व्यवसायी बनने के योगों का निर्धारण एवं प्रतिपादन

व्यवसायी बनने के योगों का निर्धारण एवं प्रतिपादन  

सुशील अग्रवाल
व्यूस : 4236 | जुलाई 2016

न हि कश्चित् क्षणमपि जातु तिष्ठत्यकर्मकृत्। कार्यते ह्यवशः कर्म सर्वः प्रकृतिजैर्गुणैः।। अर्थात, कोई भी व्यक्ति एक क्षण के लिए भी बिना कर्म किए नहीं रह सकता। सभी अपने स्वभाव से उत्पन्न राग-द्वेष आदि गुणों के अधीन होकर कर्म में प्रवृत्त होते हैं।

1. प्रारब्ध में प्राप्त इन्हीं प्रवृत्तियों के अधीन जातक आजीविका के अलग-अलग साधनों की तरफ भी प्रेरित होता है। अनेकों उदाहरणों में ऐसा देखा गया है कि व्यक्ति नौकरी में उच्चतम सीमा पर पहुँच कर भी खुश नहीं रहता और स्वतंत्र व्यवसाय करने की उधेड़-बुन में लगा रहता है। इसी प्रकार कुछ व्यक्ति अपना व्यवसाय शुरू करते हैं परन्तु अथक प्रयासों के बावजूद मनोवांछित सफलता प्राप्त नहीं कर पाते। इस प्रकार के परीक्षणों में मूल्यवान समय के साथ-साथ पैसे का भी व्यय होता है।

आर्ष साहित्य में हमें व्यवसायी बनने के योगों का वर्णन एकत्र रूप से नहीं मिलता है। आजकल संभावनाओं का आकाश असीमित है इसीलिए ज्योतिषियों के समक्ष इस प्रकार के प्रश्नों के समाधान की एक चुनौती होती है।

2. निर्धारण लग्न/लग्नेश: प्रवृत्ति, सोच, महत्वाकांक्षा, दूरदर्शिता, व्यक्तित्व और आत्मविश्वास आदि के लिए लग्न/लग्नेश का बली होना व्यवसाय की तरफ प्रेरित करता है।

3. चन्द्र: ”मन में हारे हार है, मन के जीते जीत“ मूलमंत्र का एक जीता-जागता उदाहरण हैं स्टीफंस हाॅकिंस, जिन्होंने शारीरिक अक्षमता के बावजूद हार नहीं मानी और जिंदगी की राह पर सफलता की सीढ़ी चढ़ते हुए खगोल, भौतिक विज्ञान और गणित में अनेकों अद्भुत अनुसन्धान किये। अर्थात, अगर सबल मन हो तो व्यवसाय के लिए ज्यादा उपयुक्त होता है जिससे जातक समस्याओं का सामना स्थिर मन एवं दृढ़ता से कर पाता है।

4. दशम/दशमेश अर्थ त्रिकोण की धुरी है जो केंद्र में स्थित होकर कर्म सम्बंधित सभी विषयों का प्रतिनिधित्व करता है। अगर दशम/दशमेश बली हो और लग्न/लग्नेश से शुभ भावों में सम्बन्ध बनाए तो जातक को एक मजबूत आधार मिलता है जिस पर व्यवसाय की नींव रखी जा सकती है।


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5. षष्ठम/षष्ठेश अर्थ त्रिकोण का दूसरा भाव है जो नौकरी, प्रतिस्पर्धा, शत्रु आदि का प्रतिनिधित्व करता है। परन्तु इसका लग्न/लग्नेश से अधिक बली होना व्यवसायी बनने के लिए ठीक नहीं है।

6. तृतीय/तृतीयेश साहस और पराक्रम का सूचक है। स्वतंत्र व्यवसाय के लिए इसका बली होकर लग्न/लग्नेश एवं दशम/दशमेश से संबंध जातक को जोखिम लेने और स्वतंत्र निर्णय लेने का साहस देता है।

7. सूर्य, मंगल और राहु: वृहत्पाराशरहोराशास्त्र के अथावतारकथनाध्याय के अनुसार सूर्य, चन्द्र, मंगल और राहु पूर्ण परमात्मांश ग्रह हैं। चन्द्र के महत्व की चर्चा तो हो चुकी है। सूर्य, ऊर्जा और स्वतंत्रता के द्योतक हैं। मंगल साहस और उर्जा का प्रतिनिधित्व करते हैं।

