रत्न धारण विधि

रत्न धारण विधि  

आर. डी. सिंह
व्यूस : 8106 | जुलाई 2016

माणिक्य जो जातक माणिक्य/रूबी पहनना चाहते हैं वे आवश्यकता अनुसार ढाई से सात रत्ती का माणिक्य पहनें। सूर्य के रत्न माणिक्य को रविवार या वीरवार के दिन अंगूठी में जड़वाएं। रत्न को शरीर का स्पर्श अवश्य करना चाहिये। अंगूठी को कच्चे दूध, गंगाजल में 24 घंटे डुबोकर रखें और ऊँ घृणिः सूर्याय नमः या ऊँ ह्रां ह्रीं ह्रौं सः सूर्याय नमः मंत्र का 7 हजार बार जप करके/शुद्ध करके रवि पुष्य योग या शुक्ल पक्ष के रविवार को धारण करें।

रत्न धारण करते समय आद्र्रा व मूल नक्षत्रों का ध्यान रखें। माणिक्य की अंगूठी दाहिने हाथ की तर्जनी व अनामिका अंगुली में धारण कर सकते हैं। मोती चंद्रमा का रत्न मोती बहुत से लोग शौक के लिये भी पहन लेते हैं या कोई पढ़ाई में कमजोर है, मानसिक परेशानी है, गुस्सा आता है तो लोग अधिकतर अपने आप मोती धारण कर लेते हैं।

यह सही नहीं है। जन्मकुंडली के अनुसार मोती धारण करें, मोती कम से कम 4 से 11 रत्ती के बीच होना चाहिए। शुक्ल पक्ष के सोमवार को रात को चंद्रमा के दर्शन करके धारण करें। मोती सोमवार को ही अंगूठी में जड़वाएं। चांदी की अंगूठी में और 11 हजार मंत्रों का जाप करें। मंत्र - ऊँ सांे सोमाय नमः का जाप करें। रत्न धारण करते समय रोहिणी, श्रवण व हस्त नक्षत्र हों तो अत्यंत शुभ है।

राहु और केतु के नक्षत्र में मोती धारण न करंे। मूंगा मूंगा रत्न सोमवार, रविवार, मंगलवार व वीरवार को जड़वाएं। रत्न शरीर को स्पर्श करना चाहिए। रत्न धारण करने से पहले गंगाजल और कच्चे दूध में डुबोकर रखना चाहिए और ऊँ अं अंगारकाय नमः का दस हजार बार जाप करके, शुद्ध करके हनुमान जी के दर्शन करके धारण करना चाहिए। मंगल के नक्षत्रों मृगशिरा, चित्रा व धनिष्ठा में धारण करें।

शुक्ल पक्ष के मंगलवार को सूर्योदय के पश्चात धारण करें। अत्यंत लाभ होगा। पन्ना बुध का रत्न पन्ना अनेक विशेषताओं से युक्त होता है। यह रत्न सोने और चांदी दोनों धातुओं में पहना जाता है। बुधवार के दिन पन्ना 5 रत्ती से 10 रत्ती के बीच अंगूठी में जड़वाएं और शुक्ल पक्ष के बुधवार को या बुध के नक्षत्र अश्लेषा, ज्येष्ठा व रेवती में धारण करें। धारण करने से पहले रत्न जड़ित अंगूठी को कच्चे दूध व गंगाजल में 24 घंटे रखें और ऊँ बुं बुधाय नमः को नौ हजार बार जाप कर शुद्ध करें और फिर दाहिने हाथ की सबसे छोटी अंगुली में धारण करें।


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गणेशजी के दर्शन करें। पुखराज बृहस्पति के रत्न पुखराज को शुक्ल पक्ष के वीरवार को सोने की अंगूठी में जड़वाएं। पुखराज 5 रत्ती से लेकर 10 रत्ती तक होना चाहिए। 5 रत्ती से कम का पुखराज धारण करने से कोई लाभ नहीं होता। पुखराज को धारण करने से पहले कच्चे दूध या गंगाजल में डुबोकर रखना चाहिए और फिर शुक्ल पक्ष के वीरवार को ऊँ बृं बृहस्पतये नमः मंत्र से 19000 बार जाप करके शुद्ध करके दाहिने हाथ की तर्जनी अंगुली में धारण करें। पुखराज बृहस्पतिवार को सवेरे सूर्योदय के पश्चात धारण करने से अनेक शुभ फलों की प्राप्ति होती है।

पुखराज शुक्ल पक्ष के बृहस्पतिवार या गुरु पुष्य योग में धारण करने से उसकी शुभता बढ़ती है। हीरा शुक्र के रत्न हीरे को शुक्ल पक्ष के शुक्रवार को ही अंगूठी में जड़वाना चाहिए। जो जातक हीरा महंगा होने के कारण पहनने में असमर्थ हों वे इसका उपरत्न जिरकन और ओपल पहन सकते हैं।

हीरा कम से कम 60 सेंट से लेकर डेढ़ कैरेट के बीच में होना चाहिए। हीरा चांदी धातु में ही जड़वाना ज्यादा शुभ होता है और धारण करने से पहले ऊँ शुं शुक्राय नमः मंत्र का 16000 बार जाप करके, शुद्ध करके शुक्रवार को सवेरे या शाम को दाहिने हाथ की बीच वाली अंगुली में धारण करें। नीलम शनि के रत्न नीलम को बहुत ही सावधानी से धारण करना चाहिए। नीलम रत्न धारण करने से पहले किसी विद्वान ज्योतिषी से सलाह अवश्य लें अन्यथा भारी परेशानी में फंसने की संभावना हो जाती है।

शनि रत्न नीलम शनिवार के दिन चांदी की धातु में जड़वाना चाहिए और सबसे ज्यादा 23000 मंत्रों से शुद्ध करके दाहिने हाथ की मध्यमा अंगुली में धारण करना चाहिए। मंत्र इस प्रकार है: ऊँ शं शनैश्चराय नमः। नीलम शनिवार सवेरे शाम को धारण करना चाहिए। शनिदेव के दर्शन करना चाहिए और असहाय/ गरीबों की सहायता करनी चाहिए। मजदूरों को प्रसन्न रखना चाहिए। इससे शनि देव प्रसन्न हो जाते हैं।

नीलम कम से कम 5 रत्ती का होना चाहिए। गोमेद राहु के रत्न गोमेद को शनिवार के दिन चांदी की अंगूठी में जड़वाएं। गोमेद का वजन 5 से 8 रत्ती का होना चाहिए और अंगूठी को ऊँ रां राहवे नमः मंत्र से 18000 बार जप कर शुद्ध कर लें और शनिवार शाम को या सवेरे दाहिने हाथ की मध्यमा अंगुली में धारण करें।

गोमेद रत्न वकालत करने वाले जातकों के लिए अत्यंत लाभदायक सिद्ध होता है। लहसुनिया केतु के रत्न लहसुनिया को शनिवार को चांदी की अंगूठी में जड़वाएं। रत्न का वजन 3 रत्ती से 8 रत्ती के बीच होना चाहिए। शुक्ल पक्ष के शनिवार को सुबह या शाम धारण करें। धारण करने से पहले ऊँ कें केतवे नमः मंत्र से 17000 बार जप करें और शुद्ध करके धारण करें। गणेशजी की आराधना करते रहें और कुत्तों की सेवा करते रहें, लाभ होगा।


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