शिक्षा-विषय चयन में ज्योतिष की भूमिका

शिक्षा-विषय चयन में ज्योतिष की भूमिका  

सुशील अग्रवाल
व्यूस : 7324 | फ़रवरी 2016

1. विषय प्रवेश शिक्षा की महत्ता इसी तथ्य से स्पष्ट होती है कि भारतीय हिन्दू दर्शन में शिक्षा को माँ सरस्वती की देन माना गया है और भारत में शिक्षा एक संवैधानिक अधिकार भी है। अगर अच्छे प्रारंभिक संस्कार और जातक की प्रवृत्ति अनुसार शिक्षा मिल जाये तो जातक को उन्नति और प्रगति की ओर अग्रसर होने में आसानी होती है। प्राचीन समय में शिक्षा का दायरा सीमित था। आजकल शिक्षा की अनेक सूक्ष्म शाखाएं हो गयी हैं परन्तु आधारभूत विषय तीन ही हैं साइंस, कॉमर्स और आर्ट्स। विद्यार्थियों को ग्यारहवीं कक्षा में ही इनमें से किसी एक का चयन करना पड़ता है और कई बार विद्यार्थी निर्णय नहीं ले पाता कि वह किस विषय का चयन करे। ऐसी भ्रमित परिस्थितियों में ज्योतिषीय सलाह ही इस लेख का विषय है।

2. ग्रह और शिक्षा की दिशा उपलब्ध शिक्षा विषयों में साइंस को तकनीकी, कॉमर्स को अर्ध-तकनीकी और आर्ट्स को अतकनीकी कह सकते हैं। ज्योतिषीय दृष्टिकोण से नैसर्गिक अशुभ ग्रह (शनि, मंगल, सूर्य, राहु और केतु) जातक का रुझान तकनीकी विषयों में कराते हैं। नैसर्गिक शुभ ग्रह (गुरु, शुक्र, बुध और चन्द्र) जातक का रुझान अतकनीकी विषयों में कराते हैं। अगर दोनों प्रकार के प्रभावों का मिश्रण हो तो अर्ध-तकनीकी विषयों की तरफ रुझान होता है। चयन के समय की महादशा का प्रभाव भी जातक के रुझान पर पड़ता है।

3. भाव और ग्रह द्वितीय भाव से प्रारंभिक संस्कार, चतुर्थ भाव से स्कूली शिक्षा (जब तक किसी चयन की आवश्यकता न हो) और पंचम से चयन एवं उसके पश्चात् की शिक्षा देखी जाती है। बदलते समय के कारण भावों के सम्बन्ध में कुछ मत भिन्नता भी है। इसके अतिरिक्त, बुध की स्थिति और बुध से पंचम का आकलन भी आवश्यक है क्योंकि बुध व्यावहारिक बुद्धि, श्रवण-स्मृति और विश्लेषणात्मक क्षमता के भी कारक हैं।

4. उदाहरण उपरोक्त जानकारी को हम सूचीबद्ध रूप में उदाहरणों में प्रयोग करेंगे। नियमों को लगाते समय केवल ग्रहों की गिनती पर सम्पूर्ण ध्यान केन्द्रित न करें, बल्कि अगर किसी ग्रह की पुनरावृत्ति हो रही है तो उसका योगदान महत्वपूर्ण हो सकता है। उदाहरण -1 15-1-1992, 21ः35, दिल्ली दशा भोग्य: सूर्य 3 वर्ष 2 महीने 22 दिन घटक ग्रह

1 पंचम में बैठे ग्रह बुध, मंगल, राहु

2. पंचम को देखते ग्रह केतु, गुरु

3. पंचमेश गुरु

4. पंचमेश का राशीश सूर्य

5. पंचमेश का नक्षत्र स्वामी शुक्र (पू. फा)