राहु की त्रिकोण में स्थिति हो या केंद्र में स्थिति के साथ त्रिकोणेश से सम्बन्ध हो तो राहु भाव के फलों में वृद्धि करते हैं। राहु जातक को नियमित कार्यों से हटकर कुछ अलग करने की प्रेरणा और साहस देते हैं। इन ग्रहों के प्रभाव से जातक को स्वतंत्र व्यवसाय के लिए आवश्यक प्रवृत्ति एवं ऊर्जा प्राप्त होती है।

8. शनिः कालपुरुष कुंडली में कर्म और लाभ भाव का स्वामित्व शनि के पास है। शनि सेवक के साथ-साथ मुखिया/ उद्योगपति होने के कारक भी हैं इसीलिए शनि का आकलन बहुत ध्यान से करना चाहिए। शनि यदि गोचरस्थ होकर दशम/दशमेश को प्रभावित करे तो जातक स्वतंत्र व्यवसाय की तरफ प्रेरित होगा। अगोचरस्थ शनि नौकरी देता है परन्तु योगकारक, बली और वर्गों में सुधार से शुरुआती नौकरी के बाद स्वतंत्र व्यवसाय भी दे सकता है।

9. धन योगः नौकरी करने के लिए अपने धन की आवश्यकता नहीं होती चाहे व्यक्ति गूगल का सीईओ हो या भारत का मुख्य सचिव। इसके विपरीत छोटे से छोटे व्यवसाय के लिए धन की आवश्यकता होती है। अधिक पुष्टि के लिए इंदु लग्न से भी आकलन करना चाहिए।

10. वर्ग सम्बंधित ग्रह/भावेश बल के न्यूनाधिक होने की पुष्टि नवांश से और आजीविका सम्बंधित सभी बातों के सूक्ष्म अध्ययन के लिए दशमांश का प्रयोग आवश्यक है।

11. दशाः अगर कुंडली में योग हों परन्तु सही समय पर उपयुक्त दशा-गोचर ही न आए तो निराशा के अलावा कुछ प्राप्त नहीं हो पाता। इसके विपरीत यदि सही उम्र में उपयुक्त दशा-गोचर मिल जाए तो अवसरों का अंबार लग जाता है और सफलता जातक के कदम चूमती है।

आइये, अब उपरोक्त नियमों को कुछ उदाहरणों पर लगा कर परखें। नियमों का प्रतिपादन सफल व्यवसायी - उदाहरण 1 यह कुंडली एक प्रतिष्ठित व्यवसायी की है जो 2015 की फोब्र्स सूची के 30वें पायेदान पर हैं। विंशोत्तरी दशा ग्रह अवधि उम्र वर्ष अवधि केतु 01 वर्ष 0 - 1 1957-58 शुक्र 20 वर्ष 01 - 21 1958-78 सूर्य 06 वर्ष 21 - 27 1978-84 चन्द्र 10 वर्ष 27 - 37 1984-94 मंगल 07 वर्ष 37 - 44 1994-01 राहु 18 वर्ष 44 - 62 2001-19 सामान्य विवेचनाः जन्मकुंडली में पाँच ग्रह केंद्र में हैं।

शनि और गुरु के वक्रत्व को मिलाकर सात ग्रहों का केंद्र पर प्रभाव जीवन के सभी स्तंभों को स्थायित्व प्रदान कर रहा है। लग्न मध्य के नजदीक गुरु, राहु/केतु, बुध और मंगल हैं जो अपनी-अपनी दशाओं में प्रभावशाली रहेंगे। नवांश में राहु/केतु सहित पांच ग्रह मूल त्रिकोण/स्वराशिस्थ हैं और दशमांश में राहु/केतु सहित तीन ग्रह स्वराशिस्थ हैं।

अब उपरोक्त वर्णित नियमों के आधार पर देखते हैं कि क्या जातक व्यवसाय में सफल रहेगा। लग्न/लग्नेशः लग्नेश शुक्र, नवमेश बुध और पंचमेश शनि के वक्री प्रभाव से लग्न बली है। लग्नेश-नवमेश की केंद्र में युति और योगकारक वक्री शनि से भी दृष्टि सम्बन्ध लग्नेश को भी बली करता है।


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लग्नेश शुक्र हालांकि अस्त हैं किन्तु षड्बल के सर्वाधिक बली ग्रह हैं, अतः लग्नेश रूपी सभी फल देन में पूर्ण सक्षम हैं। राहु का लग्न में होकर त्रिकोणेश बुध से सम्बन्ध राजयोग कारक है। नवांश लग्न में जन्मकुंडली के भाग्य भाव की मिथुन राशि उदित है जिसमें जन्मकुंडली का लग्नेश स्थित है और गुरु की दृष्टि से नवांश लग्न भी बली है।

