर सिंदूर से स्वास्तिक का अंकन कर किसी चांदी के पात्र में ढक्कन बंद करके रखें। इसे अपनी दुकान तथा व्यापार स्थल अथवा घर पर धन स्थान या गल्ले में स्थापित कर लाभान्वित हो सकते हैं। गरुड़ का बांदा: गरुड़ का बांदा दिव्य शक्ति संपन्न होता है। इस बांदा को सफेद गुंजा के इक्कीस दानों के साथ चांदी के डिब्बे में शहद के साथ डुबोकर रखें। यह बांदा कार्य सफलता में सहायक है। व्यापारियों के लिए यह प्रभावकारी माना जाता है। कल्प फल: कल्प वृक्ष को सुख, समृद्धि, संपन्नता एवं स्थायित्व का प्रतीक माना जाता है। कल्पवृक्ष से प्राप्त फल को कल्प फल कहते हैं। इस वृक्ष में नर एवं मादा श्रेणी के दो वृक्ष होते हैं। मादा वृक्ष में 12 वर्षों में एक बार फल लगता है। कल्प फल को प्राप्त कर उस पर अष्टगंध एवं कामिंया सिंदूर का लेप करके मौली (कलावा) लगाकर किसी चांदी के पात्र में रखकर धन स्थान/व्यापार स्थल पर गल्ले/तिजोरी/कैश बाक्स में स्थापित कर धूप-दीप से इस फल की पूजा करनी चाहिए। इंद्रजाल: यह एक वनस्पति है जो जंगलों में पायी जाती है। इसका आकार शिराओं की भांति लहरदार लकीरों के रूप में होता है। शिराओं के मध्य समस्त स्थान खाली रहता है। इसको अपने पास रखने से नजरदोष, ऊपरी बाधा आदि का प्रभाव क्षीण होता है। यह प्रबल आकर्षण शक्ति संपन्न है। रवि पुष्य नक्षत्र, नवरात्र, दीपावली इत्यादि शुभ समय मंे मंत्रों से इंद्रजाल वनस्पति की शक्ति को मंत्रों से अभिमंत्रित कर साधक अपने कर्मक्षेत्र में अध्यात्मिक लाभ प्राप्त कर सकता है। वैजयन्ती: इसका वृक्ष परम सौभाग्य कारक होता है। इसकी माला धारण करने से ग्रह दोषों की निवृत्ति होती है तथा मानसिक शांति मिलती है। इसकी माला साधना-सिद्धि में प्रभावकारी है। वैजयन्ती माला को पुष्य नक्षत्र में धारण करना शुभदायक है। कमलगट्टा: कमलगट्टे के बीजों में लक्ष्मी जी का वास माना जाता है। वहीं इन बीजों में शत्रु कष्टों से रक्षा की शक्ति भी निहित है। लक्ष्मी जी के मंत्रों एवं धनदायक मंत्रों के जप कमलगट्टे की माला से करते हैं। शत्रुजन्य कष्टों से बचाव हेतु मंत्र जप भी कमल गट्टे की माला से किया जाता है। लक्ष्मीजी के लिए मंत्रोच्चार द्वारा किये जाने वाले हवन में कमलगट्टे के बीजों से आहुति दी जाती है। श्रीफल (नारियल): यह शकुन व शुभ का प्रतीक है। इसे श्रीफल भी कहते हैं यह आध्यात्मिक महत्व के साथ-साथ औषधीय गुणों से भी भरपूर है। इसके वृक्ष को घर की चहारदीवारी में लगाना शुभत्व प्रदान करता है। कोई भी धार्मिक अनुष्ठान अथवा शुभकार्य बिना नारियल के पूर्ण नहीं हो सकता। लघु नारियल का प्रयोग अर्थलाभ, व्यापार में ऋद्धि-सिद्धि हेतु किया जाता है। एकाक्षी नारियल: एकाक्षी नारियल दुर्लभ परंतु प्रभावशाली माना गया है। इसे किसी शुभ मुहूर्त में प्राप्त करके चैकी पर कपड़े के ऊपर रखकर सिंदूर मिश्रित देशी घी का लेप, धूप-दीप, पुष्प, चंदन इत्यादि समर्पित करें। इसकी विधि-विधान से प्रतिष्ठा करने व मंत्रों द्वारा पूजा करने से सौभाग्य जागृत हो जाता है। दरियाई नारियल: दरियाई नारियल धनात्मक ऊर्जा संपन्न माना जाता है। यह शक्तिदायक होता है। इसको घर एवं व्यापार-स्थल पर विधि-विधान से रखने से नकारात्मक ऊर्जा से बचाव होता है एवं कार्य व्यापार बाधा शमन के उपयोग में भी आता है। निर्गुण्डी: बिक्री बढ़ाने एवं धन-धान्य वृद्धि हेतु निर्गुण्डी को उपयोग में लिया जाता है। निर्गुण्डी के पौधे को रविपुष्य नक्षत्र के शुभ मुहूर्त में प्राप्त करके पीली सरसों के साथ रखकर पोटली बना लें। इस पोटली को व्यवसाय-स्थल अथवा घर में धन-स्थान पर स्थापित करना चाहिए। लघु नारियल: लघु नारियल का प्रयोग अर्थलाभ, व्यापार सिद्धि-ऋद्धि हेतु किया जाता है। हत्था जोड़ी: अभिमंत्रित असली हाथा जोड़ी को कामियां सिंदूर, लौंग, कपूर सहित अपने पास रखने से धन व प्रभुता के साथ-साथ निर्भयता में वृद्धि होती है। तुलसी: इसकी माला तैयार करके गले में धारण करते हैं। तुलसी में नकारात्मक ऊर्जा को शमन करने की शक्ति होती है। इसीलिए इसे बुरी नजर से उत्पन्न नजर दोषों से बचाव के लिए उपयोग में लाते हैं। तुलसी में एक उड़नशील तेल होता है जो आस पास के वायु मंडल अथवा वातावरण में व्याप्त हो जाता है जिसमें नकारात्मक ऊर्जा को संतुलित करने की क्षमता होती है। नजर बट्टु: नजर बट्टु एक वनस्पतिक फल होता हे। छोटे-छोटे बच्चों को बार-बार नजर के प्रकोप से बचाने के लिए नजर बट्टू का उपयोग लाभप्रद रहता है। भौरमणि: यह वनस्पति पुरी (उड़ीसा) के क्षेत्रों में पाई जाती है। यह बुरी नजर वालों का मुंह काला करती है तथा व्यक्ति की रक्षा करती हैं। भौरमणि के मनकों की माला को गले में धारण करते हैं। इसे बुरी नजर के अनिष्ट प्रभावों से रक्षा हेतु तथा डर व भय से बचाव हेतु एवं नकारात्मक भावना विचार एवं शक्तियों से रक्षा के लिए पहना जाता है। भौरमणि की माला से व्यक्ति में सात्विक गुणों का आविर्भाव होता है। मानसिक शुद्धि एवं आध्यात्मिक शक्ति के विकास का मार्ग प्रशस्त होता हे तथा बुरे विचारों का शमन होता है। कुछ अनूठी वनस्पतियां सोमवन्ती वनस्पतिः यह वनस्पति देव. भूमि हिमालय की गोद में वेदुन्ती नामक अप्सरा के श्राप से इस घोर कलियुग में सोमवन्ती नामक वनस्पति उत्पन्न हुई है। इसका पौधा तीन फीट लंबा व इसके पत्ते मोटे होते हैं। पत्तों में पानी की मात्रा ज्यादा होती है। देखने में मन मोह लेने वाली यह वनस्पति प्रकृति की प्यारी व स्वर्ग की दुलारी है। इस वनस्पति के सोलह फूल आते हैं तथा बीज के चारों ओर एक दिव्य पदार्थ रहता है। एक फूल में कम से कम 5 ग्राम तक यह पदार्थ निकलता है। इससे वायवीय धूप बनता है जो कि तांत्रिक प्रयोगों में काम आता है। यह धूप आक पत्तों पर रखने मात्र से अपने आप जलने लग जाता है। इसे आग दिखाने की कोई जरूरत नहीं होती। आज जो भी कार्य मानव को कहेंगे पूरा होगा। यह केवल तन को सुखी रखने के लिए है। यह कोई जादू या मंत्र नहीं है। वस्तुतः यह धूप कई तंत्र प्रयोगों में काम आती है। जल जगनी वनस्पति: ंयह वनस्पति पृथ्वी की गोद में लता की भांति जमीन पर पड़ी रहती है। इसके पत्ते छोटे आकार के व देखने में अति सुंदर होते हैं। पत्तों का रस निकालकर बोतल में भरकर रखें। ध्यान रहे कि मात्र स्वरस ही होना चाहिए। इस रस को आप बहती हुई नदी या तालाब में डालकर पानी पर खड़े हो सकते हैं तथा चल भी सकते हैं। यह भी कोई मंत्र नहीं है। आप कर सकते हैं। यह वनस्पति पानी को बांधने की शक्ति रखती है। इसे कटोरे में पानी बांध कर काट सकते हैं। यह सब प्रकृति का ही चमत्कार है। यह वनस्पति संभावती अप्सरा की देन है। कई मानवीय असाध्य बीमारियों का इलाज इस वनस्पति के पास है। पेट व गुदा संबंधी इलाज तत्काल होता है। वन-कन्या-वनस्पति: हिमालय भूमि पर यह वनस्पति सौन्दर्य बिखेरे खड़ी है। यह भयपुनिता नामक अप्सरा से ही वन-कन्या नामक वनस्पति बनी है। इसके श्राप से हर वर्षा ऋतु में आद्र्रा नक्षत्र में स्वर्ग से बीज डाले जाते हैं। फिर यह पौधा बड़ा होकर करीब दो मीटर लंबा पौधा बन जाता है। इसके पत्ते पत्थर चट्टा जैसे होते हैं। इस पौधे के समीप जाकर एक लाईन अपनी तर्जनी उंगली से खींचकर इस वनस्पति को नियमित रूप से प्रणाम करते रहे जिससे इस वनस्पति का प्रत्येक पत्ता आपको प्रणाम करता प्रतीत होगा तथा यह वनस्पति बात भी कर सकती है। इसके पास बैठकर कोई भी साधना की जाय तो अवश्य ही सफलता मिलती है।



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