आस्था एवं शांति का पर्व मकर संक्रान्ति

आस्था एवं शांति का पर्व मकर संक्रान्ति  

व्यूस : 6169 | दिसम्बर 2013
भारतवर्ष विभिन्न धर्मां एवं त्योहारों का एक सुन्दर संगम स्थल है । यहां विभिन्न धर्म एवं त्योहार आपस में एकता एवं भाईचारा का संदेष देते हैं। आध्यात्मिकता एवं आस्था से जुडे़ हर त्योहार भारतवर्ष में विभिन्न रुपों में मनाये जाते हैं। त्योहारों में उल्लास एवं महत्व के कारण ही भारतवर्ष को ‘‘त्योहारां का देष भी कहा जाता है।‘‘ इन्हीं त्योहारों में वर्ष के प्रारभ्भ में पौष माह यानी 14 जनवरी को मनाया जाने वाला त्यौहार ‘‘ मकर संक्रान्ति ‘‘ प्रकृति एवं जीवन से जुड़ा हुआ आस्था एवं आध्यात्मिक षान्ति का प्रतीक हिन्दुओं का एक महत्वपूर्ण पर्व है । भारतवर्ष में मकर संक्रान्ति का त्यौहार पूरे उल्लास एवं हर्ष के साथ अलग-अलग ढंग से मनाया जाता है । दक्षिण में ‘‘पोंगल‘‘ पंजाब में ‘‘ लोहड़ी ‘‘ उत्तर प्रदेष में ‘‘खिचड़ी‘‘ तथा गुजरात में ‘‘उत्तरायण‘‘ पर्व के रुप में मनाया जाता है । सभी जगह मनाये जाने वाले इन त्यौहारों की आस्था एवं श्रद्वा सूर्य, गंगा एवं प्रकृति से जुड़ी हुयी है। मकर संक्रान्ति का त्यौहार वसंत के आगमन एवं नये पैदावार एवं अन्न के सूचक एवं स्वागत का समय होता है। पौष महीने में भगवान सूर्य जब मकर राषि में प्रवेष करते हैं साथ ही सूर्य दक्षिणायण से उत्तरायण होते हं तो यह त्यौहार एवं समय षुभ कार्य आरभ्भ होने का संकेत देता है। कहा जाता है कि भगवान सूर्य अपने पुत्र षनि के घर यानि मकर राषि में आते हैं तो हिन्दुओं में पूजा, अर्चना, एवं स्नान का काफी महत्व होता है । इस दिन सूर्य पूजा, गंगा स्नान , दान एवं तिल, लाई ,खिचड़ी खाने का रिवाज एवं परम्परा है । प्राण उर्जा दायक सूर्य एवं जीवनदायिनी गंगा की पूजा एवं स्नान को इस दिन महास्नान एवं मोक्षदायक माना गया है। ऐसी मान्यता है कि महाभारत काल में भीष्मपितामह ने सूर्य उत्तरायण होने पर ही अपना षरीर त्यागा था। इस दिन सूर्य को अध्र्य देने कि महत्ता निम्न ष्लोक में निहित है। ‘‘ एहि सूर्य सहस्रांषों तेजो राषे जगत्पते। अनुकम्पय मां भक्त्या गृहाणाध्र्य नमोऽस्तुते ।। मकर संक्रान्ति का त्यौहार प्रत्येक व्यक्ति को ईष्वर एवं प्रकृति के बीच के रिष्ते को मजबूती प्रदान करने एवं आभार प्रदर्षित करने का अवसर प्रदान करता है । पूरे देष में अलग- अलग प्रांतां में अलग - अलग ढंग से मनाये जाने वाले इस त्यौहार के पीछे मुख्य उद्देष्य एकता, समानता एवं विष्वास है। इस दिन देष के प्रमुख तीर्थ स्थलां विषेषकर गंगातट पर हजारों श्रद्वालु गंगा स्नान करते हं, सूर्य को अध्र्य देते हैं तथा दान-पूजा कर तिल, गुड़ एवं चूड़ा-दही एवं खिचड़ी खाते हैं। इस दिन मौज-मस्ती के रुप में जगह-जगह पतंगबाजी एवं गिल्ली-डंडे का भी खेल खेला जाता है । अन्न पूजा, गौ पूजा एवं दान - स्नान को इस दिन विषेष महत्त्व के साथ किया जाता है। इस त्यौहार के दिन बच्चे से बूढे़ तक सभी गंगा या नदी में स्नान कर त्यौहार का आनंद उठाते है। सूर्य एवं मोक्ष दायिनी पवित्र गंगा के प्राकृतिक एवं आध्यात्मिक संबंधों को बल देता हुआ यह पर्व हिन्दुओं के श्रद्वा एवं भक्ति को भी मजबूती प्रदान करता है। ऐसी मान्यता है कि इसी दिन गंगा का अवतरण धरती पर हुआ था । धार्मिक मान्यताओं में इस दिन ब्रह्म मुहूत्र्त में गंगा या किसी नदी में स्नान कर सूर्य आराधना करने की बात बतायी गयी है । माँ गंगे का आह्वान् कर भी किसी जलाषय , तालाब में स्नान विधि बतायी गई है जो निम्न गंगा आह्वान् ष्लोक में निहित है । ‘‘ नन्दिनी नलिनी सीता मालती च महापगा । विष्णुपादाब्जसभ्भूता गंगा त्रिपथगामिनी ।। भागीरथी भोगवती जाह्नवी त्रिदषेष्वरी। द्वादषैतानी नामानि यत्र यत्र जलाषये ।। स्नानोधतः स्मेरन्नित्यं तत्र तत्र वासाम्यहम् ।। प्रयाग की त्रिवेणी (गंगा-यमुना-सरस्वती का संगम) में मकर संक्रांति तथा कुंभ पर्व में किया हुआ स्नान अत्यंत फलदायक है। उसकी इहलौकिक व पारलौकिक कामनायें पूर्ण हो जाती हैं। मनुष्य धनी और दीर्धजीवी होता है। ‘‘धनिको दीर्घजीवी च जायते नात्र संशयः।’’ प्रयाग तीर्थों का राजा है। यहां पवित्र त्रिवेणी, वेणी-माधव, सोमनाथ, भारद्वाज मुनि का आश्रम, वासुकिनाथ, अक्षय वट एवं शेषनाथ स्थान हैं। मकर राशि के सूर्य में यहां लाखों यात्री एकत्र होकर स्नान-दान करके अपने कायिक, वाचिक, मानसिक पापों से मुक्त होकर परलोक का मार्ग प्रशस्त करते हैं। मकर संक्रांति से ही सहस्त्रों लोग प्रयाग में आकर एक महीने का कल्पवास करते हैं। मकर का स्वामी शनि होता है और शनि सूर्य में पुत्र-पिता का संबंध है, दोनों का परस्पर विरोध भी है। परंतु ग्रहों की गति में परिवर्तन का कोई प्रश्न उपस्थित नहीं होता। शनि मारक तत्त्व है। उत्तरायण में प्रवेश के समय सूर्य का प्रभाव गंगासागर तथा प्रयाग में विशेष महत्व का होता है। इस दिन स्नान, जप, दान तथा धार्मिक अनुष्ठानों का विशेष महत्व होता है। यहां सूर्य की सीधी किरणें पृथ्वी पर पड़ती हैं जिसके फलस्वरूप प्राणियों के अंतर्गत निहित मारक तत्त्व का प्रभाव कम होकर प्राणियों को जीवन दान मिलता है। गंगा वैसे भी जीवन दायिनी है, सूर्य उससे भी अधिक प्राणवान है। सूर्य ज्ञान का प्रतीक है, शनि वैराग्य का और गंगा भक्ति का। तीनों शक्तियां मिलकर प्राणियों को ऊर्जा प्रदान करती हैं। यही कारण है कि मकर संक्रांति से एक माह तक प्रयाग में रहकर ‘‘भक्ति ज्ञान विरागाप्तो’’ भक्ति ज्ञान-वैराग्य से मानव-मात्र नयी स्फूर्ति व चेतना शक्ति प्राप्त करते हैं। उत्तरायण सूर्य में दिन बड़े रात्रि छोटी एवं दक्षिणायन सूर्य में दिन छोटे तथा रात्रि बड़ी होती है। इस पर्व पर तिल का विशेष महत्त्व माना गया है अतः। तिलस्नायी तिलोद्धर्ती तिलहोमी तिलोदकी। तिलभुक् तिलदाता च षट्तिला पापनाशनाः।। इति ।। 1. तिलों के जल से स्नान करें (2) पिसे हुए तिलों से उबटन करें, (3) तिलों का हवन करें, (4) तिलों से तर्पण करें, (5) तिलों के बने (मोदक, बर्फी या तिलकसरी) पदार्थों का भोजन एवं मिल मिश्रित जल का सेवन करें एवं (6) तिलों का दान करें तो संपूर्ण पापों का नाश हो जाता है। इस दिन घृत और कंबल वस्त्रादि के दान का भी विशेष महत्त्व है। हेमाद्रि में स्कन्दपुराण का मत है कि - जो मनुष्य तिल की धेनु का दान करता है वह सब इच्छाओं को प्राप्त होता हुआ परम सुख का लाभ प्राप्त करता है। विष्णु धर्म में - उतरे त्वयने विप्रा वस्त्रदानं महाफलं। तिलपूर्णमनड्वाहं दत्वा रोगैः प्रमुच्यते।। उत्तरायण मकर संक्रांति पर वस्त्र दान करना महाफल को देने वाला है तथा