दशमांश लग्न में जन्मकुंडली के दशम भाव की राशि उदित है जो व्यक्ति की कार्य के प्रति प्रयास एवं लगाव दर्शा रही है और दशमांश लग्नाधिपति चन्द्र भी भाग्य भाव में सुस्थित है। यहाँ दशमांश लग्न और दशमांश लग्नाधिपति पर गुरु-दृष्ट शनि का प्रभाव है। अर्थात, लग्न/लग्नेश तीनों कुंडलियों में बहुत बली हैं जो कि व्यवसाय की तरफ प्रेरित करेंगे।

चन्द्रः जन्मकुंडली में पक्ष बली चन्द्र दशमेश होकर तृतीय भाव में स्थित हैं और राशीश गुरु से दृष्ट होकर बल प्राप्त कर रहे हैं। नवांश में चन्द्र धन भाव में स्वराशिस्थ होकर नवमेश स्वराशिस्थ शनि से दृष्ट हैं। दशमांश में चन्द्र भाग्य भाव में होकर स्वराशिस्थ शनि से दृष्ट हैं।

शनि का बार-बार प्रभाव कुछ अशुभता तो देगा परन्तु शुभ भावेश एवं योगकारक होने के कारण जातक को अच्छा योजनाकार, एकाग्रचित्त और अनुशासित भी बनाएगा। संक्षेप में चन्द्र बली है और बाधाओं से निपटने के लिए पूर्ण सक्षम है।

दशम/दशमेशः दशम से केंद्र/त्रिकोण में छः ग्रह हैं और भाव पर कोई शुभाशुभ प्रभाव नहीं है।

उपरोक्त वर्णन अनुसार दशमेश चन्द्र बली हैं। नवांश में दशमेश गुरु सप्तम में स्वराशिस्थ हैं और वक्री दृष्टि से दशम भाव को दृष्ट कर बल प्रदान कर रहे हैं। दशम भाव पर कारक और नवमेश शनि की दृष्टि भी है। दशमांश में दशम भाव शुभ कर्तरी में है और दशमेश मंगल द्वारा दृष्ट होकर बली है।

तीनों कुंडलियों में दशम/दशमेश बली होकर उन्नति पूर्ण वातावरण एवं कार्य क्षमता का संकेत है। षष्ठम/षष्ठेशः षष्ठेश गुरु वक्री दृष्टि से षष्ठम को बल दे रहे हैं और स्वयं मंगल एवं शनि से दृष्ट होकर पीड़ित हैं। नवांश में मंगल, षष्ठेश और नवांशेश का राशि परिवर्तन दोनों में प्रगाढ़ सम्बन्ध दर्शा रहा है। दशमांश में षष्ठम पर धनेश, लाभेश, द्वादशेश और राहु/केतु का प्रभाव है। निष्कर्षतः षष्ठम/षष्ठेश सबल तो है परन्तु निश्चित रूप से लग्न/लग्नेश से निर्बल है।

तृतीय/तृतीयेशः तृतीय भाव में बली दशमेश चन्द्र की स्थिति, तृतीयेश गुरु एवं कारक मंगल की दृष्टि है जो तृतीय भाव को बली कर रहे हैं। नवांश में तृतीय भाव दशमेश गुरु और दशमांश में नवमेश गुरु द्वारा दृष्ट है। तीनों कुंडलियों में तृतीय/तृतीयेश जातक को भरपूर साहस और पराक्रम प्रदान कर रहे हैं।

सूर्य, मंगल और राहुः जन्मकुंडली में उच्च के सूर्य का सम्बन्ध लग्नेश, पंचमेश और नवमेश से है। नवांश में सूर्य का सम्बन्ध नवांशेश से है। जन्मकुंडली में मंगल की दशमेश पर दृष्टि है, नवांश में मंगल का दशम एवं दशमेश से दृष्टि सम्बन्ध है और दशमांश में मंगल स्वयं ही दशमेश होकर दशम को दृष्ट कर रहे हैं। जन्मकुंडली में राहु लग्नस्थ होकर लग्न/लग्नेश को प्रभावित कर रहे हैं और नवांश में राहु का नवांशेश से दृष्टि सम्बन्ध है अर्थात, जातक को दैवीय आशीर्वाद प्राप्त है