6. पंचमेश के साथ बैठे ग्रह --

7. पंचमेश को देखते ग्रह --

8. बुध का राशीश गुरु

9. बुध से पंचम राशि का स्वामी मंगल

10. बुध से पंचमेश का नक्षत्र स्वामी केतु (मूल)

11. बुध से पंचमेश के साथ बैठे ग्रह बुध, राहु

12 बुध से पंचमेश को देखते ग्रह केतु, गुरु

13 बुध से पंचम में बैठे ग्रह --

14 बुध से पंचम को देखते ग्रह गु दशा: मंगल 2005-2012 नैसर्गिक अशुभ ग्रहों के अतिरिक्त गुरु का प्रभाव भी बहुत स्पष्ट है।


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निष्कर्षतः जातक ने साइंस (तकनीकी) का चयन किया था और आजकल, एम. टेक करने के पश्चात यू. एस. ए. के एक काॅलेज में रिसर्च एवं अध्यापन क्षेत्र में कार्यरत हैं। 4.3 उदाहरण 2 जन्म: 29 अगस्त 1969, 20ः00 बजे दिल्ली दशा भोग्य: शनि 7 वर्ष और 3 महीने घटक ग्रह

1 पंचम में बैठे ग्रह शुक्र

2. पंचम को देखते ग्रह --

3. पंचमेश चंद्र

4. पंचमेश का राशीश गुरु

5. पंचमेश का नक्षत्र स्वामी शनि (उभा)

6. पंचमेश के साथ बैठे ग्रह ---

7. पंचमेश को देखते ग्रह गुरु, बुध

8. बुध का राशिश बुध

9. बुध से पंचम राशि का स्वामी शनि

10. बुध से पंचमेश का नक्षत्र स्वामी केतु (भरणी)

11. बुध से पंचमेश के साथ बैठे ग्रह -

12 बुध से पंचमेश को देखते ग्रह -

13 बुध से पंचम में बैठे ग्रह --

14 बुध से पंचम को देखते ग्रह शुक्र, शनि, गुरु दशा: 1976-1993 बुध नैसर्गिक शुभ और अशुभ ग्रहों के प्रभावों का स्पष्ट मिश्रण है। इसीलिये जातक का रूझान अर्ध-तकनीकी अर्थात काॅमर्स था। जातक ने काॅमर्स ली और बी-काॅम (आॅनर्स), आई. सीडब्लू. ए., सी. एस., एम. ए. अर्थशास्त्र आदि भी किया। 4.3 उदाहरण -3 जन्म: 12 फरवरी 1965, 07ः30 बजे, आगरा दशा भोग्य: मंगल 0 वर्ष 8 महीने 22 दिन घटक ग्रह

1 पंचम में बैठे ग्रह चंद्र

2. पंचम को देखते ग्रह --

3. पंचमेश बुध

4. पंचमेश का राशीश शनि

5. पंचमेश का नक्षत्र स्वामी शनि (श्रवण)

6. पंचमेश के साथ बैठे ग्रह सूर्य, शुक्र

7. पंचमेश को देखते ग्रह ---

8. बुध का राशिश शनि

9. बुध से पंचम राशि का स्वामी शुक्र

10. बुध से पंचमेश का नक्षत्र स्वामी चंद्र (श्रवण)

11. बुध से पंचमेश के साथ बैठे ग्रह सूर्य, बुध

12 बुध से पंचमेश को देखते ग्रह -

13 बुध से पंचम में बैठे ग्रह राहु

14 बुध से पंचम को देखते ग्रह केतु दशा: 1965-1983 राहु नैसर्गिक शुभ और अशुभ ग्रहों का मिश्रित प्रभाव है इसीलिये जातक का रूझान अर्ध-तकनीकी अर्थात काॅमर्स होना चाहिये था जबकि जातक ने ग्यारहवीं कक्षा में आट्र्स विषय का चयन किया परंतु काॅलेज में विषय बदलकर अपनी प्रवृत्ति अनुसार काॅमर्स ली और बी. काॅम के बाद एम. बी. ए. इत्यादि किया।


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