तिल से पूर्ण बैल को देने से रोगों से छुटकारा पाता है। शिव मंदिर में उत्तम तिल के तेल का दीपक जलाना कल्याणकारी है। मकर की संक्रांति में लकड़ियों के और अग्नि के दान का विशेष फल है-‘‘झष प्रवेशे दारूणां दानमग्नेस्तथैव च’’।। संक्रांति में जागरण से स्वर्ग लोक की प्राप्ति होती है। यदि कोई भी संक्रांति अमावस्या में हो तो शिव-सूर्य पूजन से स्वर्ग प्राप्ति होती है। मकर संक्रांति में प्रातःकाल स्नान करके शिव की अर्चना करनी चाहिए। उद्यापन में बत्तीस पल स्वर्ण का दान देकर वह संपूर्ण पापों से मुक्त हो जाता है। संक्रांति के दिन यदि रविवार हो तो उसे ‘आदित्य हृदय’ माना गया है। इस दिन नत्त व्रत करके मनुष्य सब कुछ पा लेता है। ‘‘अयने विषुवे चैव त्रिरात्रो- पोषितो नरः। स्नात्वा यस्त्वर्चयेदानुं सर्वकामफलं लभेत्।’’ अर्थात दक्षिणायन और उत्तरायण में तथा विषुव (मेष और तुला) की संक्रांति में जो प्राणी तीन रात उपवास तथा स्नान कर श्री सूर्य का पूजन करता है, उसके सारे मनोरथ पूर्ण होते हैं। ‘‘मकरे रात्रावपि श्राद्धादि भवतीत्युक्तं प्राक्’’ - अर्थात् मकर की संक्रांति में रात्रि में भी श्राद्धादि होते हैं। सभी संक्रांतियों से मकर संक्रांति का पुण्य काल भी अधिक होता है। यथा-मेष व तुला की संक्रांति में पहले (पूर्व) व बाद में दश-दश घड़ी, वृष-सिंह वृश्चिक एवं कुंभ की संक्रांति में पूर्व सोलह घड़ी, मिथुन-कन्या-धनु एवं मीन की संक्रांति में पूर्व सोलह घड़ी, मिथुन-कन्या-धनु एवं मीन की संक्रांति में बाद की सोलह घड़ी, कर्क की संक्रांति में पहले तीस घड़ी तथा मकर की संक्रांति में बाद की चालीस घड़ी पुण्यकाल का समय होता है। (हेमाद्रि मत) - सामान्य रूप से सभी संक्रांतियों का पर व बाद में 16-16 घड़ी का पुण्यकाल भी होता है। रात्रि में संक्रांति आने से पुण्यकाल विधान में अंतर आ जाता है। माधवीय में जाबालिका ने कहा है कि मकर की संक्रांति में बीस घड़ी पूर्व और बीस घड़ी बाद पुण्यकाल होता है। अयन संक्रांतियों में ही रात्रि में स्नान श्राद्धादि का विधान है अन्य संक्रांतियों में नहीं। लोक गीतों में भी माघ मकर की महत्ता का उदाहरण मिलता है। ‘‘माघहिं मकर नहायेऊँ अगिनि नहिं तापेंव हों। प्यारे दीन मोतियन के दान ताही से लाल सुंदर हों।’’ माता यशोदा ने कृष्ण को पुत्र रूप में पाने के लिए भी इसी मकर संक्रांति को व्रत किया था। इस दिन जगह-जगह मेलों का भी आयोजन होता है। इस पर्व पर स्नान न करने वाला सात जन्म तक रोगी व निर्धन रहता है। संतान रहित व्यक्ति को उपवास करना चाहिए। संतान वाले को उपवास निषेध है। निष्कर्ष यही निकलता है कि मकर संक्रांति का पर्व उपरोक्त तथ्यों से अधिक महत्त्व का है अतः इस दिन तीर्थों में जाकर स्नान-दान-जप अवश्य करें। दीन-दुखियों, भिक्षुकों, अतिथियों, संतों तथा ब्राह्मणों को अनेकानेक प्रकार की वस्तुएं देकर उन्हें संतुष्ट करें, आशीर्वाद प्राप्त करें तथा देव मंदिरों में जाकर ब्राह्मणों को वस्त्रादि देकर देव दर्शन करें तो निश्चय ही संपूर्ण आकांक्षाओं की पूर्ति होती है, त्रितापों (दैहिक-दैविक-भौतिक) का नाश होता है तथा संपूर्ण भोगों को भोगता हुआ उत्तरायण मार्ग से वैकुंठ लोक को प्राप्त करता है।



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