जो आत्मविश्वास में वृद्धि और स्वतंत्र व्यवसाय की तरफ प्रेरित करेगा। शनिः जन्मकुंडली में शनि योगकारक और नवांश एवं दशमांश में स्वराशिस्थ हैं जो स्वतंत्र व्यवसाय की ओर ही प्रेरित करेंगे। धन योगः जन्मकुंडली में धन योगों की भरमार है जैसे, लग्नेश-द्वितीयेश का राशि परिवर्तन, लग्नेश-पंचमेश का दृष्टि सम्बन्ध, लग्नेश-नवमेश की युति, लग्नेश-एकादशेश का दृष्टि सम्बन्ध, द्वितीयेश-पंचमेश का दृष्टि सम्बन्ध और पंचमेश-नवमेश का दृष्टि सम्बन्ध। नवांश में द्वितीयेश-नवमेश, पंचमेश-नवमेश और नवमेश और एकादशेश का सम्बन्ध है।


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दशमांश में द्वितीयेश -एकादशेश और पंचमेश-नवमेश आदि से धन योग निर्मित हो रहे हैं। इंदु लग्न मकर राशि में होकर इंदु लग्नेश से दृष्ट है और इंदु लग्न से केंद्र/त्रिकोण में छः ग्रह हैं जो बहुत धनदायक स्थिति है जो स्वतंत्र व्यवसाय के लिए एक आवश्यक घटक है। दशाः केतु की जन्म समय पर एक वर्ष की दशा के उपरान्त जातक को 21 वर्ष की उम्र तक लग्नेश शुक्र की दशा मिली जो कुंडली का सर्वाधिक शक्तिशाली ग्रह है।

तत्पश्चात 27 वर्ष की उम्र तक लाभेश उच्च सूर्य की दशा मिली जो षड्बल में द्वितीय क्रम पर है। इसके उपरान्त 10 वर्ष के लिए दशमेश बली चन्द्र की दशा मिली। किसी को 37 वर्ष तक इतनी सुन्दर दशाएं मिल जाएं तो एक सुदृढ़ आधार स्थापित करने में सहायता होती है। तदुपरांत, मंगल की दशा में खनिज, पेट्रोलियम, प्राॅपर्टी आदि में सफलता प्राप्त की और वर्तमान राहु भी योगकारक ही सिद्ध होगा क्योंकि लग्नेश, पंचमेश और नवमेश का प्रगाढ़ सम्बन्ध है।

निष्कर्षतः व्यवसायी बनने के सभी नियम पूर्ण रूप से सिद्ध हुए। असफल व्यवसायी - उदाहरण 2 जातक ने दिल्ली में नौकरी से अपनी आजीविका का शुभारंभ किया। फिर परिवार की सहायता से अमेरिका में बस गए और वहां से लगभग तीन-चार वर्ष आयात-निर्यात का व्यवसाय किया परन्तु उसमें असफल रहे। विंशोत्तरी दशा ग्रह अवधि उम्र वर्ष अवधि सूर्य 05 वर्ष 0 - 5 1963-68 चन्द्र 10 वर्ष 5 - 15 1968-78 मंगल 07 वर्ष 15 - 22 1978-85 राहु 18 वर्ष 22 - 40 1985-03 गुरु 16 वर्ष 40- 56 2003-19 सामान्य विवेचना: जन्मकुंडली के सभी पाप ग्रह लग्न और सप्तम में हैं।

नवांश और दशमांश में शुभाशुभ का मिश्रित प्रभाव है। लग्न/लग्नेशः लग्न में लग्नेश शनि स्वराशिस्थ हैं किन्तु अस्त एवं अशुभ ग्रहों/भावेशों से पीड़ित हैं। लग्न के शुभ कर्तरी होने और नवांश लग्न के वर्गोत्तम होने से कुछ राहत है, परन्तु नवांश लग्न भी अशुभ प्रभावित है। दशमांश लग्नेश/दशमेश बुध लग्न में गुरु से युत हैं परन्तु सूर्य और शनि से दृष्ट भी हैं, अर्थात मिश्रित प्रभाव है।

दशमांश के चारों केंद्र भावों की बेहतर स्थिति ही जातक की व्यवसाय के प्रति प्रबल इच्छा और आर्थिक सबलता का आधार है जबकि बाकी दोनों कुंडलियों के लग्न/लग्नेश निर्बल हैं और स्वतंत्र व्यवसाय के लिए अनुकूल नहीं हंै। चन्द्रः जन्मकुंडली में सप्तमेश चन्द्र का एकादशेश नीच मंगल से राशि परिवर्तन है। लाभेश और सुखेश का जन्मकुंडली में नीच का होना शुभ नहीं है हालांकि नीच भंग के साथ-साथ नवांश में मंगल उच्च के हो गए हैं।

ऐसे में प्राप्तियों की संभावना तो बनती है परन्तु अपेक्षा से कम एवं अल्प सुख अनुभूति के साथ ही। नवांश में चन्द्र द्वादशस्थ होकर अष्टमेश सूर्य से दृष्ट हैं और वर्गोत्तम बुध से युत हैं जो कि एक मिश्रित सी स्थिति है। दशमांश में चन्द्र पंचमस्थ हैं परन्तु अष्टमेश/तृतीयेश मंगल से दृष्ट हैं। किसी भी कुंडली में चन्द्र बल अच्छा नहीं है, अतः जातक के स्वतंत्र व्यवसाय के अनुकूल नहीं है।

दशम/दशमेशः दशम भाव पर तृतीयेश/द्वादशेश गुरु और नीच मंगल की दृष्टि है, दशमेश शुक्र द्वादश में षष्ठेश/ नवमेश एवं वर्गोत्तम बुध के साथ युति में हैं जो विदेश में भाग्योदय की ओर इंगित करता है। नवांश में दशम भाव, दशमेश शुक्र एवं तृतीयेश/द्वादशेश गुरु द्वारा दृष्ट होकर बली है।

दशमांश में दशमेश एवं दशमांश लग्नेश बुध लग्नस्थ हैं और चतुर्थेश/सप्तमेश गुरु से शुभ युत हैं जो जातक की उन्नति की इच्छा शक्ति और कार्य शक्ति को दर्शा रहा है अर्थात् जातक ने प्रयास पूर्ण किये होंगे परन्तु षष्ठेश शनि और द्वादशेश सूर्य की दृष्टि से बाधाओं को न झेल पाए होंगे और शुभता फलीभूत नहीं हो पाई।

षष्ठम/षष्ठेशः षष्ठेश बुध वर्गोत्तम है और षष्ठम पर षष्ठेश बुध, पंचमेश शुक्र और गुरु की दृष्टि है।

दशमांश में षष्ठेश शनि दशमांश लग्नेश बुध और गुरु से दृष्ट हैं। षष्ठम/षष्ठेश स्पष्ट रूप से सभी कुंडलियों लग्न/लग्नेश से बहुत अधिक बली है। ऐसी परिस्थिति में किसी के अधीन कार्य करने की संभावना प्रबल हो जाती है। तृतीय/तृतीयेशः तृतीय भाव पर कोई शुभाशुभ प्रभाव नहीं है और तृतीयेश गुरु, नीच अवस्थित मंगल से दृष्ट हैं। नवांश में भी तृतीय भाव पर कोई शुभाशुभ प्रभाव नहीं है, तृतीयेश गुरु केंद्र में शत्रु शुक्र से युत और मंगल से दृष्ट होकर कुछ खास देने की अवस्था में नहीं हैं। तृतीय भाव के राहु/केतु कुछ साहस देंगे।


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निष्कर्षतः तृतीय भाव जातक को आवश्यक प्रवृत्ति और भरपूर साहस नहीं दे पा रहा है। सूर्य, मंगल और राहुः जन्मकुंडली में सूर्य का सम्बन्ध लग्न/ लग्नेश से है, नवांश में कोई सम्बन्ध नहीं है और दशमांश में लग्न/लग्नेश एवं दशम से संबंध है। जन्मकुंडली में मंगल का सम्बन्ध लग्नेश से है, नवांश में मंगल लग्नस्थ ही हैं और दशमांश में कोई सम्बन्ध नहीं है। राहु का सम्बन्ध केवल जन्मकुंडली में लग्न से है। परमात्मांश ग्रहों का सम्बन्ध आंशिक रूप से ही है। शनिः शनि अस्त होकर अष्टमेश से युत हैं और वर्गों में भी बली स्थिति नहीं है। षड्बल में पांचवें पायदान पर हैं।

उपरोक्त ज्योतिषीय नियमों के आधार पर स्वतंत्र व्यवसाय करने के नकारात्मक संकेत हैं इसीलिए धन योग आकलन करने का भी कोई लाभ नहीं है। 22 वर्ष की उम्र में जातक को 18 वर्षांे के लिये राहु की दशा मिली जो कुंडली अनुसार सफलता एवं व्यवसाय के लिए अनुकूल नहीं है।

निष्कर्ष इस लेख में व्यवसायी बनने के योगों को निर्धारित एवं सूत्रबद्ध किया गया है, फिर उन्हें अनेकों कुंडलियों पर परखने के पश्चात सार प्रस्तुत किया गया है। इन सूत्रों के आधार पर अब एक ज्योतिषी यह बताने में सक्षम होगा कि किन जातकों के लिए व्यवसाय करने की सलाह देनी चाहिए।



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